Chapter 4 : जब दिल ने मना किया , लेकिन धड़कनों ने सुना नहीं
मुंबई की बारिशें अजीब होती हैं — न जाने कब आकर सब कुछ भिगो जाती हैं , और न जाने कब चली जाती हैं कुछ अधूरी सी कहानियाँ छोड़कर। उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ
काव्या और आरव की दोस्ती अब एक ऐसे मोड़ पर थी जहाँ शब्द कम और भावनाएँ ज़्यादा बोलने लगी थीं । फार्महाउस की वो शाम उनके दिलों में कहीं गहराई तक उतर चुकी थी । लेकिन अब कहानी में सिर्फ सुकून नहीं था , अब डर भी था — खो देने का ।
काव्या ने पहली बार खुद से पूछा , " क्या मैं वाकई इस लड़के से जुड़ने लगी हूँ ? " और जवाब आया — एक गहरी सांस, जो दिल की बात कह गई ।
एक दिन शूट के दौरान , काव्या ने आरव को एक डायलॉग पर अटकते देखा । वो पास आई और बोली , " राइटर हो कर खुद की लाइनें नहीं बोल पा रहा ? "
आरव ने हल्का सा हँसते हुए कहा , " तू सामने खड़ी हो, तो शब्द भी डर जाते हैं । "
काव्या ने उसे घूरा , लेकिन मुस्कुराए बिना रह नहीं सकी । उस दिन दोनों ने पहली बार साथ में रिहर्सल की — और वो सीन , जो महज़ स्क्रिप्ट का हिस्सा था , अब उनकी ज़िन्दगी का आइना लगने लगा।
शूट के बाद, आरव ने उसे अपनी छत पर बुलाया — वो जगह जहाँ उसके सारे सपने पलते थे । काव्या आई , थोड़ी हिचकिचाहट के साथ , लेकिन दिल में एक अजीब सी गर्मी लिए ।
छत पर तारों भरे आसमान के नीचे , दोनों चुपचाप बैठे थे। आरव ने कहा , " कभी-कभी लगता है कि तू मेरी ज़िन्दगी की सबसे खूबसूरत कहानी है , लेकिन डर इस बात का है कि कहीं ये अधूरी न रह जाए । "
वो छोटी सी मुलाकात फिर से उन दोनों को करीब ले आई । अब दोनों जान चुके थे कि ये सिर्फ एक इत्तेफाक नहीं, एक रिश्ता बनता जा रहा है — जो समाज की सीमाओं से परे है ।
उस रात , आरव ने अपनी डायरी में लिखा : " कभी - कभी चुप रहने से रिश्ता और भी गहरा हो जाता है । बस आज उसकी आँखों ने कह दिया — मैं हूँ तेरे साथ । "
और काव्या ने पहली बार बिना किसी कैमरे के सामने खड़े होकर खुद से कहा : " अगर ये प्यार नहीं तो और क्या है — जब हर डर के बावजूद मैं सिर्फ उसी के पास लौटती हूँ । "
बारिश फिर से शुरू हो गई थी , लेकिन इस बार वो सिर्फ मौसम की नहीं थी — वो दो दिलों की भावनाओं की थी , जो अब किसी भी भीगने से नहीं डरते थे ।
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