Chandrvanshi - 4 - 4.3 in Hindi Adventure Stories by yuvrajsinh Jadav books and stories PDF | चंद्रवंशी - अध्याय 4 - अंक 4.3

Featured Books
Categories
Share

चंद्रवंशी - अध्याय 4 - अंक 4.3

“मुझे माफ कर देना लेकिन मैं तुमसे शादी नहीं करना चाहती।” जिद बोली।
“मतलब!” विनय गुस्से हो गया।
“मतलब मैं तुम्हें अभी नहीं समझा सकती।” जिद बोली।
“पर तुम्हें अचानक क्या हो गया?” माहि भी उनके साथ थी।
“बस ऐसे ही।” जिद बोली।
“अभी तो तुम लोग मिले हो उसका एक महीना ही हुआ है और तुम्हारा प्यार खत्म हो गया?” माहि बोली।
“ना...!” जल्दी में जिद के मुँह से एक शब्द निकल गया। उसके साथ ही उसकी आँख से एक आँसू भी बह निकला और वह तुरंत कंपनीबाग से निकलकर सड़क के पास जाकर रुक गई। उसने पीछे देखा। विनय और माहि उसे ही देख रहे थे। जिद ने लंबी साँस ली। उसी समय अचानक एक गाड़ी एकदम उसके पास आकर रुकी। उसमें से तीन अनजान लोगों ने हाथ निकालकर जिद को गाड़ी में खींच लिया। जिद चिल्लाने लगी। विनय और माहि दौड़े लेकिन उससे पहले ही वह गाड़ी चौक पार कर गई। विनय वहीं खड़ा रहकर अपनी गाड़ी की तरफ दौड़ा। वहाँ जाकर देखा तो गाड़ी के आगे के दोनों टायरों की हवा निकाली गई थी। माहि रोने लगी। उनके आसपास लोग इकट्ठा हो गए। लेकिन अब देर हो चुकी थी।
“सीट…” विनय गाड़ी को लात मारते हुए बोला।

***

**पुलिस स्टेशन**

“कब हुआ ये सब?” एक सफेद वर्दी में बैठा एफआईआर दर्ज करवाने वाला कॉन्स्टेबल बोला।
“आज सुबह ही हुआ ये सब।” माहि बोली। विनय बगल में मुँह पर रुमाल रखे वहीं पुलिस स्टेशन की बेंच पर बैठा था।
“कहाँ हुआ ये सब?” पुलिस वाला बोला।
“जी कंपनीबाग में।” माहि बोली।
“वहाँ पे क्या करने गए थे?” पुलिस वाला ज्यादा सवाल करने लगा।
“जी बस घूमने गए थे।” माहि शांत रहकर बोली।
“घूमने के लिए और भी जगहें थीं। तुम वहीं क्यों गई?” वह पुलिस वाले के चेहरे पर मुस्कान थी। लग रहा था, जैसे वह कुछ जानता हो।
“क्योंकि वहाँ तेरी बीवी... उसके आशिक से मिलने गई थी।” रोम एकदम पुलिस स्टेशन में आकर बोला।
“तुम कौन हो और पुलिस स्टेशन में आकर तुम मुझसे बदतमीज़ी कर रहे हो।” पुलिस वाला गुस्से में कुर्सी से उठकर बोला।
“सीनियर स्पेशल एजेंट रोम।” रोम बोला।
“सर…” पुलिस वाला सैल्यूट करते हुए बोला।
“क्या सर! तुम्हें इस काम के लिए यहाँ पे रखा है?” रोम गुस्से में बोला।
रोम की आवाज़ सुनकर विनय ने अपने चेहरे से रुमाल हटाया। विनय की आँखें लाल हो गई थीं। विनय का उदास चेहरा देखकर रोम उसके पास आकर उसे आश्वासन देते हुए बोला।
“विनय, अब औरों के भरोसे बैठने से कुछ नहीं होगा। अब हमें दोनों को ही ये केस सॉल्व करना पड़ेगा।”
“और स्नेहा केस का?” विनय बोला।
“पहले अपनी जिंदगी का केस सॉल्व करें फिर दूसरों का।” रोम बोला।
“पर जिद ने तो मुझसे शादी करने से मना कर दिया।” विनय की आँखों में आँसू थे।
“क्यों?” रोम चौंक गया।
“मुझे नहीं पता।”
“पर शायद मैं जानती हूँ।” माहि उनके पास आकर बोली।
विनय और रोम ने एक साथ माहि की तरफ देखा और बोले, “क्यों?”
“चंद्रवंशी।”

