hindi Best Moral Stories Books Free And Download PDF

Stories and books have been a fundamental part of human culture since the dawn of civilization, acting as a powerful tool for communication, education, and entertainment. Whether told around a campfire, written in ancient texts, or shared through modern media, Moral Stories in hindi books and stories have the unique ability to transcend time and space, connecting people across generations and cult...Read More


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  • राहबाज - 14 - अंतिम भाग

    निम्मी की राह्गिरी (14) शादी के बाद खैर! जिस दिन अनुराग ने मुझसे शादी की बात की...

  • सात कंकड़

    सात कंकड़ कैलाश बनवासी भरी दोपहरी थी. चुनाव कार्य में लगी बस हम चार लोगों को हमार...

  • विकल्प

    विकल्प सुधा ओम ढींगरा वह कब, कहाँ पहुँच जाती है, किसी को पता नहीं चलता। उस दिन भ...

राहबाज - 14 - अंतिम भाग By Pritpal Kaur

निम्मी की राह्गिरी (14) शादी के बाद खैर! जिस दिन अनुराग ने मुझसे शादी की बात की उसी हफ्ते वीकेंड पर अनुराग ने अपने घर में ये बात कह दी. और ये सुनते ही उसके घर में तो बवाल ही हो गया...

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सात कंकड़ By Kailash Banwasi

सात कंकड़ कैलाश बनवासी भरी दोपहरी थी. चुनाव कार्य में लगी बस हम चार लोगों को हमारे मतदान-केंद्र वाले गाँव के चौक में उतारकर चली गयी—भरभराती, अपने पीछे धुल का गहरा गुबार छोडती हुई. अ...

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औघड़ का दान - 6 By Pradeep Shrivastava

औघड़ का दान प्रदीप श्रीवास्तव भाग-6 दस-बारह क़दम चल कर वह झोपड़ी के प्रवेश स्थल पर पहुंची तो उसने कुछ अजीब तरह की हल्की-हल्की गंध महसूस की। वह कंफ्यूज थी कि इसे खुशबू कहे या बदबू। डरत...

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एक लेखक की मौत By Sandeep Tomar

एक लेखक की मौत संदीप तोमर वह विगत 14 सालों से ही बेहद परेशान था। इन सालों में उसने वेदना और संत्रास को झेला था। कलह के वातावरण ने उसे अन्दर तक खोखला जो कर दिया था, उसने लगभग निर्णय...

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जर्नलिज़्म - 2 - अंतिम भाग By Neelam Kulshreshtha

जर्नलिज़्म नीलम कुलश्रेष्ठ (2) श्री वर्मा ने एक मीटिंग में ये बात बताई थी, "बहुत वर्षो पहले ठाकुरों का पूरे उत्तर प्रदेश में दबदबा था. कारण ये था कि उनके परिवार का एक सद्स्य घर से घ...

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इस दश्‍त में एक शहर था - 8 By Amitabh Mishra

इस दश्‍त में एक शहर था अमिताभ मिश्र (8) अब सिलसिले आगे बढ़ा कर बात करें तो बात आती है गणपति भैया यानि गन्नू भैया की। जो बचपन से ही पहलवान होना चाह रहे थे आसपास के अखाड़ों की मिट्टी स...

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विकल्प By Sudha Om Dhingra

विकल्प सुधा ओम ढींगरा वह कब, कहाँ पहुँच जाती है, किसी को पता नहीं चलता। उस दिन भी वह दबे पाँव वहाँ चली गई थी...... सामने वाला दृश्य देखने के साथ ही उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगा और उसक...

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मुख़बिर - 24 By राज बोहरे

मुख़बिर राजनारायण बोहरे (24) तोमर तब रात के तीन बजे होंगे जब रघुवंशी की धीमी सी आवाज सुनी मैने । शायद सिन्हा ने उन दिनों की कोई बात छेड़ दी थी सो रघुवंशी धीरे धीरे कुछ सुना रहा था-‘...

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आइने की मौत By मन्नू भारती

आज सुबह जब मैं उठा तो पहले से खुद को काफी हल्का महसूस किया लगता है रात की दवाई ने असर किया है और लगभग एक महिने की बीमारी के बाद आज मुझे अच्छा महसूस हो रहा था। उम्र के इस पड़ाव में...

