बाज पूरी माया नगरी में उड़ता है, लेकिन उसे कहीं भी बाहर निकलने की जगह नहीं मिलती है, आखिर थक हार कर बैठ जाता है एक इमारत के ऊपर, और चारों तरफ बड़ी पैनी नजर से देखता है, तो कुछ दूरी पर एक जगह पर दीवार में लोगों को घुसते और बाहर निकलते हुए देखता है, वाज दीवार की तरफ उड़ान भरता है, लेकिन दीवार के पास जाते ही ठिठक जाता है|
उस गेट पर दो मोटे मोटे काले शैतान खड़े होते हैं, जो जाने वालों के सिर पर तलवार से वार करते हैं, अगर तलवार से सिर कटा, तो उसे बाहर नहीं जाने दिया जाता, उसे दूसरे शैतान खा जाते, और अगर नहीं कटा तो उसे बाहर जाने दिया जाता, क्योंकि सारे सिपाही मायावी थे, इसलिए उन पर तलवारों का कोई असर नहीं हो रहा था|
बाज वापस पास की एक और बिल्डिंग पर जाकर बैठ जाता है, और वहीं बैठे बैठे निकलने की कोई जगह ढूंढता है, तभी अचानक से उसे लगा, जैसे कि सारी इमारतें घूमने लगी हो, और तेजी से इधर-उधर भागने लगी, थोड़ी ही देर में वह जिस इमारत पर बैठा था, महल के ठीक सामने होती है, तभी उसे किसी चीज के चरमराने की आवाज आती है, जैसे कोई दरवाजा खुला हो|
और तभी चांद की रोशनी पूरे क्षेत्र में फैल जाती है, वाज रोशनी की दिशा में जाता है, तो उसे चांद दिखाई देने लगता है, वह चांद की ओर उड़ान भरता है, जैसे ही उसके निकट पहुंचता है, उसे आभास होता है, कि वह तो एक आईना है, आईने में चांद का प्रतिबिंब है|
और फिर कुछ सोचकर आने वाले प्रकाश की दिशा में उड़ने लगता है, इसी प्रकार ना जाने कितने आइनों के पास से होकर गुजरता है, और तभी उसे असंख्य चांद दिखाई देते हैं|
बाज फिर कुछ सोचने लगता है, और उसके बाद उड़ते हुए ठीक बीच में आ जाता है, फिर अपनी नजर आइनो पर डालता है, तो उसे कई सारे आइनों में अपना प्रतिबिंब दिखाई देता है, फिर दूसरी जगह, और ऐसे ही कई बार अपनी जगह बदलता रहता है, लेकिन जो वो ढूंढना चाहता है, वो उसे नहीं मिल पा रहा होता है, और इस तरह उड़ते उड़ते वह थक जाता है, लेकिन फिर भी अपने काम में लगा रहता है, देखने पर ऐसा लगता है, जैसे कि वो नाच रहा हो, इस बात से बेखबर, कि कोई उसे देख रहा है|
और यह होती है चंद्रनिशा, जो कि काफी देर से उसे उड़ते हुए देखती है, लेकिन समझ नहीं पाती, कि आखिरी ये कर क्या रहा है, और फिर उसे कुछ समझ में आता है, वह समझ जाती है, कि यह बाज बाहर निकलने वाला है, वह अपने शैतानी चमगादड़ को भेजती है, इधर बाज बेचारा परेशान है, थका हुआ है, लेकिन फिर भी काम में लगा हुआ है|
और एक जगह जा कर वो रुक जाता है, उसकी आंखों में चमक आ जाती है, उसे सारे आइनों में अपना प्रतिबिंब नजर आने लगता है, तभी उसकी नजर आ रहे चमगादड़ पर पड़ती है, और वह आने वाले प्रकाश की दिशा में पूरी जान लगा कर उडने लगता है, और चांद के पास पहुंच जाता है|
