Nehru Files - 24 in Hindi Anything by Rachel Abraham books and stories PDF | नेहरू फाइल्स - भूल-24

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नेहरू फाइल्स - भूल-24

भूल-24 
जम्मू व कश्मीर में नेहरू की शर्मनाक निष्ठुरता

 यहाँ पर जीवित बचे एक हिंदू की आप-बीती प्रस्तुत है, जो जम्मूव कश्मीर की मीरपुर त्रासदी का एक साक्षी भी था, जिसे ‘स्वराज्य मैग’ से लिया गया है (स्व2)— 
“23 नवंबर (1947) को प्रेमनाथ डोगरा और प्रो. बलराज मधोक जम्मू में भारतीय सेना के ब्रिगेड कमांडर ब्रिगेडियर परांजपे से मिले और उनसे मीरपुर (एक रणनीतिक महत्त्व का स्थान, जहाँ कश्मीर पर पहले पाकिस्तानी हमले के दौरान 1 लाख से भी अधिक हिंदू और सिख फँस गए थे) में अतिरिक्त सैन्य बल भेजने की गुहार लगाई। परांजपे ने उनकी पीड़ा को महसूस किया, लेकिन साथ ही अपनी लाचारी भी व्यक्त की; क्योंकि (सेना के जनरलों के निर्देशानुसार) जम्मूव कश्मीर में कहीं भी भारतीय सैनिकों को तैनात करने से पहले शेख अब्दुल्ला के साथ परामर्श करना अनिवार्य था। इसके अलावा, परांजपे ने प्रतिनिधिमंडल को बताया कि पं. नेहरू 24 नवंबर (1947) को श्रीनगर आ रहे हैं और उन्हें उनसे मिलना चाहिए। 24 नवंबर को प्रेमनाथ डोगरा एवं प्रो. बलराज मधोक नेहरू से मिले और एक बार फिर उन्हें मीरपुर की गंभीर स्थिति के बारे में बताया। उन्होंने उनसे अनुरोध किया कि वे तत्काल भारतीय सैनिकों को बुरी तरह से घिरे हुए मीरपुर शहर में अतिरिक्त सैन्य बलों को भेजने का तत्काल आदेश दें। प्रो. मधोक पं. नेहरू की प्रतिक्रिया से पूरी तरह से चकित रह गए—पं. नेहरू गुस्से से आगबबूला हो गए और चिल्लाए कि उन्हें शेख अब्दुल्ला से बात करनी चाहिए। प्रो. मधोक ने एक बार फिर पं. नेहरू को बताया कि शेख अब्दुल्ला जम्मूप्रांत की दुर्दशा को लेकर पूरी तरह से उदासीन थे और केवल पं. नेहरू ही मीरपुर के लोगों को बचा सकते थे। हालाँकि पं. नेहरू ने उनकी सभी मिन्नतों को दरकिनार कर दिया और मीरपुर में अतिरिक्त सैन्य नहीं भेजे।” (स्व2) 

बाद में, मीरपुर पाक तोपों से हार गया और पी.ओ.के. का हिस्सा बन गया। हिंदुओं और सिखों को नर-संहार के अलावा बलात्कार और बर्बरता के सबसे बुरे व्यभिचार का सामना करना पड़ा। 

गांधी और नेहरू जैसे ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘हमेशा मुसलमानों का पक्ष लेनेवालों’ से इस बात की उम्मीद थी कि वे कुछ नहीं करेंगे, बल्कि वे इसे उचित ठहराने का प्रयास करते या फिर अगर भुक्तभोगी हिंदू, सिख या फिर अन्य गैर-मुसलमान होते तो वे अपना बेवकूफी भरा अहिंसा का पाठ पढ़ाते; लेकिन अगर भुक्तभोगी पक्ष मुसलमान होता तो वे बचाव के लिए मुखर और सक्रिय होने के लिए कहते। इस पहलू पर कई उदाहरणों के लिए कृपया लेखक की पुस्तक ‘गांधी : द अदर साइड’ (w#rkpbooks#com) गांधी के लिए, और नेहरू के लिए, इस पुस्तक में वर्णित अन्य भूलों को पढ़ें, जैसे ‘भूल#76, 85, 104’ 

