प्रस्तावना
कहते हैं कि जीवन में हर अंधेरी रात के बाद सवेरा होता है, लेकिन कभी-कभी रात इतनी लंबी हो जाती है कि सवेरे का इंतजार भी मुश्किल हो जाता है। यह कहानी है राजेश की - एक ऐसे व्यक्ति की जिसने अपने सपनों को पाने के लिए जी-जान लगा दी, लेकिन उसे पग-पग पर ठोकरें मिलीं।
अध्याय 1: संघर्ष की सीढ़ियाँ
"बेटा राजेश, तुम्हारी किताबें ही तुम्हारा भविष्य हैं," माँ कहती और अपनी बीमारी को छिपाकर बेटे की पढ़ाई के लिए दवाओं के पैसे भी बचा लेतीं। पिताजी दिन-रात मजदूरी करते, कभी ईंट-भट्ठे पर तो कभी खेतों में।
राजेश ने अपनी माँ का सपना पूरा किया। दिन में पढ़ाई और रात में एक ढाबे पर काम करके, वह शिक्षक बनने की योग्यता हासिल कर ही लेता है।
अध्याय 2: सपनों का स्कूल
"आशा विद्या मंदिर" में शिक्षक की नौकरी मिलते ही घर में खुशियाँ छा गईं। माँ की आँखों में आँसू थे - गर्व के, खुशी के।
लेकिन स्कूल में सब कुछ सोने जैसा नहीं था। प्रिंसिपल श्रीमती मालविका शर्मा की नज़र में राजेश एक काँटे की तरह था। उसकी लोकप्रियता, उसकी शिक्षण शैली - सब कुछ उन्हें खटकता था।
अध्याय 3: षड्यंत्र का जाल
"अरे वाह! राजेश सर की क्लास में तो मजा आ जाता है!" एक छात्र की यह टिप्पणी प्रिंसिपल के कानों में विष घोल देती है।
धीरे-धीरे षड्यंत्र का जाल बुना जाने लगा। कुछ छात्रों को धमकाया गया, कुछ को लालच दिया गया।
"बेटा, तुम्हारी अगली परीक्षा में पूरे नंबर... बस एक छोटी सी शिकायत लिख दो राजेश सर के खिलाफ।"
अध्याय 4: टूटता आसमान
एक दिन अचानक राजेश को कार्यालय में बुलाया गया।
"मिस्टर राजेश, आपके खिलाफ गंभीर शिकायतें हैं। आप पढ़ाने के लायक नहीं हैं। कल से स्कूल मत आइएगा।"
घर लौटते समय आसमान टूट पड़ा। माँ की तबीयत पहले से खराब थी। बेटे की यह हालत देखकर उनका दिल नहीं टिका, और उसी रात उन्होंने अंतिम साँस ली।
अध्याय 5: नया मोड़, पुरानी कहानी
कई महीनों के बाद "ज्ञान ज्योति विद्यालय" में नौकरी मिली। राजेश ने सोचा नई शुरुआत होगी, लेकिन...
"नमस्कार, मैं मालविका शर्मा, आपकी नई प्रिंसिपल!"
राजेश के पैरों तले जमीन खिसक गई। वही चेहरा, वही आँखें जिन्होंने उसका करियर बर्बाद किया था।
अध्याय 6: सत्य की जीत
लेकिन इस बार राजेश ने हार नहीं मानी। उसने अपने पुराने स्कूल के छात्रों से संपर्क किया, जिन्होंने सच बोलने की हिम्मत जुटाई।
एक स्थानीय पत्रकार ने उसकी कहानी को प्रकाशित किया। शिक्षा विभाग में शिकायत की गई। जाँच में मालविका शर्मा के कई काले कारनामे सामने आए।
अध्याय 7: न्याय का सूरज
आज राजेश फिर से कक्षा में है - इस बार और भी मजबूत। मालविका शर्मा को उनके कर्मों की सजा मिली। उन्हें न केवल पद से हटाया गया, बल्कि भविष्य में किसी भी शैक्षणिक संस्थान में काम करने से प्रतिबंधित कर दिया गया।
उपसंहार
क्या राजेश को न्याय मिला? हाँ, क्योंकि उसने न्याय के लिए लड़ना सीखा। उसकी कहानी सिखाती है कि अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना ही सबसे बड़ा न्याय है।
आज वह अपने छात्रों को यही सिखाता है - "जीवन में कभी हार मत मानो, क्योंकि सच की जीत देर से हो सकती है, लेकिन होती जरूर है।"
_"न्याय की राह लंबी हो सकती है, लेकिन यह राह कभी खत्म नहीं होती।"