Yashaswini - 15 in Hindi Fiction Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | यशस्विनी - 15

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यशस्विनी - 15


लघु उपन्यास यशस्विनी: अध्याय 15: भारत की प्राचीन विद्या कलरीपायट्टू और मीरा ने प्राप्त किया आत्मरक्षा का प्रशिक्षण

बदमाशों द्वारा की जा रही छेड़छाड़ का समाचार जानकर यशस्विनी का मन व्यथित हो उठा। उसने विशेष रूप से मार्शल आर्ट कलरीपायट्टू के एक योग्य शिक्षक माधवन को त्रिवेंद्रम से बुलवाया। योग शिविर के आठवें दिन से प्रत्येक शाम को कलरीपायट्टू का प्रशिक्षण शुरू हुआ और इसके समापन के बाद योग शिविर का प्रश्नोत्तर सत्र शुरू होता था। मीरा ने आत्मरक्षा के प्रत्येक गुर को बड़ी बारीकी से सीखा।               

        माधवन कलरीपायट्टु मार्शल आर्ट के एक योग्य प्रशिक्षक हैं।उन्होंने बिना अस्त्र-शस्त्र के आत्मरक्षा की इस सर्वाधिक प्राचीन भारतीय तकनीक के बारे में साधकों को जानकारी दी। सभी साधक उस समय आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता से भर उठे जब माधवन ने बताया कि वास्तव में कुंगफ़ु जैसे चीनी मार्शल आर्ट भी इसी कलरीपायट्टू की उपज हैं।

यह सम्पूर्ण केरल और तमिलनाडु कर्नाटक के अनेक भागों में अत्यंत प्रचलित मार्शल आर्ट है।'कलारी' प्रशिक्षण हॉल होता है और पायट्टु का अर्थ युद्ध अथवा व्यायाम होता है। माधवन ने प्रशिक्षण शुरू होने के पूर्व कलारी के अधिष्ठाता देवता की स्थापना कर विधिवत पूजा-अर्चना भी की।

सबसे पहले पैरों की गति और फूर्ति के लिए उन्होंने पैर के अभ्यास को कराया। पैरों की अनेक प्रकार की गति और प्रहार करने की मुद्राओं और ढंग को देखकर साधक चकित हो रहे थे।अभ्यास के क्रम में माधवन ने हाथ के प्रहारों को भी पैरों के संचालन के साथ साथ शामिल किया। किस तरह घूम कर और उछलकर शत्रु पर प्रहार किया जाता है,इसकी अनेक विशिष्ट विधियां थीं।एक प्रशिक्षण में शत्रुओं के हमले को रोकना और उसकी काट निकाल कर उन्हें परास्त करने और जवाबी हमले पर ध्यान देना सिखाया गया। एक अन्य प्रशिक्षण के अंतर्गत आक्रमण की स्थिति में सफल बचाव की तकनीकें बताई गईं।कलरीपायट्टु गति, चपलता ,आक्रमण और बचाव का एक अद्भुत मार्शल आर्ट है। निहत्था व्यक्ति किस तरह अनेक सशस्त्र लोगों का सामना कर सकता है और अपनी जीवन रक्षा भी कर सकता है,इसके बारे में माधवन ने विस्तार से जानकारी दी।

   इसके बाद उन्होंने योग साधकों को इसका व्यावहारिक प्रशिक्षण भी दिया। उन्होंने साधकों को समझाया कि कलरीपायट्टु के प्रशिक्षुओं को शत्रुओं के शरीर के दबाव बिंदुओं के बारे में भी पर्याप्त जानकारी रखना चाहिए, क्योंकि अगर शत्रु अधिक हों और उन्हें निश्चित रूप से धराशाई करना हो तो शरीर के ऐसे 64 दबाव बिंदु हैं जिन पर विधिपूर्वक हल्की चोट,स्पर्श या प्रहार से भी उन्हें गंभीर क्षति पहुंचाई जा सकती है। शरीर के सभी 107 मर्म बिंदु अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। अब इनका चिकित्सा के लिए भी उचित उपयोग हो सकता है और शत्रुओं को परास्त कर बुरी तरह घायल करने में भी इनका उपयोग हो सकता है। अगर शत्रु प्राण लेने पर आमादा हो तो प्रतिकार में इन कुछ विशिष्ट बिंदुओं पर प्रहार करके उसका काम भी तमाम किया जा सकता है।

  माधवन बार-बार योग्य गुरु के मार्गदर्शन में इस योग शिविर के बाद भी आगे सतत अभ्यास पर जोर देते रहे और यह भी कहते रहे कि अनावश्यक केवल अपना वर्चस्व दिखाने के लिए और किसी को परेशान करने के लिए इस कला का उपयोग न किया जाए। इसे केवल आत्मरक्षा के लिए ही प्रयोग में लाना चाहिए।