लेकिन यह क्या? जब उसके पास पहुंचता है, तो देखता है, कि यह तो कांच का कोई बड़ा सा गोला है, और परेशानी में इधर उधर देखने लगता है, तभी कहीं दूर से उसे छोटा सा चांद दिखाई देता है, और बाज एक वार फिर सोचने लगता है, कि कहीं यह भी तो नकली नहीं|
लेकिन तभी उसे ठंडी हवा का आभास होता है, और वह चांद की तरफ देखता है, तो उसे उसके आसपास छोटी-छोटी चमकीले लाइटों की तरह दिखाई देते हैं, वह समझ जाता है, कि यह तारे हैं, और चांद की दिशा में उडने लगता है, और आसमान में उड़ते उडते अचानक उसके पंख भारी होने लगते हैं, और आंखें बंद होने लगती हैं, और फिर वह किसी टूटे हुए पत्ते की तरह गिरने लगता है|
तभी उसे ऐसा लगता है, जैसे किसी ने पकड़ लिया हो, जब वह हड़बड़ा कर पंख फडफडाता है, तो देखता है, कि वह किसी पेड़ पर, किसी घोंसले में गिरा हुआ है, और उसे बच्चों के हंसने, और शोर करने की आवाज सुनाई देती है, वह समझ जाता है, कि अब माया नगरी से बाहर है|
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(महाराज रुद्र प्रताप सिंह असमंजस्य में)
इधर प्रतापगढ़ में महाराज रूद्र प्रताप सिंह बड़े ही चिंतित होते हैं, उन्हें महीनों से रूद्र प्रताप की कोई खबर नहीं मिलती, उनके गुप्तचर भी खोज खोज कर वापस आ जाते हैं, लेकिन फिर भी वीर प्रताप सिंह की कोई खबर नहीं लगी, रूद्र प्रताप हर संभव कोशिश करते हैं, लेकिन वीर प्रताप की उन्हें कोई खबर नहीं मिलती, किसी का कोई अता पता नहीं लगता, महाराज रूद्र प्रताप का संदेश लेकर गया हुआ उनका बाज भी वापस नहीं लौटा, यही सब सोच सोच कर महाराज रुद्र प्रताप सिंह परेशान होते हैं|
तभी एक गुप्तचर आकर संदेश देता है:-
गुप्तचर:- महाराज हमारे सेनापति जी को, राज्य की सीमा के पास, कुछ दूरी पर गांव वालों ने, कुछ एकाध महीने पहले देखा है, शायद वापस आते हुए……..
महाराज रूद्र प्रताप सोचते हैं, कि अगर एक महीने पहले, तो अब तक तो उन्हें वापस यहां होना चाहिए|
तभी एक गुप्तचर आकर सूचना देता है:-
गुप्तचर:- महाराज हमारे राज्य की सीमा पर, कुछ एक से डेढ़ महीने पहले किसी रहस्यमई किले को देखा गया है, और कुछ दिनों बाद ही वो गायव हो गया, और अब उसका कोई नामोनिशान नहीं है, लेकिन उसके बाद से कुछ अजीब और रहस्यमई घुड़सवारों को, गांव में, और हमारे राज्य की सीमा के आसपास, घूमते हुए देखा गया है|
गुप्तचर:- हमें लगता है महाराज, कि सेनापति जी के गायब होने, और ऐसे में घुड़सवार और किले में जरूर कोई ना कोई कनेक्शन है, जरूर यह दोनों घटना एक दूसरे से जुड़ी हुई है, जबसे किला गायब हुआ है दोबारा दिखाई नहीं दिया, लेकिन पिछले दो पूर्णिमा से लोगों का गायब होना, किसी रहस्य से कम नहीं है, आस पास से और भी काफी सारे लोग गायव हुए हैं, हमारे राज्य और सेनापति जी किसी मुसीबत में तो नहीं............
