Narendra Modi Biography - 3 in Hindi Biography by mood Writer books and stories PDF | Narendra Modi Biography - 3

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Narendra Modi Biography - 3


भाग 3 – युवावस्था और संन्यास की तलाश

प्रस्तावना

हर महान व्यक्ति की यात्रा में एक ऐसा मोड़ आता है, जब वह जीवन के असली उद्देश्य की तलाश में निकल पड़ता है। नरेंद्र मोदी का जीवन भी इससे अछूता नहीं रहा। वडनगर की गलियों से निकलकर किशोरावस्था पार करने के बाद उनके भीतर गहरी जिज्ञासा और बेचैनी थी – “मैं क्यों हूँ? जीवन का असली मकसद क्या है? क्या मैं समाज और राष्ट्र के लिए कुछ बड़ा कर सकता हूँ?”
यह बेचैनी ही उन्हें संन्यास की ओर खींच लाई।


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किशोर से युवा होने की यात्रा

1960 का दशक भारत के लिए बड़े बदलावों का दौर था। आज़ादी को ज़्यादा समय नहीं हुआ था। देश गरीबी, बेरोजगारी और अशिक्षा से जूझ रहा था। ऐसे समय में एक गरीब परिवार का युवा, जिसने बचपन से ही संघर्ष और अनुशासन देखा हो, स्वाभाविक रूप से समाज और देश की स्थिति से प्रभावित होता है।

नरेंद्र मोदी की किशोरावस्था इन्हीं सवालों में बीती।

वे साधारण पढ़ाई करते हुए भी समाज और राष्ट्र की समस्याओं पर ध्यान देते।

बचपन से RSS शाखा में जाना और NCC जैसी गतिविधियों में भाग लेना उनके मन में सेवा और अनुशासन का बीज बो चुका था।

लेकिन भीतर से वे और गहरी तलाश में थे – वे जानना चाहते थे कि उनका जीवन केवल परिवार या छोटे व्यवसाय तक सीमित क्यों हो?



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विवाह और उससे दूरी

कम उम्र में नरेंद्र मोदी का विवाह जसोदाबेन से हुआ। यह उस दौर की परंपरा थी कि लड़कों की शादी जल्दी कर दी जाती थी। लेकिन नरेंद्र मोदी का मन गृहस्थ जीवन में रम नहीं पाया।

उनके भीतर संन्यास और तपस्या का आकर्षण था। वे बार-बार सोचते कि उनका जीवन कुछ और करने के लिए बना है। यही कारण था कि विवाह के बाद भी उन्होंने गृहस्थ जीवन नहीं अपनाया और धीरे-धीरे परिवार से दूरी बनानी शुरू की।


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घर छोड़ने का निर्णय

लगभग 17-18 वर्ष की उम्र में नरेंद्र मोदी ने घर छोड़ने का निर्णय लिया। यह आसान कदम नहीं था। एक तरफ परिवार की जिम्मेदारियाँ, माता-पिता की उम्मीदें और सामाजिक बंधन थे, दूसरी ओर उनके भीतर उमड़ता संन्यास और सेवा का ज्वार।

लेकिन मोदी जी ने कठिन रास्ता चुना। उन्होंने वडनगर को पीछे छोड़ दिया और संन्यास की तलाश में निकल पड़े।


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हिमालय की ओर यात्रा

नरेंद्र मोदी की यात्रा सबसे पहले उन्हें हिमालय की ओर ले गई। वे ऋषिकेश और उत्तराखंड के अन्य इलाकों में घूमे। यहाँ उन्होंने साधु-संन्यासियों और तपस्वियों के बीच समय बिताया।

हिमालय के उस शांत और कठोर वातावरण ने उनके मन को गहराई से प्रभावित किया।

वे साधु-संतों की सेवा करते।

ध्यान और योग की साधना में समय बिताते।

प्रकृति की गोद में आत्मचिंतन करते।


कहा जाता है कि उन्होंने महीनों तक गुफाओं और आश्रमों में रहकर आत्म-अन्वेषण किया।


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रामकृष्ण मिशन और बेलूर मठ

नरेंद्र मोदी की आध्यात्मिक खोज उन्हें पश्चिम बंगाल तक ले गई। वे रामकृष्ण मिशन और बेलूर मठ पहुँचे। यहाँ स्वामी विवेकानंद के विचारों का गहरा प्रभाव उन पर पड़ा।

स्वामी विवेकानंद का संदेश –
"जागो, उठो और लक्ष्य प्राप्ति तक रुको मत"
नरेंद्र मोदी के जीवन का आधार बन गया।

यहाँ उन्होंने सेवा और राष्ट्रनिर्माण को साधना का सर्वोच्च रूप माना। यह अनुभव निर्णायक था, जिसने उन्हें सिखाया कि वास्तविक संन्यास पहाड़ों में नहीं, बल्कि समाज के बीच रहकर सेवा करने में है।


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आत्म-अन्वेषण की अवधि

यह यात्रा नरेंद्र मोदी के जीवन का सबसे अनूठा अध्याय है। वे जगह-जगह घूमे, तपस्वियों और समाजसेवियों से मिले, अलग-अलग तरह की जीवनशैली देखी।

कहीं वे साधुओं के साथ तपस्या करते।

कहीं वे पुस्तकालयों में इतिहास और आध्यात्मिक ग्रंथ पढ़ते।

कहीं वे गरीबों की सेवा में लग जाते।


इस दौरान उन्होंने अपने भीतर स्पष्ट किया कि उनका मार्ग केवल व्यक्तिगत मुक्ति या संन्यास नहीं हो सकता। उनका मार्ग राष्ट्र सेवा है।


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RSS में वापसी

कई वर्षों की यह आध्यात्मिक यात्रा उन्हें फिर से गुजरात वापस ले आई। वे अब पहले जैसे नरेंद्र मोदी नहीं थे। वे अधिक परिपक्व, अनुशासित और स्पष्ट दृष्टि वाले युवा बन चुके थे।

उन्होंने RSS में पूर्णकालिक कार्यकर्ता (प्रचारक) बनने का निर्णय लिया।
प्रचारक का जीवन बहुत साधारण होता है –

कोई संपत्ति नहीं,

कोई व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा नहीं,

केवल राष्ट्र और संगठन के लिए समर्पित जीवन।


नरेंद्र मोदी ने इसे पूरे मन से स्वीकार किया।


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आत्म-अनुशासन और सेवा का मार्ग

अब नरेंद्र मोदी का जीवन पूरी तरह अनुशासन और सेवा को समर्पित हो गया। वे साधारण कपड़े पहनते, सादगी से रहते और 24 घंटे संगठन और समाज के लिए काम करते।

उनकी तपस्या अब पहाड़ों में नहीं, बल्कि जनता के बीच थी। उनका संन्यास अब व्यक्तिगत मुक्ति के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्र के उत्थान के लिए था।