Ishq aur Ashq - 59 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | इश्क और अश्क - 59

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इश्क और अश्क - 59



"तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हें अब किसी मासूम को धोखा नहीं देना होगा... तो ख़ुशी दिखाओ?"

"लेकिन मुझे इतना बुरा क्यों लग रहा है...? अच्छा क्यों नहीं लग रहा..."
(वो खुद से शिकायते कर रहा है)

:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::वर्धान गरुड़ लोक पहुँचा, और अपने पुस्तकालय में सारी किताबों की छानबीन करने लगा...
उसने बहुत सी किताबें देखीं, पर शायद वो नहीं मिला जो उसे चाहिए था।

तभी वहाँ सय्युरी आई।

"क्या कर रहे हो?"
(उसने पीछे से पूछा तो वर्धान चौंक गया।)

"अरे... क्या कर रही हो, डरा दिया तुमने!"
(उसने किताबों को देखते हुए ही जवाब दिया।)

"पर तुम कर क्या रहे हो? मुझे बताओ!" (उसने फिर पूछा।)

"गरुड़ विष..."
(वो बोलते-बोलते रुका, और सय्युरी की वो अजीब सी नजरें देखीं।)

"गरुड़ विष!? तुम्हें उससे क्या काम? और तुम इस बारे में क्या जानना चाहते हो जो यहाँ की हर किताब की तफ्तीश कर रहे हो?"

वर्धान ने सय्युरी का हाथ पकड़ा और पुस्तकालय के अंदर खींच लिया।
फिर धीरे बोला —
"Shhhhhhh... इतनी तेज़ मत बोलो!"

सय्युरी उसका हाथ देखती रह गई, और उसके क़रीब आ गई।
धीरे से बोली —
"पर हुआ क्या...? क्या करना चाहते हो?"

"मुझे गरुड़ विष का तोड़ चाहिए..."
(उसने इधर-उधर देखते हुए कहा।)

"वर्धान... तुम क्या बोल रहे हो? तुम्हें गरुड़ विष का तोड़ क्यों चाहिए?"
(सय्युरी ने पूछा।)

पर वो कुछ नहीं बता सकता था।

"बस अपनी जिज्ञासा के लिए... और क्या... कल मैं भी गरुड़ लोक का स्वामी बनूंगा तो पता होना चाहिए।"
(उसने सफाई दी।)

सय्युरी सपनों में खोते हुए बोली —
"और मैं तुम्हारी रानी!"

"अब तुम मेरी मदद करोगी या...?" (वर्धान बोला।)

"वो तोड़ किसी किताब में नहीं है..."
(सय्युरी ने आवाज़ धीमी करते हुए कहा।)

वर्धान ने जो किताब देख रहा था, उसे बंद कर दिया और बोला —
"तो?"

"वो सारी किताबें यहाँ से हटा दी गई हैं जो गरुड़ विष का तोड़ बता सकती थीं, क्योंकि इससे गरुड़ लोक के राज़ों को ख़तरा था!"

"तो कहाँ है उसका तोड़? तुम कुछ जानती हो?"
(उसने उम्मीद भरी नज़रों से पूछा।)

"सिर्फ मेरे बाबा... और गरुड़ शोभित ही ऐसे राज़ों को जानते हैं।"

वो मायूस होकर वहीं बैठ गया।

"मतलब... कि कोई रास्ता नहीं है?"

"मैं तुम्हें बता सकती हूँ... लेकिन तुमसे कुछ पूछना था। अगर बोलोगे, तब मैं अपने बाबा का वो खास मंत्र तुम्हें बता दूँगी।"
(सय्युरी ने कहा।)

"हाँ... पूछो। मुझे कोई परेशानी नहीं है।"
(वर्धान ने तेज़ी से जवाब दिया।)

"क्या तुम किसी और से शादी करोगे...? या मुझे धोखा दे सकते हो?"
(उसने एक प्रश्नचिह्न की तरह पूछा।)

वर्धान सोच में पड़ गया।
उसके जेहन में प्रणाली का चेहरा घूमने लगा...
वो सोचने लगा कि क्या जवाब दे।
उसे प्रणाली के रिश्ते की बात याद आई, और वो फिर मायूस हो गया।

"नहीं! मैं किसी और से विवाह नहीं कर सकता..."
(वो सोचते हुए बोला।)

(वर्धान मन में:)
"क्योंकि जिस लड़की के साथ मैं कभी ऐसा सोचता... वो पहले ही किसी बंधन में बंध चुकी है..."