महाराज रुद्र प्रताप सिंह अपने गुरु जी को बुलाते हैं, और सारी बातें बताते हैं, तो गुरुजी ने बताते हैं:-
गुरु जी:- नक्षत्र और ग्रहों की दशा ठीक नहीं चल रही है, हमारे राज्य को तो कोई हानि की आशंका नहीं है, लेकिन वीर प्रताप सिंह का भविष्य लंबे अर्से के लिए अंधकार में नजर आता है, वे जहां भी हैं, वहाँ किसी आम आदमी का जाना और वापस आना नामुमकिन लगता है, हमें उनकी सही स्थिति का भी ज्ञान नहीं है, अगर होता तो कुछ किया जा सकता था, या कोई उम्मीद होती, लेकिन यहां तो कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है|
इधर महाराज रुद्र प्रताप सिंह के बाज को उड़ते हुए काफी लंबा समय निकल जाता है, और इस समय वह किसी रेतीले मैदानी इलाके में होता है, तो कुछ खाने की तलाश में इधर उधर नजर दौडता है, तो खाने की कोई वस्तु तो नजर नहीं आती, लेकिन थोडी ही दूरी पर जंगल और पेड़ वगैरह नजर आते हैं, तो बाज उड़ान भरता है, और आराम करने की नियत से ऊंचे पेड़ पर जाकर बैठ जाता है, और आराम करने लगता है|
तभी किसी के फड़फड़ाने की आवाज आती है, और एक बाज वहां से उड़ता है, यह देखकर वह भी पेड़ से उड़ता है, और जब उस बाज को देखता है, तो तुरंत पहचान लेता है, कि ये तो पवन है, क्योंकि दोनों ही बचपन से साथ जो रहे हैं, वो उसे देखकर एक आवाज निकालता है, तो वीर प्रताप सिंह का बाज(पवन) आवाज को पहचान कर जवावी आवाज निकालता है, और फिर दोनों प्रतापगढ़ की ओर और उड चलते हैं, और फिर तीन पहर की उड़ान के बाद, दोनों प्रतापगढ़ पहुंचते हैं|
रुद्र प्रताप सिंह पवन के गले का संदेश निकालकर पढ़ते हैं जिसमें वीर प्रताप सिंह द्वारा सारी घटना का और उनके सपने वर्णन किया हुआ होता है, तो रूद्र प्रताप सिंह अपने गुरु से इस बारे में बात करते हैं:-
गुरु जी:- महाराज, यह माया नगरी कभी एक जगह नहीं ठहरती, उसे ढूंढना बहुत ही मुश्किल है, या कहो कि नामुमकिन काम है, और अगर एक बार अंदर गए, तो फस जाएंगे, बाहर निकलना नामुमकिन है महाराज......
रूद्र प्रताप सिंह:- यह बाज जो संदेश लेकर आया है, इसका क्या?
गुरु जी:- यह बाज भी अब उस जगह को नहीं ढूंढ सकता, और वैसे भी वीर प्रतापके सपने के आधार पर, चंद्रनिशा प्रतापगढ़ पर हमला करेगी, लेकिन तीन प्रतापी घुड़सवार, यानी कि 2 नौजवान, और एक युवती, हमारे राज्य को बचाने आएंगे, और महाराज आपको याद है, कि महारानी की इच्छा क्या थी? दो महाप्रतापी बेटे, और एक बेटी, यानी कि हो ना हो, यह तीनों आपके ही बच्चे हो............
रुद्र प्रताप सिंह:- गुरुजी ना जाने कब बच्चे होंगे, और कब बड़े होंगे, तब तक हम यूं ही हाथ पर हाथ रखकर बैठे तो नहीं रह सकते...........
गुरुजी:- बिल्कुल नहीं, हम हर संभव कोशिश करेंगे महाराज, वीर प्रताप सिंह को ढूंढने की और बचाने की................
क्रमश:...................