उन लोगों ने अपने-अपने हाथों में तीखे-तीखे खंजर ले रखे हैं।
वर्धांन:
(अपने सहारे से खड़े होते हुए)
“मैंने अपनी ताक़त खो दी है... पर हिम्मत नहीं!”
घुसपैठिए (करीब आते हुए):
“अच्छा! तो आओ... दिखा दो अपनी हिम्मत!”
वो लोग वर्धांन की तरफ बढ़ते जा रहे हैं।
वर्धांन ने वहीं से एक लकड़ी उठाकर उनके रास्ते में फेंकी, जिससे उलझकर वो चारों-पांचों गिर पड़े।
एक घुसपैठिया (दाँत पीसते हुए):
“रस्सी जल गई... लेकिन बल नहीं गया!”
और वो सब एक साथ वर्धांन पर हावी हो गए...
वर्धांन ने अपनी पूरी ताक़त से मुकाबला किया,
पर इस वक़्त उनका जोर उस पर भारी पड़ रहा था।
तभी जंगल के एक तरफ़ से एक आवाज़ आई —
“वर्धांन...? वर्धांन...? तुम यहीं हो क्या?”
वर्धांन:
(आवाज़ सुनकर समझ गया)
“प्रणाली...? नहीं...! तुम यहाँ नहीं आ सकती... यहाँ ख़तरा है!”
(वो मन ही मन सोचता है)
इसी बीच, एक घुसपैठिए ने मौक़ा देखकर वर्धांन की गर्दन पर तेज़ चोट मारी...
वर्धांन वहीं गिर पड़ा।
एक घुसपैठिया (दूसरे से):
“कोई आ रहा है शायद...”
दूसरा:
“आने दो... दोनों को एक साथ मारेंगे।”
वर्धांन सोचने लगा —
"आवाज़ से लग रहा है कि प्रणाली आसपास है...
मुझे इन घुसपैठियों को दूर ले जाना होगा..."
उसने उठने की कोशिश की... पर नाकाम रहा।
घुसपैठिया (हँसते हुए):
“कहाँ जाना चाहते हो, राजकुमार?”
दूसरा:
“आज तुम्हारी सभा यहीं, इसी जंगल में लगेगी!”
वर्धांन बस लंबी-लंबी साँसें लेकर रह गया...
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दूसरी तरफ —
प्रणाली वर्धांन को ढूँढती जा रही है... पर उसे कोई नहीं मिला।
प्रणाली (खुद से):
“तू भी पागल है प्रणाली!
न कोई संदेश, न कोई वादा...
तो वो यहाँ क्यों आएगा?
बस तुझे ही तो अंदेशा हुआ कि कुछ गड़बड़ है...
तेरा अंदेशा ग़लत भी तो हो सकता है...”
वो वहीं बैठ गई और सोचने लगी —
"आख़िर मैं इतनी परेशान क्यों हो गई उसके लिए?
क्यों लगता है कि उसके साथ कुछ ग़लत हो रहा है...
शायद मैं ही ग़लत हूँ..."
वो उठी और धीरे-धीरे चलने लगी —
“अब क्या फ़ायदा यहाँ बैठने से...
वो तो आएगा नहीं...”
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उधर महल में —
पारस का राज्याभिषेक संपन्न हुआ।
राजा अग्रेण (प्रजा से):
“आपने मुझे बहुत प्रेम और सम्मान दिया।
अब वही प्रेम और सम्मान बीजापुर के नए राजा, महाराज पारस को भी देंगे।
ये हैं आपके नए राजा — महाराज पारस!”
सारी प्रजा ने ज़ोरदार नारे लगाए —
"राजा अग्रेण सलामत रहें!"
"महाराज पारस ज़िंदाबाद!"
मालविका ने एक दासी से कहा —
“राजकुमारी प्रणाली को बुला कर लाओ।”
दासी चली गई।
कुछ देर बाद दासी भागती हुई आई और घबराकर बोली —
“महारानी... राजकुमारी महल में नहीं हैं!”
