Hamro desh Nepal । in Hindi Poems by Raju kumar Chaudhary books and stories PDF | हाम्रो सुन्दर देश नेपाल ।

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हाम्रो सुन्दर देश नेपाल ।

🎵 गीत: हाम्रो सुन्दर देश नेपाल
✍️ राजु कुमार चौधरी


हिमालको काखमा, फुल्छ लालीगुराँस,
शान्तिको सन्देश बोकेको छ आकाश।
सगरमाथा बोल्छ – गर्व गर मेरो नाम,
नेपाल मेरो देश, मेरो अभिमान।


💖 हाम्रो सुन्दर देश नेपाल,
धरती स्वर्गभन्दा कम छैन हाल।
एकता, विविधता यहाँको शान,
जून र तारा साक्षी छन् जान।


तराईको सुनौला खेतहरू चम्कन्छन्,
पहाडका घाटाहरू गीतमा रमाउँछन्।
गोरखाली वीरको रगतले लेखिएको,
यो माटो कहिल्यै झुक्न जान्दैन थियो।


💖 हाम्रो सुन्दर देश नेपाल,
संस्कार र संस्कृतिमा लुकेको भाल।
धन्य हामी, जन्मियौं यही ठाँउ,
देशप्रेम हाम्रै सासमा समाउँ।

बौद्धका आँखाहरू शान्तिको चिन्ह,
जनकको भूमिमा बस्छ आदर्श सिँह।
काठमाडौँको गल्ली, पोखराको ताल,
सबै भन्छन् – नेपाल नै कमाल!


सपना बनौं, नेपाल बनाऔँ,
एक भएर अघि बढौं, गीत गाउँ।
विश्वलाई देखाऔँ हाम्रो कमाल,
हाम्रो सुन्दर देश, अमर रहोस् नेपाल! 🇳🇵


🌀 घुम्ने मेच माथि अन्धो मान्छे

✍️ राजु कुमार चौधरी

घुम्ने मेचमाथि अन्धो मान्छे,
आकाश हेर्छ आँखा नहुँदा पनि।
निर्णय गर्छ दिशातिर,
जहाँ उज्यालो छैन, न त बाटो नै।

उसको हातमा समयको घडी छ,
तर घडीमा सुइ घुम्दैन।
कानुनका कागज फाटेका छन्,
तर उसले ती कागज पढ्दैन।

जनताको चिच्याहट —
उसका लागि सिरसिर बतास हो,
भोक, प्यास, पीडा —
सब एउटा "फाइल" हो, जुन उसले कहिल्यै खोल्दैन।

घुम्छ मेच —
कहिले दक्षिण, कहिले उत्तर,
तर दिशा कहिल्यै उसको चाहना जस्तो हुँदैन।
कसैले रोकेको छैन,
किनकि डर सबैलाई लागेको छ —
"अन्धो" भनेर उसलाई देखाउनेहरू पनि,
शायद आफैं चस्मा खोज्दै छन्।

अब प्रश्न उठ्छ —
घुम्ने मेच गलत हो कि
त्यो बस्ने मान्छे?


"कभी न झुका नेपाल – गोरखों की गाथा"

✍️ राजु कुमार चौधरी द्वारा

> हिमगिरी के आँचल में बसा,
एक देश है बलिदानों का।
न किसी ने जंजीर पहनाई,
न कोई शिकारी बना शिकार का।

ये वो भूमि है वीरों की,
जहाँ गोरखा पैदा होता है।
तलवार नहीं, गर्जना से ही
दुश्मन का दिल रोता है।

ब्रिटिश आए घोड़े लेकर,
सोचा था जीत लेंगे सब कुछ।
पर नेपाल की माटी ने बोला —
"यहाँ लड़ाई होती है सच्ची, न साजिशवाली साजिश!"

सुगौली की स्याही से,
नक्शे में कुछ धब्बे आए।
पर आज़ादी की आत्मा
फिर भी न झुकी, न मिट पाई।

न ताज गया, न राज गया,
न खुद्दारी की बात गई।
गोरखा बोला —
“मातृभूमि के लिए तो जान भी सौगात है भाई!”

न कभी मुग़ल, न तैमूर आया,
न ब्रिटिश बन सका मालिक।
ये नेपाल है —
यहाँ हर बच्चा भी जन्म से स्वतंत्र सैनिक।




---

> 🌄 नेपाल कोई देश नहीं, एक प्रेरणा है।
🌪️ यहाँ न गुलामी आई, न आज़ादी गई।
🚩 क्योंकि यहाँ के लोग लड़ना नहीं, मरना जानते हैं — पर झुकना नहीं।

🌀 घूमती कुर्सी पर बैठा अंधा आदमी

✍️ राजु कुमार चौधरी

घूमती कुर्सी पर बैठा एक अंधा आदमी,
आकाश को देखता है — आँखें न होने के बावजूद।
निर्णय करता है उस दिशा में,
जहाँ न रोशनी है, न कोई रास्ता।

उसके हाथ में है एक घड़ी —
मगर उसमें सुइयाँ घूमती ही नहीं।
कानून के कागज़ फटे हुए हैं,
पर उसने कभी उन्हें पढ़ने की कोशिश नहीं की।

जनता की चीख–पुकार —
उसे तो बस एक हल्की हवा सी लगती है।
भूख, प्यास, और पीड़ा —
बस एक "फाइल" बन जाती हैं,
जिन्हें वो कभी खोलता ही नहीं।

कुर्सी घूमती है —
कभी दक्षिण, कभी उत्तर,
पर दिशा कभी उसकी मर्जी जैसी नहीं होती।
कोई उसे रोकता नहीं,
क्योंकि डर सबको है —
उसे "अंधा" कहने वाले भी शायद
खुद अपना चश्मा खोज रहे हैं।

अब सवाल उठता है —
गलत है वह घूमती कुर्सी?
या फिर वह आदमी, जो उस पर बैठा है?

कहानी: "अधूरी पेंसिल" ✍️
(प्रेरणा की कहानी )

छोटे से गाँव में एक गरीब लड़का था – आरव। उसके पास स्कूल जाने के लिए न जूते थे, न बस्ता, और न ही नई किताबें। बस एक पुरानी कॉपी और आधी पेंसिल, जो उसके पिता ने मजदूरी कर के खरीदी थी।

एक दिन क्लास में टीचर ने कहा, “कल एक प्रतियोगिता है – जो सबसे सुंदर अक्षरों में लिखेगा, उसे इनाम मिलेगा।”
आरव के पास नई पेंसिल नहीं थी, पर उसके अंदर एक जिद थी – कुछ कर दिखाने की।

उस रात वह आधी पेंसिल को चाकू से छील-छीलकर नुकीला करता रहा। उसकी माँ ने देखा और पूछा, “इतनी मेहनत क्यों कर रहा है बेटा?”
आरव ने मुस्कुरा कर कहा, “माँ, ये पेंसिल भले अधूरी है, पर मेरा सपना पूरा है – जीतने का!”

अगले दिन प्रतियोगिता हुई। बच्चों ने रंग-बिरंगी पेंसिलों से लिखा, पर आरव ने अपने दिल से लिखा – साफ़, सुंदर, और भावपूर्ण।

जब परिणाम आया – सब चौंक गए। पहला इनाम आरव को मिला।

टीचर ने पूछा, “इतने साधनों के बिना कैसे?”
आरव ने कहा – “पेंसिल छोटी थी, पर हौसले पूरे थे।”

सीख:
जीतने के लिए साधन नहीं, संकल्प चाहिए। चाहे पेंसिल आधी हो, पर सपना पूरा होना चाहिए। 💪✍️✨