Silent Shadows - 2-3 in Hindi Horror Stories by Kabir books and stories PDF | खामोश परछाइयाँ - 2-3

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खामोश परछाइयाँ - 2-3

रिया के कमरे की खिड़की अब भी आधी खुली थी। बाहर गहरी रात का सन्नाटा था, पेड़ों की शाखें हवा में हिलकर अजीब-सी फुसफुसाहट पैदा कर रही थीं। हल्की चाँदनी कमरे में उतर रही थी और उसी चाँदनी में वह परछाई साफ़-साफ़ दिख रही थी।

रिया का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। उसने जल्दी से खिड़की को बंद कर दिया, लेकिन तभी उसके पीछे से बर्फ़ जैसी ठंडी हवा का झोंका गुज़रा। रिया ने काँपते हुए पलटकर देखा—कमरा तो खाली था, लेकिन माहौल अजीब-सा भारी हो गया था।

अचानक उसकी मेज़ पर रखी एक पुरानी डायरी अपने-आप खुल गई।
रिया हैरान रह गई—ये डायरी उसने पहले कभी नहीं देखी थी।

धीरे-धीरे पास जाकर उसने पन्ने पलटे। पहले ही पन्ने पर लिखा था:

“मैं उन आवाज़ों की कहानी हूँ, जिन्हें दुनिया ने कब का भुला दिया।”

उसके हाथ काँपने लगे। अगले पन्ने पर अजीब आकृतियाँ बनी थीं, जैसे किसी ने खून से उकेरी हों। हर पन्ने पर किसी की चीख, किसी की आह और अजीब शब्द दर्ज थे। लेकिन एक नाम बार-बार उभरकर सामने आया—

“अर्जुन।”

रिया की साँसें थम-सी गईं। "ये अर्जुन कौन है?" उसके मन में सवाल गूंजने लगा।

उसी पल कमरे की बत्ती हल्की-हल्की झपकने लगी। बल्ब से टप-टप की आवाज़ आई और सन्नाटे में वो आवाज़ बहुत डरावनी लग रही थी।

रिया ने हिम्मत जुटाकर डायरी को बंद किया और बिस्तर पर लेट गई। नींद कब आई, उसे पता ही नहीं चला।

लेकिन जैसे ही नींद गहरी हुई, उसे सपना आने लगा।

वो खुद को एक पुराने खंडहर जैसे घर में खड़ी पाती है। दीवारों पर काई जमी हुई है, छत से पानी टपक रहा है और चारों ओर धुंध फैली हुई है। अचानक धुंध के बीच से एक लड़का सामने आता है। उसकी आँखें लाल हैं, उनमें दर्द और ग़ुस्सा दोनों भरा है। होंठ हिलते हैं और एक धीमी पर डरावनी आवाज़ सुनाई देती है—

“वापस मत आना…”

रिया चीखते हुए उठ बैठती है। उसका पूरा शरीर पसीने से तर-बतर हो चुका था। उसने घबराकर कमरे की खिड़की की ओर देखा—

और वही परछाई वहाँ मौजूद थी।

लेकिन इस बार, वो परछाई स्थिर नहीं थी। धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए वो उसकी ओर बढ़ रही थी। हर कदम के साथ कमरे की हवा और भारी होती जा रही थी, जैसे सांस लेना भी मुश्किल हो।

रिया का गला सूख गया। वो बोलना चाहती थी, मगर आवाज़ उसके गले में अटक गई। तभी परछाई की आकृति थोड़ी साफ़ होने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई इंसान है… मगर उसका चेहरा काला धुँधला धुआँ था।

रिया ने काँपते हाथों से पास रखी टॉर्च उठाई और सीधा उस परछाई की ओर रोशनी डाली।

परछाई जैसे ही रोशनी में आई—वो पल भर को ठहर गई। और फिर, टॉर्च की रोशनी बुझ गई।

अंधेरे में सिर्फ़ एक आवाज़ गूँजी—

“अर्जुन… अर्जुन को मत ढूँढो…”

रिया की आँखों में डर समा गया। उसका दिल कह रहा था कि इस डायरी और इस परछाई के पीछे वही नाम छुपा है—
अर्जुन।

लेकिन अर्जुन कौन था? और क्यों उसकी आत्मा उसे चेतावनी दे रही थी?

