Ishq aur Ashq - 61 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | इश्क और अश्क - 61

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इश्क और अश्क - 61



वैद्य आए, उन्होंने पारस की नब्ज को पकड़ा और बोले:
"माफ कीजिएगा महाराज, पर राजकुमार अब इस दुनिया में नहीं रहे..."

महाराज को इतना तेज़ झटका लगा कि वह दो कदम पीछे हो गए...
और अपना सीना कस कर पकड़ लिया!
महारानी ने ज़ोर से रोना शुरू कर दिया।

"नहीं...! ये नहीं हो सकता!" (प्रणाली ने सदमे में कहा)

पूरे महल में मातम छा गया, और हर तरफ से रोने की आवाजें आने लगीं।
आज प्रणाली का राज्याभिषेक था...

प्रणाली अपने भाई के पास गई और उससे उठने की गुहार करने लगी।
"भैया... उठिए ना... प्लीज़..."
...और उसने पाया कि पारस का शरीर अब भी गरम है!

"ऐसा कैसे हो सकता है?" (उसने मन में सोचा)

उसने पारस के आस-पास देखा... पर कुछ नहीं मिला।
लेकिन जैसे ही सूरज आसमान की सिद्ध में आया,
खिड़की से हर तरफ से प्रकाश कमरे में प्रवेश करने लगा...

और एक-एक किरण जैसे ही पारस के शरीर पर पड़ी,
उसके शरीर से एक तेज़ रोशनी बाहर निकलने लगी।
वो फिर से कंपन करने लगा... जैसे पहले कर रहा था।

🌿

जंगल में, कमज़ोर शरीर के साथ चलते वर्धांन ने भी अचानक और कमजोरी महसूस की...
उसके पंख उठना बंद हो गए।
इधर वर्धानं ने अपनी आंखे बंद की उधर पारस धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलने लगा...
और इधर वर्धांन ज़मीन पर बेसुध होकर गिर गया और उधर पारस को होश आ गया...
और वर्धांन ने पूरी तरह से अपने होश खो दिए।
वो एक दम ठीक हो गया ,मानो कभी कुछ हुआ ही न हो.....
"माँ... पिताजी..." (पारस के लबों से शब्द निकले)

सबने ये आवाज़ सुनी तो देखा — पारस बिस्तर से उठ खड़ा हुआ है!
किसी को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ।

महाराज और महारानी दौड़कर आए और उसे गले से लगा लिया।

"मेरा बेटा... ठ-ठीक हो गया!" (महाराज की आँखें नम थीं)

महारानी ने उसका माथा चूम लिया:
"अब मैं तुझे कहीं नहीं जाने दूंगी..." (रोती हुई, सिसकियों में कहा)

प्रणाली भी दौड़कर भाई से लिपट गई।

"माफ कर दीजिएगा भैया... मेरी वजह से..." (वो रोने लगी)

"अगर मुझे फिर मौका मिला... तो मैं यही करूंगा..."
(पारस ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा)

"भैया, आपका राज्य आपका इंतज़ार कर रहा है..." (प्रणाली बोली)
महाराज : ब्रह्म देव का एहसान की आप ठीक हो गए,वरना उन गरुड़ों ने तुम्हे मार ही दिया था.....
पारस को कुछ ध्यान आता है वो बोलता है : नहीं पिताजी..... सभी गरुड़ हमें मारना नहीं चाहते शायद..... कल हमें बचने वाला भी एक गरुड़ था ....

महाराज: ये क्या बोल रहे हो?????
पारस: हा.... मुझे याद है...कल किसी ने बोला था कि गरुड़ लोक दुश्मनी बढ़ना नहीं चाहता, वो मेरे ऊपर गरुड़ मंत्र का जाप कर रहा था,मुझे ठीक कर रहा था....


महाराज: तुम्हे पक्का पता है???
पूर्णतः तो नहीं पर ये कोई भ्रम नहीं था।।।

तभी प्रणाली को अपने कमरे में गरुड़ पंख याद आता है 
वो मन में सोचती है कि भैया सच कह रहे हैं। कल कोई तो आया था ।।।।।
 

सब पारस के ठीक होने से बहुत खुश थे इसलिए ये बात यही खत्म हो गई।


---

महाराज:
"आज पारस तुम्हारा राज्याभिषेक होगा.........
कल प्रणाली का जन्मदिन है,
और उसके बाद विवाह!"

