गाँव में सब उसे "भोला" कहकर पुकारते थे। नाम भले ही भोला था, पर मन से वह बेहद समझदार और सुलझा हुआ था। न जाने कितनी बार लोग उसकी सलाह लेने आते और फिर जब वही बात कोई और कह देता तो वे मान भी जाते। लेकिन जब भोला कहता, तो लोग हँसते — "अरे इसका तो वक्त ही नहीं आया अभी!"
भोला के जीवन में वक्त मानो थम गया था। उसके पिता की छोटी सी चाय की टपरी थी, जहाँ वह बचपन से काम में लगा था। पढ़ाई में तेज था, मगर हालात ने उसे स्कूल से बाहर कर दिया। फिर भी उसने किताबों से रिश्ता नहीं तोड़ा। गाँव के मंदिर के पीछे बैठकर वह पुरानी किताबें पढ़ता, टूटे हुए रेडियो को सुधारता और मशीनों में दिलचस्पी लेता।
गाँव के कुछ लोग कहते, “अरे इसका तो कुछ नहीं होगा। बस यूँ ही जीवन बीतेगा।”
पर उसकी माँ एक ही बात कहती, “हर चीज़ का एक सही वक्त होता है बेटा। तू बस थक मत जाना।”
एक दिन गाँव में बिजली विभाग की एक टीम आई। उन्होंने कहा, “यहाँ एक छोटा सोलर प्लांट लगने वाला है।” गाँव में हलचल मच गई। सबको लगा कि शायद शहर जैसा उजाला अब यहाँ भी आएगा।
भोला टीम के इंजीनियर के पास पहुँचा और कहा, “मैं आपकी मदद कर सकता हूँ।”
इंजीनियर ने उसे देखा, फिर मुस्कराया, “किसी ट्रेनिंग वगैरह का सर्टिफिकेट है?”
भोला बोला, “नहीं, पर मुझे काम आता है।”
इंजीनियर ने उसे कुछ उपकरण पकड़ा दिए। भोला ने मशीन खोलकर झट से वायरिंग ठीक कर दी। इंजीनियर हैरान था।
“तुमने यह कहाँ सीखा?”
भोला मुस्कराया, “वक्त के साथ किताबें पढ़ते-पढ़ते।”
कुछ ही दिनों में भोला प्लांट लगाने वाली टीम का हिस्सा बन गया। वह मेहनत करता, सवाल पूछता और सब कुछ सीखने की कोशिश करता। उसकी लगन देखकर इंजीनियर ने उसे पुणे बुलाया – एक संस्थान में छह महीने का कोर्स करवाया और एक निजी कंपनी में इंटर्नशिप दिलवाई।
भोला के लिए ये सपने जैसा था। गाँव से पहली बार शहर गया था, जहाँ हर दीवार के पीछे अवसर खड़ा था। लेकिन उसका संघर्ष वहाँ भी जारी रहा।
पुणे में उसे कई बार तिरस्कार झेलना पड़ा – “गाँव से आया है, इसे क्या पता टेक्नोलॉजी क्या होती है।”
पर भोला चुपचाप सीखता गया। मशीनों से बातें करना जैसे उसे आता हो। कुछ महीने बाद, वह सीनियर इंजीनियरों की तरह सोलर सिस्टम डिज़ाइन करने लगा। लेकिन नौकरी अभी भी पक्की नहीं थी।
उसी दौरान उसकी माँ बीमार पड़ गई। भोला को गाँव लौटना पड़ा। माँ की दवाइयाँ, देखभाल, खेत का काम — सब संभालना पड़ा। लोग फिर ताना मारते, “देखा! शहर गया और वापस आ गया। वक्त नहीं है इसका।”
भोला चुप रहता। उसे माँ की बातें याद आतीं – "सही वक्त आएगा बेटा। तू बस भरोसा रख।"
कुछ महीने बाद सरकार की एक योजना आई – "हर गाँव में सोलर ऊर्जा से जल आपूर्ति।"
गाँव का सरपंच भोला के पास आया, “कहते हो न तुम्हें मशीनों का काम आता है? अब दिखाओ कुछ।”
भोला ने प्लान तैयार किया। पाइपलाइन, सोलर पैनल, बैटरी बैकअप – सब कुछ।
सरपंच ने उसका प्रस्ताव ज़िला अधिकारियों को भेजा। कुछ हफ़्तों बाद भोला को बुलावा आया – “तुम्हारा डिज़ाइन मंज़ूर हुआ है। योजना का पायलट गाँव तुम्हारा ही गाँव होगा।”
गाँव में कोलाहल मच गया। अब तक जिसे लोग ‘समझदार लेकिन फालतू’ समझते थे, वही गाँव को रोशनी और पानी देने वाला बना।
भोला ने पूरी टीम बनाई – अपने जैसे पढ़े-लिखे कम, लेकिन हुनरमंद नौजवानों को साथ जोड़ा। महीनों की मेहनत के बाद जब पहली बार नल से पानी बहा और रात में घर रोशन हुए – लोग भोला को देखने दौड़ पड़े।
एक बूढ़ा व्यक्ति बोला, “तेरा वक्त आ गया रे भोला!”
भोला अब सिर्फ गाँव का नहीं रहा। जिले भर से लोग उसके पास सलाह लेने आने लगे। कुछ महीनों बाद राज्य सरकार ने उसे ‘युवा ऊर्जा पुरस्कार’ से नवाज़ा।
टीवी चैनलों पर उसका इंटरव्यू आने लगा। अख़बारों में उसकी तस्वीर छपने लगी।
एक रिपोर्टर ने पूछा, “आपने इस मुकाम तक कैसे पहुँचा?”
भोला ने हल्के से मुस्कराते हुए कहा, “मैंने कुछ खास नहीं किया। बस माँ की बात याद रखी – हर चीज़ का एक सही वक्त होता है। मैंने वक्त का इंतज़ार किया और खुद को तैयार रखा।”
भोला की माँ अब बहुत बूढ़ी हो चली थी। पर उसकी आँखों में चमक थी। उसने बेटे के सिर पर हाथ रखते हुए कहा,
“मैंने तुझसे कभी कुछ नहीं माँगा बेटा। पर आज एक बात कहती हूँ – तू जैसे औरों की मदद करता है, वैसे ही कभी अपने जैसे किसी और भोला का हाथ पकड़ना।”
भोला की आँखें नम थीं। उसने माँ से वादा किया।
आज भोला की संस्था ‘सोलर साथी’ हज़ारों गाँवों में काम कर रही है। वह बच्चों के लिए फ्री टेक्निकल ट्रेनिंग सेंटर चलाता है। उसकी कहानी लोगों को सिखाती है कि मेहनत का फल तभी मिलता है जब हम धैर्य रखें और हार न मानें।
कई बार ज़िन्दगी हमें उस मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है जहाँ सब कुछ रुक गया लगता है। लोग हँसते हैं, ताने मारते हैं, और हम खुद भी खुद से निराश हो जाते हैं।
पर याद रखिए —
"हर चीज़ का एक सही वक्त होता है। और जब वह वक्त आता है, तो सारी चीज़ें अपने आप ठीक होने लगती हैं।"