Check-In Hua, Check-Out nahi - 1 in Hindi Horror Stories by Sakshi Devkule books and stories PDF | Check-In हुआ, Check-Out नहीं! - अध्याय 1

Featured Books
Categories
Share

Check-In हुआ, Check-Out नहीं! - अध्याय 1

🖤 अध्याय 1: "Check-In हुआ, Check-Out नहीं!"

"आर्या शर्मा" का दिल टूटा था। एक पांच साल पुराने रिश्ते का अंत हुआ था — और साथ में खत्म हो गया था उसका आत्मविश्वास, मुस्कुराहट और वो सारी योजनाएं जो उसने अपने सपनों के साथ बुन रखी थीं।

कॉर्पोरेट जॉब भी छूट गई थी, और सोशल मीडिया के दोस्त तो जैसे उसकी ज़िंदगी से ही unfollow हो गए थे।
घरवालों का एक ही राग —

> "अब तो शादी कर लो बेटा, उम्र हो रही है!"



"उम्र हो रही है" — जैसे कोई टाइम बम हो जो हर लड़की के लिए 25 की उम्र के बाद फटता ही है।

आर्या के लिए ये suffocation का दौर था।

तो एक रात — बिना ज्यादा सोचे — उसने अपनी पुरानी रजाई की तरह अपना दुख भी समेटा और बैग में ज़रूरत भर का सामान डालकर कहीं दूर निकल जाने का फैसला कर लिया।


---

📱 Google की माया:

सस्ते होटल ढूँढते हुए उसे मिला एक ऑफर:

> 🔔 “Timepass Guest House – Peace, Privacy and Pahad”
₹299/रात – खाना फ्री और Wi-Fi भी!



आर्या की आंखें चमक गईं —
"इतना सस्ता? डील तो झक्कास है!"
शायद अब भी कुछ अच्छा बचा है इस दुनिया में।


---

🏞️ "शांतिनगर" की ओर

3 घंटे की बस यात्रा, 20 मिनट की लोकल जीप और फिर 10 मिनट पैदल चलकर वो पहुंची —
एक घने जंगल के बीच बसा, छोटा-सा पहाड़ी गाँव — "शांतिनगर"।

ना ज्यादा घर, ना ज्यादा लोग… सिर्फ़ एक शांत सा सन्नाटा, जो कुछ कहता नहीं था — पर महसूस ज़रूर होता था।


---

🏚️ गेस्ट हाउस की पहली झलक

जब उसने गेस्ट हाउस को पहली बार देखा — तो थोड़ी हँसी आई, और थोड़ी चिंता।

लकड़ी का बना पुराना structure था।
दरवाज़ा आधा टूटा, खिड़कियों पर मोटे जाले, और बाहर लटका नामपट्ट टेढ़ा-सा लटक रहा था।

> 🪧 Timepass Guest House
(सिर्फ आने वालों के लिए)



“ये कैसा tagline है?” — आर्या सोच में पड़ गई।
“और जो जाएं? उनके लिए कुछ नहीं?”


---

दरवाज़ा खोला एक बूढ़े आदमी ने — उम्र शायद 65+, लेकिन चाल सीधी और आंखें… जैसे बहुत कुछ देख चुकी हों।

धोती, ऊन की स्वेटर, और गले में पुराने चाबी के bunch लटकते।

> "आओ बेटी... बहुत सालों बाद कोई ज़िंदा आया है..." 👀



आर्या चौंकी —
"ज़िंदा? मतलब?"

> "अरे… मतलब, अब कोई आता ही नहीं। जो आता भी है…" (वो रुक गया, जैसे कुछ भूल गया हो या छुपाना चाहता हो)



आर्या ने awkward सी हँसी में बात टाल दी —
"मुझे एक रात के लिए कमरा चाहिए।"

> "रूम तो सब खाली हैं... लेकिन अगर डरने वाली हो, तो नीचे वाला रूम ले लो। ऊपर वाले में… खैर, छोड़ो।"




---

🌃 रात का पहला झटका

रात में, आर्या अपने कमरे में लेटी थी। दीवारें थोड़ी सीलन वाली थीं लेकिन गद्दा surprisingly आरामदायक था।

जब वो सोने की कोशिश कर रही थी, तभी उसे बाथरूम से गाने की धीमी-धीमी आवाज़ सुनाई दी —

🎶 “चुरा के दिल मेरा… गोरिया चली…” 🎶

आर्या चौंकी —
"Bathroom में कोई disco क्यों कर रहा है?"

धीरे से उठी, चप्पल पहनी और बाथरूम की ओर बढ़ी।
हल्की सी बत्ती जल रही थी, और दरवाज़ा आधा खुला था।

उसने दरवाज़ा पूरी तरह खोला…
कोई नहीं था।

बस ज़मीन पर रखा था —
एक पुराना Walkman।

धूल से ढका, लेकिन बज रहा था… और सबसे अजीब बात?

उसमें ना बैटरी थी, ना कोई कैसेट।

आर्या ने घबराकर उसे उठाया।
उस पर किसी ने नुकीली चीज़ से लिखा था —

> “Suno… लेकिन वापस मत जाना।”




---

😨 अंतिम फुसफुसाहट

अभी वो सोच ही रही थी कि क्या ये कोई prank है —
तभी…

उसके ठीक कान के पास किसी ने फुसफुसाया —

> "मैं भी तुम्हारी तरह मुसाफिर थी..."



आर्या का पूरा शरीर ठंडा पड़ गया। उसने तुरंत Walkman फेंका और पीछे मुड़ी —
कोई नहीं था।

बस खिड़की पर हवा से लटकती एक पुरानी फोटो उड़ी —
जिसमें एक लड़की दिख रही थी… 

---

💀 अध्याय समाप्त…

> पर डर की शुरुआत अब हुई है।



🔔 अगला अध्याय: Monika ki entry 🎉