Ishq aur Ashq - 44 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | इश्क और अश्क - 44

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इश्क और अश्क - 44

हम ऐसा नहीं कर सकते पिता जी प्रणाली ने पीछे हटते हुए कहा ।

हम अपने भाई और इस राज के होने वाले राजा को वापस लाएंगे।


सीन चेंज ,
दूसरी तरफ एक महल , बड़ा ही भव्य और शानदार , सूर्य की करने छत से होकर , वहा के स्तंभों से टकरा कर कुछ इस तरह उस जगह को रोशन कर रहे हैं के मानो , सूर्य देव स्वयं ही वहा बैठे हो , चारो तरफ रोशनी पत्थरों पर बारीक कारीगरी , पर उतना ही भव्य उसका पूरा नजारा ।

इसी महल में एक कमरा है , बहुत ही सुंदर और आलीशान ......पर ये क्या इस कमरे में इतनी भागा दौड़ी क्यों हैं?


दासियां इधर उधर भाग रही हैं , कभी कोई ठंडे पानी का कटोरा लेकर भाग रहा है तो कभी कोई वैद्य को लेकर अंदर जा रहा है ।
हुआ क्या है यहां।


एक दासी : मुझे लगता नही है की राजकुमार अब होश में आएंगे ?

दूसरी : श श श .........अगर किसी ने ये सुन लिया न तो तेरा यही सर कलम कर दिया जाएगा ?


पहली : पर हम इतने दिनो से कोशिशें कर रहे हैं और अब तो उनका शरीर भी नीला पड़ने लगा है ......


दूसरी : हां एक हफ्ते से ज्यादा हो चुके हैं राजकुमार को इस हालत में???? जहर उनके शरीर में फेल चुका है।


तभी एक व्यक्ति उस कक्ष में आता है।

उसकी उम्र अच्छी-खासी लग रही है, सिर पर भूरे रंग के पंखों और नील पत्थर से जड़ा हुआ ताज है, एक कंधे से होते हुए दूसरी कमर पर जाने वाला अंगवस्त्र है, भूरे रंग और रेशमी कपड़ों की धोती, और सबसे ज़रूरी — उनके पीठ पर दो बड़े-बड़े पंख हैं।


वो व्यक्ति: क्या हमारे बेटे को होश आया?
एक दासी: जी नहीं... गरुड़ शोभित!
(ये व्यक्ति गरुड़ वंश और गरुड़ लोक के राजा हैं, इनका नाम गरुड़ शोभित है।)

गरुड़ शोभित (गुस्से में): ये तुम लोग मेरे बेटे के साथ क्या कर रहे हो? एक सप्ताह से अधिक हो चुका है और अभी तक उसे होश तक नहीं आया?

तभी वैद्य बाहर आते हैं: महाराज... ये ज़हर इतना खतरनाक नहीं है, किंतु पता नहीं उन्हें होश क्यों नहीं आ रहा।

गरुड़ शोभित (गुस्से में): ए वैद्य... अगर मेरा पुत्र कुछ घंटों में नहीं जागा तो तेरे लिए अच्छा नहीं होगा।

वैद्य थोड़ा डर गया: महाराज, मुझे नहीं पता कि एक मगर का विष इतना खतरनाक कैसे हो गया... ज़रूर ही इसके पीछे कोई और भी वजह होगी, आप मुझे कुछ दिनों का समय दीजिए।

गरुड़ ने एक तेज़ आवाज़ में: सारे सेवक अभी सेवा में हाज़िर हो...!

सारे गरुड़ सेवक एक जगह जमा हो गए।

गरुड़ शोभित: किसे पता है कि मेरा पुत्र धरती पर क्यों गया था... मुझे साफ-साफ जवाब दो।

उनमें से एक सेवक डर गया, पर कांपने लगा।

गरुड़ शोभित उस सेवक के पास गए और आराम से: अगर तुमने मुझे नहीं बताया तो तुम्हें गरुड़ लोक से निकाल दिया जाएगा?

वो सेवक डर गया पर उनके पैरों में गिर गया:
सेवक: महाराज! मुझे माफ कर दीजिए। किंतु मेरा इसमें कोई दोष नहीं है।

गरुड़ शोभित: सब बताओ!
सेवक: महाराज... कुछ दिनों से राजकुमार नित्य ही धरती पर चहल-कदमी के लिए जाने लगे थे... पूछने पर उन्होंने कहा कि उनको धरती पर एक दोस्त मिला है, बस उसी से मिलने के लिए जाते थे।

गरुड़ शोभित: मैंने ये पूछा कि हादसे वाले दिन क्या हुआ था... धरती लोक पर किस प्राणी का इतना दुस्साहस कि गरुड़ों पर हमला किया?

