Ishq aur Ashq - 27 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | इश्क और अश्क - 27

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इश्क और अश्क - 27

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उसने फोन रखा, और अपना कोट पहनते हुए बोला :
"ये लड़की चलती-फिरती प्रॉब्लम की दुकान है।"
और कार लेकर निकल पड़ा...

"अगर कुछ देर पहले निकली है, तो शहर से बाहर नहीं गई होगी..."
अगस्त्य ने परेशान होते हुए कहा।

वो उसे फोन पर फोन किए जा रहा है, फोन रिंग भी हो रहा है लेकिन कोई उठा नहीं रहा।
किसी और को फोन करके पूछ भी नहीं सकता, क्योंकि किसी का फोन वहाँ काम नहीं करता।

(अगस्त्य गुस्से में)
"मन तो कर रहा है छोड़ दूँ इसे इसी जन्म में...
बाक़ी देखा जाएगा अगले जन्म में।"

थोड़ी देर में रात्रि का फोन बंद जाने लगा।
अगस्त्य और परेशान हो गया :

"अगर उसको सब याद है तो... कहीं वो गुफा...?
नहीं!"

अगस्त्य ने गाड़ी की स्पीड तेज की और शहर से बाहर निकलकर बीजापुर की सीमा में प्रवेश कर गया।

"कहाँ गई वो...?
वो वहाँ... उस गुफा के पास...?
नहीं! वो गुफा तो..."
(अगस्त्य ने परेशान होकर कहा)

शाम हो चुकी थी और उसका कुछ पता नहीं था।

तभी अगस्त्य की नजर रात्रि की गाड़ी पर पड़ी।
वो घबरा कर गाड़ी से उतरा और उस गाड़ी के पास गया :

"रात्रि...!"
पर ये क्या?
गाड़ी में कोई नहीं था!

"ये गाड़ी यहाँ है तो... वो कहाँ गई?"

वो इधर-उधर देखने लगा और दूर उसे कोई लड़की अंधेरे में जाती हुई दिखी।
अगस्त्य चिल्लाया :
"रात्रि...!"

पर वो बहुत दूर थी और ऐसे तो रुकती नहीं।
उसने देखा तो वो एक जगह जमीन पर बैठी थी।

"नहीं रात्रि!
वो जगह नहीं...
तुम वहाँ मत जाओ!"

वो भागने लगा।
ना उसकी आवाज वहाँ पहुंच रही थी...

तभी अगस्त्य एक जगह रुका,
दोनों हाथों से एक क्रॉस बनाकर अपने सीने पर रखा और आंखें बंद करके बोला :
"यक्षि ॐ ब्रम्हते!"

वो वहाँ बैठी हुई रात्रि को एक ज़ोर का झटका लगा और तेज हवा उसे उड़ाकर अगस्त्य के पास ले आई।
रात्रि तेज़ी से उसके पास गिरी और बेहोश हो गई।

अगस्त्य ने उसे देखा, पास गया और प्यार से बोला :
"मुझे माफ कर दो, मैं ऐसा नहीं करना चाहता था...
पर तुम बात ही नहीं सुनती।"

रात काफी हो चुकी थी। इतनी रात को ड्राइव करके इतनी दूर जाना ठीक नहीं लगा।
उसने वहीं आग जलाई और एक तरफ रात्रि को लिटा दिया।
कार से पानी लाया और वहीं बैठ गया।

"मुझे नहीं पता इसका असर कब तक रहेगा,
पर तुम्हें कोई नुकसान नहीं होगा।"

काफी देर हो गई थी, पर अभी तक उसे होश नहीं आया।

अगस्त्य ने उसके मुंह पर पानी फेंका,
पर कोई असर नहीं!

और किलस के बोलने लगा: "मुझे ये समझ आता कि कोई इंसान हर जगह प्रॉब्लम में कैसे पड़ सकता है?
और मुझे ये नहीं समझ आता कि तुम हर जगह कैसे पहुंच जाते हो..."(रात्रि होश में आते हुए बोली)
अगस्त्य : थैंक्स टू यू, मुझे हमेशा अलर्ट मोड में रहना पड़ता है......
रात्रि को कुछ समझ नहीं आया,
अगस्त्य ने तुरंत बात बदली : चलो तुम उठी तो सही..."

(उसने उसकी गर्दन पकड़कर उठाया और बोला)
"लो पानी पियो थोड़ा।"

रात्रि:
"मुझे क्या हुआ था...? मैं बेहोश कैसे हो गई थी?"

