Haunted path in Hindi Short Stories by Sunita books and stories PDF | भूतिया रास्ता

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भूतिया रास्ता

हिमाचल प्रदेश – मंडी से सटे एक पहाड़ी क्षेत्र

रात के 10:30 बजे

विराट चौहान की जीप उस समय एक कच्चे, संकरे रास्ते पर चढ़ रही थी। सामने दूर तक अंधेरा पसरा हुआ था। मोबाइल नेटवर्क गायब था, और आसपास कोई गाँव नहीं दिखता था।

विराट एक रिटायर्ड आर्मी अफसर था — उम्र लगभग 38 साल। अब वह फौज में नहीं था, लेकिन आदतें अभी भी वैसी ही थीं — रात में अकेले सफर करना, हथियार साथ रखना, और किसी से न डरना।

उस दिन उसे एक छोटा सा सामान पहुँचाना था — सिर्फ एक पैकेट, जो शिमला से ले जाकर बिलासपुर पहुंचाना था। रास्ता सीधा था, लेकिन एक जगह से जीपीएस ने नया शॉर्टकट दिखाया — एक छोटी पहाड़ी रोड जो NH-93 से कट रही थी। टाइम बचाने के चक्कर में उसने उस ओर गाड़ी मोड़ दी।

पर जैसे ही वो रास्ता शुरू हुआ, कुछ चीजें अजीब होने लगीं।

10:42 PM

उसने देखा कि रोड के किनारे एक पुराना बोर्ड पड़ा है — धुंध और धूल से ढंका हुआ। जब उसने गाड़ी रोककर हाथ से उसे साफ किया, तो उस पर लिखा था:

"सावधान – आगे मार्ग बंद है। दुर्घटना क्षेत्र।"

बोर्ड के नीचे किसी ने लाल रंग से कुछ और लिख दिया था – शायद बाद में:

"ये रास्ता अब किसी का नहीं रहा..."

विराट ने हँसते हुए कहा, “डराने की कोशिश? इन बातों से तो हम सरहद पर नहीं डरे, यहाँ क्या डरेंगे।”

वह फिर गाड़ी में बैठा और आगे बढ़ गया।

10:57 PM

सड़क अब और सँकरी हो चुकी थी। एक तरफ गहरी खाई थी और दूसरी तरफ ऊँचे-ऊँचे चीड़ के पेड़। हवा चल रही थी लेकिन पत्तों की आवाज़ कहीं नहीं थी — एक अजीब सी ख़ामोशी सब ओर फैली थी।

विराट ने रेडियो ऑन किया। लेकिन रेडियो पर कोई स्टेशन नहीं मिल रहा था। अचानक कुछ ध्वनियाँ आईं — जैसे कोई मिलिट्री रेडियो सिग्नल हो।

"Bravo-9, do you copy? Echo point breached. I repeat, Echo point breached."

विराट के चेहरे की रंगत बदल गई। ये वही कोड था जो उन्होंने 2009 में कारगिल पोस्टिंग के दौरान इस्तेमाल किया था। लेकिन तब ये कॉल कभी वापस नहीं आई थी। उस मिशन में कई साथी मारे गए थे — और केस क्लोज़ कर दिया गया था।

“कैसे हो सकता है?” – उसने बुदबुदाकर रेडियो बंद किया।

11:04 PM

तभी उसकी हेडलाइट की रौशनी में एक परछाईं दिखी — सड़क के एक किनारे कोई व्यक्ति चल रहा था। सिर झुकाए, सफेद कपड़े में लिपटा हुआ, और बहुत धीमी चाल से।

“अरे ओ! कौन है?” विराट ने आवाज़ दी।

कोई जवाब नहीं।

गाड़ी पास आई तो वह आकृति सामने आ गई। लेकिन जैसे ही हेडलाइट उस पर पड़ी — वो गायब हो गया।

एक पल को लगा कि आँखों का धोखा है। लेकिन विराट के जैसे आदमी के लिए ये बात हल्की नहीं थी।

उसने गाड़ी रोक दी। नीचे उतरा। चारों ओर देखा। पेड़ों की परछाइयाँ ही परछाइयाँ थीं — पर इंसान नहीं।

फिर उसकी नज़र गाड़ी के बोनट पर पड़ी — जहाँ पानी की बूंदें जम चुकी थीं। लेकिन यहाँ बारिश तो नहीं हुई थी।

11:19 PM

गाड़ी अचानक बंद हो गई। स्टार्ट की, पर कुछ नहीं हुआ। मोबाइल देखा — नेटवर्क गायब। पूरा वातावरण ठंडा हो गया था, जैसे एकाएक तापमान गिर गया हो।

अचानक गाड़ी का रेडियो फिर से ऑन हो गया — खुद-ब-खुद।

"Bravo-9... तुमने हमें छोड़ दिया... अब कौन लौटेगा?"

