Bazaar - 6 in Hindi Anything by Neeraj Sharma books and stories PDF | बाजार - 6

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बाजार - 6

 (बाजार )--- (6) कीमतें चढ़ती उतरती रहती हैं, मिया जो जोहरी होता हैं न, वो असली हीरे की परख करके उसे खरीद लेता हैं, चाये वो जज्बातो से या भावक होकर, या गिर कर... समझ लो गिनती उसकी हीरे की खरीद के बाद की होती हैं, ये मुकट पे सजे या पहलू मे, या सजावट मे, या तेजोरी का श्रृंगार... तुम कया समझ रहे हो कला को, कि कोई बोल गया, एक कलाकार किस दबाब मे बोला ये जरुरी नहीं हैं, ये जरुरी हैं कि वो बोला कया हैं...

मसलन ये भी नहीं होता हैं , नाम और शोरहत ज़ब वक़्त से विकते हैं, तो फिर नाम ही काफ़ी होता हैं!!!

                                नाम ही काफी था आठ फिल्मो के बाद देव साहब का... बस सच मे बम्बे की रात और सड़क वहा की फिजा दरसल देव के लिए लाटरी का काम कर गयी थी। जो दिल्ली मे नहीं चला, वो बम्बे मशहूर हो गया। जो गली गली शहर शहर गांव गांव की हर जुबा पे देव देव होने लगी थी।

                         पांच साल बाद वो इतनी बुलदी को छू रहा था, कि कोई सोच नहीं सकता था।

माया को उसने स्पष्ट कर दिया था, " कि ज़ब से कुमुदनी मेरी किस्मत मे आयी हैं, बादल भी छट गए हैं माया जी...

पांच साल मे हम आपकी मेहनत से कहा से कहा तक सफर करके आ गए हैं। " देव ने निस्कोच बता दिया...

माया ने कहा, " जिंदगी मे कुछ लगता हैं जैसे मैंने गलत कह दिया देव तुमको.. शर्त अलफ़ाज़ मुझे काटो की तरा चुभते हैं, कभी कभी इंसान कितना गिर जाता हैं आपनी ही नज़र मे.... जैसे कि मै.. मैंने उस दिन ऐसा न किया होता..." देव  बीच मे बात काट के बोला, " तो मैं शायद अभी भी दिल्ली की किसी नुकड़ मे नाटक के वही घिसे पटे शब्द बोल रहा होता... माया जी आप ने जो भी कहा सही ही तो कहा... कभी कुछ ईश्वर पर भी छोड़ दिया करो, उसने चाहा आप ऐसा बोलो, एक जिंदगी निखर आएगी। "  माया की पलकों मे अटके अश्क़ जैसे गिरने ही वाले थे। तभी अंदर से विलचेयर लेकर हाथो से चलाती लिली पीछे से" माँ 'को घूरने लगी ---!!!

                 "माँ ख़ुशी के आंसू पी गयी हो कया " लिली ने माँ को इशारा किया।

" हां बेटी.. " लिली ने रुक कर कहा.. " कुछ इंसान देवता होते हैं, किसी रूप मे... " लिली एक दम मुस्करा के बोली, " देवता तो एक ही हैं धरती पे आज के समय "देव "

बस। " हस हस के देव ने झुक कर लिली की वीलचेयर के हेंडल पकड़ लिए। " देवता कहा बना दिया आपने... मैं तो आदमी भी मुश्किल से बन पाया हूँ । " माया ने उसके थपकी मारी। " देव कल खन्ना इंड्रस्टी जाओगे।  देव ने कुमुदनी को गोद मे उठा लिया--- " हां जाऊगा... पर इसके साथ जाऊगा, माया जी... जो जिंदगी मे कभी इस चार दीवारी से कभी बाहर नहीं गयी... ले कर जाऊगा... नहीं आपना भी केंसल... " देव ने स्पष्ट लफ्ज़ो मे बाहर की तरफ आते सीढ़ियों पर खडे हो कर कहा। माया चुप थी। उसने नयी गाड़ी का दरवाजा खोल कर लिली को अंदर बिठा दिया... पर एक दम वो आगे को हो गयी। " कुमुदनी   पीछे ढो लगा ---जल्दी कर ---" अभ आराम की हालत मे कुमुदनी उर्फ़ लिली बैठी थी। गाड़ी स्टार्ट कर लीं थी... धीरे से मोड़ ते वक़्त... " कुमुदनी पकड़ कर बैठो, जोर से, कस कर..., आज घूम  के आते हैं, यार ... बस मन किया... "

" मेरा भी कई देर से मन था, पर देव मै तुझे कह नहीं पायी। " लिली ने थोड़ा सहमते हुए कहा।

" कुमुदनी तुम कब से मेरे बारे मे सहमता और मन की जंग को स्वीकारणे लगी हो। "

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