Adhure Sapno ki Chadar - 14 in Hindi Women Focused by Umabhatia UmaRoshnika books and stories PDF | अधूरे सपनों की चादर - 14

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अधूरे सपनों की चादर - 14

अध्याय 14 – संघर्ष और पहली जीत

“संघर्ष के बीच मिली पहली जीत का स्वाद उम्रभर याद रहता है, क्योंकि यह आत्मविश्वास की नींव रखता है
जीवन का हर मोड़ इंसान को नई सीख देता है। कभी शरीर से, कभी हालात से, और कभी सपनों की कसौटी से।तनु की आठवीं से दसवीं तक की यात्रा भी ऐसी ही रही—दर्द, तंगी, और संघर्षों से भरी, लेकिन सपनों की  दुनिया में खोयी तमन्ना  निरंतर आगे देखती, उसी के बीच चमकती उम्मीद की किरण के साथ  निरंतर आगे  बढ़ रही थी  मजबूत के साथ--
-पहला अनुभव – मासिक धर्म का आगमनआठवीं कक्षा की फाइनल परीक्षा चल रही थी।वह दिन तनु के जीवन में हमेशा यादगार बन गया।उसका आखिरी पेपर था।पेपर देते समय अचानक तनु को शरीर में अजीब-सी हलचल महसूस हुई।पहले तो वह घबरा गई,लेकिन बड़ी सहेलियों से सुनी हुई बातें उसे याद आईं—कि यह हर लड़की के जीवन में होने वाली प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसे मासिक धर्म कहते हैं।तनु ने जल्दी-जल्दी पेपर पूरा किया और घर की ओर दौड़ पड़ी।मन में अजीब-सी घबराहट थी। बुखार से  तप  रहा था तमन्ना का बदनघर पहुँचकर उसने मां से सब कुछ बताया।मां ने कहा— बेटा बड़ा हो गया मेरा ..जाओ   और छत पर कुछ थैला रखे  होंगे, उनमें एक  थैले में पुराना कपड़ा होगा“  कोठरी पर ऊपर रखे पुराने कपड़े ले लो, वही काम आएँगे।”तनु दौड़ी, लेकिन ढूँढने पर भी कोई ठीक कपड़ा नहीं मिला थैले में
,उस पल तनु को बहुत अकेलापन महसूस हुआ।उसने सोचा—“यह कैसी अजीब दास्तान है!एक लड़की मासिक धर्म से गुजर रही है और उसके पास लगाने को ढंग का कपड़ा भी नहीं है।”यह घटना तनु के दिल में गहरे उतर गई।उसे लगा कि गरीबी ने उसे इस कदर जकड़ा है कि उसकी ज़रूरतें भी पूरी नहीं हो पा रही हैं।“क्या हर लड़की को ऐसे ही अकेले इस दौर से गुजरना पड़ता है?”---दूध का पहला प्याला
तनु को उस दिन मां ने आधा गिलास दूध दिया।साथ  में घर का बना कोई चूर्ण भी दे  दिया ,सब ठीक हो जाएगा बेटा, एक शांत सांत्वना के साथ, असल में  बाकी दूध मां ने घर के लिए रख लिया था बाबुजी को चाय अच्छी लगती  थी और तनु को आधा ही मिला।लेकिन तनु के लिए वही आधा गिलास भी अनमोल था।दूध में मां ने गुड़ डालकर दिया।तनु ने धीरे-धीरे चखा—उसके जीवन में यह पहला अनुभव था जब उसने महसूस किया कि गुड़ और दूध का स्वाद कितना मीठा और सुकून देने वाला हो सकता है।---घर की हालत, घर की हालत जस की तस थी।इतनी जमीन होने के बावजूद कोई फायदा नहीं था।बाबूजी की तनख्वाह से बस गुजर-बसर ही हो पाता था।बाबूजी को छुट्टी नहीं मिलती थी कि वे गाँव जाकर अपने पुरखों की जमीन देख सकें।मां के मायके से भी कोई मदद नहीं मिलती थी।तनु अक्सर सोचती—“हमारे पास सबकुछ होते हुए भी कुछ नहीं है।क्योंकि  वहां उसे सँभालने वाला कोई नहीं।”--
-भाई-बहनों का संघर्ष 
