राघव पहली बार अपने शहर से बाहर पढ़ाई करने जा रहा था। उसका एडमिशन एक नामी कॉलेज में हो गया था और परिवार को उससे बहुत उम्मीदें थीं। स्टेशन पर खड़े होकर जब उसने अपने माता-पिता को अलविदा कहा, तो उसके दिल में हल्की-सी घबराहट भी थी—“पता नहीं वहां दोस्त बनेंगे या नहीं? कोई अपना मिलेगा या नहीं?”
पहले दिन जब वह कॉलेज के गेट से अंदर दाख़िल हुआ, तो सामने एक बिल्कुल अलग दुनिया थी। रंग-बिरंगे पोस्टर, भीड़भाड़, हंसी-ठिठोली करती टोलियां—सब कुछ बहुत नया और थोड़ा डराने वाला भी। क्लासरूम में सीट चुनते हुए उसने महसूस किया कि सब एक-दूसरे से अनजान हैं, लेकिन धीरे-धीरे छोटे-छोटे ग्रुप बनने लगे।
उसी दिन एक इंट्रोडक्शन प्रोजेक्ट दिया गया। इसी बहाने उसकी मुलाकात आयुष, नेहा और सिमरन से हुई। आयुष बहुत ही बिंदास और शरारती स्वभाव का था—पहली ही मुलाकात में उसने सबको हंसाकर माहौल हल्का कर दिया। नेहा का स्वभाव सबसे अलग था, वह बहुत ही दोस्ताना और मददगार थी, और सिमरन तो पूरे क्लास की “स्टडी क्वीन” लग रही थी—साफ बोलना, कॉन्फिडेंस से जवाब देना।
धीरे-धीरे ग्रुप प्रोजेक्ट करते-करते चारों के बीच दोस्ती गहरी होने लगी। कैंटीन में बैठकर चाय और समोसे शेयर करना, लाइब्रेरी में साथ पढ़ना, हॉस्टल के कॉरिडोर में देर रात तक बातें करना—ये सब उनकी रोज़मर्रा की आदत बन गईं।
नेहा अक्सर कहती—
“यार, ये कॉलेज तो बस बहाना है, असली मज़ा तो दोस्तों में है।”
आयुष हमेशा मज़ाक में क्लास बंक कराने का प्लान बनाता और सिमरन हर बार कहती—
“तुम लोग सुधरोगे नहीं, और मैं तुम सबके पीछे ही परेशान होती रहूँगी।”
राघव इन सबको देखकर सोचता—
“अगर ये तीनों नहीं मिले होते, तो शायद मेरी कॉलेज लाइफ इतनी मज़ेदार नहीं बनती।”
शुरुआत में जो डर और अकेलापन था, वह अब दोस्ती की वजह से मिट चुका था। राघव को अब लगने लगा कि उसने अपने “लाइफटाइम फ्रेंड्स” पा लिए हैं।
कॉलेज की लाइफ धीरे-धीरे चारों के लिए एक खूबसूरत सफ़र बन गई थी। सुबह क्लास, दोपहर कैंटीन और शाम को हॉस्टल की मस्ती—हर दिन नई कहानियों से भरा होता। लेकिन कहते हैं ना, हर रिश्ते की असली परख मुश्किल वक्त में ही होती है।
एक दिन प्रोजेक्ट वर्क के दौरान राघव और आयुष में किसी छोटी-सी बात पर बहस हो गई। आयुष का स्वभाव थोड़ा गुस्सैल था और राघव भी अपनी बात पर अड़ा रहता था। बहस इतनी बढ़ गई कि दोनों ने एक-दूसरे से बात करना ही बंद कर दिया।
नेहा और सिमरन बीच-बचाव करतीं, तो दोनों का जवाब एक ही होता—
“मुझे बात ही नहीं करनी उससे!”
धीरे-धीरे उनके बीच की दूरियां बढ़ने लगीं। कैंटीन में जहां पहले चारों साथ बैठते थे, अब दो-दो के ग्रुप में बंट गए थे। हॉस्टल के कॉरिडोर में हंसी-ठिठोली की जगह चुप्पी छा गई थी।
इसी दौरान कॉलेज का वार्षिक फेस्ट आने वाला था। इस बार उनका ग्रुप एक साथ स्टेज पर ड्रामा करने वाला था और सबको उनकी परफॉर्मेंस का बेसब्री से इंतज़ार था। लेकिन राघव और आयुष की अनबन से पूरा प्लान खतरे में था।
नेहा और सिमरन ने कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन ईगो बीच में आ जाता।
नेहा ने एक दिन गुस्से में कहा—
“तुम दोनों बच्चों जैसी हरकत कर रहे हो, अगर तुम्हें हमारी दोस्ती की कद्र ही नहीं है, तो मत आना फेस्ट में।”
उस रात राघव अपने कमरे में बैठा था। उसने अलमारी से निकाली हुई पुरानी डायरी खोली और उसमें लगी उन फोटो को देखा, जिसमें चारों साथ थे—कभी कैंटीन में, कभी लाइब्रेरी में, कभी बस यूं ही हंसते हुए। उसकी आंखें भर आईं।
उधर आयुष भी छत पर बैठा सोच रहा था—
“यार, छोटी-सी बात के लिए हमने इतनी बड़ी दोस्ती दांव पर लगा दी।”
अगले दिन नेहा और सिमरन ने दोनों को जबरदस्ती बुलाया और पुराने दिनों की यादें ताज़ा कराईं—
“याद है वो दिन जब पहली बार साथ में कैंटीन गए थे?”