विराट ने रेडियो को झटके से बंद किया।

उसके हाथ अब कांपने लगे थे। उसके जैसे मजबूत आदमी के लिए यह पहली बार था कि वह खुद को असहाय महसूस कर रहा था।

11:34 PM

गाड़ी से उतरकर वह पैदल सड़क पर आगे बढ़ा — ये देखने के लिए कि शायद कोई गाँव या ढाबा हो। लेकिन आधे घंटे चलने के बाद भी न तो कोई घर दिखा, न रोशनी, न इंसान।

अचानक उसका पैर किसी चीज़ से टकराया। नीचे देखा — एक पुराना आर्मी डॉग टैग। मिट्टी से सना हुआ।

वो उसे उठाता है — उस पर नाम खुदा था:

"Ashok Rana – 73B Unit"

विराट सन्न रह गया। अशोक... उसका पुराना साथी। वही जो उसी मिशन में मारा गया था।

पर ये टैग यहाँ कैसे?

उसने टैग अपनी जेब में रखा और तेजी से गाड़ी की ओर लौटने लगा।

11:58 PM

लेकिन जब वो उस जगह पहुँचा जहाँ गाड़ी थी — वहाँ कुछ भी नहीं था।

गाड़ी गायब।

जैसे वहाँ कभी कुछ था ही नहीं।

वह दौड़ने लगा — इधर-उधर, पेड़ों के पीछे, रास्ते के दोनों ओर — लेकिन कुछ नहीं मिला।

तभी एक हल्की सी रोशनी दूर चमकी। एक बोर्ड था — किसी पुराने पुल के किनारे लगा हुआ।

वह भाग कर गया।

बोर्ड पर टॉर्च मारते ही उसने जो पढ़ा, वो उसकी साँस रोक देने जैसा था:

"मृत्युपथ चालू है। जो इस सड़क पर आया, वो पीछे नहीं गया — सिर्फ आगे बढ़ा।"

रात – 12:15 AM

अब विराट के पैरों के नीचे ज़मीन नहीं, और दिमाग में सवाल ही सवाल थे।

“क्या ये रास्ता सच में कोई जिंदा सड़क है? क्या मेरे पुराने साथी…?”

तभी उसने देखा — सड़क पर आगे एक जलती हुई लाल बत्ती चमक रही थी। एक पुरानी जीप खड़ी थी — हूबहू वैसी ही जैसी 2009 के मिशन में इस्तेमाल होती थी।

वो आगे बढ़ा, टॉर्च निकाली — जीप की नंबर प्लेट देखी:

“BR-09-VT 2089”

विराट वहीँ पर गिर गया।

ये वही गाड़ी थी जिसमें आखिरी बार उसके साथी गए थे... और कभी लौटे नहीं।

 रात 12:30 AM

हवा तेज़ चलने लगी थी।

विराट अब समझ चुका था — ये रास्ता कोई आम रास्ता नहीं था।

और ये सफर... अभी शुरू हुआ था।

पीछे कहीं किसी पुराने आर्मी सायरन की आवाज़ आई —

"Red zone activated. No return beyond checkpoint."

