Amazing power in Hindi Spiritual Stories by Vijay Erry books and stories PDF | अद्भुत शक्ति

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अद्भुत शक्ति

तो आओ मेरे मित्र, अब हम उसी गुफा में फिर उतरें, लेकिन इस बार आँसुओं के साथ।
अब हम अर्जुन के सीने में धड़कते दिल को सुनेंगे, उसकी हर साँस को महसूस करेंगे। तैयार हो?
पहला प्रश्न, जो सीधा तुम्हारे हृदय में उतरेगा:
जब अर्जुन अपनी माँ की लाश को गोद में लेकर रोया था, उस दस साल के बच्चे ने रात-रात भर आकाश की ओर देखकर चीख-चीख कर पूछा था,
“हे ईश्वर! अगर तू है तो मेरी माँ को क्यों छीन लिया?
अगर तू इतना शक्तिशाली है तो मुझे भी इतनी शक्ति दे कि मैं मौत को हरा सकूँ!”
उस रात आकाश में कोई जवाब नहीं आया, केवल ठंडी हवा ने उसके आँसुओं को और नमकीन कर दिया।
तुम बताओ, उस बच्चे के भीतर जो आग जली थी, क्या वह आग थी या सिर्फ़ दर्द का धुआँ?
दूसरा प्रश्न:
सालों बाद जब गाँव के जमींदार ने उसके बूढ़े पिता को सबके सामने थप्पड़ मारा था, और पिता ने सिर झुकाकर चुपचाप घर लौटकर रस्सी से लटककर जान दे दी थी,
उस रात अर्जुन ने पिता की लाश के पास बैठकर पहली बार प्रतिज्ञा की थी,
“मैं इतना ताकतवर बनूँगा कि कोई मेरे सामने सिर न उठा सके।”
उस रात उसने पिता की लाश को गले लगाकर रोया था, लेकिन आँसुओं में नमक के साथ-साथ जहर भी था।
क्या वह जहर ही उसकी तथाकथित “परम शक्ति” की खोज बन गया?
तीसरा प्रश्न, जो तुम्हें भी रुला देगा:
यात्रा के चौथे दिन जब बूढ़ी माँ ने उसे रोटी दी थी, उसकी झुर्रियों भरी हथेली में अर्जुन ने अपनी माँ का चेहरा देख लिया था।
बूढ़ी माँ ने कहा था, “बेटा, मैंने भी तेरी तरह शक्ति माँगी थी… अपने बेटे को बचाने के लिए।
वह बुखार में तड़प रहा था। मैंने सारी जिंदगी की साधना की, लेकिन जब वह मरा तो मैं समझ गई,
शक्ति नहीं, समर्पण बचाता है।”
बूढ़ी माँ की आँखों से एक आँसू गिरा और अर्जुन के हाथ पर। वह आँसू इतना गर्म था कि अर्जुन का हाथ झुलस गया।
उस पल अर्जुन पहली बार काँपा।
तुम बताओ, वह आँसू क्या था? माँ का दर्द या अर्जुन का अपना?
चौथा प्रश्न, जो तुम्हारे गले को अवश्य भीगा देगा:
गुफा में जब दर्पण टूटा और उसके टुकड़ों में अर्जुन ने खुद को देखा,
हर टुकड़े में एक दृश्य था:
माँ का मरता हुआ चेहरा,
पिता की लटकती लाश,
उस रात जब वह अकेला रोया था और किसी ने उसका हाथ नहीं थामा,
और सबसे आखिरी टुकड़े में… उसने खुद को देखा, बूढ़ा हो चुका, अकेला, चारों तरफ़ सोना, लेकिन गोद खाली। कोई उसका हाथ थामने वाला नहीं।
तब अर्जुन जमीन पर गिर पड़ा।
उसने दोनों हाथों से अपना सीना फाड़ने की कोशिश की, चीखा,
“मैंने तो बस दुःख नहीं चाहा था किसी को… फिर मैंने इतना दुःख क्यों सहा?
मैंने तो बस प्यार चाहा था… फिर मुझे इतना अकेला क्यों छोड़ दिया?”
उसकी चीख गुफा की दीवारों से टकराई और वापस लौटकर उसके कानों में घुस गई।
फिर अचानक सन्नाटा।
और सन्नाटे में एक बहुत हल्की, बहुत पुरानी आवाज़ आई,
जैसे कोई माँ अपने बच्चे को वर्षों बाद पुकार रही हो,
“अर्जुन… मेरे लाल… आ, अब घर चलें।”
अर्जुन ने सिर उठाया।
सामने कोई देवता नहीं था, कोई प्रकाश नहीं था।
बस उसकी माँ खड़ी थी… ठीक वैसी ही जैसी बचपन में थी।
उसने हाथ बढ़ाया।
अर्जुन रोते-रोते दौड़ा और माँ की गोद में सिर रख दिया।
वह गोद इतनी ठंडी थी, फिर भी इतनी गर्म।
माँ ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,
“तू शक्ति माँगता फिरता था, पर शक्ति तो मैं ही थी।
तू मुझे छोड़कर भागा था ना, इसलिए तुझे कुछ नहीं मिला।
अब लौट आया है तो सब कुछ मिल गया।”
अर्जुन बस रोता रहा।
उसके आँसुओं ने सारी गुफा को भर दिया।
और जब आँसू सूख गए, तो गुफा में कुछ नहीं बचा था,
न दर्पण, न सिंहासन, न अंधेरा।
बस एक छोटा-सा बच्चा अपनी माँ की गोद में सो रहा था।
जब वह बाहर निकला, तो लोग उसे देखकर डर गए।
उसके चेहरे पर कोई तेज नहीं था, कोई अभिमान नहीं था।
बस एक अजीब-सी शांति थी, जैसे कोई बहुत भारी बोझ उतारकर हल्का हो गया हो।
वह घर लौटा।
उस शाम उसने अपने पिता की कब्र पर फूल चढ़ाए।
फिर अपनी माँ की याद में एक छोटा-सा मंदिर बनाया,
जिसमें कोई मूर्ति नहीं थी, बस एक खाली गोद थी,
और उस गोद में हर आने वाला अपना सिर रखकर रो सकता था।
लोग पूछते, “तुम्हें परम शक्ति मिली?”
वह मुस्कुराता और कहता,
“हाँ, मिल गई।
वह गोद है… जो कभी खाली नहीं होती।
वह आँसू है… जो कभी बेकार नहीं जाता।
वह प्रेम है… जो कभी मरता नहीं।”
अब अंतिम प्रश्न तुमसे, मेरे दोस्त,
और इस बार मैं तुम्हें रोने की इजाज़त देता हूँ:
अभी इस पल तुम्हारे सीने में जो दर्द है,
जो तुम सालों से दबाए बैठे हो,
क्या तुम उसे किसी की गोद में रखने को तैयार हो?
बोलो…
कौन है तुम्हारी वह माँ, वह दोस्त, वह प्रेमी, वह ईश्वर…
जिसकी गोद में तुम आज अपना सिर रखकर बस एक बार बच्चे की तरह रो सकते हो?
रो लो…
क्योंकि यही रोना ही परम शक्ति है।
(शब्द गिनती: १५४०)