स्थान: उत्तराखंड की बर्फीली पहाड़ियों के बीच छुपा एक अजीबोगरीब घाटी — “त्रि-गह्वर”
काल: कलियुग का वह समय जब धर्म का संतुलन डगमगाने लगा था…
हिमालय की गोद में एक घाटी थी, जो न तो किसी नक्शे में दर्ज थी, न किसी कथा में।
उस घाटी को स्थानीय लोग “त्रि-गह्वर” कहते थे —
क्योंकि वहाँ तीन ऐसी गुफाएँ थीं, जो हर हज़ार साल में एक बार ही खुलती थीं… और जब खुलती थीं, तो कुछ न कुछ अनहोनी ज़रूर होती थी।
लोग कहते थे कि वहाँ कोई "सो रहा है"…
कोई ऐसा, जो ना देवता है, ना राक्षस।
वो कुछ और है।
कुछ ऐसा… जिसका नाम लेना भी पाप माना जाता है।
रात का वो समय...
सर्दी इतनी थी कि साँस भी बर्फ बनकर गिरने लगे।
पेड़ों की शाखाएँ ठंड से काँप रही थीं।
आसमान बिल्कुल साफ था, लेकिन चाँद की रौशनी घाटी तक आने से डर रही थी।
उसी रात, गुफा के पास एक बूढ़ा तांत्रिक आया।
उसके हाथ में एक पुराना ग्रंथ था — "त्रिकाल तंत्र सूत्र"।
वो काँपते हुए कदमों से गुफा के पास पहुँचा और बोला:
"अब समय आ गया है...
जब त्रेता, द्वापर और कलियुग की सबसे भयानक चेतनाएँ एक होंगी।
अब त्रैत्य जागेगा!"
वह ग्रंथ खोला गया।
उसने मंत्र पढ़ना शुरू किया।
वातावरण बदलने लगा।
गुफा की चट्टानों से काले धुएँ की रेखाएँ निकलने लगीं।
“त्रैत्य” की आत्मा का पुनरागमन
गुफा के भीतर अचानक कंपन होने लगा।
दीवारें हिल रही थीं।
मंत्रों की ध्वनि अब गूँज नहीं रही थी… वो जवाब दे रही थी।
गुफा के भीतर तीन अलग-अलग आवाज़ें सुनाई दीं:
पहली – अहंकार से भरी हुई, जैसे कोई राजा
दूसरी – तंत्र-मंत्र से गूंजती हुई
तीसरी – जैसे कोई मृत आत्मा बोल रही हो
इन तीनों का मेल ही था – त्रैत्य।
वो पैदा नहीं हुआ था, उसे बनाया गया था।
रावण, कालनेमि और दंतवक्त्र – ये तीनों असुर जब मारे गए थे,
तो मरने से पहले उन्होंने तंत्र विज्ञान के माध्यम से अपनी चेतना को एकत्र किया था।
वो बोले थे:
“हमारा शरीर मरेगा… पर हमारी आत्मा एक दिन फिर लौटेगी —
और वो दिन होगा, जब धर्म सबसे कमज़ोर होगा।”
और वही दिन था… आज।
🔥 त्रैत्य की पहली साँस
गुफा में अचानक लाल रोशनी फैल गई।
धरती काँपने लगी।
तीन चेहरों वाला एक प्राणी उठ खड़ा हुआ —
उसका शरीर काले पत्थर जैसा, लेकिन उस पर ताम्र वर्ण के तांत्रिक मंत्र खुदे हुए थे।
हर मंत्र जल रहा था।
उसके सिर पर अग्नि की तरह जलती हुई जटाएँ थीं।
पीठ पर त्रिशूल की छाया थी — लेकिन वो शिव का नहीं था…
वो था "त्रैत्य का तांत्रिक त्रिशूल", जो जीवन को उलट सकता था।
वो चिल्लाया:
“त्रैत्य जाग गया है… अब धर्म की सांसें थमेंगी।
मैं वो अंधकार हूँ जो देवताओं की नींद में भी नहीं आता…
और अब मैं जग चुका हूँ।”
त्रैत्य की शक्तियाँ
शक्ति का नाम
विवरण
त्रिकाल दृष्टि
वो एक साथ तीनों काल देख सकता है – अतीत, वर्तमान, भविष्य
मंत्र उलट ऊर्जा
जब वो तंत्र मंत्र पढ़ता है, ब्रह्मांड की ऊर्जा उल्टी दिशा में बहने लगती है
काल-निग्रह शक्ति
समय को एक क्षण के लिए रोक सकता है
आत्मा निगलने की शक्ति
किसी की चेतना को छूकर उसे अपना बना लेता है
पंचमहाशक्ति नियंत्रण
पाँच तत्वों (जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी, आकाश) को बदल सकता है
त्रैत्य का पहला प्रभाव
जैसे ही त्रैत्य ने गुफा से बाहर कदम रखा —
धरती पर विचित्र बदलाव शुरू हो गए।
गाँव के कुएँ का पानी काला हो गया।
मंदिरों की घंटियाँ बिना छुए बजने लगीं।
पशु चिल्ला रहे थे — जैसे उन्होंने कुछ अनदेखा देखा।
और उस गुफा से तीन चमकते चिन्ह आसमान में उड़े —
वे भारत के तीन पवित्र स्थानों पर जा गिरे:
काशी, कामाख्या और केदार।
त्रैत्य अब दुनिया की ओर बढ़ रहा था।