वो रोते-रोते:
"अच्छा हुआ तुम आ गए... वरना..."
फिर थोड़ी ही देर में रोते-रोते चिल्लाई:
"तुम इतनी देर से क्यों आए...? मैं कितना डर गई थी!"
(और उसने वर्धान के सीने पर अपने नाज़ुक हाथों से मारा)
वर्धान मुस्कुराया और बोला:
"या तो रो लो... या गुस्सा कर लो।"
वो उससे चिपक कर और भी ज़ोर से रोने लगी।
वर्धान ने भी उसे हटाया नहीं... और उसके बालों को सहलाने लगा।
प्रणाली (सिसकियों के बीच):
"कल जब तुम पानी में गए थे... तब क्यों नहीं आए थे ये मगर?"
वर्धान ने उसे अपने हाथों से पकड़ा, उसकी आंखों में देखा और दोनों हथेलियों से उसकी आंखों के आंसू पोंछते हुए बोला:
"क्योंकि मैं दूसरी तरफ से गया था। मुझे पता था कि इस तरह के खतरे हैं, लेकिन ये नहीं पता था कि तुम मेरी गैरमौजूदगी में ऐसा कुछ करोगी।"
प्रणाली (टूटती आवाज़ में):
"मैंने तो सोचा... कि जब तक तुम आओ... तब तक मैं..."
(और फिर से रोने लगी)
वर्धान:
"Shhhhhhh... मैं आ गया हूं न? अब सब ठीक है।"
अब प्रणाली ने खुद को और वर्धान दोनों को देखा — दोनों शरीर से भीगे हुए थे, और बेहद करीब भी।
उसका दुपट्टा भी कहीं दूर पड़ा हुआ था।
उसे जैसे ही एहसास हुआ, वो झट से वर्धान से दूर हो गई, भागकर अपना दुपट्टा उठाया और खुद को ठीक करने लगी।
अब वर्धान का ध्यान भी उसके गीले बालों से होते हुए उसके भीगे शरीर की ओर गया।
उसने तुरंत अपना मुंह दूसरी तरफ घुमा लिया और आंखें बंद कर लीं — जैसे उसने कोई अपराध कर दिया हो।
वर्धान (संवेदनशील स्वर में):
"मुझे माफ कर दो... मुझे तुम्हें ऐसे..."
प्रणाली (झुकी नज़रें):
"ये मेरी गलती है..."
(इतना कहकर वो अपनी गलती समझ कर भाग कर अपना दुपट्टा उठाया एक साइड लिया और जाने लगी)
भागती प्रणाली को वर्धान ने पीछे से हाथ पकड़ कर रोका और उसके एक तरफ के दुपट्टे को दोनों ओर करके अच्छे से ढक दिया।
वर्धान का ये सलीका जैसे प्रणाली के दिल को छू गया।
वो ठंड से कांप रही थी और उसकी गीली लटें उसके गालों से टकरा कर वर्धान के हाथों पर पानी छोड़ रही थीं।
वर्धान (नरमी से):
"तुम्हारा ऐसे जाना ठीक नहीं...
थोड़ी देर ठहरो, कपड़े सुखा लो।"
इतना कहकर उसने प्रणाली को एक तरफ बिठा दिया और दूसरी ओर आग जलाई।
दोनों आमने-सामने बैठ गए।
आग की जलती हुई लाल रोशनी में प्रणाली बेइंतहा खूबसूरत लग रही थी।
वर्धान उसे बस देखता रह गया।
जिस तरह वो अपने बालों को सुखाने की कोशिश कर रही थी — मानो किसी युद्ध से लड़ रही हो।
उसकी उंगलियां बार-बार बालों में उलझतीं, और वो झुंझला कर गुस्से से मुंह बनाती।
ये सब देखकर वर्धान की मुस्कान खुद-ब-खुद फैल गई।
वो उसके पास आया और धीरे से बैठते हुए उसके बालों को सुलझाने लगा।
वर्धान (हल्की मुस्कान के साथ):
"तुम्हें रोने के अलावा कुछ आता भी है?"
तभी दूर से घोड़ों की आवाज़ आने लगी।
प्रणाली (चौंकते हुए):
"अब मुझे चलना चाहिए..."
वर्धान:
"ये तो किसी के घोड़ों की आवाज़ है...
तुम्हें क्यों जाना है?"
प्रणाली (कंफ्यूज़ होकर, आंखें चुराते हुए):
"वो... अगर किसी ने हमें... ऐसे देख लिया तो...?"
वर्धान थोड़ा पीछे हुआ और हल्के स्वर में बोला:
"ठीक है..."
प्रणाली उठकर जाने लगी।
वर्धान भी खड़ा होकर उसे जाते देख रहा था।
अचानक उसकी नज़रें धुंधलाने लगीं...