***

**माहि के घर**

“यह रही चंद्रवंशी।” माहि ने कमरे में खड़े विनय के हाथ में किताब रखते हुए बोला।
“बेटा, कुछ चाय-पानी?” माहि की मम्मी बोलीं।
“मम्मी, अभी नहीं!” माहि बोली।
विनय ने वह किताब ली और पीछे मुड़ा तभी उसकी नज़र सामने पड़ी जिद के खाने में रखी एक डायरी पर गई। विनय ने वह डायरी ली। उसका पहला पन्ना खोला। पहले पेज के ऊपर ‘कलकत्ता’ लिखा हुआ था।
विनय समझ गया कि जिद ने डायरी लिखनी शुरूआत कलकत्ता से की होगी। उसने दूसरा पन्ना पलटा और अंदर लिखे शब्दों को पढ़ने लगा।
“मम्मी, मेरे बचपन से आज तक मैं कभी भी तुमसे दूर नहीं रही। मुझे गुजरात जैसा कलकत्ता नहीं लगता। हाँ, कलकत्ता एक मॉडर्न शहर है। लोग भी फैंसी हैं। शायद गुजरात से दस साल आगे निकल चुका है ऐसा लगता है, लेकिन आगे जाकर... जैसे मैं तुम्हें खो रही हूँ ऐसा लग रहा है। बस... तुम्हारे पास आ जाने का मन करता है। हालांकि अभी तो एक ही दिन बीता है, फिर भी....” विनय पन्ना पलटता है।
“आज मुझे वह दिखा जो मुझे प्लेन में मिला था। मतलब कुछ अजीब फील हो रहा है। मैं कभी भी किसी और लड़के के बारे में ऐसे नहीं सोचती। नहीं... मुझे उसके बारे में कुछ नहीं सोचना चाहिए। बस आज के लिए इतना ही।” वह पन्ना अधूरा था। मतलब विनय के लिए जिद के दिल में भी प्यार था। जिद उस प्यार को दबाकर रखना चाहती थी। इसलिए उसने उस समय विनय के बारे में ज़्यादा नहीं सोचा और अधूरा पन्ना छोड़ दिया।
“विनय, चाय!” माहि विनय के पास चाय लेकर आई और बोली।
“जी।” कुछ सोचते हुए विनय ने चाय का कप लिया।
“कुछ मिला?” माहि ने पूछा।
“जिद को किसी से खतरा था?” विनय बोला।
“नहीं, उसे किससे खतरा हो सकता है। वह बहुत सीधी और सिंपल लड़की है। पर हाँ, उसने कुछ दिन पहले मुझसे स्नेहा केस की बात की थी।” माहि बोली।
“स्नेहा केस?” विनय को आश्चर्य हुआ।
“हाँ, वही स्नेहा जो जिद के आने से पहले उसकी जगह काम करती थी।” माहि बोली।
“क्या कहा?”
“ज्यादा तो कुछ नहीं पर उसके कंप्यूटर में स्नेहा का कोई डेटा या शायद कोई ऐसा गवाह था जिसकी स्नेहा ने नोटिंग की थी।” माहि बोली।
“मतलब जिद को वही लोग उठा ले गए होंगे जिन्होंने स्नेहा को मार दिया था।” विनय बोला।
“क्या!” आश्चर्यचकित होकर माहि कुर्सी से उठ गई।
“उसकी मम्मी सही कहती थीं। जिद हमेशा दूसरों को बचाने के चक्कर में फँस जाती है और फिर बड़ी मुसीबत खड़ी हो जाती है। बस क्या सूझा मुझे पागल को कि उसे यहाँ ले आई।” माहि माथे पर हाथ रखकर रोने लगी।
विनय ने माहि को शांत किया। माहि की मम्मी उनके पास आईं और समझाने लगीं। उस समय विनय को कुछ समझ में नहीं आया तो उसने हाथ में रखी डायरी फिर से खोली। लगभग कुछ पन्ने पलटने पर एक पेज खुला।
“आज मैं बहुत खुश हूँ। मेरा मन नाच रहा है। मुझे भी रात के बारह बजे नाचने का मन हो रहा है। मैं खिड़की खोलकर बाहें फैलाकर सोई सुस्ताती माहि को प्रेम की पवन लहर पहुँचा रही हूँ। हाँ, अब मैं दिल खोलकर कह सकती हूँ कि वह सिर्फ मेरे ही हैं। नहीं... वह नहीं, बल्कि मैं सिर्फ उन्हीं की हूँ।”
पन्ने की अंतिम लाइन में लाल पेन से लिखा हुआ था – “आई लव यू वीनू।”  
लाइन पढ़ते ही विनय ने एकदम डायरी बंद कर दी। उसे जैसे कोई सदमा लगा हो, वैसा लगा और वह जिद के बेड पर बैठ गया और सोचने लगा – “आख़िर क्यों जिद ने मेरे साथ शादी करने और आगे रहने से मना कर दिया?” विनय का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। विनय ने अपने सवाल का जवाब पाने के लिए एक बार फिर जिद की डायरी खोली। लेकिन, वह जो पढ़ रहा था वह अंतिम पेज था। मतलब उससे आगे जिद ने कुछ भी नहीं लिखा था। विनय ने किताब बंद करने के लिए दाएँ हाथ की बीच की उंगली से पन्नों को पलटते हुए जैसे ही कवर को उंगली और अंगूठे के बीच दबाकर बंद करने गया, तभी विनय की नज़र आखिरी पन्ने पर पड़ी। उस पन्ने के बिल्कुल बीच में एक लाइन लिखी थी:
“अबसे अपने दिल की बात अपने लव से कहूँगी।”
विनय ने जिद की डायरी वहीं रख दी जहाँ से उठाई थी। वह खड़ा हुआ और वहाँ से चला गया।  

***