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समर्पण By Anju Gupta

सुबह -सुबह चाय की चुस्कियों के बीच राहुल ने पत्नी सोना से अचानक पूछा – “क्या तुमने कभी किसी से प्यार किया है?“ यकायक ऐसा अटपटा प्रश्न सुन कर सोना घबरा सी गई कि कहीं उसके मुँह से कु...

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देह समागम की कामना By Ajay Kumar Awasthi

यत्र तत्र सर्वत्र बिखरा बसंत है...... बसंत ऋतु कामदेव का ऋतु है. कहते हैं कि कामदेव ने रति के साथ भगवान शंकर का तप भंग करने के लिए अर्थात उनके ह्रदय में कामना का बीजारोपण करने के ल...

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कौन दिलों की जाने! - 11 By Lajpat Rai Garg

कौन दिलों की जाने! ग्यारह आलोक की कोशिश होती है कि जब तक कोई विवशता न हो, समय की पाबन्दी का ख्याल जरूर रखा जाये। पच्चीस तारीख को ठीक ग्यारह बजे उसने रानी के घर की डोरबेल बजाई। रानी...

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लोहा और आग़... और वे… By Kailash Banwasi

लोहा और आग़... और वे… (कवि केदारनाथ सिंह के लिए, सादर) कैलाश बनवासी वह दिसम्बर के आख़िरी दिनों की एक शाम थी. डूबते सूरज का सुनहला आलोक धरती पर बिखरा पड़ा था. यों तो शाम हर जगह की बहुत...

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दलित एक सोच - 1 By ADARSH PRATAP SINGH

इस पुस्तक में उपयोग सभी किरदार सिर्फ शब्दो को बया करने के लिए उपयोग किये गए है उपयोगी किरदार का तालुख किन्ही मतभेदों को उत्पन्न करने के लिए नही किया गया है उपयोगी जानकारी काल्पनिक...

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भाग्य का खेल By sudha bhargava

कहानी भाग्य का खेल सुधा भार्गव "ओ आसरे –-रामआसरे -----।'' "ओह माँ !तुम्हारी आवाज क्या कमरे से रसोई में पहुँच सकती है?मुझे ही रामआसरे समझकर कोई काम बता दो। कुछ दिनों को...

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ठौर ठिकाना - 3 - अंतिम भाग By Divya Shukla

ठौर ठिकाना (3) सिर्फ रमा आंटी ही नहीं यहाँ रहने वाला कोई भी सदस्य कभी अपनों के बारे में कुछ नहीं कहता लेकिन उनकी पीड़ा उनके मौन में, उनकी आँखों में साफ़ झलकती उन आँखों कभी न आने वालो...

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कीमत By Dr Dilbagh Virk

कीमत “अभी तो मेरे हाथों की मेहँदी भी नहीं उतरी और आप...” - शारदा ने अपने आँसू पोंछते हुए डबडबाई आवाज़ में अपने पति राधेश्याम से पूछा, लेकिन राधेश्याम ने उसे बात पूरी नहीं करने दी औ...

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नाख़ून - 1 By Vijay Vibhor

उन दिनों बहुत कम घरों में फोन होते थे। सुविधानुसार लैंडलाईन पर बात करने के लिए मोहल्ले वाले अपनी रिश्तेदारियों में पड़ौसियों का नम्बर दे देते थे। ताकि अड़ी–भीड़ में रिश्तेदारियों की ख...

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भोली की मां By Satish Sardana Kumar

भोली की माँभोली की माँ हिंदू की लड़की थी और सिख की ब्याहता थी।उसने कोई प्रेम विवाह नहीं किया था बल्कि उसकी सामान्य शादी थी।उस जमाने मे हिंदू सुबह सुबह मंदिर जाते समय गुरद्वारे में...

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माँ... तुम मेरी आदर्श नहीं हो By Trisha R S

माँ तुम मेरी आदर्श नहीं हो... मेरी प्रेणना हो..... बात जरा सी आप लोगों को खल रही होंगी की कोई बेटी अपनी ही माँ को ऐसा कैसे और क्यूँ बोल सकती हैं. हर बात में गंभीरता और गहराई...

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अब जाग जाओ By सिद्धार्थ शुक्ला

#अब_जाग_जाओ_भाग१हल्की ठंड के मौसम में जब साफ आसमान होता है तो चंद्रमा की चांदनी अपना अलौकिक रूप लिए बरस रही होती है । चांदनी रात में किसी बगीचे में टहलना एक अनोखे सुख से भर देता है...

