Adhuri Dagar in Hindi Love Stories by aarya chouhan books and stories PDF | अधूरी डगर

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अधूरी डगर

रेलवे स्टेशन पर बारिश की हल्की बूँदें गिर रही थीं। चारों ओर भीड़-भाड़ थी, लेकिन भीड़ में भी नीरज की नज़र किसी को तलाश रही थी। पंद्रह साल बाद, उसने आज अपने कॉलेज के दिनों की साथी सान्वी से मिलने का तय किया था।

नीरज और सान्वी का कॉलेज वाला प्यार कभी नाम नहीं पा सका था। दोनों एक-दूसरे को चाहकर भी कुछ कह न पाए थे। सान्वी एक जिम्मेदार बेटी थी और अपने पिता के सपनों के बोझ तले उसने कभी अपनी भावनाओं को सामने नहीं आने दिया। वहीं नीरज, एक संकोची लड़का, जिसे शब्दों से ज्यादा खामोशियाँ पसंद थीं।

उस दिन, जब कॉलेज का आखिरी दिन था, नीरज ने सोचा था कि वह सान्वी से अपने मन की बात कहेगा। लेकिन जब उसने उसे देखा—सफेद सलवार में, आँसुओं से भरी आँखों के साथ—तो उसकी हिम्मत टूट गई। उसने बस यही कहा था—
“ख़ुश रहना सान्वी।”

उसके बाद ज़िंदगी दोनों को अलग-अलग राहों पर ले गई।

आज, इतने सालों बाद, जब स्टेशन पर अचानक वह सामने आई, तो नीरज के पाँव ठिठक गए। सान्वी अब भी वैसी ही थी—शांत, संयमी और आँखों में वही गहराई। बस बालों में कुछ सफेदी और चेहरे पर हल्की थकान ज़ाहिर कर रही थी कि ज़िंदगी आसान नहीं रही।

दोनों ने मुस्कुराकर एक-दूसरे को देखा। और उसी मुस्कान में उन्होंने उन सालों की दूरी को समेट लिया।

“कैसे हो नीरज?” सान्वी ने धीरे से पूछा।
“ज़िंदा हूँ… और तुम?” नीरज की आवाज़ में हल्का कंपन था।
“मैं भी… ज़िंदा हूँ।”

एक चायवाले के पास दोनों बैठ गए। बारिश और रेल की सीटी के बीच दोनों का अतीत जैसे फिर से ज़िंदा हो उठा।

सान्वी ने अपनी ज़िंदगी बताई—शादी, बच्चे, जिम्मेदारियाँ… और अब पति का बिछड़ जाना।
नीरज ने भी कहा—“मैंने शादी नहीं की। शायद कर ही नहीं पाया।”

सान्वी ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखें भर आईं।
“तुम्हें मेरा इंतज़ार नहीं करना चाहिए था।”
नीरज हल्का मुस्कुराया—
“मैंने इंतज़ार नहीं किया, बस किसी और को चाह नहीं पाया।”

कुछ पल दोनों चुप रहे। वह चुप्पी किसी किताब से भी ज्यादा कह रही थी।

ट्रेन आने वाली थी। अनाउंसमेंट हुआ और भीड़ फिर से तेज़ होने लगी। सान्वी ने अपना बैग उठाया।
“मुझे जाना होगा, नीरज।”
नीरज ने सिर हिलाया, जैसे पहले ही जानता हो।

अचानक उसने कहा—
“सान्वी… एक बार हाथ पकड़ सकती हो? ताकि याद रहे कि कभी तुम मेरी थी।”

सान्वी का दिल काँप गया। उसने धीरे से उसका हाथ थामा। वह स्पर्श वही पुरानी धड़कनें लौटा लाया।

“नीरज… हम शायद साथ नहीं चल पाए, पर तुम हमेशा मेरे दिल का सबसे सुंदर कोना रहोगे।”

ट्रेन चलने लगी। सान्वी धीरे-धीरे भीड़ में खो गई। नीरज वहीं खड़ा रह गया, आँखें नम थीं लेकिन होठों पर मुस्कान थी।

उसे पता था कि यह कहानी अब भी अधूरी रहेगी। पर इस अधूरी डगर में ही उसका प्यार ज़िंदा रहेगा—बिना किसी गिले-शिकवे के।

कभी-कभी, ज़िंदगी हमें वो नहीं देती जो हम चाहते हैं। लेकिन अधूरी कहानियाँ भी हमें उतना ही भावुक कर देती हैं, जितना कोई पूरी हुई मोहब्बत। नीरज और सान्वी की तरह—जो मिले भी, बिछड़े भी, पर फिर भी एक-दूसरे के लिए हमेशा वही रहे।

“कुछ रिश्ते मुकम्मल होकर भी अधूरे रह जाते हैं,
और वही अधूरी मोहब्बत सबसे ज़्यादा याद आती है।”