खामोश चेहरों के पीछे – पार्ट 1 : एक अनजान चिठ्ठी
गंगू दौलतपुर गाँव वैसे तो शांत और साधारण था, लेकिन उसकी खामोशी में भी कई अनकहे किस्से दबे थे। सुबह-सुबह खेतों से मिट्टी की खुशबू उठती और बैलों की घंटियों की टनटनाहट गूंजती, तो लगता जैसे जिंदगी हमेशा ऐसे ही चलती रहेगी। मगर उस दिन की सुबह ने मेरी जिंदगी का रास्ता बदल दिया।
मैं, राघव, एक साधारण किसान परिवार का बेटा। मेरी दुनिया खेत, किताबें और गाँव की गलियों तक ही सीमित थी। लेकिन उस सुबह, डाकिया जब मेरे दरवाज़े पर आया, उसके चेहरे पर एक अजीब-सी मुस्कान थी।
“राघव, तेरे नाम की चिट्ठी आई है… पर भेजने वाले का नाम नहीं है,” उसने कहा और मेरे हाथ में एक पुराना, पीला लिफाफा थमा दिया।
लिफाफे की हालत देखकर लग रहा था जैसे ये सालों से कहीं दबा पड़ा हो। कोनों पर नमी, जगह-जगह दाग, और पुरानी कागज़ की सी महक। मैंने सावधानी से उसे खोला। अंदर एक ही पन्ना था— और उस पर सिर्फ एक लाइन लिखी थी:
"अगर सच्चाई जाननी है तो आज रात पुराने कुएं पर आओ।"
मेरे शरीर में ठंडी लहर दौड़ गई। पुराने कुएं का नाम सुनते ही बचपन में सुनी कहानियाँ याद आ गईं — गाँव में कहा जाता था कि वहाँ रात में जाने वाला वापस नहीं आता। पर “सच्चाई” शब्द ने मेरे मन में एक अजीब खिंचाव पैदा कर दिया। कौन सी सच्चाई? और मुझे ही क्यों बुलाया गया?
पूरा दिन मेरे लिए जैसे रुक-सा गया। खेत में काम करते हुए भी ध्यान उसी चिट्ठी पर अटका था। कभी लगता ये मज़ाक है, तो कभी लगता कोई मुझे फँसाना चाहता है।
शाम ढली, आसमान में हल्का कोहरा छा गया। घर में सब लोग सो गए, लेकिन मेरी आँखों से नींद गायब थी। रात करीब नौ बजे, मैंने चुपचाप टॉर्च और मफलर लेकर घर से निकलने का फैसला किया।
गाँव की गलियाँ सुनसान थीं। ठंडी हवा पत्तों को हिला रही थी और कहीं दूर कुत्तों के भौंकने की आवाज़ आ रही थी। मेरे कदम अपने आप धीमे हो गए, जैसे हर मोड़ पर कोई अदृश्य नज़र मुझे देख रही हो।
पुराना कुआँ गाँव के किनारे था, जहाँ अब कोई नहीं जाता था। वहाँ पहुँचते ही हवा और ठंडी हो गई। कुएं के चारों ओर जंगली घास और सूखे पेड़ थे।
अचानक, मेरी नज़र कुएं के किनारे रखी एक लाल कपड़े में लिपटी चीज़ पर पड़ी। मैं सावधानी से आगे बढ़ा। पास जाकर देखा तो वो एक पुरानी डायरी थी, जिसके पन्ने पीले और किनारे फटे हुए थे।
मैंने पहला पन्ना खोला। उस पर लिखा था—
"राघव, अगर ये डायरी तुम्हारे हाथ में है तो समझो सच्चाई का पहला दरवाज़ा खुल चुका है। तुम्हारा अतीत वैसा नहीं है जैसा तुमने सोचा है। तुम्हारे परिवार की कहानी में ऐसे राज हैं, जिन्हें जानने के बाद तुम्हारी जिंदगी बदल जाएगी।"
मेरे हाथ काँपने लगे। मैं आगे पढ़ने ही वाला था कि अचानक पीछे से किसी के कदमों की आहट आई।
मैंने मुड़कर देखा — धुंध में एक काला साया मेरी तरफ बढ़ रहा था। उसकी चाल धीमी, मगर भारी थी।
“क… कौन है?” मेरी आवाज़ काँप गई।
साया रुक गया। फिर एक भारी आवाज़ गूंजी—
"अगर सच जानना है, तो मेरी बात मानो… वरना बहुत देर हो जाएगी।"
मैंने टॉर्च उस दिशा में घुमाई, लेकिन जैसे ही रोशनी पहुँची… वो साया गायब हो चुका था।
मेरी धड़कन इतनी तेज़ हो चुकी थी कि कानों में सिर्फ उसका शोर सुनाई दे रहा था। मैंने तुरंत डायरी को जैकेट में छुपाया और घर की तरफ दौड़ पड़ा।
लेकिन मैं नहीं जानता था… कि ये तो बस शुरुआत है।
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(पार्ट 1 समाप्त – आगे की कहानी में सच्चाई का पहला दरवाज़ा खुलेगा। पार्ट 2 जल्द देखो।
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अगर आप चाहो तो मैं पार्ट 2 – “अतीत का दरवाज़ा” भी लिख दिया है अगले में जाकर देख लो,,,,,,,,,