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रेलगाड़ी में रीछ By Kailash Banwasi

रेलगाड़ी में रीछ कैलाश बनवासी मैं इलाहाबाद जा रहा था।सारनाथ ए क्सप्रेस से। अकेले। अकेले यात्रा करना बड़ा ‘बोरिंग' काम है।उनके लिए तो और भी कष्टप्रद होता है जो स्वभाव से अंतर्मुखी...

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राय साहब की चौथी बेटी - 1 By Prabodh Kumar Govil

राय साहब की चौथी बेटी प्रबोध कुमार गोविल 1 कॉलेज की पूरी इमारत जगमगा रही थी। ईंटों से बनी बाउंड्री वॉल को रंगीन अबरियों और पन्नियों से सजाया गया था। आज इस पर पांव लटका कर लड़के बैठ...

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वर्चुअल गर्लफ्रेंड By r k lal

"वर्चुअल गर्लफ्रेंड" आर0 के0 लाल दिल्ली से चेन्नई जाने वाली तमिलनाडु एक्सप्रेस के थर्ड एसी कोच के एक कंपार्टमेंट में बीच वाली बर्थ पर एक लड़की अपनी बर्थ बदलना चाहती थी...

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बेघर सच By Sudha Om Dhingra

बेघर सच सुधा ओम ढींगरा ''सच तो मैं जानता हूँ। वह सच मैं तुम से उगलवाना चाहता हूँ; जिसे तुम मुझ से छिपा रही हो।'' संजय बड़ी कठोरता से बोला। बचपन से उसकी आदत है; जब भ...

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गाली की धिक्कार By मन्नू भारती

भारी कदमों के साथ वह आगे बढ़ा। जीवन में यह पहला अवसर नहीं था जब वह अपमानित हुआ या मानसिक प्रताड़ना के दंश ने उसके आंतरिक मन को कटिले तारो से खरोचा हो ,पर आज का दिन और मन दोनो भारी...

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परिवर्तन की लहर By Anju Gupta

मुक्ता लगभग 25 वर्ष की थी और शहर के नामी कॉलेज में अंग्रेजी विभाग में लेक्चरर थी l विभाग में ज्यादातर लोग बड़ी उम्र के थे , इसलिए उसका मन अभी तक कॉलेज में रम नहीं पाया था । नए सत्र...

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काश! ऐसा होता..... By Sudha Om Dhingra

काश! ऐसा होता..... सुधा ओम ढींगरा पति की नौकरी ही ऐसी थी कि देश-देश, शहर-शहर घूमते हुए अंत में, हम भूमण्डल के एक बड़े टुकड़े के छोटे से हिस्से में आ गए और यहीं स्थापित होने का मन ब...

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लुटलुटी By Satish Sardana Kumar

राजबीर थानेदार जाति से जाट था।वह इंसानों और घटनाओं को जातीय खाँचे में फिट करके सोचने का आदी था।वह कोई सीधा थानेदार भर्ती नहीं हुआ था बल्कि कांस्टेबल से तरक्की पाकर पहले हवलदार,फिर...

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राहबाज - 14 - अंतिम भाग By Pritpal Kaur

निम्मी की राह्गिरी (14) शादी के बाद खैर! जिस दिन अनुराग ने मुझसे शादी की बात की उसी हफ्ते वीकेंड पर अनुराग ने अपने घर में ये बात कह दी. और ये सुनते ही उसके घर में तो बवाल ही हो गया...

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सात कंकड़ By Kailash Banwasi

सात कंकड़ कैलाश बनवासी भरी दोपहरी थी. चुनाव कार्य में लगी बस हम चार लोगों को हमारे मतदान-केंद्र वाले गाँव के चौक में उतारकर चली गयी—भरभराती, अपने पीछे धुल का गहरा गुबार छोडती हुई. अ...

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औघड़ का दान - 6 By Pradeep Shrivastava

औघड़ का दान प्रदीप श्रीवास्तव भाग-6 दस-बारह क़दम चल कर वह झोपड़ी के प्रवेश स्थल पर पहुंची तो उसने कुछ अजीब तरह की हल्की-हल्की गंध महसूस की। वह कंफ्यूज थी कि इसे खुशबू कहे या बदबू। डरत...

