प्रस्तावना:
सन 1932, राजस्थान के एक छोटे से नगर “कर्नालीगढ़” के किले में अचानक आग लग गई। राजा पृथ्वीराज सिंह की मृत्यु हो गई, और कहा गया कि उनकी अमूल्य विरासत—नवरत्न खजाना—कहीं गायब हो गया। कोई नहीं जानता कि खजाना चुराया गया या उसे गुप्त रूप से कहीं छिपा दिया गया।
समय बीतता गया, परंतु उस खजाने की गूंज अब भी कर्नालीगढ़ की हवाओं में गूंजती रही।
---
अध्याय 1: वर्तमान की दस्तक
वर्ष 2025। दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास का एक होनहार छात्र, आरव चौहान, एक दिन अपने दादा की पुरानी लाइब्रेरी में एक रहस्यमयी डायरी पाता है। वह डायरी राजा पृथ्वीराज के मंत्री की है, जिसमें संकेत हैं कि खजाना अभी भी कर्नालीगढ़ किले में कहीं छिपा है। आखिरी पन्ने पर लिखा है:
> “वह जो समय की दरारें पढ़ सकता है, वही सत्य तक पहुँच सकता है।”
आरव इतिहास में तो तेज़ था ही, अब उसके मन में खजाने की गूंज भी घर कर चुकी थी।
---
अध्याय 2: कर्नालीगढ़ का आगमन
आरव, अपनी मित्र तनिष्का और फोटोग्राफर कबीर के साथ कर्नालीगढ़ पहुँचता है। किला अब एक खंडहर में तब्दील हो चुका है, लेकिन उसकी दीवारों पर आज भी गुप्त सुरंगों और चिह्नों की झलक मिलती है।
वहीं गांव के लोग अब भी इस किले को “शापित” मानते हैं। एक वृद्ध पुजारी उन्हें चेतावनी देता है—
“जो विरासत को जगाने जाएगा, वह अपने अतीत से मुक्त नहीं हो पाएगा।”
---
अध्याय 3: पहली पहेली
किले के एक हिस्से में उन्हें एक दीवार पर उकेरी गई नक्काशी मिलती है—नौ रत्नों की आकृतियाँ और उनके नीचे अंकित है:
> “प्रकाश की छाया जहाँ मिलती है, वहीं सत्य की पहली सीढ़ी है।”
तनिष्का को ध्यान आता है कि सुबह सूरज की पहली किरण उस दीवार पर पड़ती है। अगली सुबह, जब वे उसी जगह जाते हैं, तो सूरज की किरण एक विशेष पत्थर पर पड़ती है, जो हिलाने पर एक गुप्त मार्ग खोल देता है।
---
अध्याय 4: रहस्यमयी सुरंग
वे तीनों एक संकरी सुरंग में प्रवेश करते हैं। वहां दीवारों पर चित्र हैं—प्राचीन युद्ध, राजा की दरबार और आखिरी चित्र: एक सर्प जिस पर नवरत्न जड़े हुए हैं।
अचानक कबीर का कैमरा अपने आप फ्लैश करने लगता है, और एक दीवार खिसक जाती है। वहां एक बड़ा पत्थर का द्वार होता है, जिस पर लिखा है:
> “सर्प को शांत करो, वरना वह अपना विष छोड़ देगा।”
नीचे तीन पत्थर हैं—नीला, लाल और पीला। अगर गलत पत्थर दबाया गया, तो पूरा मार्ग नष्ट हो सकता है।
आरव ध्यान से डायरी पढ़ता है—राजा का पसंदीदा रत्न था “नीलम।” वे नीला पत्थर दबाते हैं, और द्वार धीरे-धीरे खुल जाता है।
---
अध्याय 5: विश्वासघात
जैसे ही वे अगला कक्ष पार करते हैं, कबीर की आंखों में लालच दिखने लगता है। वह एक और मार्ग से छिपकर गायब हो जाता है। अब आरव और तनिष्का अकेले पड़ जाते हैं।
तभी वहां एक नकाबपोश व्यक्ति आता है—वह विक्रम सिंह है, राजा के पूर्व सेवक का वंशज, जो वर्षों से खजाने की खोज में था। वह बताता है कि उसने ही कबीर को पैसों का लालच देकर बुलवाया था, ताकि वह आरव से सारी जानकारी चुरा सके।
---
अध्याय 6: दौड़ समय के विरुद्ध
अब आरव और तनिष्का को न केवल खजाना खोजना है, बल्कि विक्रम और कबीर से पहले उसे पाना भी है।
वे अगली सुराग की ओर बढ़ते हैं, जहां उन्हें एक जलकुंड मिलता है। उसके बीच में एक स्तंभ, और उस पर जड़ी है एक मूर्ति, जिसमें नवरत्नों की आकृति है। लेकिन यहां एक चुनौती है—मूर्ति केवल तभी उभरेगी जब सच्चे दिल से बलिदान किया जाएगा।
आरव अपनी घड़ी, दादा की अंतिम निशानी, जल में समर्पित करता है। जल शांत हो जाता है, और मूर्ति धीरे-धीरे ऊपर उठती है।
---
अध्याय 7: अंतिम द्वार
अब उनके सामने है अंतिम द्वार। इस पर लिखा है:
> “नवरत्न केवल उसी को मिलते हैं, जो मोह का त्याग कर दे।”
आरव को समझ आता है कि यह खजाना केवल उस व्यक्ति को मिलेगा जो इसे संग्रह की वस्तु नहीं, सेवा का माध्यम समझे। तभी कबीर और विक्रम वहां पहुंचते हैं और जबरन द्वार खोलने की कोशिश करते हैं। द्वार खुलते ही एक तेज़ आवाज होती है और विक्रम के कदम पड़ते ही ज़मीन टूट जाती है—वह नीचे गिर जाता है।
कबीर भी डरकर पीछे हटता है।
आरव और तनिष्का धीरे-धीरे अंदर प्रवेश करते हैं।
---
अध्याय 8: खजाने का रहस्य
अंदर एक विशाल कक्ष है। वहां एक स्वर्ण सिंहासन पर रखा है—एक मुकुट, जिसमें नौ रत्न जड़े हैं। चारों ओर शांति है, और एक दीवार पर लिखा है:
> “यह खजाना सत्ता नहीं, सेवा है। जो इसे जनकल्याण में लगाए, वही इसका उत्तराधिकारी है।”
आरव उस मुकुट को नहीं उठाता। वह केवल उसकी तस्वीर लेता है और स्थानीय प्रशासन को इसकी सूचना देता है।
---
समाप्ति:
कुछ महीनों बाद, कर्नालीगढ़ में एक संग्रहालय बनता है, जिसमें नवरत्न मुकुट को प्रदर्शित किया जाता है। उसकी कमाई से गांव के बच्चों के लिए स्कूल, अस्पताल और पुस्तकालय खोले जाते हैं।
आरव और तनिष्का, इस विरासत के सच्चे उत्तराधिकारी बनकर, इतिहास नहीं बल्कि भविष्य लिखते हैं।
---
“जो विरासत को समझे, वही उसका रक्षक बन सकता है।”
---
लेखक:- शैलेश वर्मा