बहुत समय पहले, देवताओं और असुरों में लगातार युद्ध होते रहते थे। देवता स्वर्गलोक के रक्षक थे, लेकिन असुरों की शक्ति दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी। उनमें सबसे भयंकर असुर था— महिषासुर।
महिषासुर ने कठोर तपस्या करके भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न किया। उसकी साधना इतनी गहन थी कि वर्षों तक उसने भोजन-पानी तक का त्याग किया। जब ब्रह्मा जी प्रकट हुए तो उन्होंने कहा—
“वत्स, वर मांगो। मैं तुम्हें प्रसन्न होकर मनचाहा वरदान दूँगा।”
महिषासुर ने चालाकी से कहा—
“मुझे कोई भी देवता या राक्षस न मार सके। मेरी मृत्यु केवल किसी स्त्री के हाथों हो।”
ब्रह्मा जी ने ‘तथास्तु’ कह दिया।
महिषासुर जानता था कि स्त्रियाँ सामान्यतः युद्ध नहीं करतीं, इसलिए उसने सोचा कि अब वह अमर हो गया।
वरदान पाकर महिषासुर का अहंकार बढ़ गया। उसने धरती और स्वर्ग दोनों पर अपना आतंक फैलाना शुरू किया।
ऋषियों की तपस्या भंग करने लगा,
निर्दोष प्राणियों को सताने लगा,
देवताओं के लोक पर आक्रमण कर दिया।
धीरे-धीरे उसने इंद्रलोक पर कब्ज़ा कर लिया और स्वयं को स्वर्ग का राजा घोषित कर दिया। देवता पराजित होकर धरती-धरती भटकने लगे।
हारे हुए देवता भगवान विष्णु और भगवान शिव के पास पहुँचे और बोले—
“हे प्रभु! महिषासुर ने समस्त लोकों पर अधिकार कर लिया है। हम असहाय हैं। कोई भी देवता उसका अंत नहीं कर सकता, क्योंकि ब्रह्मा जी का वरदान उसे सुरक्षा दे रहा है। अब केवल आप ही कोई उपाय कर सकते हैं।”
यह सुनकर भगवान विष्णु, शिव और ब्रह्मा तीनों ने निर्णय लिया कि अब असुर के अंत के लिए एक अद्भुत शक्ति का जन्म होना आवश्यक है।
तीनों देवताओं ने अपने-अपने तेज को मिलाया। साथ ही अन्य देवताओं ने भी अपनी दिव्य शक्तियाँ अर्पित कीं।
उन सभी तेज का संगम हुआ और उससे एक तेजस्विनी देवी प्रकट हुईं—
वह थीं आदिशक्ति माँ दुर्गा।
उनका रूप असाधारण था—
दस हाथ, प्रत्येक हाथ में अलग-अलग शस्त्र,
मस्तक पर तेजस्वी मुकुट,
शरीर से दिव्य आभा निकल रही थी,
सिंह पर सवार होकर वे अत्यंत वीर और सुन्दर दिखाई देती थीं।
सभी देवताओं ने अपने-अपने शस्त्र उन्हें प्रदान किए—
भगवान शिव ने त्रिशूल,
भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र,
इंद्र ने वज्र,
वरुण ने शंख,
अग्नि ने शक्ति,
यम ने कालदंड,
और अन्य देवताओं ने भी दिव्य आयुध।
देवताओं ने हाथ जोड़कर कहा—
“माँ! अब केवल आप ही हमें इस अत्याचारी महिषासुर से मुक्ति दिला सकती हैं।”
माँ दुर्गा ने मुस्कुराकर उत्तर दिया—
“चिंता मत करो, देवताओं। इस असुर का अंत निश्चित है। मैं उसके अभिमान को नष्ट करूँगी।”
यहीं से शुरू होती है वह महाकथा, जो नौ रातों और दस दिनों तक चली और जिसे आज हम नवरात्रि के नाम से मनाते हैं।
माँ दुर्गा के प्रकट होने की खबर जैसे ही महिषासुर को मिली, वह पहले तो हँस पड़ा।
“एक स्त्री मेरा क्या कर लेगी? मैं स्वर्गलोक का विजेता हूँ, देवताओं को हरा चुका हूँ, यह मुझसे क्या युद्ध करेगी?”
