dreams higher than the sky in Hindi Motivational Stories by mood Writer books and stories PDF | आसमान से भी ऊँचे सपने

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आसमान से भी ऊँचे सपने

राजस्थान के छोटे से गाँव बानसपुरा में सुबह की पहली धूप खेतों पर पड़ती और मिट्टी की महक से हर कोई जाग उठता। इसी गाँव में अभय चौहान अपने माता-पिता और छोटी बहन के साथ रहता था। उसका पिता, गंगाराम चौहान, एक साधारण किसान था, जो साल में केवल दो फसलें उगाता। पैसों की कमी हमेशा रहती थी, लेकिन घर में उम्मीद कभी कम नहीं होती थी। अभय बचपन से ही आसमान की ओर आकर्षित रहता। जब भी कोई हवाई जहाज़ ऊपर से गुजरता, वह खेत की मेड़ पर खड़ा होकर उसकी उड़ान देखता और मन ही मन सोचता, “कभी मैं भी वहां जाऊँगा।” एक दिन उसने पिता से पूछा, “बाबा, लोग आसमान में कैसे जाते हैं?” पिता मुस्कुराए और बोले, “वो पायलट होते हैं, बड़े पढ़े-लिखे और अमीर लोग।” मासूम अभय ने दृढ़ता से कहा, “तो मैं भी पायलट बनूंगा।” पिता की आंखों में हल्की चिंता झलक गई, पर उन्होंने कुछ नहीं कहा, क्योंकि उन्होंने देखा कि उनके बेटे की आंखों में सपनों की चमक थी।

अभय पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहा। स्कूल में शिक्षक उसकी लगन देखकर हैरान रहते। विज्ञान के शिक्षक जब क्लास में हवाई जहाज़ के बारे में बताते, अभय लगातार सवाल करता और हर उत्तर को खुद किताबों में ढूंढता। शाम को वह खेत की मेड़ पर बैठकर पढ़ता, जैसे भविष्य की उड़ान की तैयारी कर रहा हो। उसकी छोटी बहन भी कभी-कभी उसके पास आकर सवाल पूछती, और अभय उसे भी सपनों के बारे में बताता।

लेकिन सपना कभी आसान नहीं होता। पायलट ट्रेनिंग की फीस लाखों में थी और गंगाराम का सालभर का मेहनताना भी उसका एक छोटा हिस्सा था। अभय ने हार मानने से इंकार किया। उसने 10वीं और 12वीं में टॉप किया, ताकि स्कॉलरशिप मिल सके। इसके बाद वह शहर गया। शहर का जीवन उसके लिए नया और कठिन था। हॉस्टल का छोटा कमरा, दिन में पार्ट-टाइम काम और रातभर की पढ़ाई ने उसे थका दिया, लेकिन उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उसने अखबार बांटा, चाय की दुकान पर मदद की, लेकिन हमेशा अपनी पढ़ाई और लक्ष्य को प्राथमिकता दी।

पहली बार NDA परीक्षा में अभय सिर्फ दो नंबर से फेल हुआ। वह टूट गया और तीन दिन तक कमरे में बंद रहा। लेकिन चौथे दिन पिता का फोन आया। पिता ने कहा, “बेटा, हार का मतलब रुकना नहीं होता।” इन शब्दों ने उसके भीतर फिर से ऊर्जा भर दी। उसने तय किया कि चाहे जो भी हो, वह हार मानने वाला नहीं है। उसने और कड़ी मेहनत शुरू की। अगले साल फिर से NDA परीक्षा दी और इस बार सफलता हासिल की। उसे हैदराबाद एयर फ़ोर्स ट्रेनिंग सेंटर भेजा गया। ट्रेनिंग आसान नहीं थी। कठोर शारीरिक अभ्यास, सख्त अनुशासन और कॉकपिट की पहली पकड़ ने उसे चुनौती दी। पहली बार जब उसने हवाई जहाज़ का कंट्रोल संभाला, उसके हाथ कांप रहे थे, लेकिन जैसे ही जहाज़ ने उड़ान भरी, वह महसूस कर सका कि अब उसका सपना सच की तरफ बढ़ रहा है।

छह महीने की ट्रेनिंग के बाद अभय ने अपनी पहली सोलो फ्लाइट पूरी की। रनवे पर उतरते ही उसने आसमान की ओर देखा और मन ही मन कहा, “बाबा, मैंने उड़ना सीख लिया।” उसने तुरंत गाँव को फोन किया। माँ की आंखों में खुशी के आँसू थे और पिता की आवाज़ में गर्व था। उन्होंने महसूस किया कि उनका बेटा अब सिर्फ उनके खेत का लड़का नहीं, बल्कि आकाश का सितारा बन चुका था।

समय बीतता गया और अभय एयर फ़ोर्स का सफल पायलट बन गया। उसने इंटरनेशनल पायलट लाइसेंस भी हासिल किया और कमर्शियल एयरलाइंस में काम करने लगा। पहली बार जब वह दिल्ली से न्यूयॉर्क की फ्लाइट पर बैठा और सूर्योदय को बादलों के बीच से देखा, तो उसने महसूस किया कि मेहनत, संघर्ष और कभी हार न मानने का जज्बा ही उसे यहाँ तक लेकर आया है। उसने मन ही मन सोचा, “सपनों का खेत हमेशा सूखा नहीं रहता। मेहनत की बारिश हो तो हर सपना फसल बनकर खिलता है।”

अभय की कहानी सिर्फ एक सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह बताती है कि चाहे आप किसी भी परिस्थितियों में हों, मेहनत, लगन और आत्म-विश्वास से कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है। उसने साबित कर दिया कि गरीबी, कठिनाई और असफलताएँ सिर्फ रास्ते की चुनौतियाँ हैं, अगर आप हार न मानें। आज अभय ना सिर्फ अपने गाँव का नाम रोशन कर रहा है, बल्कि हर उस बच्चे के लिए प्रेरणा बन गया है, जो अपने सपनों को देखने और उन्हें सच करने की हिम्मत रखता है।

गाँव के बच्चों को अब वह बताता है कि सपने देखना और उन्हें सच करने के लिए मेहनत करना जीवन का सबसे बड़ा नियम है। उसकी कहानी सुनकर कई बच्चे अपने खेतों और स्कूलों से निकलकर बड़े सपनों की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। अभय अब खुद भी गाँव लौटता है, बच्चों को पढ़ाता है और उनके सपनों को उड़ान देने की प्रेरणा देता है।

कभी-कभी अभय खेत में खड़ा होकर आसमान की तरफ देखता है। वह जानता है कि उसी आसमान ने उसे बुलाया था, और उसने सिर्फ अपने हौसले और मेहनत से उसे छू लिया। वह कहता है, “अगर आपने कभी सपना देखा है, तो उसे कभी मत छोड़ो। चाहे रास्ता कठिन हो, चाहे मंज़िल दूर हो, अपने हौसले और लगन से आप आसमान तक पहुंच सकते हैं।”

अभय की कहानी हमें यह सिखाती है कि संघर्ष और मेहनत से ही सपनों की उड़ान संभव है। असफलताएँ बस हमारी ताकत बढ़ाती हैं और हर छोटा कदम हमें मंज़िल के करीब ले जाता है। आज बानसपुरा के बच्चे न सिर्फ खेतों में काम करते हैं, बल्कि आसमान की ओर देखते हैं और सोचते हैं कि एक दिन वे भी उड़ेंगे।