और विराट धीरे-धीरे आगे बढ़ गया — उस जीप की ओर, जो अब उसे बुला रही थी।

स्थान: वही पहाड़ी, वीरान सड़क — अब रात का पहला पहर बीत चुका था।

समय: 12:35 AM

विराट का गला सूख रहा था। हाथ की टॉर्च अब धुंधली होने लगी थी। उसकी साँसें तेज़ थीं और दिमाग में एक ही बात घूम रही थी – "मैं जिस रास्ते पर हूँ, वो कहीं से भी सामान्य नहीं है।"

वो अब उस पुरानी जीप के करीब पहुँच चुका था, जो एक सुनसान मोड़ पर खड़ी थी। जीप पूरी तरह से जली हुई लग रही थी, लेकिन उसके हेडलाइट्स जल रहे थे — बिल्कुल ताजगी के साथ।

विराट ने हाथ से दरवाज़ा खींचा — और वो झट से खुल गया। अंदर की सीटें राख जैसी थीं, लेकिन सामने वाली सीट पर उसकी पुरानी आर्मी वर्दी neatly रखी थी।

“ये सब कैसे हो सकता है?” उसने खुद से पूछा।

12:41 AM

जीप के सामने एक पगडंडी जाती दिख रही थी — कोई प्राकृतिक रास्ता नहीं, बल्कि किसी समय बनाया गया साफ-सुथरा ट्रैक, जो अब बेकाम पड़ा था। विराट ने न चाहकर भी उसी ओर कदम बढ़ाए।

चलते हुए वो अपनी घड़ी पर नज़र डालता रहा — लेकिन अजीब बात ये थी कि घड़ी की सुइयाँ पीछे जा रही थीं।

12:41… 12:40… 12:39…

“समय उल्टा कैसे चल सकता है?” – ये सवाल उसे और बेचैन कर गया।

12:50 AM – घड़ी के अनुसार

पगडंडी उसे एक पुराने आर्मी टेंट के पास ले गई। टेंट आधा गिरा हुआ था लेकिन भीतर कुछ चीज़ें अब भी ज्यों की त्यों थीं — एक मेज़, कुछ नक्शे, एक टूटी वायरलेस रेडियो मशीन और एक खून से सना फाइल बक्सा।

विराट ने फाइल खोली।

फाइल के पहले पेज पर लिखा था:

“ऑपरेशन रोडकिल – लोकशन: NH-93 बाईपास, कोड-रेड जोन”

उसकी आँखों ने पन्नों को चीरकर पढ़ना शुरू किया। हर एक नाम, हर एक तारीख उसके अतीत से जुड़ी थी। 2009 का वही मिशन, जिसमें उसके साथी मरे थे। लेकिन यहाँ कुछ और भी लिखा था —

“टीम को भेजा गया था सुरंग के भीतर घुसी एक असाधारण शक्ति की जांच करने। संपर्क टूटने के बाद, मिशन बंद मान लिया गया।”

नीचे एक इन्क्वायरी रिपोर्ट थी, जिस पर हस्ताक्षर थे —

“Major Virat Chauhan – ऑपरेशन लीड”

उसने पन्ना गिरा दिया।

वह भूल जाना चाहता था कि वह लीडर था — उस खतरनाक मिशन का। उसके आदेश पर ही टीम को वहाँ भेजा गया था।

1:07 AM

वह टेंट से बाहर निकला। और तभी — पीछे से एक साया गुज़रा। विराट ने टॉर्च घुमाई — कुछ नहीं।

लेकिन अब एक-एक कर, हवा में आवाजें आने लगीं।

"Sir, हम अंदर जा रहे हैं..."

"Target लॉक है, लेकिन ये कोई इंसानी चीज़ नहीं है..."

"Chauhan sir... हमने गलती की..."

उसका सिर चकराने लगा।

वो तेज़ी से उसी पगडंडी से लौटने लगा, पर अब उसे रास्ता समझ नहीं आ रहा था।

हर तरफ पेड़, एक जैसी चट्टानें, और… अंधेरा।

1:22 AM

विराट फिर उसी मोड़ पर पहुँचा — जीप वहीं खड़ी थी।

“नहीं! मैं तो इस मोड़ से निकल चुका था!” – उसने चीखते हुए कहा।

वो गुस्से में पत्थर को लात मारता है… और उस पत्थर पर नज़र जाती है —

"A. Rana – 73B Unit"

वही नाम… वही यूनिट… वही साथी जो उस मिशन में गया था।

वो चारों ओर देखता है — और अब हर पत्थर पर कोई न कोई नाम उकेरा हुआ है।

"K. Joshi"

"M. Taneja"

"S. Paul"

ये नाम उसके टीम के लोगों के थे — जो 2009 में मारे गए थे।

अब यह सिर्फ एक मोड़ नहीं था — यह युद्ध क्षेत्र की कब्रगाह थी।

1:40 AM

वह फिर दौड़ने लगता है — किसी रास्ते की तलाश में। लेकिन अब हर मोड़ उसे एक ही जगह वापस लाकर खड़ा कर देता है।

