[गरुड़ लोक | सुबह का पहला पहर]
गरुड़ शोभित (रौबदार आवाज़ में): धरती पर जा रहे हो?
वर्धान् एक पल को चौंक गया।
मन में सवाल उठा—“इन्हें कैसे पता चला?”
गरुड़ शोभित (आँखों में सीधे देख कर):
सोच क्या रहे हो? मुझे ये भी पता चल गया है कि तुम वहाँ क्यों और किससे मिलने जा रहे हो।
वर्धान् (आश्चर्य और संदेह में):
पिताजी...? क्या मेरी गैर-मौजूदगी में आपने मेरी जासूसी करवाई?
गरुड़ शोभित (गंभीरता से):
तुम अभी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो।
इसलिए तुम कहीं नहीं जा सकते।
और ये अनुरोध नहीं, आदेश है।
वर्धान् रुक गया। फिर एक हीरो जैसी चाल में पलटा,
आँखों में वही पुरानी आग और आवाज़ में वही गरिमा—
वर्धान्:
“मैं बिल्कुल ठीक हूँ। और रही बात आपके आदेश की... तो गरुड़ लोक का पूरा बल भी अगर मुझे रोक पाए, तो बता दीजिएगा।”
वो पलटा और जाने लगा...
गरुड़ शोभित:
पर बात सिर्फ तुम्हारी नहीं है, वर्धान्।
ये सवाल अब पूरे गरुड़ लोक का है।
हमारे लोक पर एक बहुत बड़ा खतरा मंडरा रहा है।
वर्धान् रुक गया। स्वर में अब मासूमियत घुली—
वर्धान्:
खतरा...? कैसा खतरा?
गरुड़ शोभित:
हाँ। बहुत बड़ा।
और उसे सिर्फ तुम टाल सकते हो।
वर्धान् (संकट में):
साफ़-साफ़ कहिए पिता जी...
[एक रहस्यमयी कक्ष | गरुड़ शोभित की दिव्य दृष्टि]
गरुड़ शोभित ने आँखें बंद कीं।
फिर आकाशगंगा-सी रोशनी के बीच,
एक 3D दिव्य प्रतिछाया प्रकट हुई।
वो प्रतिछाया थी—प्रणाली की।
वो बाग में अपनी सखियों संग हँस रही थी।
उसके घने बाल उसकी आँखों में आ रहे थे, जिन्हें वो नाज़ुक उंगलियों से हटाती—
और उसकी मुस्कान... मानो पूरे ब्रह्मांड का संगीत वहीं थम गया हो।
वो मुस्कान... वर्धान् की धड़कनों को जैसे रोकने लगी।
वर्धान् (मंत्रमुग्ध होकर):
यह कौन है...?
वो धीरे-धीरे उस छाया की ओर बढ़ा।
जैसे ही छूना चाहा,
वो प्रतिछाया धूल बनकर उड़ गई।
वर्धान् पीछे हटा, जैसे किसी नींद से टूटा हो—
वर्धान्:
पिताजी... ये सब?
गरुड़ शोभित:
तुम्हें इस लड़की से प्रेम करना है।
एक पल को वर्धान् की आँखें चमकीं।
फिर भौंचक्का हो गया—
वर्धान्:
प्रेम...?
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[दूसरी ओर | पृथ्वी | रात्रि - एवी - अगस्त्य का सामना]
अगस्त्य ने गुस्से में आकर एवी का कॉलर पकड़ लिया और दीवार से ठेल दिया।
अगस्त्य (उग्र स्वर में):
तुझे रात्रि को संभालने को कहा था... और तू उसे सब बताने चला है?
एवी (गुस्से में धक्का देकर):
तो तू क्या चाहता है? कि वो सय्युरी के पास चली जाए?
रात्रि स्तब्ध खड़ी रही। दोनों की लड़ाई उसकी आँखों के सामने थी।
अगस्त्य (गुस्से में):
सय्युरी मेरी प्रॉब्लम है!
तेरा काम है—रात्रि को इस सब से दूर रखना!
एवी:
समझ क्यों नहीं रहा?
कहानी का एक-एक किरदार सामने आ रहा है।
हमें रात्रि को बताना होगा!
अगस्त्य:
अब तू भी इससे दूर रह!
रात्रि (टूटे स्वर में):
क्या मैं भी कुछ डिसाइड कर लूँ?
या मेरी ज़िंदगी का हर फैसला तुम दोनों ही करोगे?
अगस्त्य, गुस्से में उसकी कलाई कसकर पकड़ता है—
अगस्त्य (आँखों में आग लिए):
तुम्हें कोई बात एक बार में समझ क्यों नहीं आती...?
रात्रि (कलाई छुड़ाते हुए):
You know what...?
अगर तुम मेरे अतीत में हो,
तो मैं बहुत खुश हूँ कि मुझे तुम याद नहीं!
[एक तेज़ फ्लैशबैक]
एक लड़की—रोती हुई—कानों में चीखती है:
“मैं चाहती हूँ कि तुम मुझे कभी याद न आओ!”
रात्रि के सर में तीव्र दर्द उठता है।
वो वहीं ज़मीन पर बैठ जाती है।
अगस्त्य घबरा जाता है।
उसकी आवाज़ अब सख़्ती से चिंता में बदल गई—
अगस्त्य:
क्या हुआ...? तुम ठीक हो...?
रात्रि (कमज़ोर आवाज़ में):
तुमने ये दर्द एक बार देखा है...
पर मैं इसे रोज़ जीती हूँ!
रोज़... फ्लैशबैक आते हैं, और मेरा सिर...
इतना फटता है कि लगता है, जान ही दे दूं।
पर तुम्हें क्या...?
अगस्त्य (ठंडी आवाज़ में):
हम्म...
बिलकुल सही कहा तुमने।
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।
रात्रि की आँखों में आँसू आ जाते हैं।
रात्रि (टूटती हुई):
क्या तुम अब भी नहीं चाहते कि मुझे सच पता चले...?
अगस्त्य पलटकर जाने लगता है।
रात्रि (चिल्ला उठती है):
ये मेरी कहानी है!
क्या मुझे जानने का हक़ नहीं...?
अगस्त्य (रुक कर, ठंडे स्वर में):
सही कहा तुमने।
ये तुम्हारी कहानी है...
अब जो चाहो, वो करो।
वो चला जाता है।
एवी, रात्रि को थाम लेता है।
रात्रि (गुस्से में, थरथराती):
आख़िर ये आदमी मुझसे चाहता क्या है...?
एवी (धीरे से):
ये बिल्कुल पागल है, रात्रि।
अब तुम्हें खुद को संभालना होगा।
वो उसे सोफ़े पर बैठा देता है।
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[अगस्त्य की कार | रात का अंधेरा]
अगस्त्य गाड़ी में बैठता है, दरवाज़ा तेज़ी से बंद करता है।
गुस्से में स्टेयरिंग पर हाथ मारता है—
हॉर्न की आवाज़ पूरे घर तक गूंजती है।
रात्रि सुनती है... उसकी धड़कन फिर तेज़ हो जाती है।
अगस्त्य का फ़ोन बजता है।
वो कॉल उठाता है—
अगस्त्य (थोड़े नर्म स्वर में):
मुझे पता था, तुम कॉल करोगी।
मुझे भी तुमसे मिलना है, सय्युरी...
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