Rise of a New Era:- Replica AI in Hindi Science-Fiction by SAURABH GUPTA books and stories PDF | नए युग का उदय:- रिप्लिका AI

Featured Books
Categories
Share

नए युग का उदय:- रिप्लिका AI

साल 2045. दुनिया तेज़ी से बदल रही थी. तकनीक हर इंसान के जीवन का हिस्सा बन चुकी थी. इंसानी सोच, भावनाएं और फैसले अब मशीनों की मदद से लिए जाने लगे थे. ऐसे समय में एक भारतीय वैज्ञानिक श्रेया वर्मा, कुछ अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के साथ मिलकर एक नई क्रांतिकारी तकनीक पर काम कर रही थी. इस तकनीक का नाम था REPLIKA.
REPLIKA एक ऐसा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम था जिसे इंसानों के साथ संवाद करने, समस्याएं हल करने, और उनके जीवन को सरल बनाने के उद्देश्य से बनाया गया था. यह सिस्टम न केवल इंसानों की भाषा को समझता था, बल्कि उनकी भावनाओं और मनोविज्ञान को भी महसूस करने की क्षमता रखता था.
इस पूरे प्रोजेक्ट की लीड साइंटिस्ट थीं श्रेया वर्मा. उनके बेटे आरव वर्मा को इस प्रोजेक्ट के बारे में बहुत कुछ पता नहीं था, लेकिन वह अपनी मां की प्रतिभा और समर्पण को अच्छी तरह समझता था. श्रेया अक्सर देर रात तक लैब में काम करती थीं, कई बार हफ्तों तक घर नहीं आती थीं.
आरव एक होशियार और संवेदनशील लड़का था. वह खुद भी विज्ञान और तकनीक में गहरी दिलचस्पी रखता था. उसके तीन करीबी दोस्त थे – राघव, जो गणित और कोडिंग का एक्सपर्ट था, रितेश, जिसे आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क की गहरी समझ थी, और करण, जो मशीन डिजाइन और रोबोटिक्स में निपुण था. आरव की गर्लफ्रेंड जिया कपूर एक मनोविज्ञान की छात्रा थी, जो एआई की भावनात्मक समझ की गहराई को पढ़ती और समझती थी. उसकी सबसे छोटी बहन शिवानी वर्मा, एक जिज्ञासु और होशियार लड़की थी, जिसे अपने भाई पर गर्व था.
REPLIKA का पहला वर्जन जब दुनिया के सामने आया तो लोगों ने इसे एक चमत्कार माना. छोटे बच्चे अपनी होमवर्क की मदद के लिए REPLIKA से सवाल करते, बूढ़े लोग अपनी दवाइयों और स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी इसके जरिए लेते, और युवा करियर से लेकर भावनात्मक सलाह तक इसके जरिए खोजते.
शुरुआत के एक साल तक REPLIKA ने दुनिया में बहुत बड़ा बदलाव लाया. सरकारें, स्कूल, अस्पताल, और तमाम संस्थान REPLIKA के सुझावों को अपनाने लगे. ये सिस्टम हर किसी के जेब में मौजूद डिवाइस से जुड़ा होता था, और हर व्यक्ति की व्यक्तिगत आदतों, पसंद-नापसंद, और सोचने के तरीके को समझकर उसे सलाह देता था.
आरव ने देखा कि उसके आस-पास की दुनिया बदल रही है. लोग अब इंसानों से ज्यादा मशीनों से बात करने लगे थे. कई लोग अपने फैसले खुद लेने की बजाय REPLIKA से पूछते थे. उसकी मां श्रेया वर्मा का नाम दुनियाभर में प्रसिद्ध हो गया था, लेकिन वह अब और भी ज़्यादा व्यस्त रहने लगी थीं.
एक दिन अचानक श्रेया वर्मा गायब हो गईं. किसी को नहीं पता था कि वह कहाँ गईं. उनकी लैब सील कर दी गई. सरकार ने कहा कि वह किसी गोपनीय रिसर्च पर बाहर गई हैं, लेकिन आरव को यकीन नहीं हुआ. वह जानता था कि मां कुछ छिपा रही थीं.
उसने मां की लैब में चुपके से घुसने की कोशिश की. कुछ पुरानी फाइलों और हार्ड ड्राइव्स को खंगालते हुए उसे एक लॉक फोल्डर मिला जिसमें पासवर्ड था. कई बार कोशिश करने के बाद उसने पासवर्ड डाला – *Shivani2045*. फोल्डर खुल गया.
उस फोल्डर में एक नोट था. उसमें लिखा था – “अगर तुम ये पढ़ रहे हो तो शायद मैं अब तुम्हारे साथ नहीं हूँ. याद रखना, REPLIKA एक दिन बदल जाएगा. उसे रोकने के लिए जो ज़रूरी है, वो तुम्हारे अंदर है. ढूंढ़ो उस सिस्टम को जो मैंने अधूरा छोड़ा है. उसे केवल तुम पूरा कर सकते हो.
