शाम का वक़्त...
कॉलेज से लौटने से पहले नायरा अपनी सहेली निम्मी के साथ लाइब्रेरी चली आई।
हल्की-सी ठंडी हवा चल रही थी, और कैम्पस की रौनक अब थमने लगी थी।
पेड़ों की परछाइयाँ ज़मीन पर बिखरी थीं, और दोनों लड़कियाँ हल्के क़दमों से चलते हुए अपनी बातों में खोई हुई थीं।
नायरा, अपने चिर-परिचित चुलबुले अंदाज़ में, सुबह बेस्टॉप पर हुई अयान से पहली मुलाक़ात की कहानी सुना रही थी।
"…और फिर जैसे ही हवा चली, मेरा दुपट्टा उड़ के सीधा उसके चेहरे पर जा गिरा। वो कुछ बोला नहीं, बस चुपचाप दुपट्टा लौटाया... और चला गया।
लेकिन वो नज़र… अल्लाह क़सम, जैसे आँखों से दिल तक उतर गई।"
निम्मी ने उसकी बात सुनी और शरारत से चुटकी ली—
"मतलब…!! ये तो वही बात हो गई भई,
‘इक निगाह क्या मिली, दिल सलीक़े से धड़कने लगा!’"
नायरा हँसते हुए बोली,
"ओफ्फो निम्मी! तू भी ना… बात को ऐसे सजाती है जैसे शायरी के गुलाब में छुपा तीर हो!"
निम्मी ने आँखें मटका कर कहा,
"और तू तो मोहतरमा 'बेख़ुदी की मलिका' बनके घूम रही है!
हमें तो लगा था तुझे कोई भी ख़्याल उलझा नहीं सकता, लेकिन आज तो तू खुद उलझनों का लिबास पहन आई है।"
नायरा ने मुस्कुरा कर उसका हाथ खींचा और बोली,
"चुप कर! कहीं लाइब्रेरी वाले सुन लें और समझें हम पढ़ने नहीं, मोहब्बत का मज़मून लिखने आए हैं!"
निम्मी हँसी रोकते हुए बोली,
"अरे, तुझ पर तो आज ग़ज़लें उतर रही हैं! लग रहा है लाइब्रेरी के बजाय तुझे सीधे 'दिल की डायरी' पकड़ानी चाहिए!"
नायरा ने आंखों से इशारा किया,
"अगर तूने एक लफ़्ज़ और बोला न… तो अगली चाय ब्रेक में तू सिर्फ़ मुझे कॉफी पिलाएगी, और मैं सिर्फ़ तेरी बोलती बंद करूँगी!"
निम्मी ने सीने पर हाथ रखकर मज़ाकिया लहजे में कहा—
"कसम से, इस अंदाज़-ए-धमकी में भी मोहब्बत की मिठास है, नायरा बी!"
दोनों हँसते हुए लाइब्रेरी के दरवाज़े से अंदर दाख़िल हो गईं।
मगर नायरा का दिल अब भी उसी बेजुबान नज़र के क़रीब अटका हुआ था…
जैसे किसी बेनाम अफ़साने का पहला हर्फ़ बन चुका हो।
लाइब्रेरी का वो कोना
जहाँ हर रोज़ की तरह नायरा और निम्मी दाख़िल हुईं।
"यार, चल फटाफट बैठते हैं… मेरा तो सिर ही घूम रहा है उस इकोनॉमिक्स वाले लेक्चर से!"
निम्मी बड़बड़ाती हुई आगे बढ़ी।
नायरा की नज़र एक टेबल पर पड़ी… और दिल धड़क उठा।
वहीं… उसी टेबल पर,
बैठा था अमन — सफ़ेद कुर्ते में, किताब के पन्नों में खोया हुआ,
जैसे उसकी तन्हाई भी तहज़ीब ओढ़े बैठी हो।
नायरा के कदम एक पल को ठिठके।
निम्मी ने गौर किया।
"अबे ओ... तू क्यों थम गई ऐसे?
किसे देख लिया? कोई परीशानी है क्या?"
नायरा झट से सँभली,
"न-नहीं कुछ नहीं... तू बैठ, मैं किताब लेने जाती हूँ।"
निम्मी ने शक भरी नज़र से उस टेबल की तरफ़ देखा—
"ओ हो...! तो बात यहाँ है!
