"अगर तुमने कभी किसी बच्चे की हँसी अंधेरी रात में सुनी है... तो दुआ करना कि वो इंसानी हो।"
ये बात बूढ़ी अम्मा अकसर गांव के बच्चों से कहा करती थीं। लेकिन एक बार गाँव का ही एक लड़का, रोहन, उस हँसी का पीछा कर गया... और फिर... वो कभी लौटकर नहीं आया।
आज भी रात में उस पुराने स्कूल की खिड़कियों से किसी बच्चे की चीख, हँसी और रेंगती हुई परछाइयों की आवाज़ें आती हैं। और लोग अब भी पूछते हैं — "क्या वो बच्चा इंसान था... या कुछ और?"
उत्तराखंड के एक पहाड़ी गांव ‘दुर्गापुरी’ में दशकों से एक पुराना स्कूल खंडहर पड़ा था। उस स्कूल को लोग "भूतिया स्कूल" कहते थे, क्योंकि वहाँ एक बच्चा रहस्यमयी हालत में मारा गया था — और तब से वो स्कूल बंद है। गाँव में कहा जाता है कि वो बच्चा एक राक्षस का पुत्र था — एक ‘Demon Child’ जिसे इंसान समझने की भूल की गई थी।
शहर से आए डॉक्युमेंट्री फिल्ममेकर अनिरुद्ध ने उस स्कूल पर फिल्म बनाने का प्लान बनाया। साथ में उसके दो दोस्त थे मीरा और नील।
गाँववालों ने उन्हें मना किया, पर अनिरुद्ध ने कहा, "ये सब अंधविश्वास है... एक सच्ची स्टोरी हमें बनानी है।"
तीनों रात को कैमरे लेकर स्कूल पहुँचे। चारों ओर झाड़ियों में सरसराहट थी, हवा स्थिर थी लेकिन घुटन भरी।
जब उन्होंने स्कूल का दरवाज़ा खोला, तो एक ठंडी लहर उनके शरीर में समा गई। दीवारों पर बच्चों की डरावनी आकृतियाँ बनी थीं — आँखें फूटती, मुंह से खून बहता और बच्चे की आकृति जिसने अपनी माँ को छुरा घोंपा था।
कमरे के कोने में जंग लगी झूले की चेन अपने आप हिल रही थी। एकदम सन्नाटा। फिर अचानक, रेडियो जैसा कुछ चालू हो गया और उसमें बच्चे की धीमी हँसी सुनाई दी, जो धीरे-धीरे राक्षसी गड़गड़ाहट में बदल गई।
नील ने कैमरा घुमाया, और एक बेंच के नीचे कुछ रेंग रहा था। मीरा ने टॉर्च मारी – एक बच्चा।
पर उसके चेहरे पर गहरी काली दरारें थीं, आँखें बिल्कुल सफेद, और शरीर ऐसा लग रहा था जैसे आग में झुलसा हो। वो गुर्राया और कहा:
"तुम भी मुझे छोड़ दोगे, जैसे सबने छोड़ा था?"
मीरा को अचानक याद आया — उसकी नानी ने बचपन में बताया था कि उसके परिवार से एक बच्चा बहुत पहले खो गया था, और कभी नहीं मिला।
अनिरुद्ध ने गाँव के पुराने रिकॉर्ड्स निकाले और पाया — वो बच्चा, जिसे 'शापित बालक' कहा गया था, मीरा का ही पूर्वज था।
इसका मतलब ये था — मीरा का खून उसी राक्षसी वंश से जुड़ा था।
बच्चा बार-बार एक ही बात कह रहा था, "तू वापस आ गई... अब हम साथ रहेंगे… हमेशा…"
मीरा हिल नहीं पाई। उसकी आँखों में अजीब लाल चमक आने लगी थी।
नील और अनिरुद्ध ने मीरा को खींचकर बाहर लाने की कोशिश की, लेकिन दरवाज़े अपने आप बंद हो गए। दीवारों से खून बहने लगा। चारों ओर से बच्चों की आवाजें आईं "अब तुम हमारे खेल में फँस चुके हो।"
तभी स्कूल की ज़मीन कांपने लगी, छत से उलटे लटके बच्चे गिरने लगे – पर वो मरे हुए नहीं थे – उनके मुँह में कीड़े रेंग रहे थे, आँखें पलकों से बाहर झूल रही थीं।
अनिरुद्ध ने चीखते हुए कहा, "हम चले जाएंगे, बस हमें छोड़ दो।"
पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
एक आखिरी दृश्य कैमरे में रिकॉर्ड हुआ — मीरा की आँखें जल रही थीं, और वो मुस्करा रही थी... उस बच्चे के साथ...
एक साल बाद।
एक नया डॉक्युमेंट्री क्रू गांव पहुंचा। उन्हें कैमरा मिला, अनिरुद्ध और नील गायब थे, मीरा का कोई सुराग नहीं।
और उसी रात, गाँव की एक और बच्ची अपने घर की छत पर खड़ी थी — चुपचाप मुस्कराती हुई, और फुसफुसा रही थी...
"अब मेरी बारी है।"
"शैतान कभी मरता नहीं… वो बस रूप बदलता है।"
क्या आप अगली बार उस स्कूल में जाना चाहेंगे...?