लेकिन जब उसने माँ दुर्गा के तेज और साहस को देखा तो उसका अहंकार डगमगाने लगा। युद्ध का ऐलान हुआ।
पहला दिन – शैलपुत्री
पहली रात माँ ने शैलपुत्री का रूप धारण किया। पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में, वे हाथ में त्रिशूल और कमल लेकर सिंह पर सवार हुईं। उन्होंने महिषासुर के अनेक सेनापतियों का वध किया।
दूसरा दिन – ब्रह्मचारिणी
दूसरी रात माँ ब्रह्मचारिणी बनीं। वे तपस्या और संयम की मूर्ति थीं। उनके तेज और धैर्य ने असुरों की सेना को भयभीत कर दिया।
तीसरा दिन – चंद्रघंटा
तीसरी रात माँ ने चंद्रघंटा का रूप धारण किया। उनके माथे पर अर्धचंद्र था और उनकी घंटी की गूँज से असुर भयभीत होकर भागने लगे।
चौथा दिन – कूष्मांडा
चौथी रात माँ कूष्मांडा बनीं। उनकी मुस्कान से पूरे ब्रह्मांड में प्रकाश फैल गया। उनके तेज से असुर अंधे से हो गए और उनका संहार हुआ।
पाँचवा दिन – स्कंदमाता
पाँचवी रात माँ स्कंदमाता के रूप में प्रकट हुईं। उन्होंने अपनी गोद में बाल कार्तिकेय को धारण किया और शेर पर बैठकर राक्षसों का नाश किया।
छठा दिन – कात्यायनी
छठी रात माँ ने कात्यायनी रूप लिया। यह रूप युद्ध के लिए सबसे उग्र था। हाथों में खड्ग, धनुष और बाण लेकर उन्होंने असुरों की सेना का संहार किया।
सातवाँ दिन – कालरात्रि
सातवीं रात माँ कालरात्रि बनीं। उनका रूप अंधकार से भी अधिक भयावह था। उनके शरीर से अग्नि की ज्वालाएँ निकल रही थीं। उनकी दृष्टि मात्र से असुर भस्म हो जाते थे।
आठवाँ दिन – महागौरी
आठवीं रात माँ महागौरी के रूप में प्रकट हुईं। उनका रूप श्वेत, शांत और करुणामयी था। उन्होंने भक्तों को आशीर्वाद दिया और पापियों का विनाश किया।
नवाँ दिन – सिद्धिदात्री
नौवीं रात माँ ने सिद्धिदात्री रूप धारण किया। उन्होंने देवताओं और ऋषियों को आठ सिद्धियाँ प्रदान कीं और असुरों का अंत किया।
नौ दिन और रात तक युद्ध चलता रहा। महिषासुर बार-बार रूप बदलता रहा—कभी भैंसा, कभी हाथी, कभी सिंह। लेकिन माँ दुर्गा हर बार उसे परास्त करती रहीं।
आखिरकार दसवें दिन, जब महिषासुर भैंसे का रूप लेकर सामने आया, तो माँ दुर्गा ने अपने त्रिशूल से उसका वध कर दिया।
महिषासुर की गर्जना थम गई और समस्त लोकों में विजय की गूँज सुनाई दी।
देवताओं ने स्वर्ग में पुनः अपना स्थान प्राप्त किया और सबने मिलकर माँ दुर्गा की स्तुति की।
जब माँ दुर्गा ने दसवें दिन महिषासुर का वध किया, तो सम्पूर्ण देवलोक में हर्ष छा गया।
देवताओं ने पुनः अपना साम्राज्य प्राप्त किया और सबने मिलकर आदिशक्ति की स्तुति की।
धरती पर भी ऋषि-मुनियों और मानवों ने यह प्रण लिया कि इस दिव्य घटना को सदैव याद रखा जाएगा।
इसी कारण से हर वर्ष आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक नवरात्रि मनाई जाती है, और दशमी को विजयादशमी (दशहरा) के रूप में।