Ishq Baprwah Nahi Tere... - 5 in Hindi Love Stories by Santoshi 'katha' books and stories PDF | इश्क बेपरवाह नहीं तेरा... - 5

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इश्क बेपरवाह नहीं तेरा... - 5

सुबह का वक़्त........

वैशाली बड़ी बेचैन होकर कुछ ढुंढ रही थी। उसने कबड़ के सारे कपड़े, बिस्तर पर बिखेर रखे थे।

" वैशू ये सब क्या है, क्या कर रही हों तुम....? " 
वैभव कमरे कि उधड़ी हुई हालत पर नजर दौड़ाते हुए बोला, 
वैशाली अपनी ही धुन में पुरे कबड के कपड़े बिस्तर पर एक एक कर फेक रही थी। उसे परेशान देख वैभव उसके पास आकर उसे रोकते हुए उसका हाथ पकड़ लेता है।

" वैशाली क्या हुआ, ऐसा क्या ढुंढ रही हो तुम? जो पुरा कबड खाली कर दिया तुमने?

वैशाली परेशान और बुझी हुई आवाज में मासूमियत से बोली 

" वैभव, मुझे मेरी साड़ी नहीं मिल रही वो जो तुम बोल रहे थे। तुम्हारी मम्मी की साड़ी है। और उन्होंने मेरे लिए दी थी। ( बच्चों सा मुंह कर ) मैंने हर जगह ढुंढ लिए पर वो मिल ही नहीं रही है। पता नहीं कहा रख दिया मैंने, मुझे वो साड़ी चाहिए। तुम भी ढुंढो ना " 

वैशाली को एक साड़ी के लिए इतना परेशान देख वैभव थोड़ा हैरान हुआ फिर उसे समझाते हुए बोला 

" वैशू... तुम भी ना तुमने तो डरा दिया था। एक साड़ी ही तो है रख दी होगी कहीं क्या फर्क पड़ता है, तुम्हारे पास इतनी सारी साड़ियां है पर तुम्हें वहीं साड़ी क्यों चाहिए?"


" क्योंकि कल मुझे वही साड़ी पहननी है। इसलिए ढुढने में मेरी मदद करो “ वैशाली फिर एक बार पुरे कबड में नजर दौड़ाने लगीं। 

" क्यों कल ऐसा क्या है जो तुम्हें वहीं साड़ी पहननी है? " 
वैभव ने हैरानी से पुछा 

" नहीं, पहले ढुंढ के दो फिर बताउंगी, देखो... मुझे लगता है उपर जो सुट केस रखा है ना उसमें होगा प्लीज़ उतारो ना उसे " 

वैशाली किसी बच्चे की तरह ज़िद कर रही थी। वैभव उसके चेहरे को हाथों में भरते हुए प्यार से बोला



" वैशू यार क्या जिद है। कोई और साड़ी पहन लो ना, तुमपर तो सब अच्छा लगता है। 



" नई,, मुझे वही चाहिए तुम उतारते हो या मैं उपर चढ़ूं? “
वैशाली की आवाज में हल्की धमकी थी। जैसे वो कुछ भी कर बात मनवाना चाहती हो, वैभव ने उसके हिलते ही झट से उसे पकड़ सख्ती से बोला 

" ए.. ए... नहीं अभी अभी पैर ठीक हुआ है। या के नहीं ये कल रिपोर्ट आने के बाद पता चलेगा। फिर से गिर गई तो, चुप चाप खड़ी रहो यही" 


वैभव स्टूल लेकर कबड के पास लगाया और उसके ऊपर चढ़ कर सुट केस निकालने लगा। वैशाली एकदम पास खड़ी थी।


" अरे संभाल के! " वैशाली ने हाथ उपर कर हड़बड़ा कर बोली 

" ए... डरा मत यार..." वैभव के डांटते ही वैशाली मुस्कुरा देती है। वो सच में मज़ाक ही कर रही थी।

वैभव संभाल कर कबड के उपर कोने में रखा एक बैग उतारता देता है। वैभव ने अभी उसे जमीन पर रख ही था की वैशाली हड़बड़ा कर नीचे बैठ उसे जल्दी से खोल उसमें रखे कपड़े उल्ट पुलट करने लगती है।
और तभी उसके हाथ में एक लाल रंग की बहोत खुबसूरत बनारसी साड़ी आ जाती है। 
सुर्ख लाल चटक रंग पर सोने सी जरी का नक्काशीदार काम बहोत खुबसूरत लग रहा था।