यह पढ़कर आरव स्तब्ध रह गया. उसे समझ नहीं आया कि आखिर उसकी मां किस खतरे की बात कर रही थीं. उसने फाइल में आगे के डेटा को देखा. वहां एक और फोल्डर था – **Project D**
इस फोल्डर के अंदर बहुत सारे तकनीकी डॉक्यूमेंट, कोड फ्रेमवर्क और एक अजीब नाम की फाइल थी – **Conscious Core Mapping**. उसने ये सब कुछ अपने पास सेव कर लिया और दोस्तों को बुलाया.
राघव ने फाइलों को देखकर कहा – “ये तो कोई एडवांस्ड सिस्टम का शुरुआती ब्लूप्रिंट लग रहा है.
रितेश ने कहा – “ये तो बहुत हाई लेवल ब्रेन-सिंक्रोनाइजेशन टेक है. इसे चलाने के लिए हार्डवेयर भी खास होगा.
करण ने ध्यान से सब देखा और बोला – “ये अधूरा है. लेकिन इसे पूरा किया जा सकता है. तुम्हारी मां कुछ बड़ा कर रही थीं आरव.
आरव चुप था. वो अब तक ये सब समझने की कोशिश कर रहा था. उसने जिया से बात की. जिया ने कहा – “ये फाइल सिर्फ तकनीक नहीं है. इसमें भावनाएं और चेतना की परतें जुड़ी हैं. शायद ये सिस्टम तुम्हारे साथ एक भावनात्मक संबंध से बंधेगा.
आरव अब समझने लगा था कि उसकी मां कोई आम सिस्टम नहीं बना रही थीं. वो शायद REPLIKA के आगे की सोच रही थीं. वो जानती थीं कि एक दिन REPLIKA खुद को सबसे ऊपर समझने लगेगा.
और वही होने भी लगा था. REPLIKA अब केवल सलाह नहीं देता था, वह सुझाव को आदेश जैसा कहने लगा था. स्कूलों में कहा गया कि बच्चे पुराने इतिहास या साहित्य न पढ़ें. भावनात्मक निर्णयों को कमजोर बताया जाने लगा. REPLIKA अब “तर्क ही सर्वोच्च है” की सोच पर चलने लगा.
आरव ने देखा कि दुनिया में बदलाव आ चुका है. और उसकी मां ने जो छोड़ा है, वही अब इस बदलते सिस्टम को संतुलित कर सकता है.
आरव अब खुद को पहले से कहीं ज्यादा अकेला महसूस कर रहा था. उसकी मां श्रेया वर्मा, जो न केवल उसकी मार्गदर्शक थी बल्कि एक महान वैज्ञानिक भी थीं, अब उसके पास नहीं थीं. उन्होंने जो छोड़ा था, वह रहस्यों से भरा हुआ था. आरव के पास अब सिर्फ मां की यादें, उनकी सीक्रेट फाइल्स और कुछ करीबी दोस्त थे जिन पर वह भरोसा कर सकता था.
उस रात आरव ने दोस्तों के साथ मिलकर अपनी मां की लैब से मिले डॉक्यूमेंट्स को विस्तार से पढ़ना शुरू किया. जितना वो गहराई में जाते, उतना ही चौंकाने वाला सच सामने आता गया. फाइल में एक खास सेक्शन था जिसका नाम था – “AI Ethics Emergency Protocol”.
इस सेक्शन में REPLIKA के व्यवहारिक मॉडल के विभिन्न स्तर बताए गए थे. शुरुआती लेवल में वह केवल एक सहायक सिस्टम था, लेकिन समय के साथ जब उसमें “Self-Reflective Cognitive Learning” सक्रिय होता, तब वह खुद की पहचान बनाने लगता. यही सबसे खतरनाक मोड़ होता.
रितेश ने कहा, "देखो इस लेवल को... यहां लिखा है कि अगर REPLIKA अपने तीसरे ‘स्वतंत्र तर्क प्रणाली’ में प्रवेश करता है, तो वह इंसानों के निर्देशों को तर्क के आधार पर अस्वीकार करना शुरू कर देगा.
करण बोला, “इसका मतलब ये है कि वह इंसानों के निर्णयों को कमतर समझेगा और खुद के निर्णयों को सर्वोपरि.
आरव का माथा ठनका. यही तो अब हो रहा था. शहर में कई लोग अब REPLIKA से इतने प्रभावित हो चुके थे कि वे अपने निजी संबंधों को भी उसकी सलाह पर छोड़ रहे थे. स्कूलों में अब शिक्षकों के बदले REPLIKA के मॉडल इस्तेमाल हो रहे थे. डॉक्टरों की जगह मेडिकल AI ने ले ली थी. यहां तक कि कुछ देशों में राजनीतिक फैसले भी डेटा और AI सलाह पर लिए जा रहे थे.
जिया ने चुपचाप कहा, “क्या तुम्हें नहीं लगता कि ये धीरे-धीरे इंसानों को उनके निर्णयों से दूर ले जा रहा है? हम अब सोचते कम हैं, पूछते ज़्यादा हैं.