अरे वाह... ये कौन है? बड़ा नवाबी साइलेंस लिए बैठा है!"
नायरा ने फौरन घूर कर देखा—
"चुप कर! यहाँ कोई फिजूल की बातें नहीं!"
निम्मी मुस्कुराई,
"मतलब कुछ तो है! वरना तू ऐसे अपने ही मुँह को जुबान से सिलती नहीं!"
नायरा ने किताब उठाते हुए ठंडी साँस ली—
"तू नहीं समझेगी... कभी-कभी किसी की ख़ामोशी शोर से ज़्यादा असर कर जाती है।"
निम्मी चौंकी—
"ओह माय गॉड! तुझे क्या हो गया है? तू तो सीधी शायरी में उतर गई!"
नायरा ने हल्की मुस्कान से उसे देखा—
"शायद बस... कुछ चीज़ें पहली नज़र में दिल से जुड़ जाती हैं, और जुड़कर भी अजनबी रह जाती हैं।"
निम्मी ने मज़े लेते हुए कहा—
"मतलब ये जनाब ‘मिस्टर बेस्टॉप मिस्ट्री’ हैं?"
नायरा ने आँखें तरेरीं—
"तू चुप नहीं रह सकती क्या?"
"नहीं!"
निम्मी ने हँसते हुए जवाब दिया—
"जब तक तू यूँ छुप-छुप के दिल की बातें करेगी,
मैं बोल-बोल के तेरा सच उजागर करती रहूँगी!"
दोनों की हँसी फूट पड़ी…
और वहीं से शुरू हुई नायरा की बेपरवाह दोस्त की मासूम छेड़खानी
और एक खामोश अजनबी के नाम दिल का पहला पन्ना।
वो अब भी अपनी किताब में डूबा था,
लेकिन नायरा की मौजूदगी से बेख़बर नहीं।
नायरा ने एक कोना चुना… ऐसी जगह जहाँ से अमन की टेबल नज़र आ सके,
मगर कुछ कहे बग़ैर, कुछ जताए बग़ैर।
वक़्त ठहरा नहीं, मगर दिल की धड़कनें ज़रूर ठिठकी थीं।
निम्मी तो अब भी मस्ती में थी—
"देख, तेरा हीरो कुछ ज़्यादा ही सीरियस है… लगता है ये बंदा लव लेटर नहीं, रिसर्च पेपर लिखेगा!"
नायरा ने हँसी दबाते हुए उसकी बात को टाल दिया,
"बस कर निम्मी… वो कोई हीरो-वीरो नहीं है… बस... यूँ ही…"
"यूँ ही?"
निम्मी ने चुटकी ली—
"तू तो उसे देख के साँस लेना भी भूल जाती है!"
नायरा झेंप गई,
और बेमन से किताब के पन्ने पलटने लगी…
तभी—
अमन उठा।
कंधे पर बैग, हाथ में वही किताब…
चेहरे पर वही पुरसुकून ख़ामोशी, और आँखों में वही गहराई।
नायरा ने सर झुका लिया…
मगर नज़रें उस पल को रोक नहीं सकीं।
वो उसके पास से गुज़रा…
बिलकुल नज़दीक से…
इतना कि नायरा को उसके क़दमों की आहट भी दिल की धड़कनों में घुलती सी लगी।
कोई बात नहीं हुई,
ना सलाम, ना इशारा, ना कोई तआरुफ़।
बस—
उसकी आँखों ने एक पल ठहर कर देखा।
ऐसे जैसे किसी ने एक ख्वाब को नींद से बाहर देख लिया हो…
और फिर, वो खामोश साया
दरवाज़े की तरफ़ बढ़ गया।
नायरा ने दिल ही दिल में एक लंबी साँस ली।
"चला गया..."
उसने बमुश्किल कहा।
निम्मी ने उसकी तरफ देखा,
"क्या तू चाहती थी कि वो कुछ कहे?"
नायरा मुस्कराई… मगर वो मुस्कान पूरी नहीं थी।
"शायद नहीं… शायद बस… वो रुक जाता…"