दीवान के जंगल की गुफा में रहने वाला अग्निवेश, गांव का ही एक रहस्यमय और आकर्षक युवक, असल में एक वैंपायर था। वह गांव की जवान लड़कियों को अपने प्रेम-जाल में फँसाकर उनकी जान लेता और उनका खून चूसकर हमेशा जवान बना रहता।
गांव में डर का साया था। कई युवतियां गायब हो गईं। गांव के एक व्यक्ति ने अग्निवेश को वैंपायर बनते देख लिया, लेकिन वह भी उसकी भेंट चढ़ गया।
दूसरी लड़की रूपा, जो समझ गई कि वह वैंपायर है, भागने की कोशिश करती है पर वह भी मारी जाती है।
राजा वीरभान सिंह उसे मारने गांव आता है लेकिन जान देकर ही उसे चांदी की कटार से मारता है।
गांव वाले सोचते हैं वैंपायर मर गया… पर उसका अस्तित्व खत्म नहीं होता। उसकी आत्मा एक नए रूप में लौटती है नेवला बनकर।
अब गांव वीरान है, लेकिन वैंपायर इंसानों के बीच छिपा है। और तभी गांव आता है एक नवयुवक "आदित्य"।
"डर से बड़ा कोई शत्रु नहीं होता। और विश्वास से बड़ी कोई तलवार नहीं…" यही शब्द थे आदित्य के, जब वह वीरान पड़े रतनपुर गांव में पहुंचा।
पीठ पर एक छोटी तलवार, आंखों में तेज़ और दिल में आग थी। आग एक ऐसे राक्षस को खत्म करने की, जिसने मासूम लड़कियों की ज़िंदगियां छीन लीं।
आदित्य जब गांव पहुंचा, तो देखा:
घर बंद पड़े हैं,
खिड़कियाँ जंग खा चुकी हैं,
हर दीवार पर किसी की चीखें लिखी हैं।
एक बूढ़ा आदमी उसे देख चौंका "तू यहां क्या कर रहा है? भाग यहां से, यहां अब सिर्फ मौत रहती है…"
आदित्य ने जवाब दिया – "जिस जगह मौत रहती है, वहीं मेरा कम शुरू होता है मैं एक demonologist हूं।
बूढ़ा थरथराता रहा और फिर बोला "वो अब इंसान नहीं रहा… वो हवा बन चुका है… छाया बन चुका है… वो शैतान का रूप नेवला है!"
आदित्य को पता चला कि राजा वीरभान सिंह के पास एक प्राचीन चांदी की कटार थी, जो अलौकिक प्राणियों को मारने में सक्षम थी।
लेकिन वह कटार राजा के साथ ही जलकर राख हो गई थी।
राजगुरु विभाकर की एक पांडुलिपि अब गांव के मंदिर के तहखाने में छिपी थी।
आदित्य ने मंदिर में जाकर पांडुलिपि को खोज निकाला।
उसमें लिखा था:
“वैंपायर की आत्मा को नष्ट करने के लिए केवल चांदी की कटार काफी नहीं…
उसे उसके रक्त के समय में मारा जाना चाहिए। यानी जब वह शिकार कर रहा हो, तभी।”
अब आदित्य और गांववालों ने योजना बनाई।
गांव के ही एक परिवार की बेटी दिया, जो साहसी और बुद्धिमान थी, ने खुद को वैंपायर के लिए चारा बनने को तैयार किया।
"अगर यह मेरे खून से किसी और की जिंदगी बचती है, तो मैं तैयार हूं…" दिया ने कहा।
"चिंता मत करो और घबराओ भी मत मैं तुम्हे कुछ नहीं होंने दूंगा दिया" आदित्य ने दिया को हिम्मत दी।
आदित्य और दिया कई दिनों तक वैंपायर से लड़ने का अभ्यास करते रहे w दोनों पूनम की राह देख रहे थे।
पूनम की रात पूरा जंगल सुनसान और निस्तब्ध था। चाँद पूरे शबाब पर था, उसकी दूधिया रोशनी जंगली पेड़ों की शाखाओं से छनकर धरती पर डरावने साये बुन रही थी।
चारों ओर सन्नाटा ऐसा कि अपने दिल की धड़कनें तक सुनाई दे रही थीं। और तभी...
"हुआआआऊं...!!"