“या वो जब रातभर प्रोजेक्ट किया और सुबह क्लास में सो गए थे?”
यादें सुनकर दोनों की आंखें नम हो गईं। आखिरकार, राघव और आयुष एक-दूसरे की तरफ बढ़े और गले मिलकर बोले—
“सॉरी भाई, मुझसे गलती हो गई।”
“नहीं, मेरी गलती थी।”
उस पल ने दोस्ती को और भी मज़बूत कर दिया।
फेस्ट के दिन चारों ने साथ में शानदार परफॉर्मेंस दी। उनकी केमिस्ट्री इतनी बेहतरीन थी कि पूरा ऑडिटोरियम तालियों से गूंज उठा। उस रात जब वे सब साथ बैठे, तो राघव ने कहा—
“दोस्ती में कभी-कभी झगड़े होना ज़रूरी है, क्योंकि झगड़े ही हमें ये एहसास दिलाते हैं कि दोस्ती कितनी कीमती है।”
चारों ने ठहाका लगाया और वादा किया कि चाहे आगे की जिंदगी कितनी भी बदल जाए, ये दोस्ती हमेशा कायम रहेगी।
कॉलेज की पढ़ाई धीरे-धीरे अपने आख़िरी पड़ाव पर पहुंच रही थी। अंतिम सेमेस्टर चल रहा था और चारों दोस्तों को अब अपने-अपने करियर की चिंता सताने लगी थी। क्लासेस, असाइनमेंट्स और प्लेसमेंट इंटरव्यूज़ के बीच उनकी दिनचर्या बहुत बदल गई थी।
जहाँ पहले समय बस मस्ती में उड़ जाता था, अब वही समय भविष्य की योजनाओं में गुजरने लगा।
सिमरन का सपना था कि उसे किसी बड़ी MNC में जॉब मिले। वह हमेशा इंटरव्यू की तैयारी में लगी रहती।
नेहा का मन कॉर्पोरेट लाइफ में नहीं लगता था, उसका सपना था कि वह अपने छोटे शहर में बच्चों को पढ़ाए और एक NGO शुरू करे।
आयुष का इरादा स्टार्टअप करने का था। वह हर दिन नए-नए बिज़नेस आइडिया लेकर आता और सबको सुनाता।
और राघव… उसका मन अब भी कन्फ्यूज़ था। वह सोच नहीं पा रहा था कि लाइफ की सही दिशा कौन-सी है।
एक शाम चारों कैंटीन में बैठे थे। प्लेट में पड़े समोसे ठंडे हो चुके थे, लेकिन बातें गरम थीं।
“यार, पता नहीं हम सब आगे कहाँ होंगे,” राघव ने कहा।
“जहाँ भी होंगे, दोस्ती वही रहेगी,” नेहा मुस्कुराते हुए बोली।
आयुष ने मजाक किया, “अगर मेरा स्टार्टअप बड़ा हुआ तो तुम सबको फ्री में शेयर दिलाऊंगा।”
सिमरन ने हंसते हुए कहा, “और अगर मेरा जॉब लग गया तो पहली सैलरी पर पार्टी होगी।”
उनके चेहरों पर मुस्कान थी, लेकिन दिल में हल्की-सी उदासी भी। क्योंकि सबको पता था कि कॉलेज खत्म होते ही रास्ते बदल जाएंगे।
परीक्षा के बाद फेयरवेल पार्टी हुई। हॉल लाइट्स, सजावट और संगीत से चमक रहा था, लेकिन चारों के दिल भारी थे। जब आखिरी बार स्टेज पर तस्वीर खिंचवाई गई, तो उनकी आंखों में आंसू थे।
राघव ने कहा—
“दोस्ती का असली टेस्ट अब शुरू होगा। अगर हम दूर होकर भी जुड़े रहे, तभी हमारी ये कहानी पूरी होगी।”
सबने एक-दूसरे का हाथ थामा और वादा किया—
“चाहे जिंदगी हमें कहीं भी ले जाए, ये रिश्ता हमेशा साथ रहेगा।”
कॉलेज खत्म हुए लगभग पाँच साल हो चुके थे। चारों दोस्तों की ज़िंदगी अब बिल्कुल बदल चुकी थी।
सिमरन एक बड़ी MNC में जॉब कर रही थी और अक्सर विदेश ट्रिप पर जाती थी।
नेहा ने सच में अपने शहर में एक छोटा-सा NGO शुरू कर लिया था और गरीब बच्चों को पढ़ाने लगी थी।
आयुष ने अपनी मेहनत और जुनून से एक स्टार्टअप खड़ा कर लिया था, जो अब धीरे-धीरे सफल हो रहा था।
राघव ने देर से ही सही, लेकिन अपने मन की सुनी और एक लेखक बनने की राह पकड़ ली।
चारों अपनी-अपनी ज़िंदगी में व्यस्त थे, लेकिन कभी-कभी ग्रुप चैट पर बातें हो जाती थीं। फिर एक दिन आयुष ने ग्रुप में मैसेज किया—
> “दोस्तों, पाँच साल हो गए… अब तो मिलना बनता है। चलो, एक रीयूनियन करते हैं।”
सभी ने हां कर दी। जगह चुनी गई—वही पुराना कॉलेज कैंपस।
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रीयूनियन वाले दिन जब चारों कॉलेज पहुंचे, तो दिल की धड़कनें तेज़ थीं। गेट पर कदम रखते ही जैसे यादों का सैलाब उमड़ पड़ा। वही कैंटीन, वही लाइब्रेरी, वही रास्ते… बस चारों की जगह अब नए-नए चेहरे थे।
सबसे पहले सिमरन पहुंची। फिर नेहा आई और गले लगते ही रो पड़ी—
“यार, कितना मिस किया तुम लोगों को।”
कुछ देर बाद आयुष अपनी गाड़ी से उतरा और मज़ाक करते हुए बोला—
“लो जी, आ गया तुम्हारा सीईओ दोस्त!”
