Super Villain Series - Part 10 in Hindi Mythological Stories by parth Shukla books and stories PDF | Super Villain Series - Part 10

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Super Villain Series - Part 10

Super Hero Series – Part 10: “कुर्बानी की शुरुआत”
हवा में कुछ अजीब था। मानो धरती की आत्मा कुछ कह रही हो, लेकिन कोई सुन नहीं पा रहा।
अर्णव अब पहले जैसा नहीं रहा। वो अब जान चुका था कि उसके भीतर कोई ऐसी शक्ति है, जो न सिर्फ उसे, बल्कि पूरी दुनिया को बदल सकती है। लेकिन एक सवाल हर पल उसकी आत्मा को कचोटता था —
“मैं कौन हूँ? और... किसका हूँ?”
गाँव के एकांत जंगल में बैठा अर्णव ध्यान करने की कोशिश कर रहा था। पेड़ों की सरसराहट, पक्षियों की चीखें और जमीन की कंपन... जैसे प्रकृति खुद उसे कुछ समझाना चाह रही थी।
और तभी...
 वही त्रैत्य — उसकी चेतना में एक बार फिर प्रकट हुआ। लेकिन इस बार डर नहीं था। त्रैत्य शांत था। उसने सिर्फ एक वाक्य कहा:
“तू मेरा बेटा है… लेकिन अगर चाहे… तो मेरी मौत बन सकता है।”
अर्णव की आँखें भर आईं। कोई जवाब न दे सका।

 भविष्य की परछाइयाँ
उसी रात, अर्णव को एक और सपना आया।
वो एक विशाल युद्धभूमि में खड़ा था। एक ओर हज़ारों राक्षस, त्रैत्य के नेतृत्व में, और दूसरी ओर अर्णव अकेला — लेकिन उसके पीछे खड़ी थी एक अदृश्य सेना — जिनकी आँखें तेज थीं, पर चेहरों पर उदासी।
“तू चुना गया है, अर्णव,” किसी स्वर ने कहा, “तेरे खून में आग भी है और अमृत भी। तुझे तय करना है, कि तुझे क्या जलाना है और किसे बचाना है।”
अर्णव की आँखें खुलीं — उसने फैसला कर लिया था।

 अभ्यास की शुरुआत
अब वो अपने भीतर की शक्ति को जानने और साधने के लिए तैयार था।
वह अपने गाँव से दूर, एक प्राचीन साधु के पास गया — जिसका नाम था महातप ऋषि। कहा जाता था कि वह समय के पीछे देख सकते थे।
महातप ने अर्णव को देखते ही पहचान लिया।
“तू वही है, जिसके आने की भविष्यवाणी की गई थी… जिसके रक्त से देवता भी डरते हैं… और राक्षस भी।”
अब अर्णव ने तीन कठोर साधनाएँ शुरू कीं:
मन की साधना – अपने भीतर की हिंसा और करुणा को अलग-अलग पहचानना।


शरीर की साधना – पाँच तत्त्वों को आत्मसात करना: जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी और आकाश।


रक्त की साधना – अपने अतीत को स्वीकारना, चाहे वो कितना ही काला क्यों न हो।



 एक छुपा हुआ सच
लेकिन जैसे-जैसे साधना गहरी हुई, वैसे-वैसे एक और रहस्य सामने आया...
 महातप ऋषि ने एक प्राचीन ग्रंथ दिखाया — उसमें एक चित्र था, जिसमें एक महाशक्तिशाली राक्षस और एक दिव्य बालक साथ-साथ खड़े थे।
और नीचे लिखा था:
“जब अधर्म और धर्म, दोनों एक ही रक्त में बहें… तब सृष्टि में पुनर्जन्म होगा — या फिर सर्वनाश।”
अर्णव सहम गया। क्या वो ही है वो संतान? क्या त्रैत्य सच में उसका पिता है?

 त्रैत्य का नया क़दम
दूसरी ओर, त्रैत्य अब बिल्कुल शांत नहीं था।
वो जान चुका था कि “कोई जाग चुका है”। उसकी चेतना में एक कंपन थी।
“अगर वह सच में मेरा पुत्र है… तो या तो वो मेरे साथ चलेगा… या मेरा सबसे बड़ा शत्रु बनेगा।”
त्रैत्य ने अपना सबसे भयानक अस्त्र भेजा — "कालव्यूह", जो नायक की आत्मा को भ्रमित कर सकता था, उसके विचारों को तोड़ सकता था, और उसे खुद से घृणा करवा सकता था।
अब अर्णव को सिर्फ अपने अस्तित्व के लिए नहीं, अपने आत्मविश्वास के लिए भी लड़ना था।

भाग्य की पहली परीक्षा
कहानी अब उस मोड़ पर है जहाँ नायक को अपनी पहचान, अपने रक्त, अपने रिश्तों और अपनी नियति – सबका सामना करना होगा।
क्या अर्णव तैयार है?
क्या वो त्रैत्य का सामना कर पाएगा – या अपने ही रक्त की आग में जल जाएगा?
Part 11 – “रक्त की पुकार” में — जहाँ नायक अर्णव को पहली बार अपने रक्त की आवाज़ सुनाई देती है। यह भाग रहस्य, भावना, और मानसिक युद्ध से भरा होगा।