उसे देखते ही जैसे वैशाली की आंखें चमक गई, वो मुस्कुरा कर उस साड़ी को अपने सिने से लगा लेती है।

" उफ्फ तुम लड़कियों का इन चीजों से लगाव, कभी कभी लगता है कहीं तुम मुझसे ज्यादा इनसे तो प्यार नहीं करती? “ वैभव एड़ियों पर ही बैठ पीछे से उसके कंधे पर झुक जाता है। 

“ धुत, ऐसे थोड़ी होता है। मैं दुनिया में सबसे ज्यादा तुमसे ही प्यार करती हूं समझे मेरे बुद्धू राम! “ वैशाली ने वैभव के बालों को हल्के से बिखेर दिया। जिसके बदले में वैभव उसे पीछे से जकड़ लेता है।


“ अच्छा चलो अब तो बताओ कल क्या है ऐसा, जिसके लिए तुम्हें यहीं चाहिए थी? " 

वैशाली भी तिरछी नजर से वैभव को देख बहोत खुशी से बोली 

" कल, कल करवा चौथ है। और कल मैं तुम्हारे लिए उपवास रखुगी... देखो मना मत करना इतने दिन बाद हमारे जिन्दगी में खुशियां लौटी है। मैं इसे सैलिब्रिट करना चाहिए हूं। तुम्हारे साथ, हर पल को बिल्कुल नए तरीके से जिना चाहिए हूं। प्लीज़ वैभव " 

वैभव कुछ कहे बिना उठ कर बिस्तर के पास आ कोने पर बैठा गया। वैशाली भी उसके जवाब का पिछा करती उसके सामने आ गई उसे फिर एक बार मनाने लगी। 

वैभव ने उसका हाथ पकड़ अपने पास बिठा लिया। फिर बड़े प्यार से उसे देखने लगा। वैशाली के सवालिया नजर अब भी उसपर ही थे। 

" ठीक है जैसा तुम कहो जो तुम्हें अच्छा लगे वो करो, तुम खुश तो मैं भी खुश “
वैशाली का चेहरा मुस्कुराहट से फ़ैल गया। वो झट से उसे एक पल में गले लगा लेती है। वैभव भी मुस्कुरा दिया।


" वैसे ये मेरी मां की साड़ी है तो इस साड़ी में तुम मेरी मां तो नहीं लगोगी ना? " वैभव मज़ाक में वैसे ही उसके कान में फुसफुसाया, जिसपर वैशाली चिढ़ कर उससे अलग हो उसके कंधे पर मारती हुई बोली 

" वैभव.... तुम ना..." दोनों हंस पड़ें।

वैशाली स्माइल कर अभी जाने के लिए उठी ही थी के दो क़दम चलते ही उसका सर घूम सा गया, पैर लड़खड़ा से गए। इससे पहले वो गिरे वैभव ने झट से उसे अपनी बाहों में सभाल लिया। उसे बिस्तर पर बैठा दिया।


" वैसू… क्या हुआ तुम ठीक हो ना? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना? " वैभव उसके पास बैठ बेचैनी से उसके सर पर हाथ रख फिवर चैक करने लगा। 

" अरे, कु…कुछ नहीं हुआ बाबा, वो शायद पैर लड़खड़ा गया। मैं ठीक हूं। " 

वैशाली खुद को संभालती हुई बोली अपना सर वैभव के कंधे पर रख देती है। वैभव भी, उसके बालो को सहलाने लगा। वैशू कुछ सोचने लगी। उसने कहे तो दिया था। पर अभी अभी जो उसे चक्कर आया उससे वो भी थोड़ी सोच में पड़ गई ऐसा क्यों हुआ। पर वो वैभव को परेशान नहीं करना चाहती थी। 
वो साड़ी अब भी उसकी मुठ्ठी में कसी हुई थी और वैभव उसका सर सहला रहा था।
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रात को...

वैशाली कमरे में बैठी अपने हाथ में मेंहदी लगा रही थी। वैभव पानी की बोतल लेकर कमरे में आया और साइड टेबल पर बोतल रख वैशाली को देखने लगा वो खुश लग रही थी। वैभव बिस्तर पर बैठते हुए उसकी मेहंदी देख बोला 

" ओहो, नॉट बैड वैशू तुम्हें तो मेहंदी लगानी भी आती है। " वैशाली खुश होकर उसे हाथ आगे कर मेहंदी दिखाते हुए उत्साह में बोली 

" बताओ कैसी लग रही है। आधे घंटे से मेहनत कर रही हूं..."

