🌑 एपिसोड 4: मुक्ति की पहली दरार
उस सुबह आरव देर तक पेंटिंग के सामने खड़ा रहा।
रात की बातें अब भी उसके भीतर गूँज रही थीं—अनाया का दर्द, उसकी क़ैद, और वह कलाकार… जिसने कला के नाम पर गुनाह किया था।
पहली बार आरव को अपनी कला से डर लग रहा था।
उसने ब्रश उठाया…
फिर रख दिया।
“अगर रंग किसी को क़ैद कर सकते हैं,”
वह खुद से बोला,
“तो शायद रंग ही किसी को आज़ाद भी कर सकते हैं।”
दिन ढलने से पहले आरव पुराने रिकॉर्ड्स, किताबें और आर्ट जर्नल्स लेकर बैठ गया।
वह उस कलाकार के बारे में जानना चाहता था—
जिसने अनाया की ज़िंदगी छीनी थी।
एक नाम बार-बार सामने आ रहा था—
देवांश वर्मा।
एक ज़माने का महान चित्रकार।
जिसकी आख़िरी पेंटिंग… कभी प्रदर्शित ही नहीं हुई।
आरव का दिल तेज़ धड़कने लगा।
“यही है वो…”
उसने पेंटिंग की ओर देखा।
“है न, अनाया?”
कोई जवाब नहीं आया।
कमरे में अजीब-सी बेचैनी फैल गई।
रात होते ही मोमबत्ती जली।
घड़ी ने बारह बजाए।
लेकिन अनाया नहीं आई।
आरव की बेचैनी बढ़ने लगी।
“अनाया?”
उसने आवाज़ दी।
अचानक कमरे की दीवारों पर साये दौड़ने लगे।
हवा तेज़ हो गई।
और फिर—
अनाया प्रकट हुई।
लेकिन आज वह अलग थी।
उसका चेहरा पीला था, आँखों में डर था…
और उसकी मौजूदगी पहले से कहीं ज़्यादा कमज़ोर।
“क्या हुआ?”
आरव घबराकर उसकी ओर बढ़ा।
“तुम ठीक नहीं लग रहीं।”
अनाया ने सिर हिलाया।
“तुमने… उसके बारे में पढ़ा?”
आरव चौंक गया।
“तुम जानती थीं?”
“हाँ,”
उसकी आवाज़ काँप रही थी।
“देवांश वर्मा की आत्मा अब भी इस पेंटिंग से जुड़ी है।”
कमरे में सन्नाटा छा गया।
“क्या मतलब?”
आरव ने पूछा।
“जिस दिन तुमने मुझे यहाँ लाया,”
अनाया बोली,
“उसी दिन उसे भी पता चल गया…
कि कोई मेरी मुक्ति के बारे में सोच रहा है।”
आरव की रीढ़ में सिहरन दौड़ गई।
“वह मर चुका है न?”
अनाया की आँखें उठीं।
“मरना… और ख़त्म हो जाना,
दो अलग बातें हैं, आरव।”
अचानक पेंटिंग का फ्रेम ज़ोर से काँपा।
दीवार पर टँगी तस्वीर तिरछी हो गई।
एक भारी, गहरी आवाज़ कमरे में गूँजी—
“वह मेरी रचना है।”
आरव का दिल जैसे रुक गया।
अनाया पीछे हट गई।
“वह आ रहा है,” उसने फुसफुसाकर कहा।
“वह नहीं चाहता कि मैं आज़ाद होऊँ।”
“मैं डरता नहीं,”
आरव ने कहा—हालाँकि उसकी आवाज़ काँप रही थी।
“तुम किसी की चीज़ नहीं हो।”
कमरे का तापमान अचानक गिर गया।
पेंटिंग के भीतर एक साया उभरा—
लंबा, विकृत…
और क्रूर।
“कला क़ुर्बानी माँगती है,”
आवाज़ फिर गूँजी।
“और उसने खुद को मुझे सौंपा था।”
“झूठ!”
अनाया चीख उठी।
“तुमने मुझे धोखा दिया था!”
साया हँसा—
एक ठंडी, बेरहम हँसी।
आरव आगे बढ़ा और पेंटिंग के सामने खड़ा हो गया।
“अगर तुम्हें किसी को रोकना है,”
उसने कहा,
“तो मुझे रोककर दिखाओ।”
साया एक पल को ठिठका।
शायद पहली बार किसी इंसान ने उससे डरकर नहीं…
लड़कर बात की थी।
अनाया की आँखों से आँसू बह निकले।
“मत करो,”
उसने आरव से कहा।
“तुम्हें नुकसान हो सकता है।”
आरव ने उसकी ओर देखा।
उस नज़र में डर नहीं था—
बस फ़ैसला था।
“अगर तुम्हारी आज़ादी की क़ीमत मैं हूँ,”
उसने कहा,
“तो यह सौदा मुझे मंज़ूर है।”
साया गुस्से से गुर्राया।
फ्रेम ज़ोर से हिलने लगा।
और तभी—
पेंटिंग में एक महीन दरार पड़ गई।
एक छोटी-सी दरार।
अनाया ने उसे देखा—
और उसकी आँखों में उम्मीद चमक उठी।
“आरव…”
उसने काँपती आवाज़ में कहा।
“यह पहली बार है…
जब पेंटिंग टूटी है।”
अचानक सब शांत हो गया।
साया गायब हो गया।
कमरा स्थिर हो गया।
आरव ज़मीन पर बैठ गया—थका हुआ, साँसें तेज़।
अनाया उसके पास आई।
आज पहली बार उसका हाथ…
आरव के हाथ को हल्के से छू गया।
वह छुअन ठंडी नहीं थी।
“तुमने मेरी मुक्ति का रास्ता खोल दिया,”
उसने कहा।
“लेकिन यह रास्ता आसान नहीं होगा।”
आरव ने उसकी ओर देखा।
“जब तक तुम मेरे साथ हो,”
वह मुस्कुराया,
“मुझे कोई डर नहीं।”
अनाया की आँखों में मोहब्बत और डर—
दोनों साथ चमक उठे।
🌘 हुक लाइन (एपिसोड का अंत)
आरव नहीं जानता था कि जिस दरार को उसने मुक्ति समझा है, वही आने वाले तूफ़ान की पहली आहट है…