प्रदर्शन सत्र के दौरान मीरा इस बात पर हैरान होती रही कि कैसे मस्तक के एक खास बिंदु पर, गले और कनपटी के पास, जबड़े में, पेट और हृदय के संधि स्थल,कुहनी आदि के मर्म बिंदुओं पर सटीक हल्का प्रहार भी किया जाए तो हमला करने वाला अधमरा हो सकता है। उसके अवचेतन मन में कॉलेज और मेडिकल स्टोर की जॉब के बाद घर लौटते समय उसे सताने वाले लड़कों का स्मरण हो आया। अब उसका आत्मविश्वास बढ़ने लगा कि इस तरह की परिस्थिति बनने पर वह उन लोगों का साहस के साथ सामना कर सकती है और उन्हें मुंहतोड़ जवाब दे सकती है।

उसने पूछा," गुरु जी क्या यह सच है कि इस विद्या का प्रयोग कर प्राचीन यात्री जंगलों से होकर अपनी यात्रा के दौरान हमला करने वाले डाकुओं का मुकाबला कर लेते थे"

माधवन ने कहा-"हां,यह बिल्कुल सच है मीरा,और वह भी निहत्थे ही।"

" क्या एक स्थान से दूसरे स्थान तक भ्रमण करने वाले साधु व बौद्ध भिक्षु भी इस कला का उपयोग करते थे?"

"हाँ, महान बौद्ध भिक्षु बोधिधर्मन ने, जिन्होंने चीन, कोरिया, जापान आदि में बौद्ध धर्म का प्रचार किया, कहा जाता है कि वे यह युद्ध कला अपने साथ ही ले गए थे। इसी का परिवर्तित रूप कुंगफ़ु के रूप में वहाँ मशहूर हुआ। वे लगभग 520 से 526 ईस्वीं में चीन गए।वहाँ  च्यान या झेन नामक ध्यान संप्रदाय की उन्होंने स्थापना भी की थी। वे अपनी लंबी यात्राओं के दौरान निहत्थे ही डाकुओं और अन्य लुटेरों का आत्मरक्षा के लिए मुकाबला कर लेते थे।"

  मार्शल आर्ट सत्र की एक अन्य विधि मल्लयुद्ध की बारीकियों का ज्ञान कराने की भी थी।माधवन ने ही इस प्रशिक्षण को भी पूर्ण कराया।

  यह योग ध्यान और मार्शल आर्ट का 15 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर अत्यंत सफल रहा। सभी साधक आत्मविश्वास से लबरेज थे।इसमें साधना के स्तर पर भले वे प्रारंभिक दो चक्रों से ऊपर नहीं उठ पाए लेकिन सभी साधकों ने यह संकल्प लिया कि वे योग्य गुरु के मार्गदर्शन में शरीर के विभिन्न चक्रों के माध्यम से सहस्त्रार की ओर उठाने का प्रयास करेंगे। अभी सूर्यनमस्कार व अन्य यौगिक अभ्यास,कलरीपायट्टु  और मल्लयुद्ध के प्रशिक्षण ने ही एक अमूल्य खजाना उन्हें सौंप दिया था।

         योग शिविर का समापन एक अत्यंत भावुक अवसर था, जब महेश बाबा ने साधकों को यहां सीखी योग शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारने का आह्वान किया। मुख्य अतिथि के रूप में अपने उद्बोधन में महेश बाबा ने कहा कि राष्ट्र निर्माण के लिए निरंतर साधना और परिश्रम की आवश्यकता होती है।राष्ट्र निर्माण एक तरह से एक ऐसी श्रृंखला है, जिसमें एक भी व्यक्ति की कोताही इस पूरी श्रृंखला को ही तोड़ कर रख देती है। उन्होंने कहा कि प्राणायाम आपकी न सिर्फ आध्यात्मिक उन्नति के लिए सहायक है, बल्कि यह आपके शारीरिक और मानसिक दोनों स्वास्थ्य को हमेशा मजबूत बनाए रखेगी।साधकों को आगाह करते हुए उन्होंने कहा कि चक्रों और कुंडलिनी शक्ति के जागरण के लिए आप चिंता न करें। कोई शीघ्रता भी न करें। इसके लिए लंबे समय के अभ्यास की आवश्यकता होती है और योग्य गुरु का मार्गदर्शन मिलना बहुत आवश्यक है।

(योग्य गुरु की उपस्थिति और मार्गदर्शन में ही योग साधना के विभिन्न चक्रों का अभ्यास किया जाना चाहिए अन्यथा ऐसा अभ्यास हानिकारक भी हो सकता है।)

(क्रमशः)

डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय