Wait in Hindi Classic Stories by Vartikareena books and stories PDF | इंतजार

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इंतजार

इतंजार


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वो एक भीड़-भाड़ वाला इलाका था । चारों तरफ लोगो कि आवा‌- जाही थी । कई दुकानें थीं तो कई ठेले ,जो सड़क किनारे खड़े थे । उन ठेलों से आती आवाजें लोगों को अपनी ओर बुला रही थी ताकि वे अपना सामान बेच अपना घर चला सकें। सड़क पर गाडियां , मोटरसाइकिल, पैदल चालाक और ई रिक्शा की भीड़ दम घोटु थी ! कहीं से कोई आ रहा था तो कहीं से कोई ! लोगों के आपस में बात करने का धीमा स्वर भी सुनाई दे रहा था । 
वाहनों से आती होर्न कि आवाजें कान में किसी मच्छर के भीन भीनाने जैसा प्रतीत हो रहा था ..! 

इन सब के बीच से निकलना लगभग नामुमकिन सा था।  पर हम भारतीय इस भीड़ का सामना रोज करते हैं और हमें बड़ी अच्छी तरह इस से निकलना भी आता है । 

इसी भीड़ से होकर गुजरता वो जोडा अपनी मंजिल कि ओर अग्रसर था । धीरे- धीरे वो भीड़ से हटकर एक साड़ी कि दुकान के सामने आकर रूके । 

दोनों अंदर गए और एक जगह आकर बैठ गए । दुकानदार उन्हें तरह तरह कि साड़ियां दिखाने लगा । सभी साड़ी एक से बढ़कर एक थी ! ऐसे में कोई एक पसंद करना थोड़ा मुश्किल था ...! 

उस जोड़े को देखने भर से ही ऐस प्रतीत हो रहा था कि अभी नई नई शादी हुई है । लड़की ने लाल ब्लाउज पर हरे रंग कि साड़ी पहन रखी थी , हाथो में लाल कांच का चुडिया , गले में मंगलसूत्र और मांग सिंदूर कि लालिमा से सजी  हुई थी ! कानो में झुमके डाल रखे थे और नाक में नथनी डाले लड़की बड़ी प्यारी और सुंदर लग रही थी । 

लड़के ने भी हरे रंग कि शर्ट और काले रंग की पेंट पहन रखी थी । बाल जैल से सैट थे । दाहिने हाथ में कलावा था और बाएं हाथ में घड़ी पहन रखी थी । 
कुल मिलाकर लड़का भी बहुत सुंदर दिख रहा था । 

लड़के ने एक गोल्डन कलर कि साडी लेकर अपनी पत्नी को दिखाई और उस पर लगा कर देखने लगा । 

" ये अच्छी लगेगी ! कैसी लगी तुम्हें ? ",, लड़के ने अपनी पत्नी से पूछा ।

" ठीक है!! ",, लड़की ने बुझे स्वर में कहा । 

वो कुछ उदास दिख रही थी । शादी के बाद का जो नूर होता है नई नवेली दुल्हन का वो तो कहीं दिखाई ही नहीं दे रहा था । 
लड़के ने उसे देख गहरी सांस छोड़ी और ना में सर हिला दिया । 

लड़के ने खुद ही तीन चार साड़ियां पसंद करी और पेमेंट करने कैश काउंटर पर चला गया । 

काउंटर पर बैठ इंसान ने बिल बनाते बनाते लड़के से पूछा 
" मैडम नाराज हैं क्या ? " 

लड़के ने पहले अपनी बीवी को देखा फिर फीकी मुस्कान के साथ कहा ,,, "" जी ! है थोड़ी नाराज ..! ""

काउंटर पर बैठे इंसान ने हँसते हुए कहा ,,,""" बुरा फंसे आप! बीवी एक बार नाराज हो जाए तो जल्दी से मानती नहीं ...! """

लड़का होले से मुस्कुरा दिया । उसने पैसे देकर अपनी पत्नी को आवाज लगाई ,,"" अप्राजिता ...!!!! ""

अप्राजिता ने उसे देखा और उठकर चल दी । लड़के ने अपने एक हाथ में साडी वाला थैला पकड़ रखा था और दुसरे हाथ से उसने अप्राजिता का हाथ थाम रखा था । 


एक बार फिर दोनों भीड़ में घुस आए थे और बन गए थे उस भीड़ का हिस्सा । 
वो भीड़ से निकलते हुए एक कार के पास आकर रूके । 
लड़के ने कार कि बैक सीट पर समान रखा । वहां और भी बहुत कुछ रखा हुआ था । जैसे चुड़ियों के डिब्बे , गहने , सेंडल और कई सारी किताबें..! 

