इसके बाद यशस्विनी ने साधकों से भी इस योग का अनुसरण करने के लिए कहा और प्रणाम आसन के बाद दूसरे चरण में सांस खींचते हुए अपने दोनों हाथों को शरीर से पीछे की ओर उठाकर ले जाते हुए हस्त उत्तानासन मुद्रा धारण किया। उसने बताया कि यह शरीर की स्ट्रेचिंग है और एक तरह से यह वार्मअप वाली स्थिति है।
जब श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे आगे की ओर झुकते हुए पादहस्तासन की मुद्रा में हाथों से पैरों की अंगुलियों को छूने की बारी आई तो अनेक साधक गड़बड़ा गए।स्वयं रोहित को पूरी तरह से झुककर जमीन या उंगलियों को स्पर्श करने में कठिनाई हुई। इस पर माइक से यशस्विनी ने सबसे कहा- जोर देकर आप लोग नीचे न झुकें। यह धीरे-धीरे अभ्यास से होगा। आज जितनी अवस्था तक आप झुक सकते हैं ,वहां तक ही झुकें। योग और आसनों में बलपूर्वक शरीर को दबाव देने पर इसके विपरीत परिणाम हो सकते हैं।
एक बार पुनः रोहित मन ही मन शर्मिंदा हो उठे। कहां तो उन्होंने कल रात सूर्य नमस्कार की अनेक मुद्राओं का यूट्यूब पर डेमो देखकर अभ्यास किया था और यहां यशस्विनी जी के सामने सही तरह से योग करना तो दूर, वे अपने पहले ही प्रभाव में ढीले-ढाले व्यक्ति के रूप में स्थापित हो गए। रोहित को अफसोस हुआ कि उन्होंने यशस्विनी को प्रभावित करने का एक मौका गंवा दिया लेकिन वह समझ रहा था कि इसमें उसी की कमी है। महज दो साल पहले ही रोहित अपनी फिटनेस को लेकर अत्यंत सजग था और प्रतिदिन प्रातः उठकर स्नान कर घर से लगभग 6 किलोमीटर दूर स्थित महामृत्युंजय जी के मंदिर में जल चढ़ाने के लिए जाया करता था। लगभग 3 से 4 महीनों के अभ्यास में उसका शरीर छरहरा और संतुलित दिखाई देने लगा था। चाहे गर्मी हो, सर्दी हो या बरसात, रोहित इस पैदल चाल के साथ-साथ लगभग आधे घंटे का योग अभ्यास भी प्रतिदिन करता था। रोहित ने मन ही मन निश्चय किया, "अब मुझे अपनी फिटनेस सुधारनी ही होगी।"
उधर यशस्विनी सूर्य नमस्कार की चौथी मुद्रा अश्व संचालनासन का प्रदर्शन करने के लिए तैयार हो गई।
आज के शाम के योग सत्र में रोहित नहीं पहुंचा। वह एक जरूरतमंद के लिए रक्तदान के लिए सभी औपचारिकताएं पूरी कर रक्तदान के कक्ष में पहुंचा। बेड पर लेटते ही उसे आत्मसंतुष्टि की अनुभूति हुई।वह जानता था कि रक्त की एक बूंद भी किसी की प्राण रक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है। शरीर से निकाले जाते गाढ़े रक्त को एक बैग में इकट्ठा होते देखकर अलग तरह की अनुभूति होती है।दीवार पर रक्तदान, प्लाज्मा दान आदि के फ्लेक्स थे। अपने हाथों से स्पंज बॉल को दबाते हुए रोहित इन सब को पढ़ता जा रहा।जब शरीर से रक्त निकलता है तो थोड़ी सरसराहट महसूस होती है, लेकिन मन में होने वाले किसी की मदद के गहरे आत्म संतोष के कारण यह सरसराहट भी एक अजीब सी उत्तेजना का कार्य करती है और व्यक्ति को एक नई ऊर्जा मिलती है। रक्तदान के बाद थोड़ी देर रोहित और उनका मित्र दूसरे कक्ष में बैठे रहे।अस्पताल की ओर से दूध का गिलास ला कर दिया गया। मित्र की आंखों में कृतज्ञता का भाव था लेकिन वह जानता था कि उसने एक शब्द थैंक्यू कहा और रोहित है कि नाराज हो जाएगा।
