राजस्थान के एक छोटे से गाँव में एक लड़का रहता था – आरव। उसका बचपन बाकी बच्चों जैसा नहीं था। परिवार बहुत गरीब था, पिता खेतिहर मज़दूर और माँ सिलाई करके घर चलाती थीं। अक्सर घर में दो वक्त का खाना भी मुश्किल से मिलता था।
गाँव के लोग कहते –
“पढ़-लिखकर क्या करेगा? आखिरकार खेत ही जोतने हैं।”
लेकिन आरव के सपने खेत की मिट्टी से कहीं आगे तक जाते थे। वह आसमान को देखता और सोचता कि एक दिन उसका नाम पूरे भारत में चमकेगा।
गाँव का स्कूल टूटा-फूटा था। बच्चों के पास किताबें नहीं, स्लेट नहीं, सिर्फ चंद टाट-पट्टी। फिर भी आरव रोज़ाना 5 किमी पैदल चलकर स्कूल जाता। अक्सर भूखा ही पहुँचता लेकिन उसकी आँखों में भूख से ज़्यादा ज्ञान की प्यास होती।
एक दिन उसके शिक्षक ने उससे पूछा –
“बेटा, तुम इतना मन लगाकर क्यों पढ़ते हो? आखिर करना क्या चाहते हो?”
आरव ने मासूमियत से कहा –
“गुरुजी, मैं ज़िंदगी बदलना चाहता हूँ… अपनी भी और दूसरों की भी।”
शिक्षक की आँखें भर आईं। उन्होंने ठान लिया कि वे इस बच्चे की मदद ज़रूर करेंगे।
गाँव वाले मज़ाक उड़ाते –
“अरे, ये लड़का तो पढ़-लिखकर कलेक्टर बनेगा! पहले पेट भरना सीख ले।”
कभी-कभी उनके शब्द तीर की तरह चुभते, लेकिन आरव जानता था –
“अगर मैं हार मान गया, तो मेरी अगली पीढ़ी भी गरीबी में ही दब जाएगी।”
वह रात को लालटेन की मद्धम रोशनी में पढ़ता। कई बार उसकी किताबों पर मोमबत्ती का पिघला हुआ मोम जम जाता, लेकिन उसकी लगन कभी नहीं पिघली।
जैसे-जैसे पढ़ाई बढ़ी, खर्च भी बढ़े। किताबें, फॉर्म, कोचिंग – ये सब पैसे माँगते थे। पिता के पास इतने साधन नहीं थे।
तब आरव ने खेतों में काम करना शुरू किया। सुबह 4 बजे उठकर बैलों के साथ खेत जोतता, फिर दिन में स्कूल जाता, और शाम को लोगों के घरों में ट्यूशन पढ़ाता।
थकान उसके चेहरे पर झलकती, लेकिन उसकी आँखों में “सफलता का सपना” और गहरा चमकता।
वह पहली बार कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षा में फेल हो गया।
उस दिन उसे लगा – “शायद लोग सही कहते हैं, ये सब मेरे बस का नहीं।”
लेकिन तभी माँ ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा –
“बेटा, हार तो वही मानते हैं जो कोशिश छोड़ देते हैं। तू कोशिश करता रह, मैं तेरे साथ हूँ।”
इन शब्दों ने जैसे उसमें नई जान डाल दी। उसने फिर से तैयारी शुरू की। अगली बार उसने पूरे जिले में टॉप किया।
अब उसका लक्ष्य था – IAS बनना।
लेकिन यह रास्ता आसान कहाँ था! उसे शहर जाकर कोचिंग करनी थी। पैसे नहीं थे। गाँववालों ने कहा –
“पढ़ाई में लाखों लगेंगे, ये गरीब लड़का कैसे कर पाएगा?”
आरव ने हार नहीं मानी। उसने एक छोटी-सी लाइब्रेरी में किताबें पढ़ना शुरू किया। पुरानी किताबें, नोट्स और दोस्तों की मदद से तैयारी की।
कई बार उसका मन टूटा। जब दोस्तों ने सिलेक्ट होकर बड़े पद पाए और वह बार-बार असफल हुआ, तो लगा कि शायद किस्मत उसके खिलाफ है।
लेकिन हर बार उसे माँ के शब्द याद आते –
“बेटा, कोशिश कभी बेकार नहीं जाती।”
आख़िरकार, पाँचवीं बार की कोशिश में उसने UPSC परीक्षा पास कर ली।
गाँव के उसी मिट्टी से खेलने वाले बच्चे का सपना पूरा हुआ।
जब वह कलेक्टर बनकर गाँव लौटा, तो वही लोग जो उसका मज़ाक उड़ाते थे, अब उसकी तारीफ़ में पुल बाँधने लगे।
गाँव की औरतें अपने बच्चों से कहतीं –
“पढ़-लिखो, देखो आरव कैसे चमका है!”
आरव जानता था कि यह सिर्फ उसकी जीत नहीं है, बल्कि उन सभी गरीब बच्चों की जीत है, जिन्हें समाज कहता है – “तुम्हारे बस का नहीं।”
उसने गाँव में एक पब्लिक लाइब्रेरी और स्कूल खुलवाया, ताकि किसी और बच्चे को अंधेरे में पढ़ना न पड़े।
🌟 सीख
आरव की कहानी हमें यह सिखाती है कि –
1. परिस्थितियाँ कभी भी आपके सपनों से बड़ी नहीं होतीं।
2. हार सिर्फ वही मानता है जो कोशिश छोड़ देता है।
3. सफलता पाने के लिए धैर्य, मेहनत और निरंतर प्रयास सबसे बड़ा हथियार हैं।
4. गरीबी, असफलता और मज़ाक – ये सब सफलता की सीढ़ियाँ बन सकती हैं।
ज़िंदगी में कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएँ,
अगर आपके पास सपने हैं और उन सपनों के लिए जुनून है,
तो कोई ताकत आपको रोक नहीं सकती।