कहानी शीर्षक: 💔 "उसने कहा था... पर नफ़रत से"
लेखिका: InkImagination
प्रस्तावना:
यह कहानी एक 17 साल की मासूम लड़की और एक माफिया-शैली के बिजनेसमैन के बीच जबरन शादी से शुरू होती है, जो धीरे-धीरे प्यार की गहराइयों में बदल जाती है। यह नफरत से मोहब्बत तक का सफर है, जहाँ दर्द, समझ और आत्मसमर्पण एक-दूसरे में घुलते हैं। आइए, इस भावनात्मक और रोमांटिक यात्रा में डूबते हैं...
अध्याय 1:
मासूमियत की दुनियाउम्र बस 17 साल थी, और आरुषि की मुस्कान अभी भी बच्चों जैसी थी—नन्हीं, कोमल, और बेपरवाह। उसके गालों पर पड़ने वाली लाली और बड़ी-बड़ी काली आँखें उसे गाँव की किसी परी जैसी बनाती थीं। वह एक छोटे से गाँव में पली थी, जहाँ उसकी दुनिया स्कूल की किताबों, चाय की दुकान की गपशप, और माँ के हाथों के पराठों तक सीमित थी। हर सुबह वह स्कूल जाती, दोपहर में किताबों के बीच खो जाती, और शाम को गाँव की पगडंडियों पर टहलती। लेकिन यह मासूमियत उसकी नियति नहीं बनने वाली थी।एक दिन, उसके पिता का कर्ज उसे ऐसी दुनिया में ले गया, जहाँ खिलौने नहीं, खंजर मिलते थे। गाँव के सबसे खतरनाक आदमी, विराज सिंह, ने उसकी जिंदगी बदल दी। विराज—28 साल का, लंबा-चौड़ा, गेहुँआ रंग, और आँखों में ऐसी गहराई जिसमें डर और रहस्य दोनों छिपे थे। उसका नाम गाँव से लेकर शहर तक गूंजता था। लोग कहते थे कि उसका साम्राज्य सिर्फ बिजनेस तक नहीं, बल्कि मौत और सत्ता तक फैला है।
अध्याय 2:
कर्ज का बोझ और जबरन बंधनआरुषि के पिता, एक साधारण किसान, ने अपनी फसल खराब होने के बाद विराज से उधार लिया था। लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया, और कर्ज बढ़ता गया। एक दिन, जब पिता हाथ जोड़कर मिन्नतें कर रहे थे, विराज के ठंडे स्वर ने सब बदल दिया।“कर्ज की वसूली अब पैसे से नहीं होगी,” उसने कहा, उसकी आँखों में कोई भावना नहीं थी। “तुम्हारी बेटी मेरी बीवी बनेगी।”आरुषि को यह सुनकर विश्वास नहीं हुआ। वह चिल्लाई, “नहीं! मैं नहीं जाऊँगी!” उसने अपने पिता का हाथ पकड़ा, आँसुओं से भरी आँखों से भीख माँगी, लेकिन गाँव की रीतियाँ और विराज का रौब सब पर भारी पड़ गया। 17 की कोमल उम्र में उसे एक ऐसे आदमी की दुल्हन बना दिया गया, जिसे वह जानती तक नहीं थी।शादी सादगी से हुई, लेकिन आरुषि के दिल में एक तूफान था। वह विराज को देखती और सोचती, “यह आदमी मेरा पति नहीं, मेरी क़ैद है।”
अध्याय 3:
क़ैद का महलविराज का बंगला किसी महल से कम नहीं था—ऊँची दीवारें, संगमरमर के फर्श, और सुनहरी रोशनी। लेकिन आरुषि के लिए यह एक सुनहरा पिंजरा था। शादी की पहली रात, वह अपने कमरे में अकेली बैठी थी, आँखों में डर और मन में नफरत लिए। तभी दरवाज़ा खुला, और विराज अंदर आया।उसकी आँखें आरुषि पर ठहर गईं, लेकिन वह कोई कदम नहीं बढ़ाया। उसने सिर्फ एक बात कही, “मैंने तुम्हें अपनी चीज़ की तरह लिया है… लेकिन छुआ भी तब ही जाएगा, जब तुम खुद चाहो।”आरुषि को लगा जैसे उसके कानों ने गलत सुना। वह एक माफिया था, एक क्रूर बिजनेसमैन, फिर भी उसकी बातों में एक अजीब-सी संवेदना थी। वह चुप रही, लेकिन मन में सोचने लगी—क्या यह सच हो सकता है? उस रात विराज चला गया, और आरुषि की आँखों में नींद नहीं, बल्कि सवाल थे।