समान रखकर लड़का ड्राइविंग सीट पर जाकर बैठ गया । अप्राजिता पहले ही पैसेंजर सीट पर बैठ चुकी थी । 
वो अभी भी उदास नज़र आ रही थी । 

लड़के ने उसे एक बार देखा फिर गाड़ी चलाना शुरू कर दिया । उसने एक जगह आकर अचानक से ब्रेक लगा दिए ! 

अप्राजिता का सिर डैश बोर्ड से लगता कि लड़के ने अपना हाथ बीच में लगा दिया । जिससे अप्राजिता का सर लड़के के हाथ पर लगा । 

इस बार अप्राजिता के चेहरे के भाव बदले । उसके चेहरे पर गुस्सा दिखाई देने लगा । 

उसने गुस्से से लड़के को देखा और बोली ,,"" ये क्या हरकत थी मानव ! इतनी जोर से और अचानक से ब्रेक कौन लगाता है ? ""

लड़का जिसका नाम मानव था वो बोला ,,, " मैं लगाता हूं! और मैं करता भी क्या ! तुम मुझसे बात ही नहीं कर रही । "

" बात कर के भी क्या फायदा ! करनी तो तुम्हें अपने मन कि ही है । ",,,,, अप्राजिता ने जहर बुझे स्वर में कहा । 

मानव अप्राजिता कि बात सुन शांत हो गया फिर थोड़ी देर बाद सख्त शब्दों में बोला ,,,"" तुम्हें हो क्या गया है ? इस से पहले भी तो ना जाने कितनी बार तुम ने मेरा इतंजार किया है । और तुम जानती भी हो कि मेरा जाना जरूरी है फिर भी ऐसी बातें कर रही हो ...! """ 

अप्राजिता ने मानव को देखा और आहत भाव से बोली ,,
"" क्या मेरे नसीब में बस तुम्हारा इंतज़ार लिखा है ! तुम्हारा साथ क्यो नही मिल सकता मुझे ? और कब तक इंतजार करू! और कितना करूं ! हमेशा से बस तुम्हारा इंतज़ार ही तो करती आ रही हूं मैं ..! ""

इतना बोलते बोलते अप्राजिता कि आंखें भर आईं । मानव अप्राजिता कि बात शांत होकर सुन रहा था । कहीं ना कहीं उसकी बात भी सही थी पर मानव का जाना जरूरी था । वो एक आर्मी ऑफिसर है और हाल ही में किसी मिशन के तहत उसे अरुणाचल प्रदेश जाना पड़ रहा है । इसी बात को लेकर अप्राजिता उदास और मानव से नाराज़ , दोनों ही है । 

मानव गाड़ी से उतरा और अप्राजिता कि साईड का दरवाजा खोल उसकी तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया । अप्राजिता भले ही कितनी भी नाराज क्यो ना हो वो मानव का हाथ कभी नहीं छोड़ सकती थी इसलिए उसने मानव का हाथ पकड़ लिया । और कार से बाहर आ गई । 

शाम का समय था और वो दोनों शिप्रा नदी के तट पर बैठे थे । अप्राजिता ने मानव के कंधे पर सर रखा हुआ था । उसकी आंखें आंसुओं से भरी हुई थी ...! 

दोनों चुपचाप शिप्रा नदी को बहते देख रहे थे । 

" ये कौन सी जगह है ? ",,, अचानक से मानव ने सवाल किया ।
अप्राजिता उसे सवालिया निगाहों से देखने लगी ।
"कौन सी जगह है ये प्रजु ? " मानव ने अप्राजिता कि आंखों में देखते हुए सवाल किया । 

" हम राम घाट पर शिप्रा नदी के किनारे पर बैठे हैं । " अप्राजिता ने जवाब दिया । 
" क्या तुम्हें शिप्रा मईया का महत्व पता है ? " 
अप्राजिता मानव को देखने लगी ।‌