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एक लेखक की मौत By Sandeep Tomar

एक लेखक की मौत संदीप तोमर वह विगत 14 सालों से ही बेहद परेशान था। इन सालों में उसने वेदना और संत्रास को झेला था। कलह के वातावरण ने उसे अन्दर तक खोखला जो कर दिया था, उसने लगभग निर्णय...

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जर्नलिज़्म - 2 - अंतिम भाग By Neelam Kulshreshtha

जर्नलिज़्म नीलम कुलश्रेष्ठ (2) श्री वर्मा ने एक मीटिंग में ये बात बताई थी, "बहुत वर्षो पहले ठाकुरों का पूरे उत्तर प्रदेश में दबदबा था. कारण ये था कि उनके परिवार का एक सद्स्य घर से घ...

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इस दश्‍त में एक शहर था - 8 By Amitabh Mishra

इस दश्‍त में एक शहर था अमिताभ मिश्र (8) अब सिलसिले आगे बढ़ा कर बात करें तो बात आती है गणपति भैया यानि गन्नू भैया की। जो बचपन से ही पहलवान होना चाह रहे थे आसपास के अखाड़ों की मिट्टी स...

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विकल्प By Sudha Om Dhingra

विकल्प सुधा ओम ढींगरा वह कब, कहाँ पहुँच जाती है, किसी को पता नहीं चलता। उस दिन भी वह दबे पाँव वहाँ चली गई थी...... सामने वाला दृश्य देखने के साथ ही उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगा और उसक...

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मुख़बिर - 24 By राज बोहरे

मुख़बिर राजनारायण बोहरे (24) तोमर तब रात के तीन बजे होंगे जब रघुवंशी की धीमी सी आवाज सुनी मैने । शायद सिन्हा ने उन दिनों की कोई बात छेड़ दी थी सो रघुवंशी धीरे धीरे कुछ सुना रहा था-‘...

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आइने की मौत By मन्नू भारती

आज सुबह जब मैं उठा तो पहले से खुद को काफी हल्का महसूस किया लगता है रात की दवाई ने असर किया है और लगभग एक महिने की बीमारी के बाद आज मुझे अच्छा महसूस हो रहा था। उम्र के इस पड़ाव में...

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समर्पण By Anju Gupta

सुबह -सुबह चाय की चुस्कियों के बीच राहुल ने पत्नी सोना से अचानक पूछा – “क्या तुमने कभी किसी से प्यार किया है?“ यकायक ऐसा अटपटा प्रश्न सुन कर सोना घबरा सी गई कि कहीं उसके मुँह से कु...

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देह समागम की कामना By Ajay Kumar Awasthi

यत्र तत्र सर्वत्र बिखरा बसंत है...... बसंत ऋतु कामदेव का ऋतु है. कहते हैं कि कामदेव ने रति के साथ भगवान शंकर का तप भंग करने के लिए अर्थात उनके ह्रदय में कामना का बीजारोपण करने के ल...

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कौन दिलों की जाने! - 11 By Lajpat Rai Garg

कौन दिलों की जाने! ग्यारह आलोक की कोशिश होती है कि जब तक कोई विवशता न हो, समय की पाबन्दी का ख्याल जरूर रखा जाये। पच्चीस तारीख को ठीक ग्यारह बजे उसने रानी के घर की डोरबेल बजाई। रानी...

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लोहा और आग़... और वे… By Kailash Banwasi

लोहा और आग़... और वे… (कवि केदारनाथ सिंह के लिए, सादर) कैलाश बनवासी वह दिसम्बर के आख़िरी दिनों की एक शाम थी. डूबते सूरज का सुनहला आलोक धरती पर बिखरा पड़ा था. यों तो शाम हर जगह की बहुत...

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दलित एक सोच - 1 By ADARSH PRATAP SINGH

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भाग्य का खेल By sudha bhargava

कहानी भाग्य का खेल सुधा भार्गव "ओ आसरे –-रामआसरे -----।'' "ओह माँ !तुम्हारी आवाज क्या कमरे से रसोई में पहुँच सकती है?मुझे ही रामआसरे समझकर कोई काम बता दो। कुछ दिनों को...

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ठौर ठिकाना - 3 - अंतिम भाग By Divya Shukla

ठौर ठिकाना (3) सिर्फ रमा आंटी ही नहीं यहाँ रहने वाला कोई भी सदस्य कभी अपनों के बारे में कुछ नहीं कहता लेकिन उनकी पीड़ा उनके मौन में, उनकी आँखों में साफ़ झलकती उन आँखों कभी न आने वालो...