अगस्त्य (हंसते हुए):
"तुम्हें बेहोश होने के लिए कुछ होने की जरूरत है क्या...?
तुम तो कहीं भी, कैसे भी, और कभी भी हो सकती हो।"

रात्रि ने उसे तिरछी नजरों से देखा।

अगस्त्य:
"इस वक्त ड्राइव करके जाना ठीक नहीं लगा। सुनसान रास्ता है... इसलिए।
उम्मीद है तुम्हें कोई दिक्कत नहीं है मेरे साथ?"

रात्रि:
"दिक्कत से तुम्हारा क्या मतलब...?"

अगस्त्य:
"मतलब तुम्हारा बॉयफ्रेंड..."

रात्रि:
"तुम..."

अगस्त्य (बात काटते हुए):
"चलो, मैं गाड़ी में देख कर आता हूं कि कुछ खाने को है या नहीं।"

सीन चेंज –

अब अगस्त्य और एवी आग के सामने बैठे हैं।
रात्रि, अगस्त्य को देख रही है।

वो पेड़ के पास टेक लेकर बैठा है...

उसकी घनी पलके, भूरी आंखें...
और उसका वो हटा-कट्टा शरीर – सिक्स पैक्स, घनी और ट्रिम्ड बीयर्ड...
उसे देखकर कोई भी लड़की उसकी दीवानी हो सकती है।

अगस्त्य (नजरें टोकते हुए):
"हे! क्या घूर रही हो...?
तुम्हारे घर में पापा-भैया नहीं हैं?"

रात्रि (चिढ़ते हुए):
"ये क्या लैंग्वेज है? और मैं कोई घूर नहीं रही हूँ, मैं तो बस..."

अगस्त्य हल्का सा मुस्कुराया।
फिर रात्रि भी हँस दी।

थोड़ी देर में ही अगस्त्य की आंखें भारी होने लगीं।
वो झपकी मारकर नीचे गिरता, उससे पहले ही रात्रि ने अपने हाथों में उसका सिर थाम लिया और आहिस्ते से अपनी गोद में रखा।

अगस्त्य जो चादर उसके लिए लाया था,
उसने वही चादर अगस्त्य को उड़ा दी।

वो उसे ध्यान से देखने लगी,
जैसे कभी पहले देखा ही न हो।

उसने उसके गालों पर अपना हाथ रखा और बोली :

"तुम्हें मुझसे प्रॉब्लम क्या है...?
क्यों मेरे पीछे पड़े रहते हो...?
जैसे शांत अभी हो, क्या वैसे ही नहीं रह सकते?"

तभी झाड़ियों के पीछे से कोई आवाज आई।

"कौन...?!"

ये शायद किसी जानवर की आवाज थी।
वो डर गई और अगस्त्य को बुलाया :

"अ... अ... ग... ग... अगस्त्य...!"

पर अगस्त्य ना उठा।
उसने उसे झकझोर दिया :

"अगस्त्य... उठो ना..!
देखो कोई जानवर आया लगता है!"

अगस्त्य (नींद में ही जवाब देता है):
"हाँ तो तुम्हारे दोस्त हैं, तुम्हारी बात सुनेंगे।
बोलो उनको कि अगस्त्य को परेशान न करें।"

रात्रि (गुस्से में):
"अगस्त्य! मैं तुम्हारा मर्डर कर दूंगी... उठो!"

अगस्त्य (उठते हुए):
"अरे यार, नहीं...
दिक्कत क्या है तुम्हें?"

फिर कुछ झाड़ियां हिलीं।

रात्रि:
"अगस्त्य देखो ना... प्लीज...
मुझे डर लग रहा है।"

अगस्त्य:
"अबे... मैं कौन सा सुपरमैन का भाई हूं?
मुझे भी डर ही लग रहा है।"

रात्रि:
"लग तो नहीं रहा तुम्हारे चेहरे से..."

अगस्त्य (इरिटेट होकर):
"अच्छा ठीक है, देखता हूं।"

वो एक डंडा लेकर आगे जाने लगा।
रात्रि भी उसके पीछे-पीछे।

अगस्त्य ने झाड़ियों को डंडे से हिलाया,
तो वहां से एक नेवला निकलकर इतनी तेज़ी से भागा कि अचानक अगस्त्य चौक गया।

इस चक्कर में रात्रि इतनी डर गई कि उसका पैर फिसला और वो अगस्त्य की बाहों में जा गिरी।

रात्रि और अगस्त्य की नजरें एक-दूसरे से टकराईं।
और दोनों एक-दूसरे को देखे जा रहे थे...

अगस्त्य की नजरें उसकी नशीली आंखों से होते हुए उसके गुलाबी होठों की तरफ जाने लगीं।

अब रात्रि से सब्र नहीं हुआ और उसने अगस्त्य से कहा :

"I know हमारा कोई मैच नहीं...
और तुम मुझे अच्छे लगते हो..."

To be continued...