The Rose She Never Returned... in Hindi Love Stories by Abhay Marbate books and stories PDF | वो गुलाब, जो उसने लौटाया नहीं...

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वो गुलाब, जो उसने लौटाया नहीं...

📖 कहानी: 🌹"वो गुलाब, जो उसने लौटाया नहीं..."

7 फरवरी, कॉलेज का Propose Day। हर तरफ फूल, शरारत, हिम्मत और इज़हार का माहौल था।
मैंने आज फैसला कर लिया था — मैं उसे प्रपोज़ करूंगा।

वो सिर्फ मेरी क्लासमेट नहीं थी... "आरुषि", मेरी धड़कनों का नाम बन चुकी थी।

दो साल से मैं उसे हर दिन देखता था, हर बार दिल करता था बोल दूं — लेकिन कभी हिम्मत नहीं हुई। और अब... सिर्फ कुछ ही दिन बचे थे कॉलेज खत्म होने में।


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सुबह 10:15 बजे – कॉलेज गार्डन

मेरे हाथ में एक लाल गुलाब था, जो कल रात खुद से ज्यादा सोच कर चुना था।
मैंने आरुषि को कॉल किया —
"लंच टाइम में गार्डन आना, जरूरी बात करनी है..."

उसने कहा —
"ठीक है, आ जाऊंगी।"

मेरी धड़कनें बढ़ने लगीं।


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1:05 PM – वो आई...

आरुषि आई — उसी गुलाबी कुर्ते में जो उसे सबसे ज्यादा सूट करता था।
मैं थोड़ा कांप रहा था, लेकिन खुद को काबू में रखा।

मैंने कहा,
"आरुषि, मैं बहुत समय से कुछ कहना चाहता हूं... और आज कह रहा हूं, क्योंकि अब और नहीं छुपा सकता।"

वो चुप रही।

मैंने गुलाब उसकी तरफ बढ़ाया और कहा,
"मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं। क्या तुम मेरी ज़िंदगी में हमेशा के लिए रहोगी?"


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उसकी चुप्पी

उसने गुलाब हाथ में लिया... देखा… और फिर मेरी आंखों में झांकते हुए बोली —

"मुझे पता था अर्जुन… एक दिन तुम ये कहोगे।"

मैंने धीमी आवाज़ में पूछा —
"तो जवाब क्या है?"

उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा —
"मैं अभी जवाब नहीं दे सकती..."

मैं ठिठक गया —
"क्यों?"

वो बोली —
"क्योंकि मैं ये नहीं चाहती कि हम इस जवाब के साथ अपनी दोस्ती खो दें। तुम्हारा प्यार सच्चा है, लेकिन मेरा मन अभी उलझा हुआ है।"


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फिर उसने क्या किया...?

मैंने सोचा कि वो गुलाब लौटा देगी… लेकिन उसने गुलाब रख लिया, और कहा —
"ये गुलाब संभाल कर रखूंगी… शायद एक दिन जब दिल साफ हो जाए, तब जवाब दे पाऊं।"

वो चली गई… और मैं वहीं खड़ा रह गया।


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6 महीने बाद – कॉलेज खत्म

उस दिन के बाद आरुषि ने मुझसे दूरी बना ली। ज़रूरत भर बात करती, लेकिन आंखों में वो पहले जैसा अपनापन नहीं था।

मैंने सोचा था वो वक्त के साथ हां कहेगी… लेकिन वो कभी नहीं बोली।

कॉलेज खत्म हुआ… सब बिछड़ गए। मैं दूसरे शहर चला गया, जॉब में लग गया… और बस यादें साथ रह गईं।


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2 साल बाद – एक शादी का कार्ड

एक दिन डाक से एक शादी का कार्ड आया।
"आरुषि ♥ रोहित"
दिल जैसे किसी ने दबा दिया हो।

मैंने कार्ड बंद किया, और अपनी पुरानी डायरी खोली — जहां अब भी वो गुलाब सूखा पड़ा था, जिसे कभी मैंने उसे दिया था, लेकिन उसने लौटाया नहीं।


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शादी में जाना... या नहीं?

बहुत सोचा… फिर गया।

शादी में वो बहुत खुश दिख रही थी, और मैं बस एक मेहमान था — जिसे कोई नहीं जानता था।

शादी के बाद, जब मैं जाने लगा, तो किसी ने पीछे से पुकारा —

"अर्जुन..."

मैं पलटा। वो थी — आरुषि।


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उसने क्या कहा...?

"शायद मैं हक़दार नहीं थी उस प्यार की जो तुमने मुझे दिया… लेकिन आज भी वो गुलाब मेरे पास है। और हर बार जब मैं उसे देखती हूं, तो ये यकीन होता है कि सच्चा प्यार वक़्त मांगता है, लेकिन हमेशा लौटता है..."

मैंने मुस्कुरा कर कहा —
"शायद अब वो सिर्फ यादों के लिए ही बना है।"

हम दोनों चुप रहे… और फिर हमेशा के लिए अजनबी बन गए।


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✨ अंतिम पंक्तियाँ:

> "प्रपोज़ करना आसान होता है,
लेकिन जवाब... वक्त से आता है।"

"कुछ गुलाब लौटाए नहीं जाते,
वो उम्र भर यादों की किताब में दबे रह जाते हैं..."