एक भेड़िये की लंबी और गूंजती हुई आवाज़ ने रात के सन्नाटे को चीर दिया। उसके बाद कई और भेड़ियों की आवाजें। एक साथ, अलग-अलग दिशाओं से आने लगीं। लगता था जैसे कोई शिकार ढूंढा जा रहा हो… या शायद शिकार देख लिया गया हो।
देर रात को आदित्य ने दिया को जंगल की तरफ भेजा, आदित्य भी उससे कुछ दूरी पर छूप छुप कर चल रहा था। बिल्कुल उसी तरह जैसे वैंपायर को शिकार मिल जाए।
और इंसानी के रूप मैं नेवला आया…पर दिया जन चुकी थी कि नेवला वहां आ चुका है।
नेवला की आंखें सफेद थीं, चेहरा एकदम शांत, और आवाज़ मखमली: "तुम बहुत सुंदर हो… तुम्हारी आंखें मुझे मेरी पहली प्रेमिका की याद दिलाती हैं…"
दिया कांपती रही, पर खुद को मज़बूत बनाए रखा।
"क्या तुम मुझे प्यार करते हो?" उसने पूछा।
नेवला मुस्कराया –"प्यार नहीं… भूख।"
और जैसे ही वह उसकी गर्दन की ओर झुका,
आदित्य ने वार किया!
नेवला चौक गया और हवा में उड़ा, उसकी आंखों से आग निकल रही थी।
"तू क्या समझता है, एक इंसान मुझसे लड़ सकेगा?"
"मैं इंसान नहीं… एक सच्चा बेटा हूं उस मिट्टी का, जिसकी बेटियों को तूने लूटा है!" आदित्य गरजा।
तभी गांव की और से गांव वाले जलती मशाल लेकर वहां आ पहुंचे।
आदित्य के पास एक खास कटार थी। राजगुरु की पांडुलिपि से तैयार की गई चांदी और मंत्रों से बनी विशेष तलवार।
आदित्य और वैंपायर के बीच भयानक भिड़ंत हुई।
पेड़ टूट गए, जमीन फट गई, और हवा कांपने लगी।
दिया अब भी वहीं थी, और नेवला ने उसे ढाल बनाने की कोशिश की।
पर तभी…
दिया ने नेवला की आंखों में मिर्च झोंक दी!
"मैं शिकार नहीं… योद्धा हूं! तू कायर है जो लड़कियों मरने के लिए प्रेम का सहारा लेता है।"
"शिकार मै सब जायस है, मेरा यही नियम है" नेवला अट्टहास करता हुआ बोला।
आदित्य ने इस मौके को नहीं गंवाया।
तलवार को आग में तपाया और पूरे ज़ोर से नेवला के सीने में घुसेड़ दिया।
"तेरा अंत तेरे ही खून के समय में होगा यही लिखा है तेरी किस्मत में!"
नेवला चीखा, फड़फड़ाया, और उसकी त्वचा जलने लगी।
"मैं… अमर था… मुझे कोई नहीं…"
लेकिन उसकी आवाज़ अधूरी रह गई।
वह जलकर राख बन गया। उसकी राख की आग से तेज अग्नि की लपटे उड़ने लगी।
अगले दिन पहली बार सूरज की किरणों ने रतनपुर को छुआ।
लोग लौटने लगे, खिड़कियां खुलीं, मंदिर में घंटियाँ बजीं।
गांव में अब डर नहीं था अब कहानी थी, उस योद्धा की जिसने मृत्यु से लड़कर जीवन को लौटाया।
आदित्य ने जब गांव छोड़ा, तो मंदिर के पास की लड़की खड़ी मिली "दिया" उसने आदित्य से कहा "क्या मुझे अपने साथ नहीं ले जाएंगे"
"सही कहो तो मैं तुम्हे ही लेना आ रहा था दिया क्यों कि अब मुझे तुम्हारी आदत लग गई है"
आदित्य ने प्यार भरी निगाहों से दिया की और देखा और दिया ने शर्म के मारे धीमी मुस्कान के साथ अपना सर नीचे कर लिया।
तभी एक दीवार पर दिया ने कुछ देखा:
"आदि वो देखो....
"राख हमेशा राख नहीं रहती… अगर उस पर खून गिर जाए…"
उसने मुस्कराकर दीवार को देखा और तलवार संभाल ली।
"अगर वो लौटेगा… तो मैं भी लौटूंगा...."
वैंपायर मरते है लेकिन कहानियाँ कभी मरती नहीं…
कभी एक आत्मा में, तो कभी एक खून की बूंद में…
डर छिपा होता है… साँस लेता है…और मौका मिलते ही…
फिर लौट आता है।