Swargiya Vidroh - 2 in Hindi Adventure Stories by Sameer Kumar books and stories PDF | स्वर्गीय विद्रोह - 2

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स्वर्गीय विद्रोह - 2

स्वर्गीय विद्रोह:  - विराज लोक का उदय
आर्यन का अंत अमरपुरी के लिए एक क्षणिक विजय थी, पर नियति ने कुछ और ही तय कर रखा था. जिस आत्मा को उन्होंने कुचलने का प्रयास किया, उसी ने एक नए लोक में पुनर्जन्म लिया. यह लोक, जिसे विराज लोक कहते हैं, अमरपुरी से कोसों दूर था. यहाँ कोई दिव्य महल नहीं थे, न ही चमकीले उद्यान; यहाँ की धरती कठोर थी, लोग संघर्ष से जन्मे थे, और शक्ति ही जीवन का आधार थी.
आर्यन ने एक साधारण परिवार में जन्म लिया और उसे अग्निवंश नाम मिला. उसका बचपन कभी सामान्य नहीं रहा. जब बाकी बच्चे मिट्टी में खेलते, अग्निवंश की आँखें अक्सर दूर आकाश में टकटकी लगाए रहतीं. उसके मन में एक अजीब सी बेचैनी थी, एक धुंधली याद जो पूरी तरह स्पष्ट नहीं थी, पर उसे लगातार अंदर ही अंदर कचोटती रहती थी. सपनों में उसे अक्सर भव्य महल, चमकते हुए प्राणी, और फिर एक भयानक युद्ध के दृश्य दिखाई देते. वह उठ जाता, पसीने से लथपथ, और उसके भीतर एक अनजानी घृणा धीरे-धीरे पनपने लगती.
बचपन से ही अग्निवंश ने असाधारण क्षमताएँ दिखानी शुरू कर दीं. जब उसे गुस्सा आता, तो उसके हाथों से हल्की गर्मी निकलती, और कभी-कभी उसके सामने रखी चीज़ें बिना छुए ही हिल जातीं. गाँव के बड़े-बुजुर्ग उसे अचंभे से देखते थे. वे कहते, "इस बालक में कुछ खास है. इसकी ऊर्जा किसी सामान्य प्राणी जैसी नहीं है."
एक दिन, जब अग्निवंश सात वर्ष का था, गाँव पर एक जंगली जीव ने हमला कर दिया. ये जीव अक्सर विराज लोक के गाँवों पर हमला करते थे. गाँव के कुछ युवा योद्धा उसे रोकने की कोशिश कर रहे थे, पर वे पर्याप्त शक्तिशाली नहीं थे. अग्निवंश ने देखा कि उसकी माँ खतरे में है. अचानक, उसके अंदर एक तीव्र ऊर्जा का प्रवाह हुआ. उसकी मुट्ठियों से आग की एक हल्की लपट निकली, जिसने जंगली जानवर को चौंका दिया और उसे भागने पर मजबूर कर दिया.
गाँव वाले चकित रह गए. उनमें से एक वृद्ध योद्धा, जिसका नाम वृद्ध ज्ञानदेव था, आगे आया. वह विराज लोक के प्राचीन रहस्यों का गहरा जानकार था और अपनी बुद्धिमत्ता के लिए जाना जाता था. उसने अग्निवंश की आँखों में कुछ ऐसा देखा जो उसे सदियों पुराना लगा – एक चिंगारी जो केवल महान आत्माओं में ही दिखती थी.
वृद्ध ज्ञानदेव: बालक! तुम्हारी आँखें... इनमें एक प्राचीन अग्नि है. तुम साधारण नहीं हो. तुम्हारे अंदर जो शक्ति है, वह इस लोक से कहीं ज़्यादा पुरानी और गहरी है.
अग्निवंश (भ्रमित): मैं... मैं नहीं जानता, ज्ञानदेव. मुझे बस एक अजीब सा अहसास होता है... जैसे कुछ बहुत बड़ा मेरे साथ हुआ है, पर मैं उसे याद नहीं कर पाता. मुझे बस इतना पता है कि मुझे शक्तिशाली बनना है.
वृद्ध ज्ञानदेव: (मुस्कुराते हुए) समय आने पर सब स्पष्ट हो जाएगा. पर अभी, तुम्हें इस शक्ति को समझना होगा, इसे नियंत्रित करना होगा. यदि तुम इसे अनियंत्रित छोड़ दोगे, तो यह तुम्हें ही जला देगी. क्या तुम प्रशिक्षण लेना चाहोगे? एक ऐसा प्रशिक्षण जो तुम्हें इस विराज लोक में सबसे शक्तिशाली योद्धा बनने की राह दिखाएगा?
अग्निवंश को एक पल के लिए अपने सपनों के वो युद्ध के दृश्य याद आए, और उसके मन में अमरपुरी के प्रति वो अज्ञात घृणा फिर से उभर आई. उसे लगा जैसे यह उसकी नियति थी, एक ऐसा मार्ग जिस पर उसे चलना ही था.
अग्नivansh: हाँ, ज्ञानदेव. मैं प्रशिक्षण लेना चाहता हूँ. मैं सबसे शक्तिशाली बनना चाहता हूँ.
और इस तरह, अग्निवंश की यात्रा शुरू हुई. वृद्ध ज्ञानदेव ने उसे 'नवयोद्धा' के रूप में प्रशिक्षित करना शुरू किया. उसे मूल युद्ध कलाएँ सिखाई गईं, शरीर की ऊर्जा को नियंत्रित करने के तरीके बताए गए, और सबसे महत्वपूर्ण, उसे यह सिखाया गया कि शक्ति का उपयोग कैसे करना है – बुद्धिमत्ता और न्याय के साथ. हर दिन के प्रशिक्षण के साथ, उसकी पिछली ज़िंदगी की यादें और स्पष्ट होती जा रही थीं – अमरपुरी का अन्याय, उसका अपना विद्रोह, और परम देवों का क्रूर चेहरा. उसकी आँखों में बदला लेने की ज्वाला धधक रही थी, और वह जानता था कि इस बार वह अधूरा नहीं रहेगा. इस बार, वह अमरपुरी को झुकाएगा, और अपनी नियति को पूरा करेगा.