" बहोत सुन्दर है। बिल्कुल मेरी चांद सी बीवी की तरह, पर ये सब तुम क्यों कर रही हो मेहंदी वाली को बुला लेती ना..." 

वैभव बिस्तर पर पैर फैला बैठते हुए कहे रहा था। वैशाली ने इस पर थोड़ा मुंह बिचका लिया।

" किया था। पर किसी ने हां नहीं कहा आख़री समय पर कहा इसलिए… इसलिए खुद ही मेहनत कर रही हूं। " 
वैशाली जैसे बच्चों सा मुंह बनाकर बोले जा रही थी। तो वैभव उसे देख स्माइल कर पास रखीं अपनी बुक खोल लेता है। 

कुछ देर में वैशाली एक गहरी सांस लेकर अपनी हथेली देख खुश होती हुई बोली 

" हां, एक हाथ में तो लग गई मेहंदी, पर ये दुसरे हाथ का क्या करूं? " ये कहते ही उसकी आंखें कुछ सोचती वैभव की तरफ मुड़ गई। वो अभी भी अपनी किताब में मगन था।

" वैभव... वैभव... सुनो ना… “ वैशाली ने बड़े प्यार से कहा 

" हम्मम..." वैभव किताब पर नज़र टिकाए हुए था।

" सुनो ना..." 

" वैसू मेरे कान तुम्हारी तरफ है। बोलों? " वैभव अब भी किताब को ही देख रहा था। वैशाली थोड़ा मुंह बिचकाती हुई बोली 

" वैभव, देखो ना एक हाथ में तो मेहंदी लगा ली मैंने पर अब दुसरे का क्या करूं? “

" तो इसमें मैं क्या कर सकता हूं? " वैभव ने एक नज़र उसे और उसकी मेहंदी वाली हथेली को देखा

" मेरी थोड़ी सी मदद करो ना... प्लीसससस..! "

वैभव ये सुनते ही भवें सिकोड़ लेता है। वैशाली मुस्कुराते हुए हाथ में पकड़े कोन को उसकी तरफ बढ़ा देती है। और बच्चों की तरह प्यारे प्यारे एक्सटेंशन लेती पलकें झपकाईं जा रही थी।

उसे ऐसे देखते ही वैभव के आंखों में प्यार और चेहरे पर मुस्कान एक पल को तैर गई पर फिर उसने खुद को कन्ट्रोल करते हुए कहा 

" नो, मैं ये नहीं करने वाला...! "

" वैभव, प्लीज़ ना मुझे दोनों हाथ में मेहंदी चाहिए। देखो ना कैसा लगेगा एक हाथ में मेहंदी लगाई है। और दुसरा हाथ ऐसे खाली प्लीज़ ना बेबी… मेरी थोड़ी सी मदद करो, प्लीज़ ना हबी…" 

वैशाली वैभव को पुचकारती, लाड़ जताती, फ्लाइंग किस देते हुए मना रही थी। वैभव भी उसके हर शब्द के साथ बदलते उसके चेहरे के भाव को देखते हुए एक अलग ही ख़ुशी महसूस हो रही थी।
उसे जैसे वो अपनी पुरानी कॉलेज वाली चुलबुली सी वैशाली वापस मिल गई थी जो शादी के बाद जैसे धीरे धीरे कहीं खो सी गई थी।

" वैशू तुम जानती हो ना.. मुझे ये सब नहीं आता फिर तुम्हारी मेहंदी बिगड़ गई तो मुझपर चिल्लाओगी... नो, मैं ये नहीं कर सकता सॉरी! " 


वैभव ये कहे फिर एक बार किताब में आंखें गडा लेता है। पर उसके चेहरे पर एक बहोत हल्की मुस्कान थी। जैसे उसे पता हो वैशाली आगे क्या कहेंगी।

" नई ना वैभव ऐसा मत बोलो (वैभव उसे देखने लगा ) मैं सच्ची कुछ नहीं बोलूंगी और तुमने पहले भी तो मुझे मेहंदी लगाई है ना... याद है या भूल गए। वैसे ही आज भी लगा दो,
इसी बहाने हम फिर से वो पल जी लेंगे " 