सेवक आगे बोलना शुरू करता है: उस रोज राजकुमार मुझे बदलों में चकमा देकर निकल गए थे, शायद उन्हें किसी की आवाज़ आई थी (जब प्रणाली मदद के लिए चिल्ला रही थी) और जब मैंने उन्हें ढूंढा, तो वो अधबेहोशी की हालत में थे।

सेवक बात को पूरी करता है: वो मगर इंसानी रूप में आकर राजकुमार से माफ़ी मांग रहा था।
वो कह रहा था कि "मुझे माफ कर दीजिए गरुड़, किंतु मुझे इस श्राप से मुक्ति आपको स्पर्श करके ही मिल सकती थी।"
राजकुमार: इसमें तुम्हारा दोष नहीं है, तुम अपने धाम जाओ।
उसके बाद राजकुमार बेहोश हो गए।

गरुड़ शोभित: और राजकुमार के दोस्त का क्या हुआ? वो कहां था?
सेवक: मुझे वहां और कोई नहीं दिखा।
गरुड़ शोभित: धरती पर तुम्हारे साथ और कौन गया था?
सेवक: मैं और एक और सेवक।
गरुड़: क्या तुम लोग बीजापुर के इर्द-गिर्द गए थे?
सेवक शांत हो गया।
गरुड़ शोभित: जल्द से जल्द मेरे पुत्र को होश में लाओ।
(और वो चले गए।)


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Scene Change

दूसरी तरफ प्रणाली बहुत परेशान है कि आखिर वो गरुड़ लोक जाए तो जाए कैसे।
उसने बहुत लोगों से पूछा, बहुत पंडितों से जानने का प्रयास किया, बहुत सी किताबें पढ़ीं, किंतु अभी भी उसके हाथ खाली ही हैं।

अगले दिन वो मर्दाना भेष में (काले रंग की धोती, काला कुर्ता और काली पगड़ी बांधकर, और अपना मुंह ढककर) महल से निकल गई।

महल में एक चिट्ठी छोड़कर, जिसमें लिखा था कि "मैं गरुड़ पुष्प लेकर ही वापस आऊंगी।"

प्रणाली को कुछ नहीं पता कि उसे कहां जाना है, और कैसे जाना है... वो बस जंगलों में चल रही है।

चलते-चलते वो एक जगह पर रुक गई — ये वही जगह है जहां प्रणाली और वर्धान मिले थे।

वो उसे याद करने लगी:
"तुम यहाँ थे तो सब कुछ कितना आसान लगता था। उम्मीद करती हूं तुम जहाँ भी होगे, ठीक होगे..."

तभी वहां एक वृद्ध आदमी अपनी छड़ी लेकर धीरे-धीरे चलता हुआ आया...

उसने धुंधली आंखों से प्रणाली को देखा और पूछा:
बाबा: कौन है ये???

प्रणाली ने उन बूढ़े बाबा को थामते हुए कहा:
प्रणाली: बाबा, मेरा नाम प्रणाली है...

बाबा: तो तुम एक स्त्री होकर मर्दों के वस्त्रों में क्या कर रही हो...?

प्रणाली: वो बहुत लंबी कहानी है बाबा... पर आपको कहां जाना है?

बाबा: मैं ज़रा चहल-कदमी के लिए निकला था और अब ज़्यादा दूर आ गया।

प्रणाली: चलिए बाबा, मैं आपको छोड़ देती हूं।

बाबा: मेरा घर बहुत दूर है...

प्रणाली कुछ वक्त के लिए रुकी और सोचने लगी:
"कहीं ये कोई उन गरुड़ों का छलावा तो नहीं? क्या करूं?"

बाबा: अगर गरुड़ छलावा करेगा तो एक बूढ़े का क्यों करेगा?

प्रणाली उनकी बात सुनकर हैरान रह गई।

प्रणाली: क्या आप मेरे मन की बात सुन सकते हो?

बाबा: तुम ज़रूर ही किसी ज़रूरी काम से जा रही होगी! तुम जाओ... मैं चला जाऊंगा!

(और वो बाबा चलने लगे।)

प्रणाली कुछ पल के लिए सोचने लगी:
"इन्हें कैसे पता कि मैं...? हो सकता है कि मेरे सवालों का जवाब पता हो?"

इतना सोचकर वो उनके पीछे चलने लगी।

बाबा बहुत धीरे-धीरे चल रहे हैं, प्रणाली भी उनके पीछे-पीछे चल रही है।

प्रणाली: बाबा... आप कोई सिद्ध पुरुष जान पड़ते हैं?

बाबा: मैं कोई सिद्ध पुरुष नहीं हूं। मैं एक शापित गरुड़ हूं!
जिसे न मौत आ सकती है, न ही वो इंसान बन सकता है — बस इसी तरह दुनिया से दूर, अकेले जीवन बिताना है।

प्रणाली अचंभित हो गई और सोचने लगी:
"एक गरुड़, वो भी इस हालत में... वो भी धरती पर? ये कोई आम बात नहीं है!"

बाबा: और तुम मुझे देख सकती हो... उसका मतलब तुम भी कोई साधारण कन्या नहीं हो!

प्रणाली: देख सकती हो का क्या मतलब है???????