और वह लड़खड़ाया...
फिर धड़ाम से ज़मीन पर गिर पड़ा — बेहोश हो गया।
प्रणाली घबरा कर उसके पास दौड़ी।
प्रणाली (चीखते हुए):
"वर्धान...! क्या हुआ तुम्हें!?"
उसने इधर-उधर देखा —
वर्धान के दाहिने पैर पर मगर के काटने का गहरा निशान था।
प्रणाली (घबराहट में):
"ये कैसे लगी...?"
उसने वर्धान का सिर अपनी गोद में रखा, और पानी की कुछ छींटें उसके चेहरे पर मारीं।
प्रणाली:
"वर्धान, उठो...
आंखें खोलो...!!!"
वर्धान की आंखें धीरे-धीरे खुलीं।
हल्की मुस्कान के साथ बोला:
"तुम गई नहीं अभी तक...?"
प्रणाली (आंसुओं में डूबी आवाज में):
"तुम्हें ऐसे छोड़ कर कैसे जाती...?
तुम्हें चोट लगी है..."
दूसरी तरफ से रथ की आवाज़ अब और करीब आ रही थी।
वर्धान:
"तुम जाओ... मैं ठीक हूं।"
प्रणाली:
"नहीं... मैं नहीं जाऊंगी।"
वर्धान:
"अगर किसी ने हमें यहां ऐसे देख लिया तो ठीक नहीं होगा... और मैं ठीक हूं, सच!"
प्रणाली:
"पर...!"
वर्धान (हल्के से मुस्कुराकर):
"मैं वादा करता हूं — कल तुम्हें यहीं मिलूंगा।
वो भी सही-सलामत।"
प्रणाली (रुकते हुए, रोते-रोते):
"सच...?"
वर्धान:
"हम्मम... जाओ अब।"
उसने पास पड़ी एक रस्सी से वर्धान के पैर को कस कर बांध दिया — ताकि अगर ज़हर फैले तो रुक जाए।
वो धीरे-धीरे जाने लगी।
जंगल से कुछ दूर ही उसकी बग्गी पहुंच चुकी थी।
उसकी दासियां उसका इंतजार कर रही थीं।
उसकी एक दासी को प्रणाली का ऐसे कपड़े बदल कर आना कुछ अजीब लगा — लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।
प्रणाली बग्गी में बैठी — पर उसका मन वहीं था...
वर्धान के पास।
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दृश्य कटता है — महल में।
किसी ने दरवाज़ा खटखटाया — और अगस्त्य होश में आया।
अगस्त्य:
"Yes, please... come in."
यह वो जासूस था जिसे एवी के पीछे अगस्त्य ने लगाया था।
जासूस:
"सर, मैं Mr. एवी सहगल की सारी जानकारी लेकर आया हूं।"
अगस्त्य:
"Oh, अच्छा... बैठो।"
जासूस:
"ये लीजिए — इस इन्वेलप में सब कुछ है।"
अगस्त्य ने वह इन्वेलप लिया और खोलते हुए बोला:
"Thank you. तुम्हारी पेमेंट तुम्हें मिल जाएगी।"
जासूस चला गया।
तभी अगस्त्य का फोन रिंग हुआ।
अगस्त्य:
"Hello?"
नेहा:
"सर, मैं आपको पहले से ही बता रही हूं —
पर आप कोई लीगल एक्शन मत लेना — इसलिए पहले से बता रही हूं।"
अगस्त्य:
"कोई काम की बात है तो जल्दी बोलो, ये सब क्या बोल रही हो?"
नेहा:
"कॉंट्रैक्ट कैंसल होने के बावजूद, रात्रि मैम शूटिंग पर चली गई हैं।"
अगस्त्य (बिना हैरानी के):
"हां तो ठीक है...
मैं कोई एक्शन नहीं लूंगा।
जाओ तुम दोनों।"
वो फोन रखने ही वाला था, लेकिन फिर अचानक रुक गया —
अगस्त्य:
"एक मिनट...
चली गई का क्या मतलब...?
तुम उसके साथ नहीं हो?"
नेहा (धीमे स्वर में):
"जी... यही मैं कहना चाहती थी..."
फोन कट गया।
अगस्त्य ने तेज़ी से अपना कोट पहना और बाहर निकलते हुए बड़बड़ाया:
"ये लड़की चलती फिरती प्रॉब्लम की दुकान है...
इस जन्म में जैसी इसकी हरकतें हैं ना...
कायदें से मुझे इससे नफरत होनी चाहिए थी —
लेकिन मैं भी क्या करूं...?"
(तेज़ रफ्तार में उसकी गाड़ी हवाओं से बात करती निकल पड़ी...)
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