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भूल-24 
जम्मू व कश्मीर में नेहरू की शर्मनाक निष्ठुरता

 यहाँ पर जीवित बचे एक हिंदू की आप-बीती प्रस्तुत है, जो जम्मूव कश्मीर की मीरपुर त्रासदी का एक साक्षी भी था, जिसे ‘स्वराज्य मैग’ से लिया गया है (स्व2)— 
“23 नवंबर (1947) को प्रेमनाथ डोगरा और प्रो. बलराज मधोक जम्मू में भारतीय सेना के ब्रिगेड कमांडर ब्रिगेडियर परांजपे से मिले और उनसे मीरपुर (एक रणनीतिक महत्त्व का स्थान, जहाँ कश्मीर पर पहले पाकिस्तानी हमले के दौरान 1 लाख से भी अधिक हिंदू और सिख फँस गए थे) में अतिरिक्त सैन्य बल भेजने की गुहार लगाई। परांजपे ने उनकी पीड़ा को महसूस किया, लेकिन साथ ही अपनी लाचारी भी व्यक्त की; क्योंकि (सेना के जनरलों के निर्देशानुसार) जम्मूव कश्मीर में कहीं भी भारतीय सैनिकों को तैनात करने से पहले शेख अब्दुल्ला के साथ परामर्श करना अनिवार्य था। इसके अलावा, परांजपे ने प्रतिनिधिमंडल को बताया कि पं. नेहरू 24 नवंबर (1947) को श्रीनगर आ रहे हैं और उन्हें उनसे मिलना चाहिए। 24 नवंबर को प्रेमनाथ डोगरा एवं प्रो. बलराज मधोक नेहरू से मिले और एक बार फिर उन्हें मीरपुर की गंभीर स्थिति के बारे में बताया। उन्होंने उनसे अनुरोध किया कि वे तत्काल भारतीय सैनिकों को बुरी तरह से घिरे हुए मीरपुर शहर में अतिरिक्त सैन्य बलों को भेजने का तत्काल आदेश दें। प्रो. मधोक पं. नेहरू की प्रतिक्रिया से पूरी तरह से चकित रह गए—पं. नेहरू गुस्से से आगबबूला हो गए और चिल्लाए कि उन्हें शेख अब्दुल्ला से बात करनी चाहिए। प्रो. मधोक ने एक बार फिर पं. नेहरू को बताया कि शेख अब्दुल्ला जम्मूप्रांत की दुर्दशा को लेकर पूरी तरह से उदासीन थे और केवल पं. नेहरू ही मीरपुर के लोगों को बचा सकते थे। हालाँकि पं. नेहरू ने उनकी सभी मिन्नतों को दरकिनार कर दिया और मीरपुर में अतिरिक्त सैन्य नहीं भेजे।” (स्व2) 

बाद में, मीरपुर पाक तोपों से हार गया और पी.ओ.के. का हिस्सा बन गया। हिंदुओं और सिखों को नर-संहार के अलावा बलात्कार और बर्बरता के सबसे बुरे व्यभिचार का सामना करना पड़ा। 

गांधी और नेहरू जैसे ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘हमेशा मुसलमानों का पक्ष लेनेवालों’ से इस बात की उम्मीद थी कि वे कुछ नहीं करेंगे, बल्कि वे इसे उचित ठहराने का प्रयास करते या फिर अगर भुक्तभोगी हिंदू, सिख या फिर अन्य गैर-मुसलमान होते तो वे अपना बेवकूफी भरा अहिंसा का पाठ पढ़ाते; लेकिन अगर भुक्तभोगी पक्ष मुसलमान होता तो वे बचाव के लिए मुखर और सक्रिय होने के लिए कहते। इस पहलू पर कई उदाहरणों के लिए कृपया लेखक की पुस्तक ‘गांधी : द अदर साइड’ (w#rkpbooks#com) गांधी के लिए, और नेहरू के लिए, इस पुस्तक में वर्णित अन्य भूलों को पढ़ें, जैसे ‘भूल#76, 85, 104’