वैभव उसे बस देखें जा रहा था। वैशाली प्यारा सा मुंह बनाकर रिश्वत या कहें मेहनताने के रूप में फलाइ किस्स दे रही थी। वैभव ने उसे शरारती आंखों से देखा फिर मुस्कुरा कर कोन ले उसके हाथ में मेहंदी लगाने लगा।

वैशाली सिरहाने से टिक कर लगभग लेटी हुई बस वैभव को देखें जा रही थी। वैभव का ध्यान भले मेहंदी पर था पर वो ये भी जानता था वैशाली उसे ही देख रही है। दोनों के चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। 

" वैभव... तुम्हें याद है ना तुमने मुझे पहले भी ऐसे ही मेहंदी लगाई थी। " 

वैशाली की आंखें पुरानी यादों की तस्वीरों से चमक रही थी। 

" हां याद है। पर उसके लिए मुझे कितनी मेहनत करनी पड़ी थी। तुम्हें क्या पता तुमने तो ऑडर कर दिया।
वैभव तुम्हें मेरे कमरे में आके मुझे मेहंदी लगानी है। पर उस चक्कर में गर्ल्स हॉस्टल की दीवार कुद कर अन्दर आना पड़ा था मुझे... और तुम्हारी उस चुडैल वोडन को चकमा देना!? बाप रे..! ऐसा लगा जैसे मैं कोई दुश्मन देश की बॉर्डर में घुस रहा हूं। “ 

वैशाली खिलखिला कर हंस दी। वैभव भी मुस्कुरा दिया। पर उनकी बातों के बीच-बीच में वैशाली का हाथ बार बार उसके सर पर जा रहा था। क्योंकि उसे सर दर्द और चक्कर भी आ रहे थे। पर वैशाली ने वैभव को कुछ कहा नहीं… इतने दिनो बाद उसे खुश और पुरानी बातें याद करता देख वो उसे परेशान नहीं करना चाहती। वो ये दिखा भी नहीं रही थी। 

" हां, पर तुमने अपना वादा निभाया तुमने मुझे मेहंदी भी लगाई और मेरा व्रत की खुलवाया था। मैंने तो तुम्हें उसी दिन अपना पति मान लिया था। " 
ये कहते हुए उसने अपनी आंखें बंद कर ली, या कहें बेहोशी की हालत में चली गई। उसका दुसरा मेहंदी लगा हाथ दुसरे तरफ़ के तकिए पर ढिला पड़ गया।

" अच्छा, पर मैंने तो तुम्हें अपनी बीवी बनाने का फ़ैसला उसी दिन कर लिया था जब मैं तुम्हें पहली बार देखा था। और तुम्हें याद है वैशू वो… “ 
वैभव ने देखा तो वो आंखें बंद कर चुप चाप सो चुकी थी। उसे ऐसा ही लगा, 


“ अरे... कमाल है। अभी-अभी बात कर रही थी अभी सो गईं। शायद थक गई होगी, दिनभर कल की इतनी सारी तैयारियां जो कि है। हम्मम, पर मुझे काम पर लगा दिया… अब तो ये मेहंदी पुरी करके ही सोना होगा। "

वैभव भी कुछ ही देर में मेहंदी लगाकर वहीं उसके बगल में लेट गया। पर उससे पहले उसने वैशाली के माथे को बहोत प्यार से चुमा था।

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कहानी जारी है____

[ किसी भी रिश्ते की खुबसूरती उसके साथ होने वाले व्यवहार पर निर्भर करती है। खास कर पति-पत्नी के रिश्ते में दोनों में सबसे पहला और गहरा रिश्ता प्रेम से पहले दोस्ती का होना चाहिए। क्योंकि दोस्ती हर रिश्ते को खुबसूरत बना देती है। जो किसी उम्र कि मोहताज नहीं होती। दोस्ती हर रिश्ते को बेहतर कर सकतीं हैं। 

हर पति-पत्नी को आपस में एक दोस्त की तरह बातचीत, हंसी मज़ाक और छोटी मोटी शरारतें करती रहनी चाहिए इससे रिश्ते में ताज़गी और मधुरता बनी रहती है। पर एक दूसरे के सम्मान और मन को ध्यान अवश्य रखें।]

# कथा के मन की बात...❤️

अगला भाग पाने के लिए पहले इस भाग को कमेन्ट तो दो.... अच्छी लगे तो फॉलो भी दे सकते हैं। धन्यवाद 🙏🏻