मानव ने शिप्रा के कल कल बहते पानी कि तरफ देखते हुए बोलना शुरू किया ,,,,""" शिप्रा नदी के किनारे पर सारा उज्जैन बसा हुआ है । उज्जैन! महाकाल कि नगरी में सबकी मनोकामना पुरी होती है । अभी थोड़ी देर में
' शिप्रा आरती ' होने वाली है । सब यहां पर इकट्ठे होकर बिना किसी कि परवाह किए, हर चिंता को त्याग बस आरती में मग्न होकर शिप्रा मईया और महाकाल के जाप से पुरा राम घाट गुंजा देते हैं । हर ओर से ये मंदिरों कि घंटियों कि आती आवाज सारा तनाव दूर कर देती है । शिप्रा मईया को बस यूं बहते देखने में भी एक आनंद है ! 
आरती के बाद जब सभी भक्त दिया जलाकर , एक दोने में फुल के साथ शिप्रा में बहा देते हैं । माना जाता है कि शिप्रा नदी में सारी चीजें और भक्तों कि कामनाएं महादेव तक पहुंचाती है । उनके पास जो अपने भक्तों का पीड हरने को ना जाने कब से इंतजार करते रहते हैं । " 

" अप्राजिता ! जब कभी भी मैं उदास या बैचेन होता हूं तो यहां आ जाता हूं ! यहां कि हवाओं में भी एक सुकून है ! ऐसा लगता है मानो महादेव स्वयं सारी चिंताएं इन हवाओं के साथ ले जाते हैं । मै शिप्रा नदी में डुबकी लगा कर खुद को शांत करता हूं ! जब कभी भी दर्द में होता हूं तो यहां आ जाता हूं । ये जो सामने पानी के रूप विराजमान हैं ना , ये मां है ! और मां के पास बच्चा सबसे ज्यादा सुरक्षित महसूस करता है । "

अप्राजिता बड़े गौर से मानव कि बात सुन रही थी । इस बार मानव ने अप्राजिता कि तरफ चेहरा कर लिया और सीधा उसकी आंखों में देखने लगता है । 

मानव अप्राजिता का चेहरा अपने हाथों में लेता और होले से उसका माथा चूम लेता है । 
अप्राजिता कि आंखों से आंसू बह जाते हैं । 
" मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती मानव ! " ,, वो सिसकते हुए कहती है। 

" मै भी तुम्हें छोड़ कर नहीं जाना चाहता पर‌ जाना ज़रूरी है प्रजु ! जब भी तुम्हे मेरी याद आए या मेरा इतंजार करना मुश्किल होता जाए तब यहां आ जाना । यहां मां है ! वो सारा दर्द हर लेगी । शिप्रा मईया के प्रेम में भिंग कर तुम्हें सुकून मिलेगा । ""
मानव ने रूंधे हुए गले से कहा । वो अपनी रुलाई रोक रहा था । अप्राजिता से दूर रहना उसके लिए भी मुश्किल था । पर फर्ज बुला रहा था । एक आर्मी ऑफिसर के लिए देश से बडकर कुछ नहीं होता ! खुद का परिवार भी नहीं !

मानव अप्राजिता को अपने सीने से लगाए उसका सर सहलाता रहा । थोड़ी देर बाद वो शांत हुई और उसने मानव को नजर भर कर देखा । अब वो भरसक संभल चुकी थी । 

" तुम आज रात ही निकल जाओगे ना ?" अप्राजिता ने पूछा ।
" हां! "
" ठीक है ! चलो गंगा आरती देखते हैं । " अप्राजिता मानव का हाथ पकड़ खड़े होते हुए बोली । 
वो अब मुस्कुरा रही थी पर आंखों में दर्द साफ दिख रहा था । 

दोनों आरती में शामिल हुए और फिर कार कि तरफ बढ़ गए । 
कार में बैठ कर वो घर कि तरफ रवाना हो गए । घर पहुंचकर अप्राजिता ने मानव का बैग लगाया और सोने के लिए बेड कि ओर जाने लगी पर तभी मानव ने उसे अपनी तरफ खींच लिया । 

अप्राजिता मानव के सीने से आकर लगी । वो हड़बड़ा गई थी ।
" मानव क्या हुआ ? "
" जा रहा हूं मैं ! तुम्हें नहीं लगता कि कुछ अच्छे पल तुम्हें मुझे देने चाहिए ..! " मानव‌ ने शरारत से कहा । 
अप्राजिता ने उसकी आंखों में देखा और ये हो गया । 
कुछ एहसास उफान मारने लगी । सांसों कि गर्माहट कमरे में फैलती जा रही थी । भावनाएं जो दबी थी वो धीरे धीरे बाहर आ रही थी । ऐसा लग रहा था जैसे सागर में सरिता समा रही हो । 
खिड़की से झांकता चांद गंवा था दोनों के मिलन का ! 