और हर बार जब वो लौटता है, उसकी घड़ी और पीछे चली जाती है।

अब घड़ी 12:05 AM दिखा रही थी। यानी वह समय में भी पीछे जा रहा था।

और तभी, एक तेज़ सीटी की आवाज़ हुई।

वह पीछे मुड़ा — और वहाँ एक और इंसानी आकृति खड़ी थी। सिर नीचा, हाथ में वही डॉग टैग।

वह आकृति धीरे-धीरे बोली —

"अब तेरी बारी है, विराट..."

विराट ने कदम पीछे खींचे। लेकिन शरीर अब हल्का हो चुका था — जैसे वो अब अपने वज़न से भी मुक्त हो रहा हो।

1:55 AM

तभी एक हल्की रोशनी उसकी आँखों पर पड़ी। एक बोर्ड फिर दिखा — वही पुराना बोर्ड जो उसने शुरू में देखा था, लेकिन अब उसमें एक नई लाइन जुड़ चुकी थी:

"ये रास्ता अब किसी का नहीं रहा… सिवाय उनके, जिन्होंने उसे चुना।"

बोर्ड के नीचे एक चमकदार प्लेट लगी थी —

"Major Virat Chauhan – Last Entry 2009, Re-Entry 2025"

विराट वहीं खड़ा रह गया।

उसका दिमाग अब समझ चुका था — यह सड़क केवल बाहर से दिखाई देने वाला रास्ता नहीं थी, बल्कि एक ऐसा दायरा था जहाँ समय, यादें और सज़ा – सब एक साथ चलते थे।

2:00 AM

सड़क पर हवा चलनी बंद हो गई थी।

चारों तरफ वही साये… वही आवाजें… और सामने एक पुराना ढांचा दिखा — एक टूटी हुई सुरंग।

सुरंग के ऊपर लिखा था:

“Echo Point – No Return Zone”

अब विराट के पास कोई विकल्प नहीं था।

उसने हथियार निकाला, जेब से अशोक का डॉग टैग बाहर निकाला, और सुरंग के भीतर कदम रख दिया।

उसके कानों में एक आखिरी आवाज़ गूंजी:

“वापसी का रास्ता कभी था ही नहीं, मेजर साहब…”

वह आगे बढ़ता गया।

सुरंग के अंधेरे में… अपने अतीत की तरफ… एक ऐसे मोड़ की ओर जो कभी बंद ही नहीं हुआ था।

स्थान: मृत्युपथ का अंतिम छोर – सुरंग के पार

समय: सुबह से पहले का आख़िरी अंधेरा — 4:15 AM

जीप के पास बैठा विराट चौहान अब स्थिर था। उसकी आँखें खुली थीं लेकिन पलकें थमी हुईं — जैसे वह सब कुछ देख चुका हो, और अब कुछ नया देखना बाकी नहीं।

सामने, एक बोर्ड चमक रहा था —

“Echo Point Ends. Identify Yourself.”

सड़क के किनारे एक चौड़ी सी घाटी खुलती थी। नीचे सिर्फ धुंध, पत्थर, और खोई हुई आवाजें।

विराट धीरे-धीरे उठा। हाथ में अब कोई हथियार नहीं था, जेब में वो डॉग टैग भी नहीं रहा। सिर्फ एक डायरी बची थी — जो सुरंग के भीतर से अपने आप उसकी जेब में आ गई थी।

उसने डायरी खोली। पहला पन्ना सफेद था।

दूसरे पर लिखा था —

“नाम, जन्म, मृत्यु — और वह सब जो इनके बीच छूट गया।”

4:22 AM

वह घाटी के किनारे खड़ा था। दूर सामने एक पुल दिख रहा था — पत्थरों से बना, बिना रेलिंग का, और उसके ठीक अंत में एक भारी-सा लोहे का दरवाज़ा।

लेकिन दरवाज़े पर ताला नहीं था।

सिर्फ एक शिलालेख —

“अंदर वो जाते हैं जिन्होंने अपने कर्म को पहचान लिया हो।”

विराट कुछ देर वहीं खड़ा रहा। पीछे मुड़कर देखा — जहाँ से आया था, वहाँ अब सिर्फ खाली धुंध थी। जीप, टेंट, सुरंग — सब गायब।

वह आगे बढ़ा।

4:35 AM – पुल पर चलते समय

हर कदम के साथ नीचे से कुछ आवाज़ें उठती थीं — जैसे भूतकाल उसके नीचे चल रहा हो।

“सर, मैं माँ को नहीं देख पाया…”

“मेरे बच्चे अब क्या करेंगे…”

“क्या हमारी शहादत सिर्फ एक फाइल थी?”

