Radhey - 5 in Hindi Short Stories by Soni shakya books and stories PDF | राधे ..... प्रेम की अंगुठी दास्तां - 5

Featured Books
Categories
Share

राधे ..... प्रेम की अंगुठी दास्तां - 5

राधा अपने कमरे में बुक पड़ रही थी पापा की आवाज से तुरंत खड़ी होकर बोली __बेटा नहीं हुं मैं, बेटी हुं आपकी।

हां भाई मैंने कब मना किया है तुम तो मेरी लाडली बेटी हो।

तो फिर आप मुझे बेटा -बेटा क्यों बुलाते हो । क्या बेटियां बेटों से कम होती है पापा?

ऐसा कुछ नहीं है आओ मैं तुम्हें समझाता हूं वो क्या है ना मां-बाप अपने बच्चों को प्यार से बेटा ही कहते हैं क्योंकि अधिकतर लोगों को बेटा ज्यादा प्यारा होता है। और मुझे तुम ज्यादा प्यारी हो इसलिए मैं तुम्हें प्यार से बेटा कहता हूं। समझ गई!

हां पापा ।

तो चलो अब खाना बन गया है और भूख भी लग रही है।

ठीक है पापा चलो..

माया किचन में थी पर उसका ध्यान कहीं और था अचानक उसके हाथ से गिलास गिर जाता है तभी सविता कहती है क्या हुआ मांजी। आपका ध्यान किधर है कुछ हुआ है क्या ?

अरे कुछ नहीं वह तो गिलास मेरे हाथ से बस यूं ही गिर गया।

ठीक है ,पर आपको कुछ ग़लत लग रहा है तो रोक लो नहीं तो बाद में ऐसा न हो कि आपको पछताना पड़े । 

माया को सविता की बात व्यंग्य की तरह लगी पर वह कुछ नहीं बोली मन ही मन कहती_बेटी ही गलत है तो बहु से क्या कहना।

  पूरे 15 दिन हो चुके थे देव फिर नहीं आया राधा बहुत बेचैन हो गई उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या करें,

अब तो उसका मन कही नहीं लगता था ना पढ़ने में ना खाने में  उसे नींद भी कम  ही आती थी उसे सिर्फ देव का इंतजार रहता था। उसका अल्हड़पन जैसे खत्म हो गया था गंभीर होने लगी थी वह ।

माया सब नोट कर रही थी उसे अपनी बेटी की हालत समझ आ रही थी। इसलिए वह बार-बार बृषभानु जी से राधा की शादी की बात करती थी ।

और वह देख रहा हूं, कहकर टाल देते थे । 

   सुबह के 10:00 बज रहे थे राधा अपने कमरे में पढ़ाई कर रही तभी लाली आती है ।

अच्छा हुआ लाली तुम आ गई मुझे बहुत अकेलापन लग रहा था। 

क्यों क्या हुआ राधा इतनी उदास क्यों है?

देखो न लाली देव फिर नहीं आया पूरे 15 दिन हो गए हैं।

अच्छा ,अगर इतनी बेचैनी है तो तुम चली जाओ उसके घर उससे मिलने तुम्हारे लिए वह घर अनजान थोड़ी है।

राधा का मन एकदम खुशी से झुमने लगा, उसे लगा मानो डूबती नाव को किनारा मिल गया हो । लाली को गले लगा कर बोली__यू आर माय बेस्ट फ्रेंड। 

ठीक है ,ठीक है ज्यादा मस्का मत लगाओ लाली बोली _और वह सुनो जो मैं कहने आई हूं ।

अच्छा! क्या कहना है जल्दी बताओ।

मेरी शादी तय हो गई है राधा ,अगले महीने ही है ‌

इतनी जल्दी..! चौंकते हुए राधा न कहा‌ ‌।

हां राधा सब-कुछ अचानक हो गया ‌

और तुमने हां कर दी ,रोका भी नहीं‌।

कैसे न करती राधा मेरा तो कोई लक्ष्य भी नही है और ना मैं पढ़ाई करती हूं और फिर मेरे बाद मेरी दो बहने भी है बड़ी होने के नाते मुझे  उनका ख्याल भी रखना होगा ।

