गंगा किनारे बसे एक छोटे से गाँव में राघव नाम का युवक रहता था। उसका जीवन बिल्कुल नदी की तरह था—कभी शांत, कभी उफान पर। बचपन से ही उसने बड़े सपने देखे थे। वह चाहता था कि एक दिन शहर जाकर ऊँची पढ़ाई करे और कुछ ऐसा करे जिससे उसका परिवार गर्व कर सके। लेकिन जीवन की धारा हमेशा वैसी नहीं बहती जैसी हम सोचते हैं।
राघव के पिता किसान थे। खेती ही उनके घर का सहारा थी। शुरू के कुछ सालों तक सब ठीक चला, लेकिन समय का शत्रु रूप सामने आने में देर नहीं लगी। पहले पिता बीमार पड़े, फिर फसल खराब हो गई। हालात ऐसे बने कि राघव को अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर घर लौटना पड़ा। उसके सपने, जैसे सूखी पत्तियों की तरह, नदी में बह गए।
लेकिन राघव ने हार नहीं मानी। उसने सोचा, "अगर मैं अपने हालात नहीं बदल सकता, तो कम से कम अपनी सोच को तो बदल सकता हूँ।" उसने खेतों में पिता का हाथ बँटाना शुरू किया। पर मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुईं। एक साल गाँव में भयंकर बाढ़ आई। खेत डूब गए, घर में खाने के लाले पड़ गए। उस समय राघव ने पहली बार महसूस किया कि समय सच में सबसे बड़ा शत्रु है।
वह कई रातें जागकर सोचता—"क्यों हर बार जीवन मुझे परखता है? क्या मैं कभी अपने सपनों को जी पाऊँगा?" लेकिन फिर गंगा की लहरों को देखकर उसे लगता कि जीवन कभी रुकता नहीं। पानी हर बाधा को पार करके आगे बढ़ता है। उसी से प्रेरणा लेकर उसने ठान लिया कि चाहे कितनी भी मुश्किल आए, वह थमेगा नहीं।
बाढ़ के बाद राघव ने गाँव के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। शुरुआत में कुछ ही बच्चे आए, लेकिन धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाई। लोग कहते, “इतनी मुश्किलों में तू दूसरों के लिए क्यों कर रहा है?” राघव हँसकर कहता,“नदी अगर सिर्फ अपने लिए बहती, तो किसी की प्यास नहीं बुझती।”
उसकी यह सोच गाँव वालों को छू गई। कई लोग उसके साथ जुड़ गए। मिलकर उन्होंने एक छोटा-सा पुस्तकालय बनाया। राघव ने बच्चों को न सिर्फ पढ़ाई सिखाई, बल्कि यह भी सिखाया कि मुश्किलें स्थायी नहीं होतीं।
साल बीतते गए। राघव की मेहनत से गाँव के कई बच्चे शहर जाकर पढ़ने लगे। किसी ने डॉक्टर बनकर गाँव लौटकर सेवा की, तो कोई इंजीनियर बन गया। गाँव बदलने लगा, और इसके पीछे राघव का बहता जीवन था।
लेकिन यह कहानी सिर्फ सफलता की नहीं, संघर्ष की भी है। कई बार राघव के मन में आया कि वह सब छोड़कर शहर चला जाए, अपनी ज़िंदगी बनाए। लेकिन हर बार गंगा की धाराएँ उसे याद दिलातीं कि जीवन का असली अर्थ सिर्फ अपने लिए जीना नहीं, बल्कि दूसरों के जीवन में रोशनी लाना है।
राघव के जीवन का सबसे कठिन समय तब आया जब उसके पिता का देहांत हुआ। घर में अकेली माँ रह गई। जिम्मेदारी और बढ़ गई। फिर भी उसने अपने काम को नहीं छोड़ा। उसने कहा,“समय चाहे जितना कठोर हो, अगर हम बहते रहें, तो कोई शक्ति हमें रोक नहीं सकती।”
आज राघव की उम्र पचास के पार है। उसके बालों में सफेदी आ गई है, लेकिन चेहरे पर अब भी वही संतोष है जो नदी की गहराई में दिखता है। गाँव वाले उसे आदर से “गुरुजी” कहते हैं। हर बार जब वह गंगा किनारे जाता है, पानी की लहरें उसे उसकी कहानी सुनाती हैं—"तू भी तो हमारी तरह है, राघव। कभी शांत, कभी उफान पर, लेकिन हमेशा आगे बढ़ता हुआ।"
राघव बच्चों से हमेशा यही कहता—“जीवन रुकना नहीं जानता, सिर्फ बहना जानता है। तुम भी बहते रहो, क्योंकि बहता जीवन ही सच्चा जीवन है।”