"अविराज को संदेसा भेजा जाए कि वह जल्द से जल्द अपनी दुल्हन के लिए पहुंचे!"

ये सुनते ही प्रणाली की धड़कन रुक सी गई...

"क्या...?!" (उसने मन में सोचा)

महाराज:
"पारस, तुम ठीक हो ना...?
या हम कोई और मुहूर्त निकलवाएं?"

पारस:
"नहीं पिता जी, मुझे पहले से भी अधिक शक्ति का आभास हो रहा है। मैं बिल्कुल ठीक हूँ।"


---

सब अपनी-अपनी जगह लौट गए।
प्रणाली अपने कक्ष में सोच रही है...

"अब तो कोई मेरी बात नहीं सुनेगा... विवाह...!"


---

दूसरी ओर...

मालविका:
"महाराज! कल प्रणाली का बीसवां जन्मदिन है और उसका विवाह भी नहीं हुआ...
कहीं कोई अनहोनी न हो जाए..."

राजा:
"आप चिंता न करें, हमने महल के बाहर सबसे योग्य सैनिक तैनात कर दिए हैं।
अब से जन्मदिन तक राजकुमारी कहीं नहीं जाएंगी।
और कोई अजनबी महल में प्रवेश नहीं कर सकेगा।"

महल के बाहर राज्याभिषेक की तैयारियां शुरू हो चुकी थीं,
और पूरा राज्य धीरे-धीरे जमा हो रहा था...


---

पंडित मंत्रोच्चारण कर रहे हैं...
प्रणाली भी भाई की इस खुशी में शामिल है...

तभी एक सेवक राजा के पास आकर कहता है —
"अविराज दो दिनों के अंतराल में यहां पहुंच जाएगा..."

ये सुनते ही प्रणाली की धड़कनें थम सी गईं।
वो कुछ कदम पीछे हटी और सोचने लगी:

"मुझे किसी तरह ये विवाह रोकना होगा..."

थोड़ी देर में वह वापस अपने कक्ष में चली गई...


---

दूसरी ओर...

वर्धांन अब भी वहीं है — बुरी हालत में।
उसके शरीर में कोई शक्ति नहीं बची।

"मुझे किसी की मदद चाहिए..."
(उसने बहुत कमज़ोरी में कहा)

"प्रणाली...!"

उधर प्रणाली अचानक खड़ी हो जाती है...

"वर्धांन...?!"

"क्या तुम ठीक हो...?
मुझे अजीब सी बेचैनी क्यों हो रही है...?"

"मुझे अभी उससे मिलना होगा..."

वो निकलने ही वाली थी...
पर उसे भाई के राज्याभिषेक का ध्यान आ गया —
"नहीं, अभी नहीं..."


---

वो वापस पूजा में आ गई।

उधर पारस का दुग्ध स्नान हो रहा है,
अब केवल जनेऊ की रस्म बची है।

प्रणाली सोचती है:

"पूजा लंबी चलेगी...
अगर मैं एक-दो घंटे में निकलती हूँ तो वहाँ पहुंचने में रात हो जाएगी।
रात के वक्त सैनिकों से बचकर निकलना मुश्किल है...
तो कल जाना पड़ेगा।"


---

दूसरी ओर...

वर्धांन अब भी उसी जगह बेसुध पड़ा है।

अचानक कुछ आवाज़ें आती हैं:

"हम कब से इस दिन का इंतज़ार कर रहे थे...
गरुड़ लोक का इकलौता शहज़ादा अब बेशक्ति हो गया है...
अब हम उससे मुकाबला कर सकते हैं!"

उनकी परछाइयाँ नज़दीक आ रही हैं...

वर्धांन उन्हें नहीं जानता...
उनके हाथों में तीखे खंजर हैं...
देखते ही देखते वो उसके सामने आ गए।।।।
अब क्या करोगे, राजकुमार......अब आपको ब्रह्मा जी के पास जाना होगा...
वर्धानं ने अपनी ताकत खो दी है... हिम्मत नहीं!"
(वो खुद को संभालते हुए बड़बड़ाता है)