रिया को लगा जैसे अब उसकी ज़िंदगी किसी रहस्यमयी जाल में फँस चुकी है, जिससे निकलना आसान नहीं होगा।

सुबह की हल्की किरण कमरे में दाख़िल हुई। रिया सारी रात जागी रही थी। उसकी आँखें थकी हुई थीं लेकिन दिमाग़ अभी भी उसी परछाई और उस डायरी में अटका हुआ था।

उसने धीरे-धीरे डायरी को दोबारा खोला। पन्ने पुराने और पीले हो चुके थे, जैसे सालों से किसी अँधेरी जगह में पड़े रहे हों।

अगले पन्ने पर लिखा था—

“अर्जुन को किसी ने धोखा दिया। उसका ख़ून इस घर की दीवारों में समा चुका है। जब तक सच बाहर नहीं आएगा, उसकी आत्मा चैन से सो नहीं पाएगी।”

रिया की उँगलियाँ काँप गईं। उसने और पन्ने पलटे।

कहीं खून से बने हाथों के निशान थे, तो कहीं अधूरी लिखी इबारतें। लेकिन हर जगह एक ही कहानी झलक रही थी—अर्जुन की मौत और उसका दर्द।

अचानक, कमरे की खिड़की अपने-आप खुल गई। तेज़ हवा के झोंके से डायरी के पन्ने तेज़ी से पलटने लगे।
एक पन्ने पर रुककर आवाज़ गूँजी—

“उस रात का सच मत खोजो, वरना तुम भी उसी अंधेरे में समा जाओगी।”

रिया ने डरते हुए पन्ना पढ़ा। उस पर लिखा था—

"2 जून की रात… चीखें, खून और धोखा।"

इतना पढ़ते ही रिया की आँखों के सामने अंधेरा छा गया और वो फर्श पर गिर पड़ी।

सपना या हक़ीक़त?

वो खुद को एक पुराने हवेली में देखती है। टूटी-फूटी खिड़कियाँ, मकड़ी के जाले और खामोशी। अचानक, हवेली की दीवारों से खून रिसने लगता है। ज़मीन पर लाल धब्बे फैलने लगते हैं।

रिया घबराकर पीछे हटती है लेकिन तभी उसे सीढ़ियों पर एक लड़का दिखाई देता है—
वो अर्जुन था।

उसके कपड़े फटे हुए थे, चेहरा खून से लथपथ और आँखों में जलती हुई नफ़रत।

"रिया…" अर्जुन की भारी आवाज़ गूँजी,
"क्यों ढूँढ रही हो मुझे? वो राज़ मत खोलो… वो लोग तुम्हें कभी जिंदा नहीं छोड़ेंगे।"

रिया काँपते हुए बोली—
"तुम कौन हो? क्यों मुझे सताते हो?"

अर्जुन धीरे-धीरे पास आया। उसके चेहरे पर दर्द साफ़ दिख रहा था।
"मैं वो हूँ… जिसे मोहब्बत में धोखा मिला। जिसे अपने ही लोगों ने मार डाला। मेरी चीखें इसी हवेली की दीवारों में कैद हैं।"

रिया की आँखों से आँसू बह निकले।
"लेकिन… तुम्हें इंसाफ़ तो मिलना चाहिए। सच सामने आना चाहिए।"

अर्जुन की आँखें अचानक और लाल हो गईं।
"सच खून से लिखा गया था, रिया। और खून कभी मिटता नहीं। अगर तुम सच जानना चाहती हो, तो इस डायरी के आख़िरी पन्ने तक पहुँचो। लेकिन याद रखना… हर पन्ना तुम्हें मौत के और क़रीब ले जाएगा।"

इतना कहकर अर्जुन चीखता है और पूरा सपना टूट जाता है।

रिया हड़बड़ाकर उठती है। कमरा फिर से खाली है। मगर उसके सामने डायरी खुली पड़ी है… और इस बार, आख़िरी पन्ना चमक रहा है।

उस पर लिखा था—

“सच वहाँ है, जहाँ सबकुछ शुरू हुआ था… पुरानी हवेली।”

रिया की रूह काँप गई।
अब उसे पता था कि आगे का रास्ता आसान नहीं है। पर अगर उसने कदम बढ़ाया, तो ज़िंदगी कभी पहले जैसी नहीं रहेगी।