Chhaya Pyaar ki - 10 in Hindi Women Focused by NEELOMA books and stories PDF | छाया प्यार की - 10

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छाया प्यार की - 10

(विशाल को CCTV से टीना की साजिश का पता चला और उसने छाया से माफी माँगने की ठानी, पर छाया ने स्पष्ट कर दिया कि अब उसका उससे कोई संबंध नहीं। टीना टूट गई, आग्रह चुपचाप उसे घर छोड़ आया। डिस्को में भी विशाल छाया को याद करता रहा। अगले दिन कॉलेज में विशाल और छाया की निगाहें टकराईं, पर बात नहीं हुई। वॉशरूम से लौटते समय डैनी ने छाया से बदतमीज़ी की, जिसे विशाल ने रोक दिया। माहौल हल्का हुआ, लेकिन आग्रह का अचानक आया कॉल सुनकर विशाल का चेहरा बदल गया और वह कॉलेज छोड़कर चला गया, जबकि छाया पढ़ाई में मग्न रही।अब आगे)

विशाल की प्यार भरी नजर

नित्या क्लास में अच्छा प्रदर्शन कर रही थी और टीचर्स उससे खुश थे। आज अचानक गौरव उसके पास आया। उसने हैरानी से पूछा –

"तुम विपिन अंकल और गौरी आंटी की बेटी हो न?"

नित्या मुस्कुराई – "हाँ, लेकिन तुम मेरे पेरेंट्स को कैसे जानते हो?"

गौरव ने कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप चला गया। नित्या हैरान रह गई—कालेज में एक अनजान लड़का उसके माता-पिता को कैसे जानता है? तभी क्लास में सर आ गए और 'भारतेन्दु हरिश्चंद्र' पर लेक्चर शुरू हुआ। गौरव बार-बार नित्या को देख रहा था, और नित्या भी अनजाने में उसकी तरफ देख रही थी। नित्या ने सोचा—जब गौरव को सही लगेगा, वह खुद ही बताएगा। शायद वह मां-बाबूजी के किसी दोस्त का बेटा हो।

गौरव ने फिर एक बार नित्या को देखा तो नित्या मुस्कुरा दी। वह झेंप गया और नजरें झुका लीं। नित्या अपनी सीट से उठी तो गौरव को लगा, वह उसके पास आ रही है, लेकिन वह पास बैठे विनोद के पास जाकर बोली –

"मेरा नोटबुक देना।"

"अरे हाँ, ये लो," विनोद ने मुस्कुराते हुए कहा।

---

उधर विशाल तेज़ी से कार चलाते हुए सीधे लाइफ केयर हॉस्पिटल पहुँचा। रिसेप्शन पर उसने टीना खुराना का नाम बताया और दिए गए रूम के बाहर जा पहुँचा। बाहर खुराना अंकल परेशान खड़े थे और पूनम खुराना रो रही थीं। विशाल ने अंकल के कंधे पर हाथ रखा –

"आप ठीक हैं न? ये सब कैसे हो गया?"

अंकल ने बेबसी से हाथ हिलाया –

"पता नहीं, यकीन नहीं हो रहा कि हमारी बेटी ने अपनी जान लेने की कोशिश की।"

पूनम खिड़की से झाँककर टीना को देखने लगीं और रोते हुए बोलीं –

"हमसे ऐसी क्या गलती हो गई कि उसने अपने मन की बात हमसे नहीं कही और इतना बड़ा कदम उठा लिया?"