विराट की चाल धीमी हो गई।

वह जानता था, ये सभी आवाज़ें उन्हीं जवानों की थीं, जो 2009 के उस मिशन में मारे गए थे — बिना किसी ताजगी, बिना श्राद्ध, बिना सवाल।

और वो अकेला लौटा था।

4:40 AM – लोहे का दरवाज़ा

दरवाज़े के पास आते ही अचानक एक आकृति उसके सामने खड़ी हो गई — बिल्कुल वैसी ही जैसे वह खुद था।

उसी की उम्र, वही कपड़े, वही आँखें।

आवाज़ आई —

“नाम क्या है?”

विराट चौंका — “तू कौन है?”

“मैं वो हूँ जो तू खुद से छिपा रहा है। अब बता — तेरा नाम क्या है?”

“मेजर विराट चौहान,” उसने जवाब दिया।

“नहीं,” आकृति बोली, “ये तुम्हारा पद है। मैं नाम पूछ रहा हूँ। जो आत्मा को जोड़े — वो पहचान। जो तुम्हें नींद में डराए। जो उस रात सबके सामने खड़ा रहा — और अब तक चुप है।”

विराट की साँसें तेज़ होने लगीं। उसने आँखे बंद कीं… और बोला:

“मैं वो हूँ जिसने भेजा था।

मैं वो भी हूँ जिसने लौटने की कोशिश की थी।

लेकिन लौटकर कुछ भी नहीं लाया — न माफी, न सच्चाई।

मैं... सिर्फ एक ज़िंदा गवाह हूँ।

एक अपराध बोध में साँस लेता हुआ नाम — विराट।”

अकृति मुस्कराई — और लोहे का दरवाज़ा खुद-ब-खुद खुल गया।

4:47 AM – दरवाज़े के पार

विराट अंदर गया — और वहाँ कोई स्वर्ग या नरक नहीं था।

बस एक विशाल दर्पण था। इतना बड़ा कि उसमें पूरा आकाश उतर आया हो।

वो जैसे ही उसके सामने खड़ा हुआ, दर्पण में कुछ शब्द उभरे —

“स्वीकार करना सबसे पहला मोक्ष है।”

फिर दर्पण में वो सब दिखने लगा जो विराट सालों से अंदर छुपाता रहा था —

अपने साथियों की चीखें

फाइलों में झूठी रिपोर्ट

अपने घरवालों से छिपाई बातें

और हर वो रात जब वह खुद को माफ़ नहीं कर सका

वह घुटनों पर बैठ गया।

उसकी आँखों से पहली बार आँसू निकले — न ड्यूटी के, न देशभक्ति के… सिर्फ पश्चाताप के।

5:05 AM – उजाले की पहली किरण

दर्पण की सतह धीरे-धीरे पारदर्शी होने लगी।

अब उसके पार एक और सड़क दिख रही थी — साफ, शांत, और सीधी।

विराट ने दर्पण को छुआ।

और…

अगली सुबह, वही NH-93 हाईवे का मुख्य रास्ता

समय – सुबह 6:10 AM

एक जीप धीरे-धीरे चलती आ रही थी। ड्राइवर रेडियो चला रहा था — किसी पुराने गाने की धुन बज रही थी।

तभी जीपीएस झिलमिलाया —

"Suggested Route: NH-93 Bypass – 14 मिनट जल्दी"

ड्राइवर ने रुककर सोचा।

फिर पीछे एक ठंडी सी हवा चली।

कंधे पर हल्की सी थाप महसूस हुई — जैसे किसी ने धीरे से मना किया हो।

वो मुस्कराया, जीपीएस बंद किया और सीधा रास्ता पकड़ लिया।

पीछे बोर्ड पर लिखा था:

“मृत्युपथ – अब विश्राम में है”

समाप्त।

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