तीनों हंस पड़े।
आखिर में राघव आया। उसके हाथ में एक किताब थी—उसकी पहली पब्लिश हुई किताब, और उस पर चारों दोस्तों को डेडिकेट किया गया था। उसने किताब थमाते हुए कहा—
“ये हमारी दोस्ती की कहानी है, जो हमेशा ज़िंदा रहेगी।”
चारों ने कैंटीन जाकर वही चाय और समोसे ऑर्डर किए। वहां बैठकर उन्होंने अपने-अपने संघर्ष और सफ़र सुनाए। हंसी, आंसू, और यादों का मिलाजुला रंग था उस दिन।
शाम को जब कैंपस की घंटी बजी और सूरज ढलने लगा, तो चारों दोस्तों ने हाथ पकड़कर कहा—
“कॉलेज ने हमें मिलवाया था, अब ये दोस्ती हमें हमेशा जोड़े रखेगी।”
रीयूनियन के बाद चारों को एहसास हुआ कि ज़िंदगी चाहे कितनी भी व्यस्त क्यों न हो जाए, असली सुकून तो दोस्तों के साथ बिताए पलों में ही है।
उस दिन जब वे कॉलेज कैंपस से बाहर निकल रहे थे, नेहा ने कहा—
“हम हर बार यही कहते हैं कि जुड़े रहेंगे, लेकिन फिर काम और जिम्मेदारियाँ हमें दूर कर देती हैं।”
सिमरन ने उसकी बात पर सहमति जताई—
“सही कह रही हो। हम सब अलग-अलग जगह हैं, लेकिन इस बार हमें सच में कुछ ठोस करना होगा।”
आयुष हमेशा की तरह मजाकिया अंदाज में बोला—
“तो फिर डील पक्की, हर साल एक बार हमारी मीटिंग ज़रूर होगी, चाहे दुनिया इधर की उधर हो जाए।”
राघव ने मुस्कुराते हुए कहा—
“और उस मीटिंग की डायरी मैं लिखूंगा, ताकि हमारी दोस्ती की कहानी कभी खो न जाए।”
चारों ने वहीं कैंपस के पुराने बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर हाथों में हाथ डाले कसम खाई—
> “हमारी दोस्ती सिर्फ कॉलेज की नहीं, ज़िंदगीभर की है।”
साल बीतते गए। सबकी ज़िंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहे—कभी किसी का प्रमोशन हुआ, कभी किसी का बिज़नेस डगमगाया, कभी किसी ने शादी की, कभी किसी ने कठिन दौर देखा। लेकिन एक चीज़ कभी नहीं बदली—उनकी दोस्ती।
हर साल वे किसी-न-किसी बहाने मिलते, पुरानी यादें ताज़ा करते और नई यादें जोड़ते।
एक दिन, जब चारों उम्र के उस पड़ाव पर पहुंचे जहाँ सफेद बाल और झुर्रियां आने लगीं, तब भी वे उसी बरगद के पेड़ के नीचे बैठे थे। हाथ में चाय थी, आँखों में चमक, और दिल में वही मासूम दोस्ती।
नेहा ने हंसते हुए कहा—
“देखो, हम बूढ़े हो गए, लेकिन हमारी दोस्ती आज भी वही है।”
आयुष बोला—
“और यही हमारी सबसे बड़ी कमाई है।”
सिमरन ने कहा—
“करियर, पैसा, शोहरत… सब आता-जाता है, लेकिन सच्ची दोस्ती अमर होती है।”
राघव ने डायरी में आखिरी लाइन लिखी—
> “हमारी कहानी सिर्फ कॉलेज फ्रेंड्स की नहीं, बल्कि जिंदगीभर की दोस्ती की है।”