अब तक......
एरियल को जंगल में वो रहस्यमयी साधु मिला, जिसने उसे बताया कि उसका पतन एक सज़ा नहीं बल्कि चुनाव था। लेकिन जैसे-जैसे एरियल सवाल पूछता गया, साधु की आंखों में कुछ छिपा हुआ डर और गहराता गया।
🔸 आगे.......
जंगल की हवा अब वैसी नहीं थी जैसी पहले थी। चारों ओर अजीब सी नमी थी, मानो पेड़ों की छालें भी किसी भय को छिपाने की कोशिश कर रही हों। साधु चुप हो गया था। उसकी आंखें एरियल को घूर रही थीं—न गुस्से से, न करुणा से, बस… निर्विकार।
"तुम्हें अब चलना होगा," उसने अंततः कहा।
"कहाँ?" एरियल ने पूछा।
"जहाँ से तुम गिरे थे। पर इस बार तुम्हें खुद जाना होगा। तुम्हारी उड़ान अब तुम्हारे कर्मों पर निर्भर करेगी।"
एरियल ने उसका हाथ पकड़ना चाहा, पर जैसे ही उसने स्पर्श किया, साधु गायब हो गया—हवा में घुल गया जैसे कभी था ही नहीं।
एक पुराना पथ दिखाई दिया। पत्थरों से भरा, कांटों से सना। हर कदम पर जंगल गहराता गया। पेड़ ऊँचे होते जा रहे थे, और उनमें से कुछ की आकृतियाँ इंसानों जैसी लग रही थीं। क्या ये सिर्फ उसकी कल्पना थी?
चलते-चलते एरियल को एक टूटा हुआ मंदिर मिला। मंदिर की दीवारों पर अजीब आकृतियाँ खुदी थीं—आधे देवदूत, आधे राक्षस। और बीच में एक त्रिशूल… ठीक वैसा ही जैसा उसके सपनों में आता रहा था।
मंदिर के गर्भगृह में एक आवाज़ गूंजी—
"तुमने अपने पंखों से जो आग लगाई थी, वही आग अब तुम्हारा मार्ग जलाएगी।"
"कौन है?" एरियल ने पुकारा।
एक छाया उभरी—काली, लेकिन चमकदार आंखों के साथ। वह बोलने नहीं आई थी, वह केवल देखने आई थी।
और तभी दीवारें कांपने लगीं। मंदिर का फर्श टूटा और एरियल गिरने लगा—लेकिन इस बार वह गिर नहीं रहा था, वह बह रहा था… समय में।
वह अपने अतीत में लौट आया—वो क्षण जब उसने स्वर्ग से विद्रोह किया था। सभी फ़रिश्ते एकत्र थे। एरियल उनके बीच अकेला खड़ा था। स्वर्ग के उच्चतम देवदूत ने कहा, "जो अपने पंखों से छल करे, उसे पंखों का भार दिया जाएगा।"
तभी उसकी पीठ से पंख गायब हो गए।
"तुम्हें नीचे भेजा जा रहा है, ताकि तुम अपनी आत्मा में रोशनी ढूंढ सको—या अंधकार में खो जाओ।"
वर्तमान में लौटते हुए एरियल का शरीर काँपने लगा। मंदिर का दरवाज़ा अब खुला था, और वहाँ खड़ी थी एक लड़की—जिसके माथे पर वही त्रिशूल का निशान था।
"मैं तुम्हें जानती हूँ," उसने कहा।
"तुम कौन हो?" एरियल ने पूछा।
"मैं वही हूँ, जिसे तुमने कभी बचाया था। पर अब मैं वही बन चुकी हूँ, जिससे तुम्हें डरना चाहिए।"
उसकी आंखों में रोशनी और अंधकार दोनों का मिश्रण था।
"क्यों आई हो?" एरियल ने थरथराते हुए पूछा।
"तुम्हारे निर्णय की घड़ी आ चुकी है। या तो तुम फिर से उड़ना सीखोगे, या फिर इसी मंदिर में कैद हो जाओगे, समय के अंत तक।"
तभी मंदिर की मूर्तियाँ जीवंत होने लगीं। आधे देवदूत, आधे राक्षस… सब उसकी ओर बढ़ने लगे। लड़की ने एक मशाल उठाई और उसे एरियल की ओर बढ़ा दी।
"इस आग को पकड़ो। यह तुम्हारी सच्चाई है।"
जैसे ही एरियल ने मशाल को पकड़ा, उसके हाथ जलने लगे, पर उसने नहीं छोड़ा।
धीरे-धीरे उसकी आंखों में चमक लौटी। पंख तो नहीं थे, पर अब उसकी रीढ़ सीधी थी, उसकी चाल स्थिर।
"मैं फिर से उड़ नहीं सकता," उसने कहा।
"लेकिन अब तुम गिरने से नहीं डरते," लड़की ने उत्तर दिया।
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मंदिर की सारी मूर्तियाँ शांत हो गईं।
"अब तुम्हें एक अंतिम रास्ता तय करना होगा," लड़की ने कहा। "जिस गुफा में तुम अपनी पहली रात गिरे थे, वही तुम्हारा द्वार है—या तो मुक्ति का या…"
"या अंधकार का," एरियल ने खुद ही पूरी की बात।
दोनों बाहर निकले। आसमान में एक टूटता हुआ तारा गिरा—शायद किसी और फ़रिश्ते का पतन हो रहा था।
"क्या सबके पास मौका होता है लौटने का?" एरियल ने पूछा।
लड़की ने जवाब दिया, "हर कोई गिरता है। फर्क इतना है—कौन सीखता है और कौन खुद को खो देता है।"
रास्ता अब साफ़ था—गहरी गुफा की ओर जाता एक संकरा मार्ग। एरियल ने एक अंतिम बार मंदिर को देखा और चल पड़ा।
उसके पीछे न तो कोई परछाई थी, न कोई परवाज़… बस एक आत्मा, जो अब खुद से भागना नहीं चाहती थी।
🔹अगले भाग मे :
गुफा के भीतर का रहस्य, जहाँ समय और आत्मा एक हो जाते है ।