Part 6 – “Power Jagti Hai – The Awakening”रात का सन्नाटा चारों ओर फैला था। अर्णव एक गहरी नींद में था, लेकिन उसके सपने फिर से अशांत हो गए थे। इस बार उसे दिखा...
एक बड़ा काले वस्त्रों में लिपटा हुआ तांत्रिक – आग के बीच में बैठा हुआ मंत्र पढ़ रहा है। चारों ओर कंकाल नाच रहे हैं। और वो तांत्रिक, अर्णव की ओर इशारा करते हुए कहता है:
"तेरे भीतर मेरी ही ज्वाला है... तू मेरा ही रक्त है... जाग!"
अर्णव की आँखें खुलीं। बदन पसीने से तर था। लेकिन तभी, उसकी हथेली से हल्की रौशनी निकलने लगी। उसने डरते-डरते उसे देखा... और अचानक बिजली सी फूटी – पूरा कमरा कांप उठा।
अर्णव चौंक गया।
"ये क्या था? मुझसे ये कैसे हुआ?"
अब उसके शरीर पर चमकते हुए चिन्ह उभरने लगे थे, खासकर माथे पर त्रिकोण। वो डर गया। खुद से घबरा गया।
"मैं कोई सामान्य इंसान नहीं हूँ... पर फिर मैं हूँ कौन?"
Part 7 – "Guru ki Entry – Rahasya ka Marg"
अर्णव की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ रही थी। गाँव के लोग उससे डरने लगे थे। तभी, एक रात गाँव के पुराने मंदिर में एक वृद्ध साधु प्रकट हुए। सफेद दाढ़ी, आँखों में चमक और पीछे जटाओं में साँप लिपटा हुआ। उनका नाम था – ऋषि अघोरानंद।
"तुम वही हो... जिसकी प्रतीक्षा सदियों से थी," उन्होंने कहा।
अर्णव ने भय से पूछा, "आप जानते हैं मैं कौन हूँ?"
"तेरे रगों में एक महाशक्ति का रक्त बहता है। तू त्रैत्य का पुत्र है, पर जन्म के बाद तुझसे उसे छीन लिया गया। ताकि तू अंधकार में ना गिरे।"
अर्णव के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
"मैं एक राक्षस का बेटा हूँ...?"
"नहीं," गुरु बोले, "तू सिर्फ़ रक्त से जुड़ा है, आत्मा से नहीं। तेरी आत्मा पवित्र है। अब तुझे चुनना होगा — पितृत्व का अंधकार या आत्मा का प्रकाश।"
गुरु ने उसे अपने आश्रम ले जाकर उसकी साधना शुरू करवाई। उसे आत्म-संयम, ध्यान और यंत्र-मंत्र सिखाए गए। अर्णव के भीतर की शक्ति नियंत्रण में आने लगी थी, पर साथ ही उसके प्रश्न भी बढ़ रहे थे।
Part 8 – "Traty ki Pehli Nazar – Pita ya Shatru?"
हिमालय की काली गुफा में त्रैत्य ध्यान में बैठा था। एक पल उसकी आँखें खुलीं, और उसने अंधकार में देखा:
"उसके भीतर शक्ति जाग चुकी है... वो अब तैयार हो रहा है।"
त्रैत्य ने एक मणि उठाई और उसमें अर्णव की छवि दिखाई दी। उसकी आँखें गहरी हो गईं।
"ये मेरा बेटा है... पर अब ये मेरा सबसे बड़ा शत्रु भी बन सकता है।"
एक काले रथ पर सवार होकर, त्रैत्य ने अपने दूसरे दूत को भेजा — "कालसूत्र"।
"उसके पास जाओ। उसे बताओ कि उसका सच्चा पिता कौन है... पर धीरे-धीरे, जैसे ज़हर फैलता है।"
इधर आश्रम में, अर्णव की शक्ति नियंत्रण में आने लगी थी, लेकिन वो लगातार सपनों में एक आवाज़ सुनता —
"तू मुझे क्यों भूल रहा है? मैं तेरा जन्मदाता हूँ..."
एक रात, आश्रम की दीवारों पर रक्त से लिखा दिखा:
"त्रैत्य तुम्हारे करीब है"
अब कहानी वहाँ पहुँच चुकी थी, जहाँ बेटा और पिता, दोनों एक-दूसरे को बिना जाने एक-दूसरे की ओर खिंचते जा रहे थे…
Part 9 – "Pehli Mulaqat – Andhkaar ka Sparsh"
बारिश की रात थी। आकाश में बिजली कड़क रही थी। अर्णव अकेला ध्यान की मुद्रा में बैठा था, जब अचानक एक धुंध सी कमरे में फैल गई।
धुंध के बीच से एक काया निकली — लंबा कद, तांत्रिक वस्त्र, गहरी आँखें, और हाथ में त्रिशूल। वो था — त्रैत्य।
त्रैत्य बोला, "मैं वो हूँ जिससे तुझे पूरी दुनिया ने छिपाया... पर तेरा रक्त मुझसे कभी नहीं छुपा।"
अर्णव स्तब्ध था। वह इस अजनबी को पहचान नहीं पा रहा था, लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब सी आत्मीयता थी।
"तुम कौन हो? और मुझे क्यों तलाश रहे हो?"
त्रैत्य मुस्कुराया, लेकिन उसकी मुस्कान में अंधकार था:
"क्योंकि तेरे अंदर मेरा ही अंश है। मैं तेरा जनक हूँ, अर्णव।"
यह सुनते ही अर्णव के पैरों से ज़मीन खिसक गई। उसकी आँखें फटी रह गईं।
"ये संभव नहीं... तुम... तुम तो राक्षस हो!"
त्रैत्य धीरे से आगे बढ़ा और बोला:
"और तू? क्या तू जानता है कि तेरी शक्तियाँ क्या हैं? ये किससे मिली हैं? धर्म ने तुझे छिपाया, लेकिन तू सच्चाई से भाग नहीं सकता।"
अर्णव का मन विचलित हो गया। उसकी चेतना जैसे दो हिस्सों में बँट रही थी। एक ओर उसका गुरु, दूसरी ओर उसका रक्त।
अचानक ऋषि अघोरानंद वहाँ आ पहुँचे। उनके आते ही त्रैत्य एक भयावह हँसी के साथ धुएँ में बदलकर गायब हो गया।
गुरु बोले, "सावधान रहो अर्णव, अब युद्ध शुरू हो चुका है... बाहरी भी, और तुम्हारे भीतर भी।"
अब आगे:
क्या अर्णव त्रैत्य की बातों में फँसेगा?
क्या वो खुद को संयमित रख पाएगा?
या उसका मन अब दोनों ओर बँट चुका है
(Part 10 – “कुर्बानी की शुरुआत”) की ओर बढ़ाते हैं — जहाँ नायक अर्णव के भीतर चल रहा आत्म-संघर्ष, रक्त का रहस्य, और त्रैत्य की दहशत और गहराती है।