एक लंबे वक्त बाद दोनों अलग हुए । मानव ने अपनी युनिफोर्म सही करी और अप्राजिता का माथा चूम , बैग उठाकर चला गया । अप्राजिता उसे दरवाजे तक छोड़ने आई थी । मानव रिक्शा में बैठ गया था । उसने अप्राजिता को देखा और मुस्कुरा दिया । 
अप्राजिता ने जी भर कर मानव‌ को देखा और जब तक देखती रही जब तक कि वो उसकी आंखों के सामने से ओझल ना हो गया । ।

पता नहीं क्यो उसे लग रहा था कि ये आखरी बार था , आखरी मुलाकात थी मानव के साथ । कमरे में आकर अप्राजिता रोने लगी । 

दिन बिताने लगे और वो अब महीनों में बदल गए पत ही नहीं चला । अप्राजिता जब भी खुद को कमजोर महसूस करने लगती तब वो राम घाट चली जाती और घंटों वहां बैठी रहती । शिप्रा में डुबकी लगा खुद को शांत करती । अप्राजिता वो सारे काम करती जो मानव करता । उसे घर भी संभालना था । मानव के माता पिता का ध्यान रखती , घर का काम करती । दिन तो जैसे तैसे बित जाता पर रात में अप्राजिता को मानव कि बुरी तरह याद आती । 


******
आज एक बार फिर अप्राजिता शिप्रा के तट पर बैठी थी । उसका चेहरा भाल हीन था पर आंखों में दुनिया जहान का दर्द बसा हुआ था । चेहरे पर आंसुओं के निशान थे । वो एक टक शिप्रा के बहते पानी को देख रही थी । 
उसके हाथ में एक अस्थि कलश था जिसे उसने अपने सीने से लगा रखा था । 
अप्राजिता चीखना चाहती थी , चिल्लाना चाहती थी पर कुछ कर नहीं पा रहा थी । आज तो ये उज्जैन कि हवाऐ भी उसका दर्द कम नहीं कर रही थी उल्टा बडा दे रही थी ।

अप्राजिता से अब ये दर्द बर्दाश्त नहीं हुआ और वो चीख चीखकर रोने लगी ! घाट पर बैठे लोग उसे देखने लगे । वे सभी कलश को देख उसका दर्द समझ रहे थे । 

उसने रोते हुए शिप्रा नदी से कहा ,,,"" और कितना इंतजार करू मैं ! हे ! शिप्रा मईया बता दें मुझे और कितना इंतजार करूं । अब ये दर्द बर्दाश्त नहीं होता । नहीं सहन होती ये वियोग कि घड़ी । "" 

इतना बोलकर वो बहुत देर तक रोती रही । 
थोड़ी देर बाद अप्राजिता ने अपने आंसु पोंछे और मानव कि अस्थियां नदी में बहा दी । 
इसके बाद वो नदी में उतरने लगी । धीरे धीरे नदी का पानी उसके सर के ऊपर तक आ गया था । मानव के चले जाने से अप्राजिता बुरी तरह  टूट गई थी । उसने नदी के बहाव के साथ खुद को बहने दिया और आंखे बंद कर मानव कि यादों को मन में बसा लिया । 
यादों में ही सही पर उसका इंतजार थोड़ा तो कम होता ! 
शिप्रा मईया ने भी जैसे अपना आंचल फैला कर उसे अपनी गोद में भर लिया ।  

आज सारा दर्द खतम हो गया था । पर फिर भी कुछ सवाल थे अप्राजिता के मन में जो वो मानव से करना चाहती थी पर कर नहीं पाई .! 

" तेरे प्रेम में अपना सर्वस्व
लुटाकर भी मेरे हिस्से बस
तेरा इंतज़ार आया है ! 

ये इतंजार , ये प्रतीक्षा 
स्वीकार है मुझे पर इतना तो 
बता दें कि
              आखिर कब तक ये प्रतीक्षा की परीक्षा देनी होगी!  आखिर कब तक इस अंतहीन मार्ग पर चलना होगा ! 
ये तो बता दें 
आखिर कब तक तेरा इंतज़ार करते हुए 
तेरी चाहत में मरन होगा ...! "


( समाप्त ) 

आशा करती हूं ये कहानी आप लोगों को पसंद आए होगी ।