रोहित नियमित तौर पर रक्तदान करते हैं और दिन भर तो फोन संदेश पर दौड़ पड़ते हैं। रात को भी बिना हिचक के लोगों की सेवा के लिए तत्पर रहते हैं। इसीलिए उनका मोबाइल फोन रात को भी बंद नहीं होता। माता और पिता दोनों गांव में हैं।पिता वहीं पास के एक स्कूल में शिक्षक हैं। माता गृहिणी। रोहित को उन्होंने पढ़ने के लिए शहर भेजा। पास के कस्बे में हाई स्कूल की पढ़ाई अच्छी होती थी लेकिन कॉलेज की पढ़ाई के लिए आखिर 50 किलोमीटर दूर एक और बड़े कस्बे में जाना पड़ता था, इसलिए माता-पिता ने रोहित को शहर भेज दिया था। दोनों मित्र लगभग आधे घंटे बाद अस्पताल से बाहर आकर वहीं एक
बेंच पर बैठे रहे। लगभग 1 घंटे तक वे घर परिवार से लेकर अपने कॉलेज के दिनों की याद करते रहे। कितना बदल गया है यह शहर। दोनों मित्र सोचने लगे।जहां 10 से 15 साल पहले यहां की मुख्य सड़क भी सूनी रहती थी, वहां अब इस शहर के गली-मोहल्लों में भी मेन रोड जैसा ट्रैफिक है।
अस्पताल जाकर अपने मित्र के संबंधी को ब्लड डोनेट करने के बाद घर पहुंच कर रोहित को कमजोरी महसूस हो रही थी।यूँ तो वह अनेक बार रक्तदान कर चुका था लेकिन पता नहीं क्यों इस बार उसे लगा कि तुरंत काम पर लौटने से अच्छा है आज आराम किया जाए।
शाम के योग सत्र के बाद ज्ञान चर्चा का दौर चलता है, जिसमें साधक अपनी जिज्ञासा यशस्विनी के सामने रखते हैं और यशस्विनी उन प्रश्नों का समाधान करती है।जब रोहित चर्चा सत्र के दौरान भी नहीं पहुंचा तो यशस्विनी को थोड़ी चिंता हुई। उसने मोबाइल फोन पर रोहित के नंबर को डायल किया लेकिन रोहित ने फोन नहीं उठाया। उसकी चिंता और बढ़ गई। योग सत्र के समापन के बाद यशस्विनी अपने घर पहुंची लेकिन हर 10 वें सेकेंड में वह मोबाइल अपने हाथ में ले लेती थी और यह चेक किया करती थी कि कहीं रोहित ने मिस्ड कॉल तो नहीं किया और उसका नया संदेश तो नहीं आया। एक बार तो उसके मन में हुआ कि रोहित के घर जाकर हालचाल जाना जाए लेकिन उसने प्रतीक्षा करने का निर्णय लिया।
प्रेम करने वाले जब प्रेम की गहराई को महसूस करने की स्थिति में नहीं पहुंचे होते हैं तो उन्हें अपने आत्मसम्मान की बहुत फिक्र होती है। प्रेम का अंकुरण मन के किसी कोने में हो चुका होता है, लेकिन मनुष्य इसे स्वीकार नहीं करना चाहता। अब यह प्रेम कभी आंखों से तो कभी अन्य चेष्टाओं से झलक ही उठता है। बस ज़ुबाँ बंद होती है।
उधर रोहित है कि घर पहुंच कर कमजोरी महसूस करने के कारण बिस्तर पर लेटे हुए हैं।रात को 9:00 बज रहे हैं और उठकर खाना बनाने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं।एक घंटा पहले दूध और मलाई वाली चाय पीने के बाद रोहित बिस्तर पर फिर लेट गया। रात लगभग 9:30 बजे यशस्विनी से रहा नहीं गया। उसने फोन रिसीव नहीं होने पर व्हाट्सएप से संदेश भेजा:-
हेलो….
कोई जवाब नहीं आने पर 2 मिनट बाद यशस्विनी ने फिर संदेश भेजा:-
आप ठीक तो हैं…. रोहित जी
रोहित की सेटिंग में सीन ब्लू स्टिक का ऑप्शन नहीं था इसलिए यशस्विनी नहीं समझ पा रही थी कि रोहित ने संदेश देख लिया है या नहीं।5 मिनट भी नहीं हुए थे कि यशस्विनी ने अगला संदेश भेजा:-
…. आप आज योग सत्र में नहीं आए ना इसलिए हमने बस यूं ही पूछ लिया…..
मानो यशस्विनी यह कहना चाहती हो कि मैंने बस हाल-चाल जानने की औपचारिकता निभाने के लिए ही संदेश भेजा है…. इसमें कोई अतिरेक लगाव वाली बात नहीं है…..
लेकिन इस बार रोहित का ध्यान व्हाट्सएप में गया और चंद सेकंडों में उसने सारे संदेश पढ़ लिए और वह मुस्कुरा उठा।
(क्रमशः)
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय