Part 1 – डर की सड़क
(कहानी: “खून की प्यास – सुनसान सड़क का श्राप”)
महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव का नाम था कुंडवा।
गाँव छोटा था, लेकिन उसका नाम आस-पास के कई इलाकों में मशहूर था — किसी अच्छे कारण से नहीं, बल्कि डर की वजह से।
गाँव से करीब एक किलोमीटर दूर एक पक्की सड़क थी, जिसे लोग बस "सुनसान सड़क" कहते थे।
उस सड़क के दोनों तरफ इतने घने और पुराने पेड़ थे कि दिन के उजाले में भी वहाँ अंधेरा छाया रहता था।
हवा जब चलती तो पेड़ों की टहनियां एक-दूसरे से टकराकर ऐसी आवाज़ करतीं मानो कोई फुसफुसा रहा हो।
रात में तो ये सड़क और भी भयानक हो जाती — इतनी शांत कि अपने दिल की धड़कन तक सुनाई दे।
गाँव के बुज़ुर्ग बताते थे कि कभी अंग्रेज़ों के ज़माने में यहाँ एक क़त्ल हुआ था, और तब से इस सड़क पर भटकती आत्माएं रहती हैं।
कहते हैं, जो भी यहाँ से रात को गुज़रता, वो वापस नहीं लौटता।
कई लोगों ने इस सड़क पर लाल आँखें देखी थीं, कुछ ने अजीब आवाजें सुनीं थीं, और कुछ ऐसे भी थे जो एक बार इस रास्ते पर गए… और फिर कभी नहीं मिले।
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गाँव का डर
कुंडवा में लोग सावधानी से रहते थे।
सूरज ढलते ही सभी अपने-अपने घर में दुबक जाते।
बच्चों को घर से बाहर खेलना मना था, और गाँव के नौजवान भी इस सड़क के पास जाने से कतराते थे।
लेकिन पिछले कुछ महीनों से डर और भी बढ़ गया था।
क्योंकि अब गायब होने की घटनाएँ बढ़ने लगी थीं —
पहले महीने में दो-तीन लोग ग़ायब हुए,
फिर अगले महीने में पाँच-छह…
और अब तो लगभग हर हफ़्ते किसी न किसी का नाम गाँव के ‘ग़ायब लोगों’ की सूची में जुड़ जाता।
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रामकिशन और शांता
गाँव में एक मज़दूर जोड़ा रहता था — रामकिशन और उसकी पत्नी शांता।
रामकिशन मेहनती और सीधा-सादा इंसान था।
सुबह सूरज उगने से पहले ही ईंट-भट्ठे या खेतों पर मज़दूरी के लिए चला जाता और देर रात तक काम करता।
शांता घर पर अकेली रहती।
वो चुपचाप रहने वाली औरत थी, किसी से ज्यादा बात नहीं करती, लेकिन उसकी आँखों में कुछ ऐसा था कि लोग उसे देखते ही असहज महसूस करते।
गाँव में बच्चों के ग़ायब होने की घटनाएँ तेज़ हुईं, और अफवाहें फैलने लगीं कि इसका कुछ न कुछ संबंध शांता से है।
कई लोगों ने दावा किया कि उन्होंने आख़िरी बार बच्चों को शांता के घर के पास खेलते देखा था।
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गाँव वालों का सामना
एक दिन, ग़ुस्से और डर से भरे गाँववाले रामकिशन के घर पहुँच गए।
आगे-आगे बुज़ुर्ग धरमपाल थे।
धरमपाल ने सख़्त आवाज़ में कहा –
"रामकिशन, तेरी औरत हमारे बच्चों को गायब कर रही है। सच बता, वरना अच्छा नहीं होगा!"
रामकिशन चौंक गया –
"क्या बकवास कर रहे हो? मेरी शांता ऐसी नहीं है!"
धरमपाल ने आँखें तरेरीं –
"तो बता, इतने बच्चों के गायब होने के बाद भी तूने कभी सोचा ये सब कौन कर रहा है?"
रामकिशन ने गुस्से में कहा –
"मेरी बीवी पर बेकार का इल्जाम मत लगाओ। तुम्हारे पास कोई सबूत है? नहीं है न… तो निकल जाओ यहाँ से!"
गाँववाले आपस में बड़बड़ाते हुए चले गए, लेकिन उनके शक का साया अब और गहरा हो गया।
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डर की रफ्तार
दिन बीतते गए और ग़ायब होने की घटनाएँ और बढ़ गईं।
अब तो हफ़्ते में दो-तीन नहीं, बल्कि लगभग रोज़ किसी न किसी का नाम लापता लोगों की सूची में जुड़ रहा था।
गाँव में सन्नाटा पसर गया था।
लोग शाम ढलते ही दरवाज़े बंद कर लेते।
लेकिन एक रात, गाँव के युवक सुरेश को घर लौटते समय कुछ अजीब नज़र आया।
सुनसान सड़क की तरफ से एक परछाई हिल रही थी।
जब वो पास पहुँचा, तो उसने देखा —
शांता… अपनी गोद में एक बच्चा लिए… सड़क की तरफ बढ़ रही थी।
सुरेश के हाथ-पाँव ठंडे पड़ गए।
लेकिन हिम्मत जुटाकर उसने जेब से मोबाइल निकाला और जल्दी से एक फोटो खींच ली।
फोटो धुंधली थी, लेकिन उसमें साफ दिख रहा था कि शांता रात के समय एक बच्चे को लेकर सड़क की ओर जा रही है।
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फोटो का खुलासा
अगले दिन सुबह, सुरेश ने गाँववालों को इकट्ठा किया और वो फोटो सबको दिखा दी।
गाँव में अफरा-तफरी मच गई।
कुछ ने कहा कि अब तो सबूत मिल गया, कुछ ने कहा कि शायद ये फोटो नकली है।
लेकिन इस बार, लोग चुप नहीं बैठे।
वे सब रामकिशन के घर की ओर चल पड़े।
धरमपाल ने दरवाज़े पर जोर से दस्तक दी —
"रामकिशन! बाहर निकल… तेरी बीवी के बारे में हमें सच पता चल गया है!"
रामकिशन दरवाज़ा खोलते ही हैरान रह गया।
धरमपाल ने मोबाइल उसके सामने कर दिया —
"ये देख… तेरी शांता कल रात इस बच्चे को लेकर कहाँ जा रही थी?"
रामकिशन की आँखें फोटो पर टिक गईं।
उसका चेहरा पीला पड़ गया।
वो कुछ कह भी नहीं पाया… बस फोटो को घूरता रह गया।
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क्लिफहैंगर:
गाँववालों की भीड़ रामकिशन के दरवाज़े पर खड़ी थी।
चारों ओर तनाव था, और हवा में डर का अजीब-सा वजन महसूस हो रहा था।
रामकिशन ने फोटो से नज़र उठाई… और उसकी आँखों में कुछ ऐसा था, जो किसी ने पहले कभी नहीं देखा था।
"आज रात… मैं खुद सच देखूंगा।"