अध्याय 4:
परछाइयों का खेलदिन बीतते गए, और आरुषि धीरे-धीरे विराज के बंगले की चारदीवारी में ढलने लगी। वह हर रात छत पर आती, जहाँ हवा ठंडी और सितारे चमकते थे। वहाँ से वह विराज की परछाई देखती—वह अक्सर दूर खड़ा रहता, सिगरेट का धुआँ उड़ाता, और अपनी दुनिया में खोया रहता।कभी-कभी आरुषि चुपके से उसे देखती और सोचती, “क्यों लगता है जैसे ये आदमी सिर्फ डर नहीं, दर्द भी छुपा रहा है?” उसकी आँखों में एक उदासी थी, जो उसके रौबदार चेहरे के पीछे छिपी थी।एक दिन, जब आरुषि को तेज़ बुखार हो गया, उसकी दुनिया बदल गई। विराज ने अपनी सारी बैठकें रद्द कर दीं और रातभर उसके पास बैठा रहा। उसने चुपचाप उसका सिर सहलाया, उसकी पसीने से भीगी माथे को कपड़े से पोछा, और पानी पिलाया। आरुषि की आँखें आधी खुली थीं, और उसने पहली बार उसकी आँखों में कुछ देखा—प्यार नहीं, लेकिन परवाह ज़रूर। उसने फुसफुसाया, “तुम… मेरे लिए?”विराज ने सिर्फ इतना कहा, “सो जाओ, आरुषि।” लेकिन उसकी आवाज़ में एक नरमी थी, जो पहले कभी नहीं सुनी थी।
अध्याय 5:
मोहब्बत का मोड़समय के साथ, आरुषि का डर धीरे-धीरे कम होने लगा। वह विराज को और करीब से देखने लगी—उसकी रातों की बेचैनी, उसकी चुप्पी, और कभी-कभी उसके चेहरे पर आती वह मुस्कान जो सिर्फ उसे देखकर आती थी।एक दिन, हिम्मत जुटाकर उसने कहा, “अगर मैं एक दिन भाग गई तो?” उसकी आवाज़ में थोड़ा साहस था, थोड़ा डर।विराज ने बिना पलक झपकाए कहा, “तुम्हें रोकूंगा नहीं, लेकिन शायद खुद को खत्म कर दूँ।”उस जवाब ने आरुषि को हिला दिया। उसने पहली बार हँसी—एक कोमल, मासूम हँसी। और विराज भी मुस्कराया, जैसे उसकी हँसी ने उसके पत्थर दिल को पिघला दिया हो।
अध्याय 6:
प्यार की रातएक शाम, बारिश की बूंदें बंगले की खिड़कियों पर पड़ रही थीं। आरुषि ने लाल साड़ी पहनी थी—उसकी आँखों में एक नई चमक थी। सामने खड़ा विराज आज पहली बार थोड़ा घबराया-सा लग रहा था। उसने धीरे से पूछा, “तुम क्या सोच रही हो?”आरुषि ने उसकी ओर देखा, एक कदम बढ़ाया, और उसके पास आकर फुसफुसाई, “मैं आज खुद तुम्हारी बनना चाहती हूँ…” उसकी आवाज़ में प्यार और आत्मसमर्पण था।विराज ने एक पल के लिए आँखें बंद कीं, जैसे वह अपने आप को संभालने की कोशिश कर रहा हो। फिर उसने उसे अपनी बाँहों में भर लिया। उसकी बाँहें गर्म थीं, और आरुषि का दिल तेज़ी से धड़क रहा था। वह रात उनके लिए एक नई शुरुआत थी—जहाँ नफरत गायब हो गई, और सिर्फ प्यार बचा रहा।
अध्याय 7:
नया सवेरासुबह की पहली किरणें कमरे में आईं। आरुषि विराज की बाहों में थी, मुस्कराती हुई। उसने कहा, “शायद जबरन रिश्ता हो… पर मोहब्बत कभी मजबूर नहीं होती।”विराज ने उसका माथा चूमा, और उसकी आँखों में एक नई चमक थी। उसने कहा, “अब तुम सिर्फ मेरी नहीं, मैं भी तुम्हारा हूँ… हमेशा के लिए।”वह पल उनके लिए अमर हो गया। बारिश की बूंदें अब भी खिड़की पर पड़ रही थीं, जैसे प्रकृति भी उनके प्यार की गवाह बन रही हो।
❤️ अंतिम पंक्तियाँ
“कुछ रिश्तों की शुरुआत नफरत से होती है…
पर मंजिल सिर्फ मोहब्बत होती है,
जो दिलों को जोड़ देती है,
और वक्त को माफ कर देती है।”
समाप्त।
InkImagination
Thankyou🥰🥰...
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