गांव में उस रात अजीब सन्नाटा था. हवा बिना वजह ठंडी हो गई थी और घरों के किवाड़ ऐसे चरमरा रहे थे जैसे किसी अदृश्य हाथ ने उन्हें छुआ हो.
उसी शाम गांव के किनारे रहने वाला रघु अपने परिवार के साथ खाना खा रहा था. उसकी पत्नी लाजो बार बार दरवाजे की तरफ देख रही थी. उसे लगता था कि बाहर कोई खड़ा है. पर खुली आंखों से कुछ दिखाई नहीं देता था, सिर्फ अंधेरा. रघु ने उसे समझाया कि यह उसके मन का भ्रम है, लेकिन वह खुद भी एक अनजानी बेचैनी महसूस कर रहा था.
रात गहरी होते ही अचानक खिड़की पर मिट्टी जैसा कुछ उछलकर लगा. रघु मशाल लेकर बाहर निकला. दूर तक सिर्फ पेड़ और धुंध. हालांकि उसे लगा जैसे सामने कोई काली आकृति कुछ देर पहले ही पीछे हटकर पेड़ों में समा गई हो।
वह कुछ सोच पाता इससे पहले ही घर के भीतर लाजो चीख उठी. रघु दौड़कर अंदर आया तो देखा कि उनका छोटा बेटा सूरज फर्श पर बैठा कांप रहा था. वह किसी को देखता जा रहा था, लेकिन वहां कोई नहीं था. उसकी आंखों में लाल चमक सी तैर रही थी जैसे वह किसी और के आदेश पर सांस ले रहा हो.
लाजो उसे सीने से लगाने लगी लेकिन बच्चा अचानक बर्फ जैसा ठंडा हो गया. उसकी गर्दन के पास काली मिट्टी की पतली लकीरें उभर आईं. रघु यह देखकर डर गया. वह उसे उठाकर बिस्तर पर ले गया. तभी कमरे के कोने में पड़ा दिया अपने आप टिमटिमाने लगा।
रोशनी ऊपर नीचे होने लगी और उस टिमटिमाहट में रघु ने पहली बार महसूस किया कि कमरे में कोई और भी मौजूद है. वहां धुआं सा उठ रहा था जो किसी आकृति में बदलता हुआ फिर गायब हो जाता था.
सूरज अचानक सीधी नजरें रघु की तरफ घुमाकर धीमी आवाज में बोला कि उसे बुलाने वाला आ गया है. उसकी आवाज उसकी नहीं थी, बल्कि किसी बूढ़े आदमी की टूटी हुई सांस जैसी लग रही थी. रघु और लाजो की रूह कांप गई. बच्चा फिर से बोला कि यह बस शुरुआत है। उसके कहते ही कमरे के बीचोंबीच जमीन राख की तरह काली होने लगी.
कुछ पल बाद एक लंबी परछाई उस राख से उठने लगी. वह इंसानी रूप जैसी थी लेकिन चेहरा पिघली मोम जैसा टेढ़ा. वही आंखें भीतर धंसी हुई और उनमें वही लाल चमक. यह Salmon था, और उसने उस परिवार को अपनी पहली पनाह बना लिया था.
लाजो ने चिल्लाकर बाहर भागने की कोशिश की लेकिन दरवाजा अपने आप बंद हो गया. लकड़ी पर किसी के नाखून घिसने जैसी आवाज आई. रघु मशाल लेकर उसे दूर करने की कोशिश कर रहा था लेकिन आग की लौ काली होने लगी और फिर बुझ गई. Salmon की परछाई धीरे धीरे लाजो की ओर सरकने लगी. वह हवा में तैरती हुई लग रही थी. बच्चे की आंखें अब पूरी तरह लाल थीं. और उसकी मुस्कुराहट ऐसी थी जैसे उसके भीतर अब कोई और बैठा हो.
लाजो की चीखें अचानक रुक गईं. कमरे में गहरी खामोशी छा गई. रघु ने हिम्मत कर पीछे मुड़कर देखा तो लाजो बिल्कुल स्थिर खड़ी थी. उसकी गर्दन पर वही काली मिट्टी की लकीरें फैल चुकी थीं. वह सीधे रघु को देख रही थी लेकिन उसकी आंखें खाली थीं. जैसे किसी और की नजरें उसके भीतर से देख रही हों. वह धीरे से बोली कि Salmon ने घर चुन लिया है और अब उसे कोई नहीं रोक सकता.
रघु को उसी समय एहसास हो गया कि यह डर केवल उनके घर तक सीमित नहीं रहेगा. यह दानव अपने लिए शरीर ढूंढ रहा था और आज उसने दो पा लिए थे. घर में ठंड बढ़ती जा रही थी. दीवारें हल्की हल्की कांपने लगी थीं. यह सब साफ कर रहा था कि Salmon ने इस परिवार को सिर्फ पकड़ा नहीं था, बल्कि उनका मन और आत्मा दोनों निगलने शुरू कर दिए थे.
यह वह रात थी जब पूरे गांव में पहली बार किसी को महसूस हुआ कि जंगल का डर अब जंगल तक नहीं रहने वाला. Salmon ने अपना रास्ता ढूंढ लिया था, और उसकी नजरें अब गांव के हर दरवाजे पर थीं.