मालविका (अचंभित होकर):
“क्या...? ये क्या बोल रही हो...!”
दासी:
“जी... हमने सारे महल में ढूँढा... पर वो कहीं नहीं मिलीं।”
मालविका (घबराकर):
“हे ब्रह्मदेव... वो कहाँ जा सकती है? कल तो...!”
अब शाम होने लगी है।
मालविका तुरंत राजा अग्रेण के पास आई —
“महाराज... वो... वो... वो...”
(डरते और काँपते हुए)
राजा (प्यार से):
“बोलिए महारानी...”
मालविका (हिम्मत करके):
“राजकुमारी महल में नहीं हैं...!”
राजा (चकित होकर):
“क्या...? ये आप क्या बोल रही हैं?
उनके सैनिक कहाँ थे??”
(वो आस-पास के सैनिकों से पूछते हैं)
तभी पारस वहाँ आया।
राजा ने उसे देखते ही कहा —
“बेटा, अभी तुझे सभी ब्रह्म देव का आशीर्वाद लेना है... वहाँ जाओ।”
पारस:
“पर पिताजी... हुआ क्या है?”
राजा को कुछ समझ नहीं आ रहा था —
एक तरफ़ राज्याभिषेक की रस्में, दूसरी तरफ़ प्रणाली का गायब होना...
और ऊपर से कल का दिन — प्रणाली के जीवन में सबसे बड़ा बदलाव लाने वाला।
राजा (बेबस होकर):
“मैं करूँ तो करूँ क्या...!”
पारस:
“पिता जी... बताइए तो...!”
राजा (हताश होकर):
“प्रणाली महल में नहीं है, पुत्र!”
पारस (घबरा कर):
“क्या...? प्रणाली... गायब है?
मैं अभी जाता हूँ!”
राजा:
“नहीं! तुम कहीं नहीं जाओगे।”
(उसका हाथ पकड़ कर रोकते हैं)
पारस:
“पर पिता जी...!”
रात गहराती जा रही है...
और उसी के साथ सबका डर भी।
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उधर जंगल में —
वर्धांन पूरी ताक़त से लड़ने की कोशिश कर रहा है।
उसने एक घुसपैठिए को गिरा कर, उसकी तलवार उसी की गर्दन पर रख दी।
वर्धांन (गर्दन पकड़े हुए, तलवार ताने):
“बता! किसने भेजा है तुझे?”
घुसपैठिया (मुस्कुराते हुए):
“ये तू कभी नहीं जान पाएगा... चाहे मार ही क्यों न दे!”
तभी एक और घुसपैठिए ने पीछे से वर्धांन के सिर पर तलवार के पिछले हिस्से से वार किया —
धक्कक!!
वर्धांन वहीं गिर गया।
फिर सबने मिलकर एक गोला बनाया और तलवारें उसकी ओर तानीं,
और घेरे के इर्द-गिर्द घूमने लगे।
“अब बता... क्या करें तेरे साथ?
जिंदा या मुर्दा — तुझे लेकर तो जाना ही है।”
(एक बोला)
दूसरा:
“सरदार! उन्होंने कहा है कि बस 72 घंटे तक ही ये कमज़ोर रहेगा...
उसके बाद तो हम सब इस से अपनी जान की भीख माँगेंगे।”
वर्धांन (बेहोशी में सोचते हुए):
“72 घंटे...? ये बात तो केवल सय्युरी को पता थी...”
घुसपैठिया:
“तो इसका काम अभी ख़त्म कर दो!”
एक ने तलवार निकाली और वर्धांन पर वार करने बढ़ा...
खच्चच...!!!
तलवार वर्धांन के शरीर में धँस चुकी थी!
प्रणाली (पूरी जान से चिल्लाई):
“वर्धांन....!!!!”
उसने यह मंजर अपनी आँखों से देखा...
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