बाबूजी पढ़े-लिखे थे।बाबाजी और उनका पूरा परिवार भी पढ़ा-लिखा माना जाता था।लेकिन बाबूजी के बच्चों में से अधिकांश पढ़ाई में टिक नहीं पाए।सिर्फ एक बड़ा भाई पढ़ सका और अच्छी नौकरी पा गया।बाकी भाई-बहन किसी ने बीच में पढ़ाई छोड़ दी,किसी ने कच्ची-पक्की नौकरी कर ली।जीवन जैसे-तैसे खिंचता चला गया।तनु यह सब देखकर समझ रही थी कि अगर उसने मेहनत नहीं की,तो उसका भी वही हाल होगा।इसलिए उसने ठान लिया कि वह हर हाल में पढ़ाई जारी रखेगी।---
दसवीं बोर्ड की तैयारी 
तनु ने दसवीं के बोर्ड एग्ज़ाम की तैयारी में जी-जान लगा दी।वह घंटों-घंटों पढ़ती।कभी मिट्टी के चूल्हे की रोशनी में,कभी लालटेन के नीचे।पढ़ाई की इस मेहनत का असर उसके स्वास्थ्य पर भी पड़ा।वह बहुत कमजोर हो गई।चेहरा पीला, शरीर दुबला—यह सब देखकर टीचर भी चौंक गईं।एक दिन पेपर देने गई तो टीचर ने कहा—“तनु, तुमको क्या हुआ?इतनी कमजोर क्यों हो गई हो?”तनु सिर्फ मुस्कुराई और बोली—“पढ़ाई कर रही थी, मैडम।”-
--रिजल्ट का दिन 
दसवीं का रिजल्ट आने वाला था।घर में हलचल थी क्योंकि बड़ा भैया-भाभी भी आए हुए थे।भाभी हंस-हंसकर तनु से कहतीं—“देखते हैं, कितने नंबर लाती हो।”तनु का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।इतनी मेहनत के बाद भी उसे डर था कि कहीं नाकाम न हो जाए।स्कूल के बाहर भीड़ लगी थी।मां-बाप, भाई-बहन सब बच्चों के रोल नंबर ढूँढ रहे थे।भीड़ इतनी ज्यादा थी कि आगे जाना मुश्किल हो रहा था।तनु ने किसी तरह धक्का-मुक्की करते हुए लिस्ट के पास जाकर अपना रोल नंबर ढूँढा।और फिर—उसकी आँखों में चमक आ गई।वह पास हो चुकी थी।सिर्फ पास ही नहीं,बल्कि पूरे स्कूल में थर्ड आई थी!पाँच सेक्शन में पढ़ने वाले सैकड़ों बच्चों के बीच तनु का नाम तीसरे स्थान पर था।--
-खुशियों की लहर
 तनु दौड़कर घर आई।सबसे पहले बड़ी भाभी को यह खबर दी।भाभी ने हंसते हुए गले लगा लिया।उनकी आँखों में खुशी थी,लेकिन कहीं न कहीं हैरानी भी—क्योंकि घर के बाकी भाई-बहनों ने तो पढ़ाई छोड़ दी थी,लेकिन तनु ने सबको चौंका दिया था।घरवालों को पहली बार लगा कि शायद तनु कुछ कर सकेगी।बाबूजी की आँखों में हल्की चमक आई,मां भी मन-ही-मन गर्व से भर उठीं।---तनु का सपना तनु जानती थी कि यह जीत शुरुआत भर है।अब भी रास्ता लंबा है।लेकिन इस सफलता ने उसके आत्मविश्वास को पंख दे दिए।उसने सोचा—“अगर मैं गरीबी, बीमारी और मुश्किलों के बीच इतना कर सकती हूँ,तो आगे और भी अच्छा कर सकती हूँ।”यह पहली बार था जब तनु को लगाकि उसकी मेहनत सच में रंग ला सकती है।

यह अध्याय तनु के जीवन का बेहद अहम पड़ाव है।उसने पहली बार मासिक धर्म का अनुभव किया,और गरीबी ने उसे उस समय भी अकेला छोड़ दिया।उसने दूध का आधा गिलास पाकर जाना कि छोटी-सी चीज भी बड़ी दौलत होती है।उसने घर की तंगी और भाई-बहनों की हालत देखकर पढ़ाई की राह चुनी।और आखिरकार, उसने दसवीं बोर्ड में थर्ड आकर साबित किया कि मेहनत और जिद से हर दीवार तोड़ी जा सकती है।🌸  अगर तनु की कहानी ने आपके दिल को छुआ, तो अपने मन की एक किरण मेरे साथ साझा करें—यही इस यात्रा की सबसे बड़ी जीत होगी।” 🌸