विशाल ने आंटी के आँसू पोंछते हुए कहा –

"रोइए मत, टीना को कुछ नहीं होगा।"

तभी उसकी नजर आग्रह पर पड़ी। आग्रह के चेहरे पर दर्द साफ था। विशाल ने उसे गले लगा लिया। आग्रह बोला –

"देख भाई, टीना का प्यार तो मैं नहीं पा सका, पर उसे हँसते हुए देखना ही मेरे लिए काफी था। अब समझ नहीं आ रहा क्या करूँ।"

उसने हाथ जोड़कर कहा – "प्लीज़, उसे माफ़ कर दे।"

विशाल ने फिर उसे गले लगा लिया।

थोड़ी देर में डॉक्टर बाहर आए –

"अब वह खतरे से बाहर है।"

सबने राहत की सांस ली। अंदर जाकर पूनम ने टीना को डाँटा –

"दुबारा ऐसा सोचना भी मत।"

और फिर उसे गले लगा लिया। विशाल को देखकर टीना ने हाथ बढ़ाया –

"क्या तुमने मुझे माफ़ कर दिया?"

विशाल मुस्कुराया – "हाँ।"

टीना ने आग्रह को देखते हुए कहा – "हम दोनों अभी भी दोस्त हैं न?"

विशाल ने हँसते हुए आग्रह की तरफ आँख मारी – "हम तीनों दोस्त हैं।"

तीनों हँसते हुए गले मिले।

नर्स ने कहा – "पेशेंट को आराम की ज़रूरत है।" आग्रह रुकना चाहता था, और विशाल भी, लेकिन नर्स ने एक को ही अनुमति दी। आग्रह बोला –

"अंकल-आंटी सुबह आ जाएंगे, तुम घर जाओ।"

विशाल चुपचाप बाहर आ गया।

---

घर पहुँचकर मां के पूछने पर उसने बस इतना कहा – "टीना ठीक है" और कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर लिया। वह सोच रहा था, काश उसने उसका फोन उठा लिया होता तो शायद ये सब न होता। नींद आने से पहले उसने किसी को मैसेज किया और सो गया।

---

रात को छाया को नींद नहीं आ रही थी। नित्या ने करवट में ही पूछा –

"क्या हुआ, सो नहीं रही?"

छाया ने बहाना बनाया – "एग्ज़ाम का टेंशन है।"

नित्या मुस्कुराई – "अरे पढ़ाई तो तू कर रही है, ज़्यादा टेंशन मत ले।"

दोनों में हंसी-मज़ाक हुआ, लेकिन असल में छाया को डैनी की बातें परेशान कर रही थीं—उसे कैसे पता चला कि वो लाइब्रेरी में विशाल के साथ बंद हुई थी? वह सोचने लगी—ये बात तो सिर्फ पांच लोगों को पता थी—वो खुद, काशी, विशाल, आग्रह और टीना।

अब छाया को शक हो रहा था—कहीं ये सब किसी के पछतावे का नाटक तो नहीं?

अगली सुबह छाया काशी के साथ कॉलेज पहुँची। उसकी नज़रें बार-बार इधर-उधर घूम रही थीं, जैसे किसी को तलाश रही हो। काशी ने भी जानबूझकर इधर-उधर देखने का नाटक किया और मुस्कुराते हुए मुंह पर हाथ रखकर बोली –"आज सुबह-सुबह ही किसी को देखने का मन हो रहा है लगता है।"

छाया ने तुरंत कहा –"मैं विशाल को नहीं ढूँढ रही।"

काशी ने कमर पर हाथ रखते हुए शरारत से जवाब दिया –"लो, मैंने उसका नाम कब लिया?"

छाया ने उसे अनसुना किया और आगे बढ़ गई। क्लास पहुँची ही थी कि बेल बज गई। काशी ने मौका पाते ही फिर पूछा –"तूने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया।"

लेकिन इतने में चिराग सर आ गए और पढ़ाई शुरू हो गई। कुछ पीरियड्स के बाद दोनों मैदान में बैठकर पढ़ रही थीं। तभी छाया की नज़र सामने खड़े विशाल पर पड़ी। उसे देखते ही वह उठी और उसकी ओर बढ़ने लगी। काशी चुपचाप वहीं बैठी, उसकी हर हरकत देखती रही।

छाया पास जाकर इधर-उधर देखने लगी और फिर विशाल को कोने में ले जाकर धीरे से बोली –"क्या दो मिनट बात कर सकती हूँ?"