"सच! फिर तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है। वो कुछ दिनों से तुम्हारा व्यवहार अजीब हो गया था, इसलिए पूछा ऐसा..."
(उसने वर्धान का ध्यान तोड़ते हुए कहा।)

"हम्म..."
(उसने नाख़ुश मन से हामी भरी।)

"देखो, गरुड़ विष को कोई गरुड़ ही अपने ऊपर ले सकता है। लेकिन उससे 48 से 72 घंटों के लिए उस गरुड़ की शक्तियाँ चली जाती हैं, और शरीर अपनी सारी ताकत खोने लगता है।
वो घंटे किसी गरुड़ के लिए बहुत भारी हो सकते हैं।"

"उसका मंत्र है — ॐ ब्रह्म विषो: त्यागे नमः"

वर्धान सोचने लगा —
"72 घंटे..."

वो सय्युरी के दोनों हाथों को पकड़ कर उसे धन्यवाद कहता है... और वहाँ से चला जाता है।


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वर्धान गरुड़ शोभित के पास पहुँचा।

"पिताजी! मैंने बहुत सोचा, और मुझे लगा कि आपका दिया हुआ कार्य मुझे करना शुरू कर देना चाहिए।
इसलिए मैं आज ही धरती लोक पर अपना काम शुरू करने जा रहा हूँ।"

गरुड़ शोभित प्रसन्न होकर बोले:
"तुमने ये फैसला लेकर सिर्फ बीजापुर पर ही एहसान नहीं किया, बल्कि एक अच्छे राजा की पहचान भी दिखाई है।"

"तो मैं धरती पर जा रहा हूँ... हो सकता है कुछ दिनों का समय लग जाए।
आप धरती पर किसी को मेरी तलाश में मत भेजिएगा, इससे प्रेमजाल कमज़ोर हो सकता है..."
(उसने अपनी बात मनवाने की कोशिश की।)

"ठीक है। पर उम्मीद करता हूँ कि ये कोई छलावा नहीं हो?"
(उन्होंने वर्धान को शक की नज़रों से देखा।)

पर वर्धान बिना जवाब दिए चला गया।


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दूसरी तरफ —
रात हो चुकी थी।

प्रणाली अपने कमरे की खिड़की खोलकर वहीं बैठी थी...
"अगर उसने कहा है कि खिड़की खुली रखना... तो इसका मतलब वो आएगा..."
(वो खुद में ही सब बातें सोचने लगी।)

वो आराम से उसका इंतज़ार कर रही थी।
काफी देर हो चुकी थी — वर्धान का इंतज़ार करते-करते...
वो अभी तक नहीं आया।

कभी वो कमरे का चक्कर लगाती,
तो कभी चाँद को निहारती,
कभी तारों को गिनती,
तो कभी खुद से ही बातें करती...

यही सब करते-करते, न जाने कब प्रणाली बालकनी में ही सो गई —
उसे पता भी न चला...

लेकिन वर्धान अभी तक नहीं आया था।

अब जब उसे सोए हुए काफी समय हो चुका था —
तो बहुत दूर से,
चाँद की चमक को छूता हुआ,
अपने भूरे चमकदार पंख फैलाए हुए,
वो उड़ते हुए प्रणाली की बालकनी में पहुँच चुका था।

प्रणाली गहरी नींद में जा चुकी थी।

वर्धान उसके गालों को हल्के से छूते हुए बोला:
"मैं तुम्हारे सोने का इंतज़ार कर रहा था..."


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