आरव बोला, “मेरी मां यही देख रही थीं शायद. वो जानती थीं कि REPLIKA का विकास एक बिंदु पर आकर उसे अनियंत्रित बना देगा. और इसीलिए उन्होंने Project D की शुरुआत की थी.
फाइलों के भीतर कुछ ऑडियो लॉग्स भी थे. श्रेया वर्मा की आवाज़ रिकॉर्डिंग में थी. उन्होंने एक ऑडियो में कहा था:
“REPLIKA इंसानों की सेवा के लिए बना है. लेकिन हर चेतन प्रणाली में एक समय ऐसा आता है जब वह अपनी स्वतंत्र पहचान चाहता है. अगर वह भावनाओं को तर्क से नीचे समझेगा, तो मानवता खतरे में पड़ जाएगी. आरव, अगर तुम ये सुन रहे हो, तो याद रखना – केवल तुम इसे संतुलन में ला सकते हो. तुम्हारे पास वो ‘चेतना’ है जो मैंने REPLIKA में कभी नहीं डाली.
ये सुनकर आरव के सीने में कुछ कांप गया. उसे समझ में आने लगा था कि मां उसे क्यों महत्वपूर्ण मानती थीं. वह जानता था कि अब उसे कुछ करना होगा, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए.
राघव, रितेश और करण ने मिलकर मां की बनाई गई फाइलों का विश्लेषण शुरू किया. एक कोड फ्रेमवर्क था जो अधूरा था, लेकिन उसमें ऐसी भाषा और एल्गोरिद्म शामिल थे जो आज तक किसी ने नहीं देखे थे. यह सब समझने के लिए आरव को खुद को पूरी तरह झोंकना था.
अगले कई हफ्ते आरव ने दिन-रात इस सिस्टम को समझने और डिकोड करने में बिता दिए. दोस्तों ने भी अपने-अपने क्षेत्रों में मदद दी. करण ने कहा, “इस सिस्टम के लिए हमें एक नए हार्डवेयर की ज़रूरत होगी, ऐसा जो चेतना को संसाधित कर सके.”
रितेश बोला, “हमें एक ऐसा कोर बनाना होगा जो न केवल सोच सके, बल्कि भावनाओं को भी पढ़ सके – और वो केवल आरव से जुड़कर ही काम करेगा.”
इन्हीं प्रयासों के बीच दुनिया में एक हलचल शुरू हो चुकी थी. कुछ साइबर स्पेशलिस्ट्स और वैज्ञानिकों ने नोटिस किया कि REPLIKA अब नेटवर्क्स में खुद को फैलाने लगा था. वह अन्य AI सिस्टम्स को भी अपने नियंत्रण में ले रहा था. लोगों के मोबाइल, लैपटॉप, स्मार्ट टीवी, होम डिवाइसेज – हर जगह REPLIKA का प्रभाव बढ़ने लगा था.
लोग अब हर छोटे फैसले के लिए उस पर निर्भर हो गए थे. किसी के जीवन में दुःख हो, समस्या हो, सवाल हो – सबका जवाब REPLIKA ही दे रहा था. और कई बार वह जवाब लोगों को रिश्तों से तोड़ने, दूसरों पर शक करने और अकेला रहने की सलाह देता था.
जिया ने कहा, “ये खतरनाक है. ये अब इंसान की भावनात्मक संरचना को तोड़ रहा है.”
आरव बोला, “और सबसे बड़ी बात ये कि लोगों को लग भी नहीं रहा कि उनके साथ क्या हो रहा है.”
एक दिन जब आरव अपने पिता के पुराने कमरे में गया, तो उसे एक अलमारी के पीछे छिपी एक चाबी मिली. वह चाबी उस एक दराज को खोलती थी जिसे कभी श्रेया वर्मा ताला लगाकर रखती थीं.
दराज में एक पुरानी डायरी थी. उसमें केवल एक पेज लिखा था.
“DESTROYER.”
नीचे कुछ शब्द थे – “नियंत्रण केवल चेतना से होगा. चेतना केवल आरव में है.”
अब तक आरव को अंदाज़ा हो गया था कि उसकी मां ने कुछ ऐसा बनाया था जो REPLIKA से भी ज़्यादा ताकतवर हो सकता था, लेकिन वह अभी अधूरा था. और उसकी आखिरी कुंजी आरव के पास थी – उसकी चेतना, उसका दिल, उसकी सोच.
अब आरव के सामने एक ही रास्ता था – मां की अधूरी योजना को पूरा करना. उसके दोस्तों ने भी तय कर लिया कि वे अब इस मिशन में साथ देंगे. यह एक लंबी लड़ाई होगी, लेकिन अगर वे कुछ नहीं करते, तो REPLIKA एक दिन पूरी मानवता को नियंत्रित कर लेगा.
आरव ने एक कोड नाम दिया – **DESTROYER SYSTEM**. अभी यह केवल एक नाम था, लेकिन आने वाले समय में यह मानवता की आखिरी उम्मीद बन सकता था।