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कीमत By Dr Dilbagh Virk

कीमत “अभी तो मेरे हाथों की मेहँदी भी नहीं उतरी और आप...” - शारदा ने अपने आँसू पोंछते हुए डबडबाई आवाज़ में अपने पति राधेश्याम से पूछा, लेकिन राधेश्याम ने उसे बात पूरी नहीं करने दी औ...

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उन दिनों बहुत कम घरों में फोन होते थे। सुविधानुसार लैंडलाईन पर बात करने के लिए मोहल्ले वाले अपनी रिश्तेदारियों में पड़ौसियों का नम्बर दे देते थे। ताकि अड़ी–भीड़ में रिश्तेदारियों की ख...

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भोली की मां By Satish Sardana Kumar

भोली की माँभोली की माँ हिंदू की लड़की थी और सिख की ब्याहता थी।उसने कोई प्रेम विवाह नहीं किया था बल्कि उसकी सामान्य शादी थी।उस जमाने मे हिंदू सुबह सुबह मंदिर जाते समय गुरद्वारे में...

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माँ... तुम मेरी आदर्श नहीं हो By Trisha R S

माँ तुम मेरी आदर्श नहीं हो... मेरी प्रेणना हो..... बात जरा सी आप लोगों को खल रही होंगी की कोई बेटी अपनी ही माँ को ऐसा कैसे और क्यूँ बोल सकती हैं. हर बात में गंभीरता और गहराई...

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अब जाग जाओ By सिद्धार्थ शुक्ला

#अब_जाग_जाओ_भाग१हल्की ठंड के मौसम में जब साफ आसमान होता है तो चंद्रमा की चांदनी अपना अलौकिक रूप लिए बरस रही होती है । चांदनी रात में किसी बगीचे में टहलना एक अनोखे सुख से भर देता है...

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राय साहब की चौथी बेटी - 1 By Prabodh Kumar Govil

राय साहब की चौथी बेटी प्रबोध कुमार गोविल 1 कॉलेज की पूरी इमारत जगमगा रही थी। ईंटों से बनी बाउंड्री वॉल को रंगीन अबरियों और पन्नियों से सजाया गया था। आज इस पर पांव लटका कर लड़के बैठ...

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"वर्चुअल गर्लफ्रेंड" आर0 के0 लाल दिल्ली से चेन्नई जाने वाली तमिलनाडु एक्सप्रेस के थर्ड एसी कोच के एक कंपार्टमेंट में बीच वाली बर्थ पर एक लड़की अपनी बर्थ बदलना चाहती थी...

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बेघर सच By Sudha Om Dhingra

बेघर सच सुधा ओम ढींगरा ''सच तो मैं जानता हूँ। वह सच मैं तुम से उगलवाना चाहता हूँ; जिसे तुम मुझ से छिपा रही हो।'' संजय बड़ी कठोरता से बोला। बचपन से उसकी आदत है; जब भ...

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गाली की धिक्कार By मन्नू भारती

भारी कदमों के साथ वह आगे बढ़ा। जीवन में यह पहला अवसर नहीं था जब वह अपमानित हुआ या मानसिक प्रताड़ना के दंश ने उसके आंतरिक मन को कटिले तारो से खरोचा हो ,पर आज का दिन और मन दोनो भारी...

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परिवर्तन की लहर By Anju Gupta

मुक्ता लगभग 25 वर्ष की थी और शहर के नामी कॉलेज में अंग्रेजी विभाग में लेक्चरर थी l विभाग में ज्यादातर लोग बड़ी उम्र के थे , इसलिए उसका मन अभी तक कॉलेज में रम नहीं पाया था । नए सत्र...

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काश! ऐसा होता..... By Sudha Om Dhingra

काश! ऐसा होता..... सुधा ओम ढींगरा पति की नौकरी ही ऐसी थी कि देश-देश, शहर-शहर घूमते हुए अंत में, हम भूमण्डल के एक बड़े टुकड़े के छोटे से हिस्से में आ गए और यहीं स्थापित होने का मन ब...

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लुटलुटी By Satish Sardana Kumar

राजबीर थानेदार जाति से जाट था।वह इंसानों और घटनाओं को जातीय खाँचे में फिट करके सोचने का आदी था।वह कोई सीधा थानेदार भर्ती नहीं हुआ था बल्कि कांस्टेबल से तरक्की पाकर पहले हवलदार,फिर...

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