वह बास्केटबॉल की प्रैक्टिस के लिए जा रहा था। उसने सहजता से कहा –"हाँ, बोलो… क्या हुआ?"

विशाल ने महसूस किया कि छाया की आवाज़ में नाराज़गी थी। छाया ने बिना घुमाए-फिराए पूछ लिया –"लाइब्रेरी में हमारे बंद होने की बात तुमने किस-किस को बताई है?"

विशाल को यह सवाल अच्छा नहीं लगा। उसने उसकी आँखों में देखते हुए शांत लहजे में कहा –"किसी को भी नहीं।"

वह आगे बढ़ने ही वाला था कि छाया ने उसका हाथ पकड़ लिया –"तो फिर ये बात डैनी को कैसे पता चली?"

छाया के इस स्पर्श से विशाल को अजीब-सा सुकून मिला। वह लंबे समय से खुद को अकेला महसूस कर रहा था—माँ से दूर, टीना से उसकी हरकतों के कारण दूरी, टीना के सुसाइड अटेम्प्ट का अपराधबोध, आग्रह का अपनी दोस्त की हालत से टूट जाना, और सबसे ऊपर… छाया के साथ किया गलत बर्ताव। इन सबने उसे भीतर तक थका दिया था।

उसने धीरे से छाया के दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए। छाया थोड़ा घबरा गई, खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन उसकी पकड़ मज़बूत थी। वह उसे एकटक देख रहा था और छाया नज़रें चुरा रही थी। उसका नजरें चुराना विशाल को अच्छा नहीं लगा, लेकिन कुछ पल बाद उसे होश आया और उसने तुरंत उसके हाथ छोड़ दिए।

हाथ छूटते ही छाया तेज़ी से वहाँ से दूर चली गई। विशाल भी समझ नहीं पा रहा था कि उसने अभी-अभी क्या किया, लेकिन उस छोटे से पल ने उसकी सारी थकान जैसे मिटा दी थी। वह हल्के से मुस्कुराया और बास्केटबॉल मैदान की ओर बढ़ गया।

इस बीच, आग्रह उसे मैसेज करके टीना की तबीयत की अपडेट देता रहा—"टीना ठीक है"इन चार शब्दों ने उसे राहत दी। और छाया के साथ बिताया वह पल… वह तो जैसे उसके भीतर फिर से जीवन भर गया हो।

उधर, छाया क्लास की ओर लौट रही थी। पीछे से काशी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर शरारत से कहा –"प्यार मिलते ही दोस्त को भूल गई!"

तभी छाया को याद आया कि वह काशी को मैदान में छोड़ आई थी। उसने मुस्कुरा कर उसे देखा, लेकिन कुछ बोली नहीं। काशी बार-बार विशाल का नाम लेकर उसे चिढ़ाती रही और छाया चुपचाप सुनती रही।

काशी खुश थी कि उसकी दोस्त को आखिरकार प्यार मिल रहा है। लेकिन छाया… उसे सच बताने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी—कि अब उसे विशाल से कोई उम्मीद नहीं। उसे काशी में वही मासूम उम्मीद नज़र आ रही थी जो कभी नित्या और प्रमोद के रिश्ते के लिए वह खुद रखती थी।

1. टीना सच में बदल गई थी या डैनी के साथ मिलकर कुछ बड़ा खेल रच रही थी?

2. क्या गौरव का नित्या से दूरी बनाना सिर्फ उसका स्वभाव है या उसके पीछे कोई गुप्त मंशा छिपी है?

3. विशाल का छाया के प्रति झुकाव क्या सिर्फ कुछ पल का एहसास था या यह उनकी कहानी का पहला कदम है?

आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए "छाया प्यार की"‌