और फिर मेरी जिंदगी में कौन देव जैसा लड़का बैठा है जिसके लिए मैं शादी से मना कर दूं। 

राधा अब मेरा आना जाना काम ही होगा तुम जितनी जल्दी हो सके देव को सब बता दो कहीं देर ना हो जाए ‌।

नहीं लाली मैं आज ही देव को जाकर बता दूंगी।

ठीक है फिर चलो अब आंटी जी को भी खुशखबरी देती हूं।

लाली अपनी शादी की बात सबको बताती है ।

तभी सविता कहती हैं _मां जी अब तो राधा की शादी भी कर देनी चाहिए।

मुझे नहीं करनी शादी ,मुझे तो अभी पढ़ाई करनी है। 

हां पता है ,कितना पढ़ती हो ? व्यंग किया सविता ने । राधा चुप रही।

तभी  वृषभानु जी आ जाते हैं लाली को शुभकामनाएं देते है ‌‌।

लाली अपने घर चली जाती है।

तभी माया भी कहती है अब तो लाली की शादी भी तय हो गई है हमें भी राधा की शादी करनी चाहिए।

राधा बोली _मुझे अभी शादी नहीं करनी है पापा मुझे और पढ़ना है कम से कम ग्रेजुएशन तक तो कुछ मत कहो ‌।

बहुत पड़ लिया कौन नौकरी करवानी है हमें अब अपने ससुराल में जाकर पढ़ना और वह चाहे तो नौकरी भी करना _माया बोली ।

और क्या माजी देखो ना राधा कॉलेज भी तो नहीं जाती । पता नहीं घर में बैठे-बैठे कैसे पड़ेगी ‌ ?

देखो न पापा _मां और भाभी क्या कह रही है मुझे कॉलेज नहीं भाता। कैदियों जैसा लगता है मुझे वहां। ना खुलकर हंस सकते हैं ना खुलकर बोल सकते हैं। नजरे भी घूमा नहीं सकते जिसकी और टिक गई उसे लगता है मुझे ही देख रही है। अगर मुस्कुराते हुए किसी को देख लिया तो उसे लगता है मुझे देखकर ही मुस्कुरा रही है बहुत कंफ्यूजन है वहां इसलिए मैं नहीं जाती। 

और मुझे जरूरत भी क्या है पापा देव हैं ना वह ला देता है मुझे सारे नोट्स और लाइब्रेरी से किताबें भी और मुझे जो भी समझना होता है  देव समझा देता है।

लो हो गया देव पुराण शुरू  देव के अलावा कोई और नही सुझता तुम्हें ,माया बोली ।

एक पल के लिए बृषभान जी को भी लगा कि राधा देव का कुछ ज्यादा ही नाम ले रही है पर उन्होंने इसे राधा का बचपना समझा ‌‌।

और कहा_ तुम्हें  जितना पढ़ना है पढ़ो ,पढ़ लिख कर अपना नाम रोशन करो । तुम्हारा मन जो कहे वही करो मेरी होनहार बेटी हो तुम। अपनी बेटी को बहुत चाहते थे वृषभानु जी।

तुम्हें पता है राधा तुम हमारे खानदान की पहली बेटी हो जो कॉलेज पढ़ने गई है। इससे पहले किसी ने इतनी पड़ाई नहीं की है।

बस... इतना याद रखना बेटा कि तुम्हारे पापा को तुम्हारी वजह से कभी शर्मिंदा न होना पड़े।

राधा को कुछ समझ नहीं आया कि _पापा ने उसे छूट दी है या हिदायत.!

जी पापा,कहते हुए राधा अपने कमरे में चली जाती है ‌।

राधा को तो बस.. देव से मिलना था किसी भी तरह से वह झट से तैयार हो जाती हैं ‌।

मां... मैं दिया के घर जा रही हूं मेरी बुक्स लेनी है उससे । ( दिया राधा की क्लास मेट है )कहते हुए _राधा घर के बहार निकल कर देव के घर पहुंच जाती है।

उसे देव का स्टडी रूम पता था राधा देव के सामने जाकर खड़ी हो जाती है।

देव चौकते हुए कहता है __राधे तुम...!!

तो ,क्या करती ?....